विशेष संस्करण
सम्मान समारोह 2024
सलवान पब्लिक स्कूल ने 28 दिसंबर, 2024 को एक भव्य सम्मान समारोह का आयोजन किया, जिसमें समाज सेवा, शौर्य, कला और संस्कृति एवं शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान देने वाले व्यक्तित्वों को सम्मानित किया गया। इस समारोह का उद्देश्य न केवल सम्मानित व्यक्तियों के कार्यों को सराहना था, बल्कि विद्यार्थियों को प्रेरित करना भी था, जिससे वे अपने जीवन में समाज सेवा, त्याग, और कर्तव्यनिष्ठा के आदर्शों को अपना सकें।
समारोह की शुरुआत विद्यालय की प्रधानाचार्या श्रीमती रश्मि मलिक जी के उद्बोधन से हुई। सर्वप्रथम प्राचार्या रश्मि मलिक जी ने पूर्व चेयरमैन स्वर्गीय श्री शिव दत्त सलवान, पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री मनमोहन सिंह, उद्योगपति स्वर्गीय पदम विभूषण श्री रतन टाटा और प्रसिद्ध तबला वादक स्वर्गीय डॉ. जाकिर हुसैन को श्रद्धांजलि अर्पित की। सलवान एजुकेशन ट्रस्ट के प्रतिष्ठापक चेयरमैन श्रद्धेय पंडित गिरधारी लाल सलवान जी को पुष्पांजलि अर्पित करते हुए कहा कि " वे कर्मशील और अटल इरादों वाले व्यक्ति थे। उन्होंने ‘सभी के लिए शिक्षा’ प्रदान करने का पावन संकल्प लिया और आजीवन उस संकल्प पर दृढ़ रहे। इसी संकल्प को पूर्ण करने के लिए उन्होंने वर्ष 1941 में सलवान एजुकेशन ट्रस्ट की स्थापना पेशावर में की। समाज सेवा के प्रति उनकी लगन और निष्ठा ने उन्हें निर्भय होकर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
आगे उन्होंने स्वर्गीय श्री शिव दत्त सलवान जी के बारे में बताया कि "वे एक कर्मयोगी और हमारे पूर्व चेयरमैन एमेरिटस थे, जो ट्रस्ट के संस्थापक स्वर्गीय पंडित गिरधारी लाल सलवान जी के सच्चे उत्तराधिकारी थे। उन्होंने ‘सभी के लिए शिक्षा’ और ‘स्वयं से पहले सेवा’ के अपने उद्देश्य के साथ दिल्ली एनसीआर में 9 अतिरिक्त शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना करके ट्रस्ट को गौरवान्वित किया।
सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभारंभ गणेश वंदना के साथ हुआ। साथ ही विद्यार्थियों के विकास में अपनी अहम् भूमिका निभाने वाले अभिभावकों ने भावपूर्ण गीत "तन समर्पित, मन समर्पित" से सभा को मंत्रमुग्ध कर दिया।
शिक्षा के दीप जलाएँ , उम्मीदों के संसार बनाएँ , सालों का ये सफर, नई ऊंचाइयों तक ले जाएँ ।
इसी शृंखला में “दास्तान-ए-गोई” की आकर्षक प्रस्तुति हुई, जिसमें सलवान एजुकेशन ट्रस्ट की यात्रा और ट्रस्ट के संस्थापक श्री गिरधारी लाल जी की प्रेरक गाथा का उल्लेख किया गया।
उस युग से इस युग तक सलवान का सफ़र
सलवान बॉयज़ स्कूल के अध्यक्ष और पूर्व आईआरएस अधिकारी श्री वी.के. गर्ग ने सभा को संबोधित किया। उन्होंने 1991 के सुधारों के बाद भारत की आर्थिक प्रगति और विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में किए गए प्रयासों पर प्रकाश डाला। उन्होंने स्वर्गीय श्री शिव दत्त सलवान की परोपकारी यात्रा को प्रेरणा देने वाला बताया और सशस्त्र बलों के योगदान की सराहना की। इसके बाद, छात्रों ने "स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है" का संदेश देते हुए योग नृत्य की प्रस्तुति दी, जिसमें जीवन में सामंजस्य बनाए रखने के महत्व को दर्शाया गया।
श्री वी के गर्ग, चेयरपर्सन, सलवान बॉयज़ स्कूल, राजेंद्र नगर का संबोधन
सलवान पब्लिक स्कूल के छात्रों द्वारा योग नृत्य, संगीत और अन्य सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के माध्यम से स्वस्थ जीवन शैली और सामंजस्य बनाए रखने का संदेश दिया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य केवल वीरता और शौर्य को सलाम करना ही नहीं, बल्कि छात्रों को एक सशक्त, प्रेरित और समर्पित नागरिक बनाने की दिशा में भी कदम बढ़ाना था।
एस पी एस गुरुग्राम के छात्रों द्वारा योग नृत्य की झलकियाँ
