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"दुष्यंत कुमार की ग़ज़लों का रचना विधान"

'साए में धूप' की ग़ज़लों ने अपार लोकप्रियता हासिल की। पिछले 45 वर्षों में इसके 70 संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इसमें कुल बावन ग़ज़लें हैं। पचासों शेर ऐसे हैं जो जन-जन की  ज़बान पर हैं, मुहावरों की तरह इस्तेमाल होते हैं और जन-आंदोलनों की जान हैं। हजारों पन्ने इनकी तारीफ़ों में लिखे गए हैं। बहुत से शोधकार्य भी हमारे ज्ञानवर्धन के लिए उपलब्ध हैं। ऐसे भी कई लेख मिल जाएंगे जो बताते हैं कि अपने शुरुआती दिनों में दुष्यन्त जी ने गीत लिखे थे और ग़ज़लों पर भी हाथ साफ किया था, इसीलिए छंदों की उन्हें असाधारण समझ थी। लेकिन किसी ने इन सारी गज़लों का विधिवत अध्ययन कर विश्वसनीयता के साथ यह स्थापित किया हो कि व्याकरण और शिल्प की दृष्टि से ये उतनी ही खरी हैं जितनी अपने कथ्य के कारण प्रखर, ऐसा शायद पहली बार हुआ है। इसलिए मिथिलेश का यह प्रयास सराहनीय है।

                     -आलोक त्यागी 

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"अँधेरों की सुबह" मेरा पहला ग़ज़ल-संग्रह है. इस संग्रह में करीब एक वर्ष में लिखी गई ग़ज़लों के अलावा, पुराने दीवान की दो ग़ज़लों को भी सम्मिलित किया है। पिछले संग्रह का नाम भी “अंधेरों की सुबह” ही रखा था और वह शेर जिनके कारण यह उनवान हुआ है-

 

सूर्य काला हो गया है, आसमानी है ख़बर

ये अँधेरों की सुबह अब आपके पेशे-नज़र

पिछले एक वर्ष में अरूज़ को जितना समझ सका हूँ, ये गज़लें, उसी के आधार पर कहने का प्रयास किया है। इस कोशिश में अगर रिवायती ग़ज़ल के पाठकों को कुछ ख़ामी का अहसास हो तो उसके लिए मैं तहे-दिल से मुआफी चाहता हूँ। मैं अपनी कोशिश में कितना कामयाब रहा हूँ, ये आप पाठक ही बता सकते है। 

कविताई मुझे संस्कारों से ही मिली है. शायद यही कारण है कि गणित-विज्ञान स्नातक होने के बावजूद मेरी अभिरुचि साहित्यिक-सांस्कृतिक ही रही. मैंने इंजीनियर बनने का भरसक प्रयास किया किन्तु सच्चे मन से किया, यह नहीं कह सकता. जब गणित विज्ञान जैसे विषयों में मन नहीं रमा तो अपनी अभिरुचि के प्रति मुखर हो गया. पढ़ाई से संघर्ष का एक कठिन दौर था. अल्फ़ा, बीटा, गामा से लेकर फिजिक्स केमिस्ट्री की मिस्ट्री का दौर..... हाँ इस दर्मियान एक सॄजनात्मक कार्य अवश्य करता रहा कि एक उपन्यास, बीसियों–कहानियां और सैकड़ों–गज़ले, कवितायें आदि लिख गया. अपने इन्हीं शौकिया-कार्यों को जब साधने में लग गया तो परिणाम ये वेबसाईट है।

  “दोहा-प्रसंग” पर              

प्रकाशक की कलम से......

अंजुमन प्रकाशन के नए उपक्रम रेडग्रैब बुक्स से प्रकाशित ‘दोहा प्रसंग’ पचास दोहाकारों के दोहों का संकलन है जिसे मिथिलेश वामनकर ने संपादित किया है. इस संकलन से दोहों की वर्तमान स्थिति और भाव-प्रभाव की बानगी मिल सकेगी।  मिथिलेश वामनकर युवा कलमकार है जो साहित्य की कई विधाओं में दखल रखते हैं। आपका मानना है कि दोहा छंद केवल मात्रात्मक ढाँचा नहीं है बल्कि इसने हर युग से अपना एक आंतरिक वैशिष्ट्य भी प्राप्त किया है, इसलिए दोहा न केवल शैल्पिक दृष्टि से निर्दोष होना चाहिए बल्कि इसका युगबोध से भरपूर होना भी आवश्यक है। आपका संपादन कौशल इस दृष्टि से स्पृहणीय है कि आप अवांछनीय-सामग्री को दृढ़ता से अस्वीकार कर देते हैं। मिथिलेश वामनकर का जन्म मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में हुआ। आप गणित विषय से स्नातक हैं और लोक-सेवा आयोग से वाणिज्यिक कर अधिकारी के रूप में चयनित होकर वर्तमान में राज्य 'कर उपायुक्त' के पद पर भोपाल में कार्यरत हैं। आपका ग़ज़ल संग्रह ‘अँधेरों की सुबह' 2016 में अंजुमन प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है।

 

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बूँद भर उजाला 

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