हम आपको बताएंगे डिंडौरी की वो बातें जाे प्रेरणा देती हैं, दिखाएंगे डिंडौरी के वो दृश्य जिन्हें देखकर आपको सुकून मिलेगा, पढ़ाएंगे वो खबरें जिन्हें पढ़कर आपको खुद और डिंडौरी पर नाज होगा, सुनाएंगे वो अल्फाज़ जिन्हें सुनकर आपको बेहताशा खुशी मिलेगी।
रक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस विशेष...
डीडीएन रिपोर्टर / डिंडौरी | आज हम देश की आजादी की 73वीं सालगिरह के जश्न के साथ रक्षाबंधन का त्योहार भी मनाएंगे एक तरफ देशप्रेम की पुरजोर भावना का खास दिन है तो दूसरी ओर भाई-बहन के अटूट रिश्ते, प्यार, त्याग, समर्पण का विशेष अवसर। यह अद्भुत संयोग है कि रक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस एक ही दिन मनाया जा रहा है। इसका उत्सव डिंडौरीडॉटनेट शहर के उन भाई-बहनों के साथ मना रहा है, जो एक-दूसरे के लिए न केवल भाई-बहन बल्कि दोस्त, हमदर्द, माता-पिता और न जाने कितने भावनात्मक रिश्ते निभाते हैं...
सबसे पहले. ..उस बहन को सलाम, जिसने भाई को बचाने के लिए अपना लिवर दे दिया...
डिंडौरी के पाठक परिवार की बड़ी बेटी जाह्ववी दुबे ने बीते दिनों 15 साल छोटे भाई जयेंद्र (जीतू) को लिवर डोनेट किया है। जीतू के लिवर करीब 90% डैमेज हो चुके थे। तब उनके बचने की कोई संभावना नहीं थी। ऐसे में जाह्नवी ने तय किया कि वो अपने जिगर के टुकड़े को खुद लिवर डोनेट करेंगी। उन्होंने ऐसा किया भी। अॉपरेशन सफल रहा। जीतू मौत के मुंह से बाहर आ गए। तेजी से रिकवर करने लगे, लेकिन कुदरत काे कुछ और ही मंजूर था और जीतू ने महीनेभर के भीतर दम तोड़ दिया। शायद होनी को यही गवारा था, मगर जाह्नवी ने जो त्याग अपने भाई के लिए किया वह असाधारण और मानवता के लिए मिसाल है। भाई-बहन का ऐसा प्रेम इस दुनिया में अतिदुर्लभ है। जाह्नवी आपको लाखों सलाम..।
हर साल बेशुमार राखियों से सजती है मेरी कलाई
डिंडौरी के यंग बिजनेसमैन अौर बीजेपी के एक्टिव मेंबर पवन शर्मा के लिए भाई-बहन का रिश्ता कई मायनांे में खास महत्व रखता है। उन्हाेंने कहा, ईश्वर ने मुझे भले ही एक मां की काेख से जन्मी बहन का भाई नहीं बनने दिया लेकिन नागपुर में रहने वाली सोनल व शीतल पाराशर समेत डिंडौरी में मेघा, शिवानी, सोनम और मुस्कान शर्मा ने कभी बहन की कमी महसूस नहीं होने दी। हर साल रक्षाबंधन में मेरी कलाई पर बेशुमार राखियां राज करती हैं। मेरी नजर में बहनें सगी या पराई नहीं होतीं, वो प्यार, अपनापन और समर्पण के साथ रिश्ता निभाने वाली इंसान होती हैं। बहन कुदरत का एक ऐसा अनमोल उपहार है, जो हमें अक्सर साहस और आत्मविश्वास के साथ जीना सिखाती हैं।
- पवन शर्मा (को-ओनर, नीलम ग्रुप ऑफ होटल्स एंड कैटरर्स, युवा भाजपा कार्यकर्ता)
वह उम्र में छोटी है लेकिन कभी मां कभी दोस्त भी बन जाती है