पद्मश्री विजेताओं का सम्मान
पद्मश्री अशोक कुमार विश्वास
बच्चों के लिए प्रेरणा का स्रोत
श्री अशोक कुमार विश्वास एक प्रेरणा हैं, जिनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि कठिनाइयों के बावजूद किसी भी कला में उत्कृष्टता प्राप्त की जा सकती है, और साथ ही समाज के लिए कुछ सार्थक किया जा सकता है। बिहार के रोहतास जिले में 3 अक्टूबर, 1956 को जन्मे श्री विश्वास का जीवन संघर्ष और सफलता की मिसाल है। उन्होंने न केवल एक कला को पुनर्जीवित किया, बल्कि उसे महिलाओं के उत्थान का माध्यम भी बनाया।
संघर्ष से सफलता की ओर
श्री अशोक कुमार विश्वास ने अपनी जिंदगी की शुरुआत में आर्थिक संघर्षों का सामना किया। वह एक साइन बोर्ड की दुकान में काम करते थे, लेकिन फिर भी उन्होंने पेंटिंग से अपने आपको परिचित किया। एक छोटे से काम में संघर्ष करते हुए, उन्होंने अपनी कला की दुनिया में कदम रखा और अपनी मेहनत से सफलता हासिल की। यह हमें यह सिखाता है कि अगर हमारा इरादा मजबूत हो, तो कोई भी कठिनाई हमें अपने लक्ष्य को हासिल करने से रोक नहीं सकती।
टिकुली कला का पुनरुद्धार
श्री विश्वास का सबसे बड़ा योगदान मौर्य काल की प्राचीन टिकुली कला को पुनर्जीवित करने में रहा है। यह कला बिहार की समृद्ध लोक चित्रकला का हिस्सा है, जो महिलाओं के माथे की शोभा बढ़ाती रही है। श्री विश्वास ने इसे एक नई दिशा दी और इसे लोक कला के रूप में विकसित किया। उनके द्वारा लगभग 8000 महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया, जिनमें से कई आज अपनी रचनात्मकता से अपनी आजीविका कमा रही हैं। श्री विश्वास का यह कार्य हमें यह बताता है कि कला केवल सौंदर्य को बढ़ाने का एक साधन नहीं है, बल्कि यह समाज के उत्थान का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी हो सकता है।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान
श्री विश्वास की टिकुली पेंटिंग न केवल बिहार में, बल्कि पूरे देश और विदेश में प्रसिद्ध हो गई। 1982 के एशियाई खेलों में, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने एथलीटों के लिए श्री विश्वास की टिकुली पेंटिंग को आधिकारिक उपहार के रूप में चुना। उन्होंने देशभर में 100 से अधिक प्रदर्शनियों में बिहार का प्रतिनिधित्व किया और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी भारत का नाम रोशन किया।
सामाजिक योगदान और सम्मान
श्री विश्वास का समर्पण सिर्फ कला तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उन्होंने बिहार के ग्रामीण और उपनगरीय क्षेत्रों में महिलाओं के कौशल विकास के लिए भी काम किया। उन्होंने भारत सरकार के कौशल विकास मिशन, बिहार सरकार, और विभिन्न संगठनों के साथ मिलकर अनगिनत प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए हैं। इसके परिणामस्वरूप, टिकुली पेंटिंग अब 'मेक इन इंडिया' और 'एक जिला, एक उत्पाद' आंदोलन का हिस्सा बन चुकी है।
श्री अशोक कुमार विश्वास को उनकी कला और समाज के लिए योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं, जिनमें 2008 में बिहार सरकार द्वारा राज्य पुरस्कार, 2009 में भारत सरकार द्वारा कला श्री पुरस्कार, और 2020 में आईएचजीएफ दिल्ली मेले में स्वर्ण पदक शामिल हैं।
प्रेरणा के स्रोत
श्री अशोक कुमार विश्वास का जीवन बच्चों के लिए एक प्रेरणा है। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि अगर हम किसी काम के प्रति पूरी निष्ठा और मेहनत से प्रतिबद्ध हों, तो हम न केवल अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं, बल्कि समाज के लिए भी कुछ बड़ा कर सकते हैं। उनका संघर्ष, समर्पण और सफलता यह साबित करते हैं कि अगर हमारी मेहनत सच्ची हो, तो हम किसी भी कठिनाई को पार कर सकते हैं और दुनिया को अपनी कला और योगदान से प्रभावित कर सकते हैं।
