prayag sangeet samiti syllabus
Vocal Preveshika Syllabus
परीक्षा के अंक
पूर्णाक-150 शास्त्र – 50 क्रियात्मक – 100
शास्त्र
परिभाषा – संगीत , ध्वनि , नाद , स्वर , चल – स्वर , अचल स्वर , शुद्ध स्वर , विकृत स्वर , आरोह , अवरोह , वादी संवादी , लय , मात्रा , सम , ताली , खाली, और आवर्तन ।
राग परिचय – पाठ्यक्रम के रागों का संक्षिप्त परिचय ।
ताल परिचय – पाठ्यक्रम की तालों का संक्षिप्त परिचय ।
क्रियात्मक
पाँच सरल अलंकार ।
सात शुद्ध स्वर तथा पाँच विकृत स्वरों को गाने का अभ्यास ।
राग – बिलाबल ,यमन , भूपाली तथा खमाज ।
ताल – दादरा , कहरवा तथा तीनताल का पूर्ण परिचय और हाथ से ताली – खाली देकर ठाह में बोलने का अभ्यास ।
Vocal Junior Diploma 1st Year
परीक्षा के अंक
पूर्णाक-150 शस्त्र – 50 क्रियात्मक – 100
Theory
परिभाषा – भारत कि दो संगीत – पद्धतियाँ , ध्वनि , ध्वनि कि उत्पत्ति , नाद, नाद-स्थान, श्रुति, स्वर , प्राकृत स्वर, अचल और चल स्वर, शुद्ध और विकृत-स्वर (कोमल व तीव्र), सप्तक (मंद्र , मध्य, तार ), थाट , राग, वर्ण (स्थायी, आरोही-अवरोही, संचारी), अलंकार (पलटा), राग जाती (औडव, षाडव , सम्पूर्ण) वादी, संवादी, अनुवादी, वर्हित स्वर, पकड़ आलाप तान, ख्याल, सरगम, स्थाई, अंतरा, लय (विलम्बित, मध्य, द्रुत), मात्रा, ताल विभाग, सम ताली, खाली ठेका, आवर्तन, ठाह तथा दुगुन।
राग परिचय – पाठ्यक्रम के रागों का संक्षिप्त परिचय ।
ताल परिचय – पाठ्यक्रम की तालों का पूर्ण परिचय तथा उसे ठाह व दुगुन में लिखने का अभ्यास ।
लिखित स्वर समूहों द्वारा राग पहचान ।
विष्णु-दिगंबर अथवा भारत-खण्डे स्वर-लिपि में से किसी एक पद्धति का प्रारंभिक ज्ञान।
विष्णु दिगंबर तथा भातखण्डे की संक्षिप्त जीवनियाँ तथा उनके संगीत कार्यों का संक्षिप्त परिचय।
Practical
स्वर-ज्ञान – 7 शुद्ध और 5 विकृत-स्वरों को गाने और पहचानने का ज्ञान, अधिकतर 2-2 स्वरों के सरल समूहों को गाने और पहचानने का अभ्यास। शुद्ध-स्वरों का विशेष ज्ञान।
लय-ज्ञान – एक में एक , एक में दो तथा एक में चार अंकों अथवा स्वरों की लयकारी का ज्ञान , लय की स्थिरता का ज्ञान ।
दस सरल अलंकारों का सरगम तथा आकार में अभ्यास।
राग – अल्हैया बिलावल, यमन , खमाज, काफी, बिहाग, भैरव, और भूपाली रागों में एक-एक छोटा-ख्याल कुछ सरल तानों सहित।
इन रागों में साधारण आलाप का ज्ञान तथा गाते समय हाथ से ताली देने व तबले के साथ गाने का अभ्यास।
ताल – दादरा , कहरवा , तीनताल , और चरताल को ठाह तथा दुगुन में ताली देते हुए बोलने का अभ्यास ।
राग पहचान
Vocal Junior Diploma 2nd Syllabus
गायन परीक्षा के अंक
पूर्णाक-150 शस्त्र – 50 , क्रियात्मक – 100
शास्त्र
परिभाषा व सरल व्याख्या – ध्वनि, ध्वनि कि उत्पत्ति, कम्पन्न, आन्दोलन (नियमित-अनियमित, स्थिर-अस्थिर आंदोलन), आन्दोलन – संख्या, नाद कि तीन विशेषताएं, नाद, कि उच्च – नीचता का आंदोलन-संख्या से सम्बंध, नाद और श्रुति, गीत के प्रकार-बड़ा-ख्याल, छोटा ख्याल, ध्रुपद तथा लक्षण-गीत के अवयव (स्थाई, अंतरा, संचारी,आभोग),जनक थाट , जन्यराग, आश्रयराग, ग्रह , अंश, न्यास, वक्र-स्वर, समयसमय और सप्तक का पूर्वांग-उत्तरांग, वादी-स्वर का राग के समय से सम्बंध, पूर्व-उत्तर राग, तिगुन, चौगुन, मीड, कण, स्पर्श-स्वर तथा वक्र स्वर।
राग परिचय – प्रथम और द्वितीय वर्ष के रगों का पूर्ण-परिचय एवं उनको थाट, स्वर, आरोह-अवरोह, जाति, पकड़, समय, वर्ज्य स्वर और आलाप तान सहित स्वर लिपि में लिखने का अभ्यास।
ताल परिचय – दोनों वर्ष के तालों का पूर्ण परिचय तथा उन्हे थाह , दुगुन,तथा चौगुन में लिखने का अभ्यास ।
भातखंडे स्वर-लिपि पद्धति का ज्ञान।
लिखित स्वर-समूह द्वारा राग पहचानना।
मिलते-रुलते रागों में समानता –विभिन्नता बताने का ज्ञान ।
तानसेन तथा अमीर खुसरों कि संक्षिप्त जीवनी और उनके संगीत कार्यों का परिचय।
क्रियात्मक
स्वर-ज्ञान – शुद्ध, कोमल तथा तीव्र-स्वरों का गाने और पहचानने काविशेष ज्ञान। प्रथम-वर्ष कि अपेक्षा कठिन स्वर – समूहों का गाने और पहचानने का अभ्यास।
