क्या हमारे विद्यालय समुचित शिक्षा उप्लब्ध करा पा रहे हैं? क्या हम अपने विद्यार्थियों को समग्र शिक्षा दे पा रहे हैं ? क्या हमारे देश में शिक्षा में रटंत विद्या (rote learning ) का ज्यादा समावेश नहीं है? क्या हमारी शिक्षा पद्धति में परीक्षा में अधिक मार्क्स लाने पर ही अधिक जोर नहीं है? क्या शिक्षा की समाप्ति के बाद हमारे विद्यार्थी जीवन का मुकाबला करने के लिए सक्षम है? क्या हम विद्यार्थियों को चरित्र निर्माण के बारे में कुछ बता रहे हैं ? यह हमें सोचने पर विवश करता है कि हम शिक्षा के उद्देश्य को पुनरीक्षित करें।
प्रबुद्ध जन यह सोच कर देखें कि जिंदगी में सफलता के लिए क्या आवश्यक है - उसके परीक्षा के अंक या उसका अपना व्यवहार। इस व्यवहार में शामिल है उसकी लगन, उसका वैल्यू सिस्टम, उसकी आदतें, उसका टीम वर्क, तथा उसकी नया काम सीखने की जिज्ञासा । मेरे विचार में परीक्षा के अंक के आधार पर केवल पहला साक्षात्कार मिलता है । इस साक्षात्कार में तथा भविष्य की पदोन्नति के लिए केवल व्यवहार ही काम आएगा।
क्या यह उचित नहीं होगा कि हम विद्यार्थियों को कुछ व्यवहारिक ज्ञान भी दें। साथ ही हम उनको सोचने की भी प्रेरणा तथा अवसर दें ताकि वे अपना रास्ता खुद चुन सकें। यह सोचने की शक्ति उन्हें नए रास्तों पर ले जाएगी तथा समस्याओं के नए समाधान चुनने की प्रेरणा देगी। मेरे विचार में उनमें परीक्षा के नंबरों पर कम ध्यान देकर जिज्ञासा का भाव उत्पन्न किया जाए। हमें शिक्षा को अधिक रोचक भी बनाना होगा.। इसके लिए सीखी गई विद्या का व्यावहारिक उपयोग यदि किया जाए तो शिक्षा को इंटरेस्टिंग भी बनाया जा सकता है।
उपरोक्त विचार क्रम को व्यावहारिक रूप देने के लिए एक पहल की गई है महामना मालवीय विद्या मंदिर, विवेक खंड 1, गोमतीनगर , लखनऊ द्वारा। इस कार्यक्रम का विस्तृत विवरण इसी वेबसाईट पर अन्यत्र उपलब्ध है।
यह एक नागरिक प्रयास है । यदि आप इस प्रयास में भागीदार बनना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करें और हमसे संपर्क करें। .