मेरे जीवन में पांच बहनों का प्यार है। एक बहन है, जिसकी डांट खाए बिना जीने में स्वाद नहीं आता। हम सभी भाइयों में वो सबसे बड़ी है। उसका नाम रानी है। जैसा नाम वैसा काम। वह सब पर राज करती है। घर पर ऐसा कोई नहीं जो उसकी डांट से बचा हो। हम संयुक्त परिवार में रहते हैं। हम नौ भाइयों के बीच पांच बहनें हैं। मेरे जीवन में अगर किसी बहन की अहम भूमिका है तो वो है मेरी छोटी बहन मंदाकिनी। उसकी शादी महाराष्ट्र के चालीसगांव में गुप्ता परिवार में हुई है। उसने हर वक्त मुझे भरपूर प्यार और साथ दिया। जीवन के विभिन्न पड़ावों में उसने कभी छोटी तो कभी बड़ी बनकर मेरा साथ निभाया है। वह कभी ममतामयी मां की भूमिका निभाती है तो कभी दोस्त बनकर मेरा दर्द बांटती है। इस बार की राखी हम साथ मना रहे हैं।
- अवध राज बिलैया (बिजनेसमैन, बिलैया हार्डवेयर, भाजपा कार्यकर्ता)
मां के चले जाने के बाद बहनों ने संभाला हम पर लुटाई ममता
मेरी दो बहनें हैं। बड़ी स्वाति और छोटी प्रतिमा। जब बच्चे थे तब एक-दूसरे से लड़ना-झगड़ना, रूठना-मनाना, हंसना-रुलाना लगा रहता था, लेकिन जून 2004 में मां के स्वर्गवास के बाद एक झटके में जिंदगी बदल गई। उस वक्त लगा कि जैसे हम एकदम से बड़े हो गए। घर की जिम्मेदारियां बढ़ने लगीं। मम्मी की कमी हर पल सताती रही। कुछ वक्त बाद बहनों ने घर को संभालना शुरू किया। इतने बड़े दुख से उन्होंने खुद को निकाला और हम दोनों भाइयों मुझे और अनुराग को साहस दिया। भाई और बहन का रिश्ता कब मां-बेटे के रिश्ते में बदल गया, पता ही नहीं चला। बहनों ने व्यक्तिगत इच्छाओं की परवाह किए बिना हम पर जीभरकर प्यार और ममता लुटाई। हमारे परिवार की वर्तमान सुदृढ़ स्थिति में बहनों की भूमिका मां से किसी भी रूप में कम नहीं है।
- पीयूष द्विवेदी (संचालक, डिंडौरी पब्लिक स्कूल, डीपीएस)
काश, वो दिन फिर लौट आएं हम फिर बचपन में खो जाएं
बचपन की यादें बचपन की बातें खूब सताती हैं मुझको
बहनों से लड़ना और खेलना खूब रास आता था मुझको
थम सा गया वो खेल सारा जब बहन चली गई ससुराल को
आंखों में आंसू और बहुत सी यादें सौंप गई थी वो मुझको
आज रक्षाबंधन का दिन है बहन तो है ससुराल में
सूनी-सूनी देख कलाई अपनी आंसू हैं मेरी आँखों में
बहन का राखी बांधना तोहफे के लिए लड़ना हर दृश्य है मेरी आंखों में
यकीनन सोच-सोच बहन भी आंसू डबडबा रही होगी ससुराल में
हर तीज और त्योहार सूने से हैं बहन तेरे अभाव में
जो हो तू साथ तो हर खुशी दूनी हो जाती है तेरे प्रभाव में
पिता के घर आंगन की फुलवारी तुझसे ही महकती थी
तू उनके दिल की धड़कन और मां की आंखों की बाती थी
घर में कुछ आए और तेरा बराबर से सब भाई-बहनों में बांटना
मैंने तुझसे ही सीखा था सभी लोगों का ख्याल रखना
काश कि वो दिन फिर लौट आएं हम फिर बचपन में खो जाएं
छोड़ जवानी की भाग दौड़ हम फिर एक-दूजे में खो जाएं
सोचता हूं वो दिन कितने अच्छे थे जब हम छोटे से बच्चे थे
हर एक दिल सच्चा था न कोई झूठ न कोई फरेब के धंधे थे
एक-दूसरे से लड़ना-झगड़ना और मनाना हम जानते थे
‘राज’ बात-बात पर कट्टी और दोस्ती करना हम जानते थे
- शहर के यंग स्पोट् र्समैन, कवि, लेखक और फिल्मकार रवि राज बिलैया ने अपनी बहनों के प्रति कविता के जरिए भावनाएं व्यक्त कीं
19 साल बाद फिर राखी-अाजादी का जश्न एकसाथ, इसके बाद 2084 में आएगा दुर्लभ संयोग