लय ज्ञान– ठाह , दुगुन और चौगुन लयों को ताली देकर अथवा स्वरों कि सहायता से दिखाना।
कठिन अलंकारों को सरगम और आकर में गाने का अभ्यास।
राग – बागेश्री, दुर्गा, आसावरी, भैरवी, वृंदावनी-सारंग, भीम-पलासी और देश रागों में छोटे-ख्याल ।
यमन, बिहाग, और अल्हैया-बिलावल, में एक-एक विलम्बित-ख्याल तथा स्वर-विस्तार का अभ्यास।
पाठ्यक्रम के किसी दो रगों में ध्रुपद ठाह , दुगुन और चौगुन लयों में गाने का अभ्यास।
छोटे- ख्यालों में अपने मन से आलाप और सरल-तान लेकर तबले से मिलाना।
ताल – एकताल, रुपक , तिवरा , झपताल और सूल ताल को ठाह , दुगुन और चौगुन में ताली देकर बोलने का ज्ञान ।
राग पहचान।
Vocal Junior Diploma 3rd Year Syllabus
गायन
परीक्षा के अंक
पूर्णाक-150 शस्त्र – 50 , क्रियात्मक – 100
शास्त्र
तानपुरे और तबले का पूर्ण विवरण और उनको मिलाने का पूर्ण ज्ञान। आन्दोलन कि चौड़ाई और उसके नाद के छोटे-बड़ेपन से सम्बंध, २२ श्रुतियों का सात शुद्ध-स्वरों में विभाजन (आधुनिक मत), प्रथम और द्वितीय-वर्ष के कुल पारिभाषिक शब्दों का अधिक पूर्ण और स्पष्ट परिभाषा, थाट और राग के विशेष नियम, श्रुति और नाद में सुक्ष्म भेद, व्यंकटमुखी सा 72 थाटों की गणितानुसार रचना और एक थाट से 484 रागों कि उत्पत्ति,स्वर और समय के अनुसार रगों के तीन वर्ग (रे-ध कोमल वाले राग, रे-ध शुद्ध वाले राग और ग-नि कोमल वाले राग), सन्धि -प्रकाश राग, गायकों के गुण और अवगुण, तानो के प्रकार (शुद्ध या सरल, कूट, मिश्रा, बोल तान), गमक, आड़, स्थाई। गीत के प्रकार – बड़ा ख्याल , धमार ,होरी, टप्पा का विस्तृत वर्णन।
पाठ्यक्रम के रागों का पूर्ण-परिचय, स्वर- विस्तार तथा तान सहित।
इस वर्ष तथा पिछले वर्ष के सभी तालों का पूर्ण परिचय। उनके ठेकों को दुगुन, तिगुन और चौगुन लयों में ताल – लिपि में लिखना किसी ताल या गीत की दुगुन आदि आरम्भ करने के स्थान को गणित द्वारा निकालने की विधि का ज्ञान।
गीतों का स्वर-लिपि लिखना। धमार तथा ध्रुपद को दुगुन, तिगुन और चौगुन में लिखना।
कठिन स्वर-समूहों द्वारा राग पहचान।
पाठ्यक्रम के सम प्रकृति रागों कि तुलना।
भातखंडे तथा विष्णु दिगंबर स्वर लिपि पद्धतियों का पूर्ण ज्ञान।
शार्ङ्गदेव तथा स्वामी हरिदास की संक्षिप्त जीवनियाँ तथा उनकी संगीत कार्यों का परिचय।
क्रियात्मक
स्वर-ज्ञान में विशेष उन्नति, तीनों सप्तकों (स्थानों) के शुद्ध और विकृत – स्वरों का समुचित अभ्यास, कठिन स्वर-समूहों को गाना और पहचानना।
अलंकारों को ठाह, दुगुन, तथा चौगुन लयों में गाने का विशेष अभ्यास।
तानपूरा मिलाने का सही अभ्यास ।
लय-ज्ञान में विशेष उन्नति, दुगुन, तिगुन और चौगुन लयों का अधिक स्पष्ट और पक्का ज्ञान, आडलय का केवल प्रारंभिक परिचय।
गले के कण-स्वरों के प्रयोग का अभ्यास, कुछ विशेष आलंकारिक स्वर-समूहों अथवा खटकों का अभ्यास।
छोटा खयाल – तिलक-कामोद, हमीर, केदार, तिलंग, कलिंगड़ा, पटदीप, जौनपुरी, मालकोश और पीलू में एक-एक छोटा ख्याल आलाप, तान तथा बोल-तान, सहित।
बड़खयाल – बागेश्री, आसावरी, वृंदावनी सारंग, भीमपलासी, देश, जौनपुरी, हमीर, केदार, पटदीप, तथा मालकोश – इन 10 रागों में से किन्ही 6 रागों में बड़ा-ख्याल-आलाप, तान बोल-तान इत्यादि।
उक्त रागों में से किन्हीं दो रागों में एक-एक ध्रुपद तथा किसी एक राग में एक धमार-दुगुन, तिगुन, और चौगुन सहित।
ताल – दीपचंदी, झुमरा, धमार और तिलवाड़ा-तालों के ठेकों को ठाह, दुगुन, तिगुन और चौगुन लयों में बोलने का अभ्यास ।
Vocal Senior Diploma 4th Year Syllabus
गायन
परीक्षा के अंक
पूर्णाक-150
शस्त्र – 50 ,
क्रियात्मक – 100
शास्त्र
गीत के प्रकार –टप्पा, ठुमरी, तराना, तिरवट, चतुरंग, भजन, गीत, गजल आदि का विस्तृत वर्णन, राग-रागिनी पद्धति आधुनिक आलाप-गायन की विधि, तान के विविध प्रकारों का वर्णन, विवादी स्वर का प्रयोग, निबद्ध गान के प्राचीन प्रकार (प्रबंध, वास्तु आदि) धातु, अनिबद्ध गान, अध्वदर्शक स्वर ।
बाईस (22) श्रुतियों का स्वरों में विभाजन (आधुनिक और प्राचीन मत), खींचे हुए तार की लम्बाई का नाद के ऊँचे-निचेपन से सम्बन्ध ।