पद्म श्री अशोक कुमार विश्वास, (कला, बिहार) का अभिनंदन
श्रीमती पूर्णिमा महतो
श्रीमती पूर्णिमा महतो का जीवन हर बच्चे के लिए एक प्रेरणा है, जो यह सीखना चाहता है कि सफलता केवल कड़ी मेहनत और समर्पण से मिलती है। वे केवल एक महान खिलाड़ी हैं, बल्कि एक उत्कृष्ट कोच भी हैं, जिन्होंने भारतीय तीरंदाजी को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया है। उनके कार्य और उपलब्धियाँ हमें यह सिखाती हैं कि किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्टता पाने के लिए दृढ़ नायक की तरह मेहनत करनी चाहिए।
प्रारंभिक संघर्ष और सफलता
श्रीमती पूर्णिमा महतो का जीवन बहुत ही प्रेरणादायक है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत कठिन संघर्षों से की, लेकिन कभी हार नहीं मानी। 1994 में पुणे में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में उन्होंने 6 स्वर्ण पदक जीतकर "सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी" का खिताब अपने नाम किया। यह न केवल उनकी खुद की कड़ी मेहनत का परिणाम था, बल्कि उनके भीतर की दृढ़ता और आत्मविश्वास का भी प्रतीक था। यह बच्चों के लिए एक बड़ी सीख है कि अगर किसी में अपने लक्ष्य को पाने का दृढ़ संकल्प हो, तो कोई भी कठिनाई उसे रोक नहीं सकती।
कोच के रूप में उपलब्धियाँ
श्रीमती महतो ने 2000 में भारत की राष्ट्रीय तीरंदाजी टीम की कोच के रूप में कार्य शुरू किया और तब से उन्होंने भारतीय तीरंदाजी को एक नई दिशा दी। उनके मार्गदर्शन में भारतीय महिला तीरंदाजी टीम ने कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। उनके कोचिंग के कारण भारतीय महिला तीरंदाजी टीम ने कई प्रतिष्ठित प्रतियोगिताओं में अविस्मरणीय सफलता प्राप्त की। यह हमें यह सिखाता है कि एक अच्छा कोच सिर्फ अपनी टीम के खिलाड़ियों में तकनीकी कौशल नहीं भरता, बल्कि उनमें आत्मविश्वास, प्रेरणा और संघर्ष की भावना भी देता है।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान
श्रीमती महतो ने अपनी मेहनत और समर्पण से एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों और विश्व कप जैसी प्रतिष्ठित प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया और देश का नाम रोशन किया। उनके द्वारा की गई इस अथक प्रयास को पहचानते हुए उन्हें द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया। श्रीमती पूर्णिमा महतो का जीवन बच्चों को यह सिखाता है कि यदि किसी भी काम को में अपनी पूरी मेहनत और ईमानदारी से काम किया जाए, तो सफलता स्वयं आपके चरण चूमती है।
पद्मश्री पूर्णिमा महतो (खेल, झारखंड) का अभिनंदन
श्रीमती तकदीरा बेगम
श्रीमती तकदीरा बेगम का जीवन संघर्ष और सफलता का प्रेरणास्त्रोत है। वह एक ऐसी कारीगर हैं जिन्होंने न केवल अपनी कला के माध्यम से खुद को पहचान दिलाई, बल्कि 300 से अधिक ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का कार्य भी किया। उनकी मेहनत और समर्पण यह दिखाते हैं कि किसी भी उम्र में शुरुआत की जा सकती है और कठिनाइयों के बावजूद सफलता प्राप्त की जा सकती है।
कड़ी मेहनत और समर्पण का परिणाम
श्रीमती तकदीरा बेगम ने मात्र 12 वर्ष की आयु में कढ़ाई की कला में अपने कदम रखे थे। बीरभूम जिले की कांथा कढ़ाई (एक पारंपरिक कढ़ाई कला) के माध्यम से उन्होंने अपनी कला को सशक्त बनाया और इसे न केवल पश्चिम बंगाल, बल्कि देश-विदेश तक पहुँचाया। उनकी कला में न केवल सुंदरता होती है, बल्कि उसमें मेहनत, धैर्य और पारंपरिक कौशल का भी अद्वितीय संयोजन होता है।
महिलाओं के लिए एक प्रेरणा
श्रीमती तकदीरा बेगम ने अपनी कढ़ाई कला के माध्यम से 300 से अधिक ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षित किया और उन्हें आत्मनिर्भर बनने का अवसर प्रदान किया। उनका यह कार्य यह सिद्ध करता है कि महिलाओं को सही मार्गदर्शन और प्रशिक्षण दिया जाए, तो वे किसी भी चुनौती का सामना कर सकती हैं। यह बच्चों के लिए भी एक महत्वपूर्ण शिक्षा है कि अगर हम दूसरों की मदद करें और उन्हें अपनी क्षमता पहचानने का अवसर दें, तो हम समाज में बदलाव ला सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय पहचान