19 साल बाद रक्षाबंधन पर्व और स्वतंत्रता दिवस एक ही दिन मनाने का योग बन रहा है। इससे पहले यह संयोग 2000 में बना था। इसके बाद 2084 यानि 65 साल बाद यह दुर्लभ दिवस आएगा। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार आज चंद्र प्रधान श्रवण नक्षत्र का योग है। इसी वजह से भारत के दो बड़े और महत्पवूर्ण दिन साथ-साथ पड़ रहे हैं। इस साल अच्छी बात यह है कि 15 अगस्त को भद्रा नक्षत्र सूर्योदय से पहले ही खत्म हो जाएगी, इसलिए बहनें निश्चिंत होकर दिनभर में किसी भी समय भाइयों की कलाई पर रक्षाबंधन बांध सकती हैं। स्वतंत्रता दिवस हम भारतवासियों की राष्ट्रीय अस्मिता का राष्ट्रव्यापी उत्सव है, वहीं रक्षाबंधन भाई-बहन के बेमिसाल और अटूट रिश्ते का प्रतीक है।
ज्योतिषी बता रहे हैं... आज राखी बांधने का सही समय
इस बार बहनों को भाई की कलाई पर प्यार की डोर बांधने के लिए मुहूर्त का इंतजार नहीं करना पड़ेगा क्योंकि आज राखी बांधने के लिए काफी लंबा मुहूर्त मिलेगा। 15 अगस्त की सुबह 5 बजकर 49 मिनट से शाम 6 बजकर 01 मिनट तक राखी बांधी जा सकेंगी। इसके लिए 12 घंटे 58 मिनट का समय मिलेगा। शुभ मुहूर्त दोपहर साढ़े तीन घंटे तक रहेगा। चंद्र प्रधान श्रवण नक्षत्र का संयोग बहुत विशेष रहेगा। इसी की वजह से ही रक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस साथ पड़ रहे हैं। आज सिद्धि योग भी बनेगा, जिससे पर्व की महत्ता और भी बढ़ेगी। अरविंद जयंती, मदर टेरेसा जयंती और संस्कृत दिवस भी आज ही है।
अाज के मुहूर्त | शुभ : सुबह 06:02 से 07:39 बजे, चंचल : सुबह 10:53 से दोपहर 12:30 बजे, लाभ : दोपहर 12:30 से 02:07 बजे, अमृत : दोपहर 02:07 से 03:44 बजे, शुभ : शाम 05:21 से 07:01 बजे, अभिजीत मुहूर्त : दोपहर 12:07 से 12:55 बजे।
18 अप्रैल वर्ल्ड हेरिटेज डे है। साल 2019 की थीम ‘हिस्ट्री एंड सिग्निफिकेंस ऑफ द डे’ रखी गई है। देश-दुनिया में न जाने कितनी ऐसी दुर्लभ चीजें हैं, जिन्हें ‘वर्ल्ड हेरिटेज’ कहा जाता है। ताजमहल, खजुराहो मंदिर, अजंता-ऐलोरा, सूर्य मंदिर कोणार्क, फतेहपुर सीकरी, सांची बौद्ध मंदिर समेत कई ऐसी जगहें हैं, जिन्हें विश्व विरासत का दर्जा मिला है। इनके बारे में लगभग सभी लोग जानते हैं, लेकिन मध्यप्रदेश के डिंडौरी जिले में भी कई ऐसी दुर्लभतम जगहें हैं, जो विश्व विरासत से किसी मायने में कम नहीं हैं। भले ही इन्हें ‘वर्ल्ड हेरिटेज साइट’ का रुतबा हासिल न हो। वर्ल्ड हेरिटेज डे के मौके पर डिंडाैरीडॉटनेट आपको उन्हीं जगहों की सैर पर ले जा रहा है। ...तो आइए, चलते हैं और देखते हैं डिंडौरी जिले की उन बेमिसाल विरासतों की खासियतें।
01 . साढ़े 6 करोड़ साल पुराना घुघुवा नेशनल फॉसिल्स पार्क
घुघुआ के जीवाश्म रिकॉर्ड में मुख्य रूप से शीर्ष त्रेता युग के सबसे पुराने क्रेटेशियस से संबंधित पौधे हैं, जो 65 मिलियन वर्ष पुराने हैं। यह सप्ताह के सभी दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है।
कहां स्थित है : जिला मुख्यालय से 65 किमी और शहपुरा से 14 किमी दूर।
खोज कब हुई : 1970 में एसओ डॉ. धर्मेंद्र प्रसाद ने की थी।
