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Full length plays

(drafts coming when I get time, whenever that is)

    • Satyamev Jayate (first draft circa March 2007)

    • Mulaqat (first draft circa December 2006)

Poetry


रात


अंधकार नही मैं धरती की परछाई हूँ

चाँद से पूछो कितनी देर बाद आई हूँ


हिंसक, साधू, मालिक, मजदूर,

मैं सबकी नर्म रज़ाई हूँ


कोलाहल नही, शांति हूँ मैं

आत्म-मन का द्वार हूँ


नशे की बेखुदी हूँ मैं

कवी का विचार हूँ


सूर्य की सार्थकता हूँ मैं

जली कुछ छाया का उधार हूँ


बाग हूँ प्रियतम की खुश्बू का मैं

राग अदाना का सार हू


दिनभर की ऊर्जा का स्रोत हूँ

मैं सपनों का मुफ़्त बाज़ार हूँ




पहचान


उसके लंबे हैं कान , वो है बड़ी शैतान

उसके चेहरे पर आज भी है बचपन का निशान


चीखों का है सामान

सरिये पर है जान


अरे वो है किसी की जान !

तू नही, पर वो तो है एक इंसान !


अब जो चेहरे का है निशान

वह एक लाश की है पहचान


लिखकर है कर लिया जीवंत ने अपना काम

हमें क्या, हमारी कहाँ उससे पहचान



वक़्त


सीने में दर्द का सब सामान है जमा

रोने की कोई बात मिलती क्यों नही


सच क्या है हमें ना बतलाओ

बतलाओ की रूह बदन से छूटती क्यों नही


निकलें हम नये गुलशनों की तालाश में

फूलों की ये सिस्की रुकती क्यों नही


सुना है जुमला वो वक़्त का हमने भी

ज़िंदगी फिर इस लम्हे से गुज़रती क्यों नही





घर



कुछ मकानों की चाबियां पड़ी हैं

घर कहाँ है पता नहीं



घर ही रह गई सुकून-ए-मंज़िल


घर कहाँ है पता नहीं




दिल्ली, मार्च 2020


बहार आई है मगर

फूल डर डर के खिले हैं



गेंदे गुलाबों से हैं लिपटे मगर


मालियों के घर जले हैं



आसमान बेमौसम रोया है मगर


नफरतों के सिलसिले खत्म नहीं हुए हैं



दिल्ली मेरे ख्वाबों में है मगर


दिल्लीवालों से मुझे कई गिले हैं





पतझड़



सर्दि रात में कुछ देर ठहर कर लौट जाती है


बीते पतझड़ की यादें फिर याद आतीं हैं



गोधूलि शामें खुशबू शर्मीली सी


ढूंढता हूं तो जाने कहां छुप जाती है



शायद यह खुशबू है जाड़ों की पनपती उम्मीदें


या बरखा की उम्मीदें जो रह जातीं हैं



साल ढलता गुमता सा, दिल की बात फिर अनसुनी


पतझड़ की फ़िज़ा हमें इशारा कर जाती है






बरस-चुके बादल



बरस-चुके बादल हम, खाली से खोए से


अपने साये से विस्मित, परछाईयों मे सोए से