श्रीमती तकदीरा बेगम की कला को न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी सराहा गया। उन्होंने 2002 में दुबई महोत्सव, 2006 में इटली के आर्टिगियानो, 2010 में बुडापेस्ट अंतर्राष्ट्रीय मेला और 2011 में Mascut Indexpo जैसी प्रमुख प्रदर्शनियों में अपनी कला का प्रदर्शन किया। यह हमें यह सिखाता है कि अगर हम अपनी कला या कौशल में निपुण हैं, तो हमें दुनिया भर में अपनी पहचान बनाने से कोई नहीं रोक सकता।
उनकी मेहनत और कला के प्रति समर्पण को पहचानते हुए, श्रीमती तकदीरा बेगम को 2009 में शिल्प गुरु पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उनके अद्वितीय योगदान और कला के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को मान्यता देता है।
पद्मश्री तकदीरा बेगम (कला, पश्चिम बंगाल) का अभिनंदन
वीर नारियों का सम्मान
शहीद नायब सूबेदार सोमबीर सिंह, शौर्य चक्र
नायब सूबेदार सोमबीर सिंह हरियाणा के भिवानी जिले में मीठी गाँव के रहने वाले थे। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद वे वर्ष 2001 में सेना में भर्ती हुए। उन्हें जाट रेजिमेंट की 8 जाट बटालियन में भर्ती किया गया, जो बहादुरी और युद्ध कला के समृद्ध इतिहास वाली एक पैदल सेना रेजिमेंट है। 2019 तक, नायब सूबेदार सोमबीर सिंह ने लगभग 18 साल की सेवा पूरी कर ली थी और उन्हें विभिन्न उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में काम करने का गहन अनुभव था। वर्ष 2019 के दौरान, नायब सूबेदार सोमबीर सिंह की यूनिट 8 जाट बटालियन को जम्मू-कश्मीर के कुलगाम जिले में तैनात किया गया। उस समय वह क्षेत्र आतंकवादियों की गतिविधियों से पूरी तरह प्रभावित था इसलिए यूनिट के सैनिकों को लगातार आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन करने पड़ते थे। फरवरी 2019 में नायब सूबेदार सोमबीर सिंह राष्ट्रीय राइफल्स बटालियन की एक कॉर्डन एण्ड सर्च अभियान का हिस्सा बने, संदिग्ध इलाके की घेराबंदी करते हुए, उन्होंने आतंकवादियों के भागने के रास्ते को अपने साथी के साथ कवर किया। घेराबंदी तोड़ने की कोशिश में आतंकवादियों ने अंधाधुंध गोलीबारी की और ग्रेनेड फेंके। नायब सूबेदार सोमबीर सिंह ने भागते हुए आतंकवादी को ललकारा और गुत्थम-गुत्था की लड़ाई कर ए + श्रेणी के एक विदेशी आतंकवादी को मार गिराया। इस दौरान वे स्वयं भी गंभीर रूप से ज़ख्मी हो गए और ऑपरेशन एरिया में ही वीरगति को प्राप्त हो गए ।
नायब सूबेदार सोमबीर सिंह को उनकी वीरता, कर्तव्य के प्रति समर्पण और सर्वोच्च बलिदान के लिए "शौर्य चक्र" से सम्मानित किया गया। नायब सूबेदार सोमबीर सिंह के परिवार में उनकी माँ श्रीमती राजेंद्र देवी, पत्नी श्रीमती सुमन सिंह , दो बेटियाँ और एक बेटा है।
नायब सूबेदार सोमबीर सिंह शौर्य चक्र (मरणोपरांत) की पत्नी श्रीमती सुमन सिंह का अभिनंदन
शहीद सिपाही हरि सिंह, शौर्य चक्र
सिपाही हरि सिंह का जन्म 15 अगस्त 1993 को रेवाड़ी हरियाणा में हुआ था। पूर्व सैनिक अगादी सिंह के बेटे, सिपाही हरि सिंह अपने पाँच भाई-बहनों में तीसरे नंबर के थे। वे 2011 में मात्र 18 साल की उम्र में ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट की 20वीं बटालियन में शामिल हुए। 