और क्या है यहां : पौधों की 18 फैमिलीज से संबंधित 31 पीढ़ियां।
कब बना नेशनल पार्क : 1983 में इसे नेशनल पार्क का दर्जा हासिल हुआ था।
02 . ब्लैग बग पार्क : जिला मुख्यालय डिंडौरी से करीब 20 किमी दूर स्थित कारोपानी में काफी संख्या में कृष्ण मृग यानि काले हिरण पाए जाते हैं। यह एक वन ग्राम है, जिसकी देखरेख मप्र फॉरेस्ट डिपार्टमेंट करता है।
03 . देवनाला फॉल : यह डिंडौरी से 22 किमी दूर मंडला-डिंडौरी रोड पर सक्का के पास ग्राम कचनारी में स्थित है। यहां पानी एक पहाड़ी के नीचे बने शिवलिंग पर गिरता है। पानी के कटाव के कारण पहाड़ी v शेप में दिखाई देती है।
04 . नेवसा फॉल : यह डिंडौरी से करीब 15 किमी दूर घुघरी रोड पर स्थित है। इसे आदिदेव शिव की पूजास्थली माना जाता है। बारिश के मौसम में यह स्थान काफी मनोरम हो जाता है। यहां सप्तऋषियों द्वारा तप के साक्ष्य भी मिलते हैं।
05 . स्पेशल बैंबू वर्क : डिंडौरी जिले का बैंबू वर्क काफी फेमस है। यहां के कारीगर बांस से कई प्रकार के हाउसहोल्ड बनाते हैं, जिन्हें देश-दुनिया के फाइव-सेवन स्टार होटलों के इंटीरियर में प्रमुखता से उपयोग किया जाता है।
06 . अनोखी चित्रकारी का गढ़ पाटनगढ़ : पाटनगढ़ पेंटिंग्स न केवल भारत बल्कि अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया में भी फेमस हैं। यहां गांव के सभी लोग चित्रकारी में विशेष महारत रखते हैं।
07 . डगोना फॉल यानी मिनी भेड़ाघाट : डिंडौरी से 85 किमी दूर स्थित डगोना फॉल को मिनी भेड़ाघाट भी कहते हैं। अंग्रेजी में ‘डगोना’ का अर्थ है ‘Cross a river in a single jump.’
डिंडौरी की बेटी जाह्नवी ने लिवर देकर बचाई 15 साल छोटे भाई जयेंद्र की जान
जाह्नवी ने कहा : वह रिश्ते में भाई जरूर, लेकिन मेरे लिए बेटे से कम नहीं
नाम जाह्नवी दुबे। उम्र 41 वर्ष। पेशे से कंसल्टेंट। मप्र के डिंडौरी में पली-बढ़ीं और पढ़ीं। डिंडौरी के पाठक परिवार की बड़ी बेटी जाह्ववी दुबे ने वह कमाल कर दिखाया है, जिसकी मिसाल न केवल डिंडौरी बल्कि दुनियाभर के लोग सदियों तक देते रहेंगे। उन्होंने 15 साल छोटे भाई जयेंद्र पाठक को लिवर डोनेट किया और उन्हें मौत के चंगुल के बचाकर ले आई। जाह्नवी के साहस, त्याग और प्रेम काे युगों-युगों तक नहीं भुलाया जा सकेगा। इस असाधारण त्याग को डिंडौरीडॉटनेट का कोटिश: प्रणाम... लाखों बार सलाम...
हल्के बुखार से 90% लिवर डैमेज तक पहुंच गया था जयेंद्र का केस
जाह्नवी दुबे मूलत: डिंडौरी की हैं। पति प्रवीण दुबे भोपाल में न्यूज चैनल में सीनियर एडिटर हैं। आकृति ईको सिटी में रहने वालीं जाह्नवी कंसल्टिंग कंपनी में काम करती हैं। परिवार के लोगों ने बताया, जयेंद्र (26) को 10 दिन से हल्का-तेज बुखार हो रहा था। उन्होंने पहले बुखार को मामूली वायरल समझा। डॉक्टर भी बीमारी डायग्नोस नहीं कर सके। बीमारी बढ़ने पर जयेंद्र को जबलपुर के हॉस्पिटल में एडमिट किया गया। वहां डॉक्टरों ने बताया, उनका लिवर 90% तक डैमेज है। बचने की संभावना कम है।
ऑपरेशन के पहले जाह्नवी ने कहा : जयेंद्र मुझसे 15 साल छोटा, उसे मैंने गोद में खिलाया है...