दक्षिणी और उत्तरी हिन्दुस्तानी पद्धतियों के स्वर की तुलना, रागों का समय-चक्र निश्चित करने में अध्वदर्शक स्वर, वादी-संवादी और पूर्वांग-उत्तरांग का महत्व , छायालग और संकीर्ण राग, परमेल प्रवेशक राग, रागों का समय-चक्र, ।
उत्तर भारतीय सप्तक से ३२ थाटों की रचना, आधुनिक थाटों के प्राचीन नाम, तिरोभाव-आविर्भाव, अल्पत्व-बहुत्व ।
रागों का सूक्ष्म तुलनात्मक अध्ययन और राग-पहचान ।
विष्णु दिगंबर और भातखंडे दोनों स्वर्लिपियों का तुलनात्मक अध्ययन । गीतों को दोनों पद्धति में लिखने का अभ्यास । धमार और ध्रुपद को दुगुन , तिगुन व चौगुन स्वरलिपि में लिखने का अभ्यास ।
भरत, अहोबल, व्यंकटमखि तथा मानसिंह का जीवन-चरित्र और उनके संगीत कार्यों का विवरण ।
पाठ्यक्रम के सभी तालों की दुगुन, तिगुन, चौगुन प्रारंभ करने का स्थान गणित द्वारा निकालने की विधि । दुगुन, तिगुन तथा चौगुन के अतिरिक्त अन्य विभिन्न लयकारियों को ताल-लिपि में लिखने का अभ्यास ।
क्रियात्मक
स्वर ज्ञान का विशेष अभ्यास । कठिन स्वर-समूहों को गाने तथा पहचाने का ज्ञान ।
तानपुरा और तबला मिलाने का विशेष ज्ञान ।
अंकों या स्वरों के सहारे ताली देकर विभिन्न लयों का प्रदर्शन –दुगुन (एक मात्रा में दो मात्रा), तिगुन (1 में 3 ) चौगुन (1 में 4 ), आड़ (2 में 3 ) और आड़ की उलटी (3 में 2 मात्रा बोलना), पौंगुण (4 में 3 ) तथा सवागुन (4 में 5 ) मात्राओं का प्रदर्शन ।
कठिन और सुन्दर आलाप और तानों का अभ्यास ।
राग – देशकार, शंकरा, जयजयवंती, कामोद, मारवा, मुल्तानी, सोहनी, बहार, पूर्वी. इन रागों में 1 – 1 विलंबित और द्रुत ख्याल तथा आलाप, तान, बोलतान सहित ।
उपेरयुक्त रागों में से किन्हीं दो में 1-1 ध्रुपद तथा किन्हीं दो में 1-1 धमार केवल ठाह, दुगुन , तिगुन, और चौगुन सहित तथा एक तराना गाने की क्षमता ।
ख्याल की गायकी में विशेष प्रवीणता ।
जत और आड़ा चारताल को पूर्ण रूप से बोलने का अभ्यास। टप्पा और ठुमरी के ठेकों का साधारण ज्ञान।
स्वर-समूहों द्वारा राग पहचान करना ।
गायन में रागों में समता-विभिन्नता दिखाना.
Vocal Senior Diploma 5th Year Syllabus
In Hindi
गायन
परीक्षा के अंक
पूर्णाक-150
शस्त्र – 50 ,
क्रियात्मक – 100
शास्त्र
पिछले वर्ष तक के पाठ्यक्रमों का पूर्ण विस्तृत अध्ययन ।
अनिबद्ध गान के प्राचीन प्रकार – रागालाप, रुपकालाप, आलाप्तिगान, स्वस्थान-नियम, बिदारी, राग लक्षण, जाति-गायन और विशेषताएं, सन्यास-विन्यास, गायकी, नायकी, गान्धर्व गीत (देशी-मार्गी) पाठ्यक्रम के रागों में तिरोभाव-आविर्भाव और अल्पत्व-बहुत्व दिखाना ।
श्रुति-स्वर विभाजन के सम्बन्ध में सम्पूर्ण इतिहास को तीन मुख्य कालों में विभाजन (प्राचीन, मध्य, आधुनिक), इन तीनों कालों के ग्रंथकारों के ग्रन्थ और उनमें वर्णित मतों में समय और भेद, षडज-पंचम भाव और आन्दोलन संख्या तथा तार की लम्बाई का सम्बन्ध, किसी स्वर की आन्दोलन-संख्या दी हुई हो तो तार की लम्बाई निकालना ( जबकि षडज की दोनों वस्तुएं प्राप्त हों)। इसी, प्रकार तार की लम्बाई दी हुई हो तो आन्दोलन-संख्या निकालना, मध्यकालीन पंडितों और आधुनिक पंडितों के शुद्ध और विकृत स्वरों के स्थानों की तुलना उनके तार की लम्बाईयों की सहायता से करना ।
विभिन्न रागों के सरल तालों के सरगम मन से बनाना ।
इस वर्ष के रागों का विस्तृत अध्ययन तथा उनसे मिलते-जुलते रागों का मिलान, रागों में अल्पत्व-बहुत्व, तिरोभाव-आविर्भाव दिखाना ।
इस वर्ष के तालों का पूर्ण परिचय और उनके ठेकों को विभिन्न लयकारियों में ताल-लिपि में दिखाना । गणित द्वारा किसी गीत या ताल की दुगुन, तिगुन और चौगुन आदि प्रारंभ करने का स्थान निश्चित करना ।
गीत और राग बंदिश दुगुन , तिगुन और चौगुन लयकारियों को स्वरलिपि में लिखना ।
निबंध – राग और रस, संगीत और ललित कलाएं, संगीत और कल्पना, यवन संस्कृति का हिन्दुस्तानी संगीत पर प्रभाव, संगीत व उसका भविष्य, संगीत में वाद्यों का स्थान, लोक संगीत आदि ।
गीतों व तालों को किसी भी स्वरलिपि में लिखने का अभ्यास.
