दोस्तो, यह जानने के बाद कि रोग पैदा होने की सबसे बड़ी वजह किलिंग फोर्स की संरचना और सिस्टम है, रोगोपचार के सही तरीके के बारे में अनुमान लगाना आपके लिए कोई मुश्किल काम नहीं होना चाहिए। रोगोपचार का सारा रहस्य किलिंग फोर्स और वाइटल फोर्स की आपसी खींचतान में छिपा है। किलिंग फोर्स हमारे शरीर में कष्टदाई लक्षण पैदा करके अंततः एक दिन हमको मौत के मुँह में समा देने का प्रकृति प्रदत्त system है। दूसरी ओर वाइटल फोर्स इसके उलट काम करने के लिए बनाया गया system है। किलिंग फोर्स जब न्यूनतम पर रहती है तो वाइटल फोर्स maximum पर होती है, अर्थात हम परम स्वास्थ्य की स्थिति में होते हैं। और जिस घड़ी किलिंग फोर्स अधिकतम होती है, उस समय वाइटल फोर्स शून्य हो जाती है और हम मर जाते हैं। यदि K.F. 99 पर है और V.I. 1 पर है, तो भी हमारे शरीर के बचने की संभावनाएँ रहेंगी। यदि KE. 95 और VE. 5 हो तो इस तरह के मरीज़ महीनों से, हफ्तों से आई.सी.यू. में पड़े दिख जाएँगे। लेकिन आखिरकार ऐसे 100 में 99 लोग मृत्यु को प्राप्त करते हैं, क्योंकि दुर्भाग्य से इस किलिंग फोर्स के system का हमको पता नहीं है। लेकिन यदि किसी तरीके से 95 प्रतिशत किलिंग फोर्स को 5 पर, 50 पर, या 30 पर लाया जा सके तो वाइटल फोर्स स्वतः ही ज्यादा प्रभावी हो जाएगी और हम अस्पताल से वापस आ जाएँगे। यही रोगोपचार का विज्ञान है कि किसी भी तरह से किलिंग फोर्स को नीचे लाया जाए, न कि वाइटल फोर्स बढ़ाने की कोशिश की जाए। यहाँ एक बात समझना ज़रूरी है। जब भी होमियो दवाएँ या अन्य कोई पद्धति किलिंग फोर्स पर वार करके रोगों की संरचना को तबाह करती है, वैसे ही तत्काल वाइटल फोर्स अपना काम शुरू कर देती है, टेक ओवर कर लेती
है। यह मामला कुछ ऐसा ही है कि जैसे आपके मकान पर किसी ने कब्ज़ा कर लिया हो और स्पेशल कमांडो फोर्स (होमियोपैथिक दवा या डिवाइन हीलिंग वगैरह) आकर उसको खाली करवा दे। फिर आप आराम से अपने घर में रह सकते हैं।
किलिंग फोर्स को कम करने के उपाय जब हम जाग्रत रहते हैं तब वाइटल फोर्स ज्यादा सक्रिय रहती है। दूसरी ओर किलिंग फोर्स उस समय ज्यादा active रहती है जब हमारा शरीर सोया हुआ हो। इसलिए ज्यादातर बीमारियों का प्रकोप रात को बढ़ जाता है। और इसलिए मैं दवा का प्रयोग रात को ठीक सोने से पहले और खाने के तीन घंटे बाद कराता हूँ ताकि दवा शरीर के गहरे तलों में जा सके और के.एफ. के साँप का फन, जो रात में ही ज्यादा उठता है, उसको नष्ट किया जा सके। जो लोग ज़्यादा तामसी होते हैं, विस्तर पर ही रहते हैं, आराम से रहते हैं, परिश्रम से भागते हैं, उनकी किलिंग फोर्स ज्यादा active हो जाती है और तरह-तरह की बीमारियाँ उनके शरीर को घेर लेती हैं। इस तरह किलिंग फोर्स को हम रास्ता देते हैं कि आ बैल मुझे मार दूसरी तरफ जो लोग ज्यादा ऊर्जावान होते हैं, खेतों में काम करते हैं, हल चलाते हैं, दौड़ लगाते हैं, जिम जाते हैं, योग करते हैं, उनमें किलिंग फोर्स प्रभावी नहीं रह पाती। क्यों? क्योंकि जब अचानक शरीर के लिए विपत्ति वाला समय आ जाता है तो उस समय शरीर में मौजूद के एफ. वाइटल फोर्स के साथ संयुक्त हो जाती है। जब हम कोई मेहनत वाला काम करते हैं तो हमारे शरीर को अतिरिक्त ऊर्जा व ऑक्सीजन सप्लाई की जरूरत पड़ती है, जिसे वह आपातकालीन स्थिति के तौर पर देखता है, इसलिए उस समय के. एफ. वाइटल फोर्स में बदलने लगती है। इसलिए व्यायाम इत्यादि से के एफ. नीचे की तरफ जाती है और वाइटल फोर्स बढ़ती है, फलस्वरूप हम ज्यादा स्वस्थ हो जाते हैं। इसलिए सारी दुनिया में शरीर शास्त्री अचेतन रूप से जिम, व्यायाम और मेहनत पर जोर देते हैं।
