अब भी जब तुम हँसती हो न, तो अचानक से सब कुछ अच्छा लगने लगता है। अब भी तुम्हरा मैसेज आता है तो धड़कनें बढ़ जातीं है। अब भी जब तुम्हरा फोन आता है तो रिंगटोन दिल मे बजती है। तुम्हारे वजह से हर मैसेज पर फ़ोन चेक करने की आदत सी हो गयी है। लगता है तुम्हारा ही मैसेज होगा, पर हर बार ये एयरटेल वाले न! छोड़ो जाने दो, तुम्हे क्या। पर अब भी जब हैंगआउट का बीप बजता है ना, तो लगता है तुमने ही कोई गाना भेजा होगा।
अब भी बस यही मन करता है कि क्या कर दूं कि तुम इम्प्रेस हो जाओ। क्या बोल दूँ की तुम हस पड़ो। क्या पा लूं की तुम मुझे भूल न सको। अब भी जब तुम अंगड़ाई लेती हो न, या फिर वो जब अपनी लट्ट उंगलियों से पीछे करती हो, तो सब कुछ ठहर सा जाता है। अब भी जब तुम दुःखी हो जाती हो तो, जी करता है कि आसमान उठा लूं तुम्हारे एक मुस्कान भर के लिए। पर जब तुम रो देती हो न, तो तुम और भी क्यूट लगने लगती हो। फिर भी दिल बैठ सा जाता है।
दिन भर के मेहनत के बाद भी रात के चार बजे तक नींद नहीं आती कभी-कभी। सोचने लगता हूँ कि क्या कर लिया होता कि यूँ तुम खो सी न जातीं। मैं क्या करता, तुम इत्ती अच्छी ना होतीं, तो ये सब कुछ ना हुआ होता। तुम्हारा एक छाप सा बन गया है मेरी चेतना पर। तुमसे मिलने के बाद मैं पहले जैसा कभी नहीं रहा। अब बतलाता नहीं हूं पर अब भी न, जब तुम्हारा फ़ोन आता है तो रिंगटोन दिल मे बजती है। पर छोड़ो जाने दो। तुम्हे क्या इन सब से।
~राघव
15 Jan 2018