श्रीनिवास, रामामात्य, ह्रदय नारायण देव, मोहम्मद रज़ा, सदारंग-अदारंग का जीवन परिचय तथा उनका संगीत-कार्य ।
क्रियात्मक
कुछ कठिन लयकारियों को ताली देकर दिखाना । दो मात्रा में ३ मात्रा बोलना और 3 में 4 मात्रा बोलना इत्यादि ।
नोम-तोम के आलाप का विशेष अभ्यास ।
राग – पुरिया, गौड़ मल्हार, छायानट, श्री, हिंडोल, गौड़ सारंग, विभास, दरबारी कान्हड़ा, तोड़ी, अड़ाना इन रागों में 1-1 विलंबित और 1-1 द्रुत ख्याल पूर्णतया सुंदर गायकी के साथ । किन्हीं दो रागों में एक-एक धमार और किन्हीं दो में से एक-एक ध्रुपद जिनमे दुगुन, तिगुन चौगुन और आड़ करना आवश्यक है ।
रागों का सुक्ष्म अध्ययन , रागों का तिरोभाव-आविर्भाव का क्रियात्मक प्रयोग ।
ताल – पंचम सवारी, गजझम्पा, अद्धा, मत्त और पंजाबी तालों का पूर्ण ज्ञान और इन्हें ठाह, दुगुन तथा चौगुन लयकारियों में ताली देकर बोलना ।
तीनताल, झपताल, चारताल, एकताल, कहरवा, तथा दादरा तालों के तबले पर बजने का साधारण अभ्यास ।
Vocal Senior Diploma 6th Year Syllabus
गायन
परीक्षा के अंक
पूर्णाक-150
शस्त्र – 50 ,
क्रियात्मक – 100
शास्त्र
प्रथम प्रश्न पत्र
प्रथम से षस्टम वर्ष तक के सभी रागों का विस्तृत, तुलनात्मक और सूक्ष्म परिचय । उनके आलाप-तान आदि स्वरलिपि में लिखने का पूर्ण ज्ञान । समप्रकृतिक रागों में समता-विभिन्नता का ज्ञान होना ।
विभिन्न रागों में अल्पत्व-बहुत्व और अन्य रागों की छाया आदि दिखाते हुए आलाप-तान स्वरलिपि में लिखना ।
कठिन लिखित स्वर समूहों द्वारा राग पहचानना ।
दिए हुए रागों में सरगम बनाना । दी हुई कविता को राग में ताल-बद्ध करने का ज्ञान ।
गीतों की स्वरलिपि लिखना, धमार और ध्रुपद को दुगुन, तिगुन, चौगुन, और आड़ आदि लयकारियों में लिखना ।
ताल के बोल को विभिन्न लयकारियों में लिखना ।
लेक – जीवन में संगीत की आवश्यकता, महफ़िल की गायकी, शास्त्रीय संगीत का जनता पर प्रभाव, रेडियो और सिनेमा-संगीत, पृष्ठ संगीत , हिन्दुस्तानी संगीत और वृंदवादन, हिन्दुस्तानी संगीत की विशेषताये, स्वर का लगाव, संगीत और स्वरलिपि आदि ।
हस्सू-हद्दू खां, फैयाज़ खां, अब्दुल करीम खां, बड़े गुलाम अली और ओंकारनाथ ठाकुर का जीवन परिचय और कार्य ।
द्वितीय प्रश्न पत्र
मध्य कालीन तथा आधुनिक संगीतज्ञों के स्वर स्थानों की आन्दोलन-संख्याओं की सहायता तथा तार की लम्बाई की सहायता से तुलना , पाश्चात्य स्वर-सप्तक की रचना , सरल गुणान्तर और शुद्ध स्वर संवाद के नियम, पाश्चात्य स्वरों की आन्दोलन-संख्या । हिन्दुस्तानी स्वरों में स्वर संवाद, कर्नाटकी ताल पद्धति और हिन्दुस्तानी ताल पद्धति का तुलनात्मक अध्ययन । संगीत का संक्षिप्त क्रमिक इतिहास, ग्राम, मूर्छना (अर्थ में क्रमिक परिवर्तन), मूर्छना और आधुनिक थाट, कलावंत, पंडित, नायक, वाग्गेयकार, बानी (खंडार, डागुर, नौहार, गोबरहार), गीत , गीत के प्रकार, गमक के प्रकार, हिन्दुस्तानी वाद्यों के विविध प्रकार. (तत, अवनद्ध, घन, सुषरी) आदि ।
निम्नलिखित विषयों का ज्ञान – तानपुरे से उत्पन्न होने वाले सहायक नाद, पाश्चात्य स्वर-सप्तक का सामान स्वरान्तर में परिवर्तित होने का कारन व विवरण, मेजर, माईनर और सेमिटोन, पाश्चात्य आधुनिक स्वरों के गुण-दोष, हारमोनियम पर एक आलोचनात्मक दृष्टि, तानपुरे से निकलने वाले स्वरों के साथ हमारे आधुनिक स्वर-स्थानों का मिलान । प्राचीन, मध्यकालीन तथा आधुनिक राग-वर्गीकरण, उनका महत्त्व, और उनके विभिन्न प्रकारों को पारस्परिक तुलना । संगीत-कला और शास्त्र का पारस्परिक सम्बन्ध । भरत की श्रुतियाँ सामान या असमान -इस पर विभिन्न विद्वानों के विचार और तर्क । सारणा चतुष्टई का अध्ययन, उत्तर भारतीय संगीत को ‘संगीत पारिजात’ की देन । हिन्दुस्तानी और कर्नाटकी संगीत-पद्धतियों की तुलना, उनके स्वर, ताल और रागों का मिलन करते हुए पाश्चात्य स्वरलिपि पद्धति का साधारण ज्ञान, संगीत के घरानों का संक्षिप्त ज्ञान, रत्नाकर के दस विधि राग वर्गीकरण-भाषा, विभाषा इत्यादि ।
भातखंडे और विष्णु दिगंबर स्वर-लिपियों का तुलनात्मक अध्ययन और उनकी त्रुटीयां और उन्नति के सुझाव ।
