पंद्रहवीं सतावदी के लेखों के अनुसार कोली जागीरदार खासकर गुजरात सल्तनत में लूट पाट करते थे। लेखिका सुसान बेबी के अनुसार कोली जाती महाराष्ट्र की एक पुरानी क्षत्रिय जाती है। सन् 1940 तक तो गुजरात और महाराष्ट्र के सभी राजा और महाराजा कोली जाती को एक बदमाश जाती के रूप में देखते आए थे जिसके कारण वो अपनी सैन्य शक्ति बनाए रखने के लिए कोली जाती को सैनिकों के तौर पर रखते थे। ज्यादातर कोली जमींदारी में व्यस्त हो गए लेकिन कुछ कोली व्यवास करने लगे। इस्लामिक भारत के समय से ही कोली जाती अपना महत्व बनाए हुए है। गुजरात में मुस्लिम शासन के समय कोली जाती जागीरदार के तौर पर और गीरासिया के तौर पर बनी हुई है। जागीरदार कोली अपने आप को ठाकोर बोलते थे यानी की जागीरदार।[4]
जब गुजरात पर मुगलों का सासन हुुुआ तो मुगलों के लिए पहली चुनौती कोली जाती ही थी। गुजरात के कोली मुगल शासन के खिलाफ थेे, और हथियार उठा लिए थे। जिनमें से एक यादगार लड़ाई 1615 की है; जो कोली जागीरदार लाल कोली और मुगल गवर्नर जनरल अब्दुल्ला खान की है। लाल कोली ने मुगलों की नाक में दम कर दिया था। इस लड़ाई में अब्दुल्ला खान 3000 घुड़सवार और 12000 सिपाही लेकर कॊलियो के खिलाफ लड़ाई में उतरा थाा; लेकिन लाल कोली ने और कोली जमीदारों को एक किया और सहि मुगल सेना से भिड़ गया था, लेकिन एक खूनी लड़ाई के बाद अब्दुल्ला खान की जीत हुए थी और अहमदाबाद के एक दरवाजे पर लाल कोली ठाकोर का सिर लटका दिया था। लेकिन इस घटना से गुजरात की कोली जाती का निडर होना दिखाई पड़ता है।[5][6] लेखिका शुचित्रा सेठ के अनुसार जब औरंगज़ेब ने गुजरात पर शासन किया था तब भी कोली जाती ने ही हथियार उठाए थे। औरंगज़ेब के राज में कोली जाती के लोग मुस्लिम गांव में लूट पाट किया करते थे और उनके जानवर और अन्य जरूरी सामान को लूट ले जाते थे, और खासकर शुक्रवार के दिन किया करते थे लेकिन सुलतान औरंजेब कोली जाती को संभालने में नाकामयाब रहा। इसलिए सुलतान ने 1665 में एक फरमान जारी किया की शुक्रवार के दिन कोई भी हिन्दू और जैन पूरी रात अपनी दुकानें खुली रखेंगे ताकि कोली जाती के लोगो का ध्यान उनको लूटने में जाए लेकिन ये तरीका फैल हुआ। लेकिन इससे यह पता चलता है कि कोली जाती का उस समय क्या महत्व रहा होगा।[3] इससे पहले 1664 में भी कोली जाती ने ऐसा ही किया था। कोली जाती हमेशा से ही विद्रोही स्वभाव की रही है।[4]
1830 मे कोली जागीरदारों ने उत्तर गुजरात में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाए। कोली जागीरदारों को ठाकोर साहेब के नाम से जाना जाता था। अंब्लियारा जागीर की कोली रानी ने अंग्रेज़ो से कई सालों तक कड़ी टक्कर ली थी। लेकिन कोली जागीरदारों के विद्रोह को दबाने के लिए ग्वालियर रियासत और बड़ौदा रियासत के महाराजाओं ने अंग्रेजों का पूरा साथ दिया। लेकीन 1857 में फिर से कोली जाती के लोगों ने कोली जागीरदारों के नेतृत्व में फिर से हथियार उठा लिए थे