2019 तक, सिपाही हरि सिंह ने लगभग आठ साल की सेवा की थी । अपनी मूल इकाई के साथ कुछ वर्षों तक सेवा देने के बाद, उन्हें 55 आर. आर. बटालियन के साथ सेवा करने के लिए प्रतिनियुक्त किया गया, जो आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए जम्मू और कश्मीर में तैनात थी। फरवरी 2019 में सिपाही हरि सिंह ने एक तलाशी अभियान में हिस्सा लिया। एक संदिग्ध इलाके की तलाशी के दौरान, आतंकवादियों ने अंधाधुंध गोलीबारी की, जिससे सिपाही हरि सिंह ज़ख़्मी हो गए। घायल होने के बावजूद, अपने असाधरण शौर्य का परिचय देते हुए उन्होंने तुरंत जवाबी गोलीबारी की और एक आतंकवादी को मार गिराया तथा एक अन्य आतंकवादी को घायल कर दिया । 26 वर्ष की अल्प आयु में ऑपरेशन स्थल पर आतंकवादियों से अदम्य साहस, शौर्य और पराक्रम से लड़ते हुए सिपाही हरि सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए। उनके असाधारण साहस, कर्तव्यनिष्ठा और देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने के लिए उन्हें "शौर्य चक्र" से सम्मानित गया। सिपाही हरि सिंह के परिवार में उनकी पत्नी श्रीमती राधा बाई और बेटा लक्ष्य चौहान हैं।
सिपाही हरि सिंह, शौर्य चक्र (मरणोपरांत) की पत्नी श्रीमती राधा बाई का अभिनंदन
सिपाही विक्रम सिंह, शौर्य चक्र
सिपाही विक्रम सिंह का जन्म 15 मार्च 1983 को हरियाणा के रेवाड़ी में हुआ था। स्कूली शिक्षा के बाद, वह 19 वर्ष की आयु में वर्ष 2002 में सेना के राजपूत रेजिमेंट की 17वीं बटालियन में भर्ती हो गए , जो एक पैदल सेना रेजिमेंट है । यह अपने निडर सैनिकों के लिए जानी जाती है। अपनी मूल इकाई के साथ कुछ वर्षों तक सेवा देने के बाद सिपाही विक्रम सिंह को बाद में दिसंबर 2012 में 44 राष्ट्रीय राइफल्स बटालियन के साथ सेवा करने के लिए प्रतिनियुक्त किया गया, जिसे आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए जम्मू और कश्मीर में तैनात किया गया था। उन्होंने कई ऑपरेशनों में भाग लिया और एक सैनिक के रूप में कई बार अपनी योग्यता साबित की।
25 अप्रैल 2014 को सिपाही विक्रम सिंह जम्मू-कश्मीर के शोपियाँ जिले के एक गांव में एक खोजी अभियान का हिस्सा थे। अपने कंपनी कमाण्डर के साथी के रूप में, सिपाही विक्रम ने संदिग्ध घर में विध्वंसक चार्ज लगाने में कंपनी कमाण्डर की सहायता की और कवर प्रदान करते हुए बार-बार खुद को खतरे में डाला। साहस और दृढ़ संकल्प का परिचय देते हुए, सिपाही विक्रम कंपनी कमाण्डर के साथ संदिग्ध क्षेत्र की ओर बढ़े, जहाँ आतंकवादी छिपे थे। दो आतंकवादियों को खत्म करने की प्रक्रिया में कंपनी कमाण्डर गंभीर रूप से घायल हो गए, तो सिपाही विक्रम, खुद कंपनी कमाण्डर के आगे तैनात हो गए। तीसरे आतंकवादी ने खतरे को भांपते हुए अंधाधुंध गोलीबारी की जिससे सिपाही विक्रम घायल हो गए। दृढ़ निश्चयी जवान अपनी चोटों के बावजूद डटे रहे और भागने की कोशिश कर रहे आतंकवादी को करीब से गोली मार दी। इस नजदीकी लड़ाई में सिपाही विक्रम सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए तथा मौके पर ही शहीद हो गए। युद्ध में असाधारण वीरता का परिचय देने और भारतीय सेना की सच्ची परंपराओं के अनुरूप सर्वोच्च बलिदान देने के लिए सिपाही विक्रम सिंह को मरणोपरांत "शौर्य चक्र" से सम्मानित किया गया। उनके परिवार में उनकी पत्नी सुशीला देवी व पुत्र अभिषेक है।
सिपाही विक्रम सिंह, शौर्य चक्र (मरणोपरांत) की पत्नी श्रीमती सुशीला देवी का अभिनंदन
राइफलमैन देविन्द्र सिंह, शौर्य चक्र
राइफलमैन देविन्द्र सिंह का जीवन भारतीय सेना के वीर सैनिकों की परंपरा का बेहतरीन उदाहरण है। 26 जून 2003 को कश्मीर घाटी में हुए एक साहसिक ऑपरेशन ने उन्हें शहीद बना दिया, लेकिन उनकी वीरता और कर्तव्य के प्रति निष्ठा भारतीय सेना के इतिहास में अमर हो गई।
