अक्सर निगाह पूछ बैठती है,

तसव्वुर में भी न पूछे जाने वाले सवाल

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और क्या वफ़ा चाहते हो तुम हमसे

हमें मालूम है के तुम बदल जाओगे वक़्त पड़ने पर

फिर भी हम उल्फत निभाए जाते हैं

रंज इस बात का नहीं कि तुम किसी और के हो

ग़म तो ये है कि तुम हमारे नहीं

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आज कल मैं एक ऐसे शख्स के साथ हूं

जो हाथ में खंजर लिए हुए है

और ये जानते हुए भी मैं 'सहज'

खामोशियों का जामा ओढ़े हुए हूं

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मुक्कमल सी बात कह दी होती तुमने उस दिन

तो सहज' रिश्ते आज यूं अधूरे न होते

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वाजिब नहीं है तुम्हारा हर बात पे यूं रुठ जाना

हम बात बात में तुम्हें याद करते हैं सहज'

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सहज' ही मुमकिन नहीं उन ऊंचाइयों को पाना

पंख फड़फड़ाने पड़ते हैं हर सांस के साथ

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ख़त में लिपटे हुए अरमान भेजे थे जो तुमने

आज तलक मेरे पास हैं अमानत तुम्हारी

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तमाम रात, तनहाई और उदासी

चंद अल्फाज और थोड़ी सी स्याही

कहानी मुकम्मल नहीं हो सकती

सहज' मेरे और तुम्हारे बिना

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तुम्हारी बेबाकियां भी कभी दिलचस्प थीं

तुम्हारी खामोशियां भी सहज' उफ्फ हैं

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वक़्त की बेचैनी जिंदगी भर

लफ़्ज़ों में लिखने की जद्दोजहद

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