जाह्नवी के पति सीनयर जर्नलिस्ट प्रवीण दुबे के मुताबिक, जयेंद्र की गंभीर बीमारी के बारे में पता चलते ही वो जाह्नवी और 14 साल के बेटे प्राचीश के साथ जबलपुर के लिए निकल पड़े। इस दौरान जाह्नवी कहीं भी बेबस या परेशान नहीं लगी। वह पूरे रास्ते सिर्फ और सिर्फ जयेंद्र को बचाने के विकल्पों के बारे में ही बात करती रही। वह कह रही थी- ‘जयेंद्र मुझसे 15 साल छोटा है। उसे मैंने गोद में खिलाया है। वह भले ही रिश्ते में मेरा भाई है, लेकिन मेरे लिए बेटे से कम नहीं। मैंने उसे गोद में खिलाया है। मैं किसी भी कीमत पर उसे बचा लूंगी। मैं उसे लिवर डोनेट करूंगी।’ प्रवीण ने आगे कहा, ‘उसकी इन बातों ने मुझमें उसके प्रति पहले से भी कहीं अधिक आदर जगा दिया। उसकी आत्मविश्वासी बातें सुनकर मेरा डर दूर हो गया और हम ठोस उपायों पर बातें करने लगे। जबलपुर पहुंचने के बाद दोपहर करीब 12:30 बजे जाह्नवी एयर एंबुलेंस से दिल्ली के लिए भाई के साथ ही रवाना हो गई। 15 जुलाई को सुबह जाह्नवी और जयेंद्र का ऑपरेशन होना था। जबलपुर से कोई फ्लाइट नहीं थी, इसलिए मैं और बेटा प्राचाीश ट्रेन से नई दिल्ली के लिए रवाना हुए।
डॉक्टर बोले- सर्जरी में बहुत रिस्क प्रवीण बोले- ईश्वर पर पूरा विश्वास
जयेंद्र के बहनोई प्रवीण ने कहा, डॉक्टरों को जाह्नवी के ऑपरेशन की प्रक्रिया शुरू करने से पहले उनकी हामी चाहिए थी। मेदांता हॉस्पिटल, गुड़गांव से उन्हें फोन पर सूचना दी गई कि ऑपरेशन में पत्नी की जान भी जा सकती है, क्या आप ऑपरेशन के लिए तैयार हैं? इस पर प्रवीण बोले- हां, मैं तैयार पूरी तरह हूं! फिर डॉक्टरों ने उन्हें बताया, इस सर्जरी में 13 तरह के खतरनाक रिस्क हैं... तो प्रवीण ने कहा, हमें ईश्वर पर पूरा विश्वास है... और उन्होंने हामी भर दी। वे करीब 14 घंटे तक अस्पताल के लॉबी में ही बैठे रहे।
जाह्नवी के फैसले के बाद प्रवीण ने फेसबुक पर लिखा तुम्हारी बहादुरी, समर्पण, जीवटता को सलाम है...
लोग राखी का त्यौहार मनाते हैं मगर मेरी पत्नी जाह्ववी तो राखी को जी गई। हैपेटाइटिस की बीमारी में उसके छोटे भाई का लिवर देर से बीमारी डायग्नोज होने के कारण पूरी तरह ख़राब हो गया था। बीते शनिवार जब जबलपुर हॉस्पीटल ने हाथ पूरी तरह खड़े कर दिए कि 90% उम्मीद ख़त्म, तो परिवार के बाकी लोगों ने रोना शुरू कर दिया लेकिन जान्हवी ने उस बचे हुए 10% के विकल्प पर फोकस किया... ये 10% जटिल और बेहद कठिन था लेकिन असंभव नहीं... वो था, एयर एम्बुलेंस के ज़रिए कुछ घंटों में गुड़गांव के मेदांता ले जाना और उतनी ही स्पीड से लिवर ट्रांसप्लांट करना। उसने एयर एम्बुलेंस बुक करने को कहा और खुद लिवर डोनेट का निर्णय लिया... कुछ घंटो में ही वो उसे लेकर मेदांता पहुँची और अपना लीवर देकर भाई को यमराज के पंजों से छुड़ा लाई। भोपाल से बाय रोड जबलपुर जाना, जबलपुर एयर एम्बुलेंस बुलाना और मेदांता पहुंच कर 24 घंटे के अंदर ट्रांसप्लांट भी करा लेना, वाकई बहुत जीवट का काम था... एम्बुलेंस में अटेंडेंट ज्यादा जा नहीं सकते थे और रूटीन की फ्लाइट भी मुझे नहीं मिली। मैं बेटे के साथ ट्रेन से जब दिल्ली पहुंचा तो ये ओटी में जा चुकी थी। लगभग 14 घंटे के जटिल ऑपरेशन की परमिशन भी डॉक्टर ने मुझसे फोन पर ली और ये बताया भी कुछ भी हो सकता है.. डोनर, रिसीवर दोनों की जान को ख़तरा हो सकता है