राइफलमैन देविन्द्र सिंह कश्मीर घाटी में एक कॉर्डन एवं सर्च ऑपरेशन का हिस्सा थे। यह ऑपरेशन आतंकवादियों की गतिविधियों पर नज़र रखने और उनकी छिपने की जगहों की पहचान करने के लिए था। ऑपरेशन के दौरान, आतंकवादियों ने अचानक चारों ओर से घेर लिया और घर से बाहर आकर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। स्थिति बेहद खतरनाक हो गई थी, लेकिन राइफलमैन देविन्द्र सिंह ने डर को दरकिनार कर, अपनी ड्यूटी को प्राथमिकता दी। जैसे ही गोलीबारी तेज़ हुई, राइफलमैन देविन्द्र सिंह ने बिना किसी भय के आतंकवादियों से भिड़ने का साहस दिखाया। उन्होंने अपनी शारीरिक क्षमता और युद्ध कौशल का बेजोड़ प्रदर्शन करते हुए, तीन आतंकवादियों को मार गिराया। इस दौरान, उनकी वीरता और साहस ने न केवल उनके साथी सैनिकों को प्रेरित किया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि एक भारतीय सैनिक का जज़्बा और समर्पण किसी भी स्थिति में अडिग रहता है।
हालांकि, भारी गोलीबारी के कारण राइफलमैन देविन्द्र सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए। अत्यधिक रक्तस्राव के कारण उनकी स्थिति बिगड़ने लगी। फिर भी, उन्होंने अपनी आखिरी साँस तक अपनी ड्यूटी को निभाया। घायल अवस्था में भी, उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना आतंकवादियों का सामना किया और उनकी नापाक मंशाओं को विफल किया। शहीद होने से पहले, उनका अदम्य साहस और कर्तव्य के प्रति निष्ठा एक प्रेरणा बन गई। राइफलमैन देविन्द्र सिंह ने अपने सैन्य कर्तव्यों को पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ निभाया, जिसके कारण उन्हें मरणोपरांत "शौर्य चक्र" से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार न केवल उनकी वीरता का प्रतीक था, बल्कि उनके कर्तव्य के प्रति अद्वितीय निष्ठा और बलिदान का भी सम्मान था। राइफलमैन देविन्द्र सिंह की शहादत हमें यह सिखाती है कि असली वीरता न केवल युद्ध के मैदान में होती है, बल्कि यह जीवन के सबसे कठिन क्षणों में भी सामने आती है। राइफलमैन देविन्द्र सिंह की कहानी हमें यह प्रेरणा देती है कि देश सेवा के लिए किसी भी चुनौती का सामना करते हुए, हमें कभी भी अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटना चाहिए। उनका बलिदान और साहस भारतीय सेना के सर्वोच्च आदर्शों को जीवित रखता है और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अनमोल धरोहर है। राइफलमैन देविन्द्र सिंह का जीवन भारतीय वीरता का प्रतीक बन गया है, और उनका बलिदान कभी नहीं भुलाया जाएगा।
राइफलमैन देविंदर सिंह, शौर्य चक्र (मरणोपरांत) की पत्नी श्रीमती उषा देवी का अभिनंदन
शहीद सिपाही तरुण भारद्वाज
सिपाही तरुण भारद्वाज का जन्म 1 जनवरी, 2001 को हरियाणा में गुरुग्राम जिले के भोंडसी गाँव में हुआ था। वे सेनानायक नंदकिशोर भारद्वाज और श्रीमती मंजूराज देवी के पुत्र थे। बचपन से ही वे सशस्त्र बलों की सेवा के इच्छुक थे। गुरुग्राम के विद्या निकेतन सीनियर सेकेंडरी स्कूल अलीपुर, सोहना से अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण करते ही अपने सपने को साकार करते हुए 14 मार्च 2020 को 19 साल की उम्र में सेना में शामिल हो गए। उन्हें राजपूत रेजिमेंट की 16 राजपूत बटालियन में भर्ती किया गया, जो एक पैदल सेना रेजिमेंट है जो अपने निडर सैनिकों के लिए जानी जाती है। संयोग से यह वही बटालियन थी, जहाँ उनके पिता ने सेवा की थी और वर्ष 2001 में सेवानिवृत्त हुए थे। सन 2021 में , सिपाही तरुण भारद्वाज की यूनिट को लद्दाख क्षेत्र में LOC के साथ बटालिक सैक्टर में तैनात किया गया था। यह सेक्टर कारगिल क्षेत्र के सबसे दुर्गम हिस्सों में से एक है। सैनिकों को चरम सर्द मौसम की स्थिति में 19,000 फीट से अधिक की ऊँचाई पर दुर्गम इलाके में तैनात होने में अत्यधिक जोखिम का सामना करना पड़ता है। सिपाही तरुण भारद्वाज कुछ अन्य सैनिकों के साथ 09 सितंबर 2021 को ऐसी ही एक गश्त पर थे। जब गश्ती दल बटालिक सेक्टर में बर्फ से ढके इलाके से गुजर रहा था, तो अचानक हिमस्खलन हुआ, जिसने गश्ती दल को बर्फ में दबा दिया। सिपाही तरुण भारद्वाज भारी बर्फ के नीचे दब गए थे इसलिए अत्यधिक ठंड की स्थिति में लंबे समय तक रहने के कारण बचाव दल द्वारा उन्हें बचाया नहीं जा सका। सिपाही तरुण भारद्वाज एक बहादुर और समर्पित सैनिक थे, जिन्होंने मात्र 20 वर्ष की अल्प आयु में अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