लेख – भावी संगीत के समुचित निर्माण के लिए सुझाव, हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति के मुख्या सिद्धांत । प्राचीन और आधुनिक प्रसिद्ध संगीतज्ञों का परिचय तथा उनकी शैली, संगीत का मानव जीवन पर प्रभाव, संगीत और चित्त , स्कूलों द्वारा संगीत शिक्षा की त्रुटियों और उन्नति के सुझाव, संगीत और स्वर साधन ।
पिछले सभी वर्षों के शास्त्र सम्बंधित विषयों का सूक्ष्म तथा विस्तृत अध्ययन ।
क्रियात्मक
राग पहचान में निपुणता और अल्पत्व-बहुत्व, तिरोभाव-आविर्भाव और समता-विभिन्नता दिखाने के लिए पूर्व वर्षों के सभी रागों का अध्ययन ।
गायन की तैयारी, आलाप-तान में सफाई , प्रदर्शन में निपुणता ।
ठप्पा, ठुमरी, तिरवट और चतुरंग का परिचय, इनमे से किन्हीं दो गीतों की जानकारी आवश्यक ।
राग – रामकली, मियाँ मल्हार, परज, बसंती, राग श्री, पूरिया धनाश्री, ललित, शुद्ध कल्याण, देशी और मालगुन्जी रागों में एक-एक बड़ा-ख्याल और छोटा ख्याल पूर्ण तैयारी के साथ ।
किन्हीं दो रागों में एक-एक धमार, एक-एक ध्रुपद और एक-एक तराना
किसी एक राग में चतुरंग (प्रथम वर्ष से षष्ठम वर्ष एस के रागों में से)।
काफी, पीलू, पहाड़ी, झिंझोटी, भैरवी तथा खमाज इनमे से किन्हीं दो रागों में दो ठुमरी तथा किसी एक में टप्पा ।
ताल – लक्ष्मी ताल, ब्रह्म ताल तथा रूद्र ताल – इनका पूर्ण परिचय तथा सभी लयकारियों में हाथ से ताली देने का ज्ञान ।
Vocal Praveen 7th Year Syllabus
क्रियात्मक परीक्षा 200 अंको की होगी जिसमें 100 अंक प्रश्नमूलक प्रयोगात्मक परीक्षा के लिए और 100 अंक मंच प्रदर्शन के लिए होंगे।
शास्त्र के दो प्रश्नपत्र 50-50 अंक के होंगे। उत्तीर्ण होने के लिए 36प्रतिशत अंक आवश्यक है।
प्रथम से षष्ठम वर्ष तक का सम्पूर्ण पाठ्यक्रम भी इस परीक्षा में सम्मिलित है।
क्रियात्मक
निम्नलिखित 15 रागों का विस्तृत अध्ययन-
शुद्ध सारंग, मारु बिहाग, नन्द, हंसध्वनि, मलुहा केदार, जोग, मधुमाद सारंग, नारायणी, अहीर भैरव, पूरिया कल्याण, आभोगी कान्हडा, सूर मल्हार, चंद्रकौस, गुर्जरी तोड़ी और मधुवन्ती।
क. गायन के परिक्षार्थियों के लिये उपर्युक्त सभी रागों में विलम्बित और द्रुत ख्याल को विस्तृत रूप से गाने की पूर्ण तैयारी। इनमें से कुछ रागों में ध्रुपद, धमार, तराना, चतुरंग आदि कुशलतापूर्वक गाने का अभ्यास। परिक्षार्थियों की पसंद के अनुसार किन्हीं भी रागों में ठुमरी, भजन अथवा भावगीत सुन्दर ढंग से गाने की तैयारी।
ख.तन्त्र वाद्य तथा सुषिर वाद्य के परिक्षार्थियों के लिये उपर्युक्त सभी रागों में सुन्दर आलाप – जोड़, विलम्बित( ख्याल या मसीतखानी)तथा द्रुत( छोटा ख्याल या रज़ाखानी) गतों को विस्तृत रूप से बजाने की पूर्ण तैयारी। तीनताल के अतिरिक्त कुछ अन्य कठिन तालों में भी इनमें से कुछ रागों में बंदिशें बजाने का पूर्ण अभ्यास। परिक्षार्थियों की पसंद के अनुसार किन्हीं भी रागों में धुन अथवा ठुमरी अंग का बाज सुन्दरतापूर्वक बजाने का अभ्यास ।
(3) निम्नलिखित 15 रागों का पूर्ण परिचय, आलाप द्वारा इनके स्वरूप का स्पष्ट रूप से प्रदर्शन तथा इनमें से कोई भी एक एक बंदिश गाने अथवा बजाने का अभ्यास। इन बंदिशों को विस्तार रूप से गाने- बजाने की आवश्यकता नहीं है।
बंगाल भैरव, रेवा, हंसकिंकिणि, जलधर केदार, जैत( मारवा थाट), धनाश्री( काफी थाट), भीम, शहाना, भूपाल- तोड़ी, आनंद- भैरव, सरपरदा, गारा, धानी, जयंत मल्हार, गोपिका बसंत।
(4)प्रथम तथा षष्ठम वर्षों तक के और इस वर्ष के सभी रागों को गाये तथा बजाये जाने पर पहचानने में निपुणता।
(5) प्रचलित तालों को ताली देकर विभिन्न लयकारियों में बोलने का पूर्ण अभ्यास तथा उनके ठेकों को तबले पर बजाने का साधारण अभ्यास।
(6) निम्न तालों का पूर्ण परिचय तथा इन्हें ताली देकर लयकारियों में बोलने का अभ्यास- पश्तो, फरोदस्त, खेमटा, गणेश।
मंच प्रदर्शन
मंच प्रदर्शन में परिक्षार्थियों को सर्वप्रथम उपर्युक्त विस्तृत अध्ययन के 15 रागों में से अपनी इच्छानुसार किसी भी एक राग में विलम्बित और द्रुत ख्याल अथवा गत लगभग 30 मिनट तक अथवा परीक्षक द्वारा निर्धारित समय में पूर्ण गायकी के साथ गाना या बजाना होगा, तत्पश्चात थोड़ी देर किसी राग की ठुमरी अथवा भजन या भाव गीत भी सुनाना होगा या ठुमरी अंग की कोई चीज या धुन को बजाना होगा।
प्रथम प्रश्न – पत्र(शुद्ध सिध्दांत)