लेकिन मैं जानता था कि पवित्र उद्देश्य में ईश्वर सदैव सहायक होते हैं, लिहाज़ा मैं चिंतित तो था लेकिन भयभीत नहीं था... तुम वाकई क़माल हो बेटू, शुद्ध अंत:करण वाली निस्वार्थ और चरम तक ईमानदार... रिश्तों और अपने पेशे दोनों के प्रति... मुझे याद पड़ता है कि बेहद समृद्ध आर्थिक पृष्ठभूमि में पली बढ़ी लेकिन मेरे साथ कितने अर्थाभाव को मुस्कुराहट के साथ झेल गई। कभी मेरे ईमान को भी डगमगाने नहीं दिया. यूं तो मैं भी सीधी रीढ़ की हड्डी वाला व्यक्ति हूं लेकिन तुमने भी मुझे लगातार प्रेरित किया कि अभाव झेले जा सकते हैं लेकिन कभी किसी से गैर वाज़िब मदद के लिए न हाथ फैलाना और न ही ऐसी किसी पेशकश को क़बूल करना। सरकार से मांगने पर संभवतः एयर एम्बुलेंस मिल सकती थी या कोई आर्थिक सहायता हो सकती थी लेकिन उसने ऐसे किसी प्रस्ताव पर सोचना तो दूर बल्कि लोगों को सूचना तक देने से मना किया.. ये ठीक है कि मुझे बेहतर संस्कार परिवार से मिले लेकिन उसे लगातार तराशा तुमने.. तुम्हारी बहादुरी, समर्पण और जीवट को सलाम है... चरम तक प्यार तो मैं यूं भी तुम्हें करता था लेकिन अब तुम्हारा स्थान मेरे मन में आदर के सर्वोच्च दर्जे पर रहेगा.. ऐसे दौर में जब कुछ लोग सगे भाई को एक पैकेट दूध देने में नाक भौं सिकोड़ते हों, ऐसे में अपने शरीर का अंग काटकर देेना, तुम्हारी तरह कोई विरला ही कर सकता है.. ईश्वर के प्रसाद के तौर पर तुम मेरे जीवन में आई हो... दीर्घायु रहो, ऐसे ही समर्पण के साथ अपने हर टास्क को पूरा करने का हौसला तुम्हें प्रभु से मिलता रहे... जल्दी पूरी तरह से स्वस्थ्य होकर आओ घर... मेरे ध्यान की दुनिया की समंदर सी शहज़ादी...
डिंडौरी की आवाज सीजन-3 का ग्रैंड फिनाले
गोलू बर्मन बने विनर पारुल फर्स्ट रनरअप, हरदिल में समा गई डिंडौरी की आवाज़
मां नर्मदा की गोद में बसे डिंडौरी के बीचोंबीच स्थित शासकीय उत्कृष्टता विद्यालय के मंच पर 6 जून 2019 की शाम हमेशा के लिए यादगार बन गई। शहर के नेकदिल युवाओं के बैनर ‘डिंडौरी स्टार स्टेज’ के तले शुक्रवार को सुरमयी प्रतियोगिता ‘डिंडौरी की आवाज-3’ का द ग्रेट ग्रैंड फाइनल हुआ। दक्ष निर्णायकों के कुशल फैसले ने गोलू बर्मन को विनर और पारुल जैन को फर्स्ट रनरअप बनाया। जितेन्द्र लोरिया तीसरे स्थान पर रहे। विनर्स को क्रमश: 11 हजार, 5 हजार, 3100 रुपए का कैश प्राइज दिया गया। बाकी प्रतिभागियों को भी प्रमाण-पत्र, मोमैंटो दिए गए। इस मौके को और भी खास बनाया मीडिया समूह न्यूज 18 के सीनियर एडिटर प्रवीण दुबे और एबीपी न्यूज के इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड होल्डर एंकर श्रीवर्द्धन त्रिवेदी। बता दें कि प्रवीण दुबे और श्रीवर्द्धन त्रिवेदी डिंडौरी में ही पले-बढ़े और पढ़े हैं। यहां प्रवीण ने अपने शहर के लोगों के बीच खुद को पाकर खुशी जाहिर की और श्रीवर्द्धन ने मां रेवा को स्वच्छ बनाए रखने का आग्रह किया। कार्यक्रम के पहले डिंडौरी स्टार स्टेज परिवार के सदस्य रहे स्व. सुरेश गुप्ता को श्रद्धांजलि दी गई।
निर्णायक टीम में खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय से संगीत विशारद पल्लवी फाटक, जबलपुर की संगीतसेवी श्वेता मिश्रा और मंडला के म्यूजिक डायरेक्टर वरुण उइके शामिल थे। चिराग एंड ग्रुप के युवा संगीतकारों ने शानदार म्यूजिक दिया। मुकेश खंपरिया की एंकरिंग ने शाम को रूमानी बनाया।