Felicitation of Smt. Manju Devi m/o SHAHEED SEPOY TARUN BHARADWAJ
वीरजी दा डेरा - मानवता की मिसाल
ब्रिगेडियर प्रेमजीत सिंह पनेसर
सामाजिक कार्य, दिल्ली
"खुद को खोजने का सबसे अच्छा तरीका है दूसरों की सेवा में खुद को खो देना," ब्रिगेडियर प्रेमजीत सिंह पनेसर इस उद्धरण को अपने जीवन में पूरी तरह से चरितार्थ करते हैं। 1989 से, ब्रिगेडियर प्रेमजीत सिंह पनेसर ने निस्वार्थ भाव से बेघर और जरूरतमंद लोगों के लिए कार्य करना शुरू किया। उनका उद्देश्य था कि समाज के सबसे कमजोर तबके को कभी भी नज़रअंदाज न किया जाए और उन्हें भूखा न रहना पड़े। चाँदनी चौक में स्थित सीस गंज गुरुद्वारे में शुरू हुआ उनका यह कार्य आज एक बड़े आंदोलन का रूप ले चुका है, जिसे "वीर जी दा डेरा" कहा जाता है।
ब्रिगेडियर प्रेमजीत सिंह पनेसर की पहल ने दिल्ली शहर में सात विभिन्न स्थानों पर अपना विस्तार किया है, जहां हर रोज़ सैकड़ों स्वयंसेवक, जो सभी पेशेवर होते हैं, सुबह-सुबह सड़क पर रहने वाले हजारों लोगों को गर्म रोटी, दाल, चाय और अन्य भोजन सामग्री परोसने के लिए अपनी सेवा देते हैं। उनके इस कार्य का उद्देश्य सिर्फ भोजन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह उन लोगों के लिए एक आश्रय, एक उम्मीद, और एक सहारा बन चुका है, जिन्हें समाज ने दरकिनार कर दिया है।
वीर जी दा डेरा का सामाजिक योगदान देश के लिए प्रेरणा का विषय बना हुआ है। "वीर जी दा डेरा" न केवल भोजन वितरण करता है, बल्कि यह उन लावारिस शवों का अंतिम संस्कार भी करता है जिनका कोई नहीं होता। इसके अलावा, संगठन चिकित्सा सहायता प्रदान करने में भी सक्रिय है और एक वृद्धाश्रम भी संचालित करता है, जहां बुजुर्गों को उचित देखभाल और सम्मान मिलता है। कमलजीत सिंह और उनकी टीम का उद्देश्य न केवल शरीर को भोजन देना है, बल्कि उन लोगों की मानसिक और भावनात्मक स्थिति को भी समर्थन देना है, जो समाज से वंचित हैं। कमलजीत सिंह स्वर्गीय त्रिलोचन सिंह की महान विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। त्रिलोचन सिंह ने भी अपने जीवन को सेवा में समर्पित किया था और कमलजीत ने उसी मार्ग का अनुसरण करते हुए अपनी पूरी ज़िंदगी गरीबों, बीमारों, और बेसहारा लोगों की सेवा में समर्पित कर दी है। कमलजीत सिंह की सेवा भावना न केवल उन्हें प्रेरणा देती है, बल्कि उन सभी लोगों को भी प्रेरित करती है जो मानवता के लिए काम करना चाहते हैं।
सलवान पब्लिक स्कूल के छात्रों द्वारा 1,200 किलोग्राम दाल और 25,000 रुपये की चिकित्सा सहायता दान की गई।
ब्रिगेडियर प्रेमजीत सिंह पनेसर, सामाजिक कार्य, दिल्ली का उनकी टीम के सदस्यों के साथ अभिनंदन
दिवंगत सैयद अब्दुल रहीम महान फुटबॉल कोच (खेल, कर्नाटक)
भारतीय फुटबॉल टीम के कोच और मैनेजर सैयद अब्दुल रहीम को विशेष रूप से सम्मानित किया गया। 1950 से भारतीय फुटबॉल टीम के कोच और प्रबंधक के रूप में, सैयद अब्दुल रहीम के नेतृत्व में भारतीय टीम ने स्वर्ण पदक जीते-1951 में दिल्ली और 1962 में जकार्ता, एशियाई खेल। उन्होंने 1956-मेलबर्न ओलंपिक का सेमीफाइनल भी खेला
भारत यह स्थान हासिल करने वाला पहला एशियाई देश है। उनके सम्मान में, अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ ने "सर्वश्रेष्ठ कोच पुरस्कार" का नाम बदलकर "सैयद अब्दुल रहीम पुरस्कार" कर दिया। 2023 की फिल्म मैदान उनकी चुनौतियों, जीत और फुटबॉल के प्रति जुनून को दर्शाती है, एक ऐसे व्यक्ति का जश्न मनाती है जिसने खेल के प्यार के लिए सीमाओं को लांघ दिया।
स्वर्गीय सैयद अब्दुल रहीम महान फुटबॉल कोच (खेल, कर्नाटक) का अभिनंदन
डॉ. शिल्पा रघुवंशी, पीजीटी बायोटेक्नोलॉजी, सलवान पब्लिक स्कूल