गायन, तन्त्र तथा सुषिर वाद्य के परीक्षार्थियों के लिए –
पिछले सभी वर्षों के पाठ्यक्रमों (गायन और तन्त्रवाद्य) में दिये गये सभी शुद्ध शास्त्र संबंधी विषयों तथा पारिभाषिक शब्दों का विस्तृत और आलोचनात्मक अध्ययन।
संगीत के सिद्धांतों का वैज्ञानिक और व्यवाहरिक विश्लेषण।
संगीत की उत्पत्ति तथा इसके संबंध में आलोचनात्मक विचार।
श्रुति- समस्या, श्रुति स्वर विभाजन एवं सारणां चतुष्टयी का विस्तृत एवं आलोचनात्मक अध्ययन।
ग्राम, मुर्छना, आधुनिक संगीत में मुर्छनाओ का प्रयोग, जाति गायन और इसका राग गायन में विकसित होना इत्यादि पर यथेष्ट अध्ययन।
भारतीय संगीत के इतिहास का काल विभाजन, इसके संबंध में विभिन्न मतों के विषय में पूर्ण जानकारी।
प्राचीन काल में भारतीय संगीत के इतिहास तथा इसके स्वरूप पर पूर्ण रूप से विचार, वैदिक संगीत और उसके विचार, पौराणिक काल का संगीत, भरत काल का संगीत, मौर्य काल, कनिष्क काल, गुप्त काल का संगीत तथा प्रबंध गायन का काल।
हिन्दुस्तानी संगीत के विकास में भरत नारद, मतंग, जयदेव और शारंगदेव के योगदान का विस्तृत अध्ययन।
चौदहवीं शताब्दी के पूर्व के निम्न संगीत ग्रन्थों का अध्ययन और उनके निष्कर्ष तथा उनमें वर्णित श्रुति, स्वर, शुद्ध तथा विकृत स्वर,शुद्ध मेल, राग वर्गीकरण, राग स्वरूप, गायन प्रणाली आदि विषयों का विस्तृत, आलोचनात्मक, तुलनात्मक अध्ययन- (1) भरत कृत नाट्य शास्त्र,(2) मतंग कृत वृहद्देशी,(3) नारदीय शिक्षा, (4) संगीत मकरंद, (5) जयदेव कृत गीत गोविंद (6) शारंगदेव कृत संगीत रत्नाकर।
कर्नाटक संगीत पद्धति के स्वर, राग, ताल और गायकी के संबंध में पूर्ण जानकारी तथा उनकी विशेताए और हिंदुस्तानी संगीत पद्धति के स्वर, राग, ताल गायकी से उनकी तुलना।
निम्नलिखित विषयों का विस्तृत अध्ययन- स्वर- गुणांतर, स्वर सम्वाद, स्वयम्भू स्वरों का अध्ययन, हार्मोनी, मेलाडी, पाश्चात्य स्वर सप्तक का विकास, षडज- पंचम तथा षडज – मध्यम भाव से सप्तक की रचना, भारतीय स्वर सप्तक का विकास, कला और शास्त्र, संगीत कला और विज्ञान, संगीत का कला पक्ष और भाव पक्ष, गमक और इसके विभिन्न प्रकार।
ध्वनि शास्त्र से संबंधित निम्नांकित विषयों का विस्तृत अध्ययन- ध्वनि विज्ञान, ध्वनि की उत्पत्ति,आंदोलन, ध्वनि का वहन, ध्वनि वेग ( Velocity of sound), अतिस्वर ( Overtones), ध्वनि की थर थराहट या डोल (Beats), तारता, तीव्रता, ध्वनि की जाति अथवा गुण, ध्वनि का परावर्तन( Reflection of sound), ध्वनि का आवर्तन ( Refraction of sound), ध्वनि विवर्तन ( Diffraction of sound), अनुनाद ( Resonance), प्रति ध्वनि ( Echo), इष्ट स्वर (Consonance), अनिष्ट स्वर (Dissonance)।
प्रथम से षष्टम वर्षों तक के पाठ्यक्रम में दिये गये वाद्य संबंधित सभी पारिभाषिक शब्दों का विस्तृत जैसे- मींड, सूत, घसीट, गमक, कण, खटका, कृन्तन, जमजमा, लाग- डाट, लड़ी-गुत्थी, लड़गुथाव, छूट, पूकार, तार- परन, छन्द, फिकरा आदि।
संगीत विषयों पर लेख लिखने की विशेष क्षमता।
द्वितीय प्रश्न-पत्र
( गायन एवं वादन के अलग अलग प्रश्न-पत्र होंगे)
प्रथम से षष्टम वर्षों तक के क्रियात्मक संगीत संबंधित शास्त्र का विस्तृत एवं आलोचनात्मक अध्ययन।
पाठ्यक्रम के सभी रागों का विस्तृत, आलोचनात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन। रागों के न्यास स्वर, अल्पत्व- बहुत्व के स्वर, विवादी स्वर और उनका प्रयोग, तिरोभाव- आविर्भाव का प्रदर्शन, समप्रकृति रागों की तुलना, रागों में अन्य रागों की छाया आदि विषयों के संबंध में विस्तृत ज्ञान। विगत वर्षों के सभी रागों का भी पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है।
भारतीय वाद्यो का वर्गीकरण, प्राचीन, मध्यकालीन तथा आधुनिक तन्त्रवाद्यो का परिचय। वाद्यो द्वारा उत्पन्न होने वाले स्वयं भू- स्वरों का यथेष्ठ ज्ञान।
गायन तथा तंत्रवाद्यों की गायन अथवा वादन शैलियो के विभिन्न प्रकारों का विस्तृत, आलोचनात्मक और तुलनात्मक अध्ययन।
पाश्चात्य स्वर लिपि पद्धतियां जैसे सोलफा पद्धति, चीव्ह पद्धति, न्यूम्स पद्धति, तथा स्टाफ नोटेशन पद्धति का विशेष, आलोचनात्मक तथा तुलनात्मक ज्ञान। कार्ड्स (Chords) एवं उनका प्रयोग, पाश्चात्य स्वरलिपि पद्धिति के गुण एवं दोष।