इनके कंधों पर था बड़ा जिम्मा
अकील अहमद सिद्दीकि , श्रीराम उरैती, कमलेश अवधिया, अखिलेश सोनी, दीपक पांडेय, कमलेश सोनी, बालकृष्ण परस्ते, सुशांत जैन, अविनाश टांडिया, पवन चौरसिया, ध्रुव पटेल, उमा श्रीवास्तव, मनोज पारस, अरमाdotन प्रधान, नितिन मिश्रा, कृष्णा नन्दा आदि।
इनसे गुलजार थी सुरीली शाम
गोलू बर्मन, पारुल जैन समेत वैभव कृष्ण परस्ते, मोनिका पड़वार, अवनि सिंह परिहार, गोल्डी पारस, प्रशंसा मिश्रा, विकास बहादुर, लक्ष्मेन्द्र सराठिया, गौरव दाहिया, दीपक मरावी, मृदुवाणी वैश्य, जिया जैन, सचिन सेनी, विकास पाराशर आदि ने सुरीले तराने सुनाए।
परिवार की मुखिया चैनवती देवी गौतम ने परिजनों की खुशहाली के लिए सुनी श्रीसत्य नारायण कथा
अक्षय तृतीया और विप्र कुल श्रेष्ठ परशुराम जी की जयंती के पावन अवसर पर गौतम परिवार ने भगवान श्रीसत्यनारायण की पूजा-अर्चना की। पं. सूरज प्रसाद गौतम के नर्मदा गंज स्थित निवास पर उनकी धर्मपत्नी चैनवती देवी गौतम ने विधान पूर्वक व्रत-कथा का आयोजन किया। भागवताचार्य पुरोहित पं. वीरेंद्र प्रसाद उरमलिया ने व्यास पीठ संभालते हुए वैदिक विधि के अनुसार पूजन संपन्न कराया। कथा के दौरान गौतम परिवार के सभी सदस्यों समेत आसपास के श्रद्धालुओं ने भावपूर्वक उपस्थिति दर्ज कराई और पुण्य लाभ लिया। कथा प्रारंभ होने से पहले चैनवती जी ने देवी स्वरूप कन्याओं के पैर धुलवाकर उन्हें भोजन कराया और आशीर्वाद लिया।
डिंडौरी आदिवासी बाहुल्य जिला है। इसे जिला बने भले ही महज 18-20 बरस हुए हैं लेकिन इस क्षेत्र में आदिवासियों का इतिहास सदियों पुराना है। आज (9 अगस्त) विश्व आदिवासी दिवस है। इस मौके पर डिंडौरीडॉटनेट आपके सामने जनजातियों की अनोखी छवि प्रस्तुत कर रहा है। डिंडौरी जिले के 927 गांवों में से 899 गांवों में विभिन्न जनजातियां निवास करती हैं। हर जनजाति की अपनी खास पहचान, सभ्यता, संस्कार, आस्था, मान्यता, कला एवं संस्कृति है। ये लोग सदियों से अपनी परंपराओं को निर्बाध रूप से आगे बढ़ा रहे हैं।
चिकित्सा पर्यटन में डिंडौरी के आदिवासियों का योगदान अतुलनीय
डिंडौरी जिला जैव-विविधताओं से संपन्न क्षेत्र है। जिले के कई स्थानाें में दुर्लभ आयुर्वेदिक औषधियां पाई जाती हैं। इसका एक बड़ा कारण है यहां निवास करने वाले आदिवासी लोग, जो इन औषधियों की पहचान कर इनसे असाध्य रोगों के उपचार के लिए दवाइयां बनाते हैं। उनकी प्राचीन कुशल चिकित्सा पद्धति आज भी जनसमूह को लाभान्वित करती है। जनताजीय लोग प्राचीन चिकित्सा पद्धति में निपुण हैं। उनकी वजह से जिले में चिकित्सा पर्यटन तेजी से बढ़ रहा है। डिंडौरी अचनकमार अमरकंटक जीवमंडल रिजर्व क्षेत्र में आता है। जिले के आदिवासियों में औषधीय जड़ी-बूटियों का पारंपरिक ज्ञान है। उनकी कुशलता और दुर्लभ जानकारी की वजह से अनेक असाध्य रोगों का उपचार भी संभव है।
दुनियाभर में लोकप्रिय है डिंडौरी का करमा नृत्य
डिंडौरी जिले के आदिवासियों का जीवन अनेक कला और उत्सव से गुलजार है। इनमें चित्रकला, संगीत, नृत्य, गायन आदि शामिल हैं। यहां की प्रत्येक आदिम जनजाति खुद में विशेष और परंपरागत लोक-साहित्य विविधताओं से परिपूर्ण है। इनकी परंपराओं से जुड़े लोकगीत न केवल मध्यप्रदेश बल्कि देश-दुनियाभर में लोकप्रिय हैं। विश्विवख्यात करमा नृत्य डिंडौरी जिले के आदिवासियों की खास पहचान है। करमा नृत्य खुशी जाहिर जताने के लिए करते हैं।