प्रसिद्ध रंधावा पुरस्कार डॉ. शिल्पा रघुवंशी, पीजीटी बायोटेक्नोलॉजी, सलवान पब्लिक स्कूल को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रदान किया गया।
डॉ शिल्पा रघुवंशी, पीजीटी बायोटेक्नोलॉजी, सलवान पब्लिक स्कूल, राजेंद्र नगर का अभिनंदन।
सलवान एजुकेशन ट्रस्ट के चेयरमैन श्री सुशील दत्त सलवान जी का संबोधन
सलवान एजुकेशन ट्रस्ट के चेयरमैन श्री सुशील दत्त सलवान ने सभा को संबोधित किया। उन्होंने वीर नारियों और सैनिकों के बलिदान और राष्ट्र के प्रति उनकी सर्वोच्च निष्ठा की सराहना की। समाज और राष्ट्र निर्माण में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए स्वर्गीय श्री शिव दत्त सलवान जी और उद्योगपति रतन टाटा को भी श्रद्धांजलि दी।
उन्होंने छात्रों से मानवता, सेवा और त्याग को अपनाने का आग्रह किया, साथ ही कृत्रिम बुद्धिमत्ता और सामाजिक जटिलताओं से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि छात्रों में करुणा और एकता का पोषण करना, एक ऐसी भावी पीढ़ी का निर्माण करना जो मानवता के लिए प्रेम और त्याग को प्राथमिकता दे। उन्होंने शिक्षकों के कार्यों की सराहना करते हुए भविष्य में छात्रों के साथ मानवीय संवेदनाओं को बनाए रखने तथा उनके जीवन निर्माण में अपनी अहम् भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया।
समारोह का समापन मेजर जनरल सुरिंदर सिंह, ए वी एस एम, एस एम, वी एस एम द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जिसमें उन्होंने सभी सम्मानित अतिथियों और पुरस्कार विजेताओं के योगदान के लिए आभार व्यक्त किया। अंत में, राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ, जिसने एकता और देशभक्ति की भावना को और अधिक प्रगाढ़ किया।
मेजर जनरल सुरिंदर सिंह, ए वी एस एम, एस एम, वी एस एम द्वारा धन्यवाद ज्ञापन
सलवान पब्लिक स्कूल ने रचनात्मकता, संस्कृति और शिल्प कौशल के एक प्रेरक उत्सव ‘हुनर मेला’ की मेजबानी 28 दिसंबर, 2024 को की गई। इस जीवंत कार्यक्रम में निजामाबाद, मुबारकपुर, बिहार, पश्चिम बंगाल और राजस्थान के असाधारण कारीगरों को सम्मानित किया गया। उनके पारंपरिक कौशल का प्रदर्शन किया गया और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में उनके अमूल्य योगदान का जश्न मनाया गया।
Glimpses of Hunar Mela
कला आत्मा की अभिव्यक्ति है। यह हमें अपनी दिव्यता को समझने में मदद करती है।” - स्वामी विवेकानंद
26 -27 दिसंबर, 2024 को सलवान पब्लिक स्कूल, गुरुग्राम में कला कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें सलवान पब्लिक स्कूल मयूर विहार, सलवान पब्लिक स्कूल राजेंद्र नगर और सलवान पब्लिक स्कूल ट्रॉनिका सिटी के छात्रों ने हिस्सा लिया।
आकर्षण का केंद्र -
· आशुतोष किस्कू द्वारा इको-ज्वैलरी
· सकीना खातून द्वारा कांथा कढ़ाई
· पद्मश्री अशोक कुमार विश्वास द्वारा टिकुली कला
कार्यशाला का उद्देश्य-
· पारंपरिक भारतीय कला के विभिन्न रूपों की सराहना करना |
· इको-आभूषण, कांथा कढ़ाई और टिकुली पेंटिंग के सांस्कृतिक महत्व और इतिहास को समझना।
· सतत कला का अन्वेषण, जिसमें विद्यार्थियों ने समझा कि कैसे ताड़ के रेशे और बीज जैसी प्राकृतिक सामग्री को सुंदर पर्यावरण- अनुकूल आभूषणों में बदला जा सकता है।
· रचनात्मक कौशल में वृद्धि-मास्टर कारीगरों द्वारा निर्देशित गहन गतिविधियों के माध्यम से कढ़ाई, पेंटिंग और क्राफ्टिंग में व्यावहारिक
कौशल विकसित करना सिखाया गया।
· सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देना - भारत की समृद्ध कलात्मक परंपराओं और शिल्प कौशल के बारे में गर्व और जागरूकता की भावना को बढ़ावा दिया गया।
· लघु कुटीर उद्योग को प्रोत्साहित करना - छात्रों को कला और शिल्प में रचनात्मक करियर के रूप में अपनाने के लिए प्रेरित किया गया।
कार्यशाला की झलकियां