गायन अथवा तन्त्र वादन के विभिन्न घरानों का जन्म, इतिहास, उनका विकास तथा उनकी वंश परम्पराओं का पूर्ण ज्ञान। उनकी गायन अथवा वादन शैलियों का परिचय, उनकी विशेषताओं का विस्तृत, आलोचनात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन।
देश में प्रचलित स्वरलिपि पद्धतियों का विस्तृत, आलोचनात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन। भारतीय संगीत के भावी विकास संबंधित सुझाव तथा इस दृष्टिकोण से लिपि पद्धति का समीक्षात्मक अध्ययन।
(क) विभिन्न प्रकार के गीतों तथा उनकी गायकी को विभिन्न लयकारियों में लिखने का पूर्ण ज्ञान।
(ख) तन्त्र वादन में जोड़ आलाप, गत, तान तोड़े, झाला आदि को विभिन्न लयकारियों में लिपिबद्ध करने का पूर्ण ज्ञान।
(9) बीसवीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध गायक अथवा तन्त्र वादकों की जीवनियाँ, संगीत में उनका योगदान तथा गायन अथवा वादन शैलियों की विशेषताओं का विशेष अध्ययन।
(10) तानसेन और उनके वंशज तथा सेनी घराने की शिष्यपरंपरा की पूर्ण जानकारी। इस घराने के गायको अथवा तन्त्र वादको की गायन अथवा वादन शैलियों का विस्तृत अध्ययन।
(11) पिछले सभी पाठ्यक्रमों में निर्धारित सभी तालों का पूर्ण ज्ञान तथा उन्हें विभिन्न प्रकार की कठिन लयकारियों में लिपिबद्ध करने का पूर्ण ज्ञान।
(12) क्रियात्मक संगीत संबंधी विषयों पर लेख लिखने की पूर्ण क्षमता।
Vocal Praveen 8th Year Syllabus In Hindi
क्रियात्मक परीक्षा 200 अंको की होगी। जिसमें 100 अंक प्रश्न मूलक प्रयोगात्मक परीक्षा के लिये, 100 अंक मंच प्रदर्शन के लिए होंगे। शास्त्र के दो प्रश्न-पत्र 50-50 अंक के होंगे। परिक्षार्थी को उत्तीर्ण होने के लिए तीनों परीक्षा में अलग अलग 36 प्रतिशत अंक प्राप्त करने होंगे।
प्रथम से सप्तम वर्षों तक का पाठ्यक्रम भी इस परीक्षा में सम्मिलित है।
क्रियात्मक
निम्नांकित 15 रागों का विस्तृत अध्ययन- देवगिरि बिलावल, यमनी-बिलावल,श्याम कल्याण, गोरख कल्याण, मेघ मल्हार, जैताश्री, भटियार, मियाँ की सारंग, सूहा, नायकी- कान्हडा, हेमंत, कौसी कान्हडा, जोगकौस, बिलासखानी तोड़ी, झिझोटी।
क) गायन के सभी परिक्षार्थियों के लिये उपर्युक्त सभी रागों में विलम्बित तथा द्रुत ख्यालों को विस्तृत रूप से गाने की पूर्ण तैयारी। इनमें से कुछ रागों में ध्रुपद, धमार, तराना,चतुरंग आदि कुशलतापूर्वक गाने का अभ्यास। परिक्षार्थी की पसंद के अनुसार किसी भी राग में ठुमरी, भजन अथवा भावगीत सुंदर ढंग से गाने की तैयारी।
ख). तन्त्र वाद्य तथा सुषिर वाद्य के परीक्षार्थियों के लिये उपर्युक्त सभी रागों में सुन्दर आलाप- जोड, विलम्बित ( मसीतखानी) तथा द्रुत ( रज़ाखानी) ख्यालों अथवा गतों को विस्तृत रूप से बजाने की पूर्ण तैयारी। तीन ताल के अतिरिक्त कुछ अन्य कठिन तालों में भी इनमें से कुछ रागों में बंदिशें बजाने का पूर्ण अभ्यास। किसी भी राग में धुन अथवा ठुमरी अंग का बाज सुन्दरतापूर्वक बजाने का अभ्यास।
निम्नलिखित 15 रागों का पूर्ण परिचय- आलाप द्वारा इनके स्वरूप का स्पष्ट रूप से प्रदर्शन तथा इनमें कोई भी एक एक बंदिश गाने अथवा बजाने का अभ्यास। इन बंदिशों को विस्तार से गाने अथवा बजाने की आवश्यकता नहीं है- बिहागडा, नट बिहाग, जैतकल्याण, रामदासी मल्हार, शुक्लबिलावल, भंखार, शिवमत – भैरव, सुघराई, गौरी (भैरव थाट), ललिता गौरी,बरवा, खम्बावती, पटमंजरी ( काफी थाट) काफी कान्हडा।
प्रथम से सप्तम वर्षों के तथा इस वर्ष के सभी रागों को गाये या बजाये जाने पर पहचानने में निपुणता।
प्रचलित तालों को ताली देकर विभिन्न लयकारियों में बोलने का अभ्यास तथा उनके ठेकों को तबले पर बजाने का अभ्यास।
निम्न तालों का पूर्ण परिचय तथा इन्हें ताली देकर लयकारियों में बोलने का अभ्यास- अष्टमंगल ताल, अर्जुन ताल, शिखर ताल तथा कुम्भ ताल।
मंच प्रदर्शन
मंच प्रदर्शन में गायन तथा वादन के परिक्षार्थियों को सर्वप्रथम उपर्युक्त विस्तृत अध्ययन के 15 रागों में से अपनी पसंद के अनुसार किसी भी एक राग में विलम्बित और द्रुत ख्याल अथवा गत लगभग 30 मिनट तक अथवा परीक्षक द्वारा निर्धारित समय में पूर्ण गायकी के साथ गाना होगा। ततपश्चात थोड़ी देर किसी राग की ठुमरी, भावगीत सुनाना होगा अथवा ठुमरी अंग की कोई चीज अथवा धुन बजानी होगी।