इस आदिवासी गांव के हर घर में एक लोक चित्रकार
डिंडौरी से कुछ ही दूरी पर पाटनगढ़ नाम का एक गांव है। यहां बहुतायत में गोंड परिवार हैं। इसकी खासियत है कि यहां हर घर का एक सदस्य लोक चित्रकार है। यह गांव आदिवासी संस्कृति और विरासत को चित्रित करने वाले विश्व स्तर के चित्रकारों की समृद्ध परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। गोंडी चित्रकला छिपा हुआ खजाना है, जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी पाटनगढ़ में शिद्दत से सहेजा गया है। गोंड जनजाति, सबसे बड़े आदिवासी समुदायों में से एक है।
जनजातियों की लाजवाब बांस कला और धातु शिल्प
यह जनजातियों की मौजूदगी से ही संभव हो सका कि अयस्क से लौह निष्कर्षण व लोहे से उत्पाद बनाने की कला आज भी डिंडौरी में जीवित है। जब गढ़ा लोहे से बनी कलाकृतियों की बात आती है तो डिंडौरी के आदिवासियों का नाम लिया जाता है। इनकी बनाई बांस की कलाकृतियां भी देश-दुनिया के फाइव-सेवन स्टार होटलों की शोभा बढ़ा रही हैं। घरों में इंटीरियर डिजाइनिंग के लिए बांस से बने प्रोडक्ट्स डिंडौरी से कई बड़े शहरों में भेजे जाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल पर 1982 में शुरू हुआ सफर
इसकी संकल्पना सर्वप्रथम 37 साल पहले तैयार की गई थी। 9 अगस्त 1982 को संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) की पहल पर मूलनिवासियों का पहला सम्मेलन हुआ था। इसके बाद 1994 में विश्व आदिवासी दिवस (International Day of the World’s Indigenous Peoples) मनाने का विचार प्रस्तुत किया गया। वर्तमान में भारत और बांग्लादेश समेत कई देशों में यह दिन खास तौर पर मनाया जाता है। विश्व के तमाम आदिवासियों का अंतरराष्ट्रीय दिवस पहली बार संयुक्त राष्ट्र की महासभा की ओर से दिसंबर 1994 में घोषित किया गया। इसे हर साल विश्व आदिवासी लोगों (1995-2004) के पहले अंतरराष्ट्रीय दशक के दौरान मनाया जाता है। साल 2004 में असेंबली ने ए डिसैड फाॅर एक्शन एंड डिग्निटी थीम से 2005-2015 से दूसरे अंतरराष्ट्रीय दशक की घोषणा की गई।
आदिवासियों की रुटीन लाइफस्टाइल दुनिया का फैशन स्टेटमेंट
आदिवासियों द्वारा रोजमर्रा के पहनने वाले परिधान और उनकी जीवनशैली से जुड़ीं अन्य चीजें दुनिया के लिए फैशन स्टेटमेंट है। बीते सालों में आयोजित किए गए इंटरनेशनल लंदन फैशन वीक में आदिवासियों से जुड़ी वस्तुओं को नामी-गिरामी मॉडल्स ने रैंप पर प्रस्तुत किया, जिसे पूरी दूनिया ने सराहा था। यह चित्र उसी ईवेंट का है।
(मध्यप्रदेश में 46 अनुसूचित जनजातियां हैं। इनमें गोंड, भील, कोरकू, बैगा, सहरिया, कोल, भारिया, गोवारी आदि जनजातियां प्रमुख मानी जाती हैं।)
हम बस इतना चाहते हैं
हमारे संग बैठ लो... हमारे संग बतिया लो
पहाड़ के पहाड़ी देवता, वन की वन देवी
दाह के जल देवता
नाग-नागिन...
हमारी खेती देखने वाले,
हमें शांति देने वाले
गांव के ग्राम देवता...
घर के गृह देवता, हमारे बूढ़े-पुरखे
तुम्हारे बनाए रास्ते का हम अनुगमन करते,
हम तुम्हें गुहारते हैं...
हमारे संग बैठ लो, हमारे संग बतिया लो
एक दोना हड़िया, एक पत्तल खिचड़ी भात
हमारे संग पी लो..
- डॉ. रामदयाल मुंडा का मुंडारी लोकगीत