मंच प्रदर्शन के समय परीक्षा-कक्ष में श्रोतागण भी कार्यक्रम सुनने हेतु उपस्थित रह सकते है।
परीक्षक को अधिकार होगा कि यदि वह चाहे तो निर्धारित समय से पूर्व भी परिक्षार्थी का प्रदर्शन समाप्त करा सकता है।
शास्त्र
First Paper
गायन तन्त्र तथा सुषिर वाद्य के परिक्षार्थियों के लिए –
प्रथम से सप्तम वर्षों के पाठ्यक्रमों ( गायन और तन्त्र वाद्य) में दिये गये संगीत शास्त्र संबंधी सभी विषयों और पारिभाषिक शब्दों का विस्तृत और आलोचनात्मक अध्ययन।
मध्यकालीन और आधुनिक कालीन भारतीय संगीत का इतिहास और विकास का विस्तृत अध्ययन।
हिन्दुस्तानी संगीत के विकास में अमीर खुसरो, अहोबल, स्वामी हरिदास, तानसेन, राजा मानसिंह तोमर, सुल्तान हुसैन शाह शर्की, न्यामत खाँ( सदारंग), खुसरों खाँ, नवाब वाजिद अली शाह, हस्सु- हददु खाँ, ठाकुर नवाब अली, पं० विष्णु नारायण भातखंडे, पं० विष्णु दिगम्बर पलुस्कर, ओंकार नाथ ठाकुर, कैलाशचंद्र देव वृहस्पति आदि का योगदान।
चौदहवीं से अठारहवीं शताब्दी तक निम्नलिखित संगीत ग्रन्थों का विस्तृत अध्ययन- लोचनकृत राग तरंगिणी, रामामात्य कृत स्वर मेल कलानिधि, ह्रदयनारायण देव कृत ह्रदय कौतुक तथा ह्रदय प्रकाश, सोमनाथ कृत राग विवोध, अहोबल कृत संगीत पारिजात, श्रीनिवास कृत राग तत्वविबोध, व्यंकटमूखी कृत चतुर्दन्डिप्रकाशिका।
उन्नीसवीं तथा बीसवीं शताब्दियों में भारतीय संगीत का विकास तथा इस काल के संगीत ग्रन्थों का विशेष अध्ययन।
उत्तर व दक्षिण भारतीय संगीत पद्धतियों का पार्थक्य तथा इस पार्थक्य का कारण,आरम्भ और विकास।
भारतीय संगीत पर विदेशी संगीत के प्रभाव के विषय में आलोचनात्मक अध्ययन।
भारतीय संगीत की आध्यात्मिक विशेषताओं का विस्तृत अध्ययन।
संगीत में रस तत्व का सैद्धांतिक विवेचन। सौंदर्य शास्त्र का ज्ञान।
संगीत की कलात्मक और वैज्ञानिक दृष्टियों में अन्तर। ललित कलाओं में संगीत का स्थान।
स्वतंत्र भारत में संगीत तथा इसके प्रसार और प्रचार के संबंध में शासन तथा अन्य संस्थाओं द्वारा प्रयास।
भारतीय संगीत में प्रचलित विभिन्न तंत्र तथा सुषिर वाद्यो की उत्पत्ति और विकास के संबंध में विस्तृत अध्ययन।
राग- रागिनी वर्गीकरण के संबंध में नाट्यशास्त्र, वृहद्देशी, संगीत मकरंद, संगीत रत्नाकर, संगीत दर्पण, हनुमत मत, शिव मत, सोमेश्वर मत, कल्लिनाथ मत, भरत मत, रागांग पद्धति, थाट- राग पद्धति का विस्तृत अध्ययन।
संगीत शास्त्र संबंधी विषयों पर लेख लिखनी की क्षमता।
Second Paper
(गायन और वादन परिक्षार्थियों के लिये प्रश्न-पत्र अलग अलग होंगे)।
प्रथम से सप्तम वर्षों तक के पाठ्यक्रमों के सभी क्रियात्मक संगीत संबंधी शास्त्र का विस्तृत और आलोचनात्मक अध्ययन।
प्रबंध शास्त्र के तत्व और नियम। आधुनिक प्रबंध जैसे-ध्रुपद, धमार, ख्याल, ठुमरी, टप्पा, दादरा, तराना, त्रिवट, चतुरंग आदि की रचना करने का ज्ञान।
विभिन्न प्रकार की गतों जैसे- मसीतखानी, रज़ाखानी, अमीरखानी, फिरोजखानी की नई बंदिशों की रचना करने का ज्ञान।
भारतीय संगीत की वर्तमान स्थिति और इसका भविष्य।
विभिन्न तन्त्रवाद्यो की उत्पत्ति और भारत में उनका विकास तथा उनके वादन शैलियों की विशेषताओं का विस्तृत अध्ययन।
ध्रुपद गायन का पतन तथा ख्याल गायन की लोकप्रियता के कारणों पर तर्कपूर्ण विचार।
वर्तमान समय में भारतीय संगीत के प्रचार और प्रसार हेतु विभिन्न प्रकार के साधन और माध्यम तथा उनकी अच्छाइयां और बुराइयां।
वर्तमान समय में विभिन्न प्रकार की दी जाने वाली संगीत शिक्षा के संबंध मेंआलोचनात्मक और तर्क पूर्ण विचार।
पाठ्यक्रम के रागों में तीनताल के अतिरिक्त अन्य तालों में स्वयं सरगम और बंदिश की रचना करने की क्षमता।
इस वर्ष के सभी रागों का विस्तृत अध्ययन तथा उनसे मिलते जुलते रागों से तुलना, इन रागों में अल्पत्व- बहुत्व तथा तिरोभाव-आविर्भाव सोदाहरण दिखाने का पूर्ण ज्ञान।
पाश्चात्य लिपि (Staff Notation) पद्धति का पूर्ण ज्ञान तथा भारतीय संगीत में प्रचलित लिपि पद्धतियों से इसकी तुलना। पाश्चात्य लिपि पद्धति में गीत अथवा गत लिखने का ज्ञान।
क्रियात्मक संगीत शास्त्र, संबंधी विषयों पर लेख लिखने की पूर्ण क्षमता।