व्यायाम का महत्व यदि हमारी Killing Force 70 पर है और वाइटल फोर्स 30 पर है और हम दौड़ लगाना शुरू करें, 10 दिन, 15 दिन, एक महीना, तो हमारी वाइटल फोर्स 70 पर चली जाएगी और किलिंग फोर्स 30 पर आ जाएगी। सैनिकों को जो अभ्यास कराते हैं, वे वस्तुतः वाइटल फोर्स बढ़ाने के नहीं बल्कि किलिंग फोर्स घटाने के अभ्यास होते हैं। हमारे प्राचीन ऋषियों को किलिंग फोर्स के इस system का पता था, इसलिए उन्होंने प्राणायाम, योगासन, एवं योग मुद्राएँ खोजीं। ये सभी विधियाँ वस्तुतः वाइटल फोर्स को नहीं बढ़ातीं, बल्कि किलिंग फोर्स की ताकत को कम करती हैं। और जैसे भी और जिस तरह से भी किलिंग फोर्स की ताकत को कम किया जाए, वाइटल फोर्स हमारी अपने आप ही बढ़ जाती है। जो लोग नियमित योगाभ्यास करते हैं, उन लोगों के शरीर में किलिंग फोर्स लगभग निष्क्रिय होती है। अगर हम 1 घंटा योगाभ्यास करें तो शरीर में 24 घंटे के लिए किलिंग फोर्स लगभग निष्क्रिय जैसी हो जाती है और 24 घंटे हम ठीक रहते हैं। अगले दिन हम पुनः योगाभ्यास करते हैं और पुनः 24 घंटा निरोग रहते हैं। इस प्रकार योग रोग नहीं भगाता बल्कि किलिंग फोर्स का समन्वयन करता है।
अन्य वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियाँ इसी तरह का प्रभाव मुद्रा विज्ञान का भी होता है। जिन लोगों को पता होगा मुद्रा चिकित्सा के बारे में, वे जानते ही होंगे कि हमारी जो दोनों हाथों की उंगलियाँ हैं, उनको अलग-अलग तरह से आपस में जोड़कर भी शरीर में जो रोगों का प्रिंट आता है, उसका उपचार किया जा सकता है। किलिंग फोर्स शरीर की आंतरिक विद्युत में जो गड़बड़ी पैदा करती है, उसे अपने हाथों की उंगलियों को अलग-अलग ढंग से जोड़कर ठीक किया जा सकता है। यह आंतरिक ऊर्जा का विज्ञान है, जिसे पहले के ऋषि वैज्ञानिक तो बखूबी जानते थे पर आधुनिक चिकित्सा व भौतिक विज्ञानी ठीक से नहीं समझ पाए हैं। इसी तरह का असर एक्यूपंक्चर, एक्यूप्रेशर, रेकी व प्राण चिकित्सा का भी होता है। दुआ या आशीर्वाद जैसी चीजों से भी बीमारी और बीमारी के तथाकथित लक्षण
ठीक हो जाते हैं। इन विधियों से बिना किसी दवा के के.एफ. की शक्ति को घटाया जा सकता है। यह बेहद उच्च व समुन्नत विज्ञान है जिसे हमारे प्राचीन ऋषियों-मनीषियों ने खोजा था। कृपया इस बात को नोट कर लें कि इस के. एफ. पर कुशलता से कार्य किए बिना स्थाई उपचार संभव नहीं है और पूरे विश्व में जितनी भी उपचार पद्धतियाँ हैं, चाहे वह जादू-टोना या झाड़-फूँक ही क्यों न हो, वे सब के एफ. को ही प्रभावित करने का विज्ञान हैं। बेशक इनमें से कई सारी पद्धतियों (जिनमें होमियोपैथी भी शामिल है) के कार्य-कारण सिद्ध ांतों को हम खोज नहीं पाए हैं। जिस दिन खोज लेंगे, उस दिन ये पद्धतियाँ हमारे लिए मज़ाक और रहस्य का विषय नहीं रहेंगी। यह कतई जरूरी नहीं है कि कोई भी सफल प्रभाव देने वाली उपचार पद्धति, जिसके कार्य-कारण के सिद्धांत से हम वाकिफ नहीं हैं, उसे हमारा वैज्ञा मन अनर्गल और फालतू करार दे दे। ज़रूरत इस बात की है कि जैसे मैंने होमियो के कार्य-कारण के सिद्धांत को खोजा, मनन किया, प्रयोग किए, वैसे ही सभी वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के अंदर गहरे जाने के प्रयास किए जाएँ।
व्रत और उपवास
मान लीजिए कि किलिंग फोर्स ने एक लक्षण दिया, जैसे शरीर गर्म हो गया। किलिंग फोर्स चाहेगा हमको मारना, उसका लक्ष्य है हमारी मौत इसलिए शरीर गर्म हो गया। अब हमें खाना अच्छा नहीं लगता है। खाना खाते हैं तो शरीर और गर्म हो जाता है, इसलिए खाना नहीं खा सकते, पानी नहीं पी सकते। लेकिन क्या यह सचमुच बुरी बात है? प्राचीन समय में ऋषि-मुनियों ने देखा कि जब हम बीमार होते हैं तो K.F. बढ़ जाती हैं और V.F. घट जाती है। उन्होंने यह भी देखा कि हम जब भोजन करते हैं तो भोजन की ऊर्जा से K.F. और V.E. दोनों को ऊर्जा मिलती है। और तब उन्होंने बीमार होने पर उपवास शुरू किया, उन्होंने भोजन नहीं लिया। उपवास से क्या हुआ कि दोनों भाइयों को ऊर्जा ही नहीं मिली और पावर हाउस से ही बिजली फेल हो गयी, तो दोनों बल्ब की रौशनी कम हो गयी। तो किलिंग फोर्स जहाँ 50 के नीचे आया, वहीं वाइटल फोर्स अचानक 50 के ऊपर हो गया। पुराने लोगों को अंजाने ही उपवास के रहस्य का पता था। मुझे याद है कि बचपन में जब मुझे बुखार लगता था तो मेरी दादी कहती थी, मेरी नानी कहती थी कि दवा नहीं लेना है, बस तीन दिन कुछ नहीं खाना है, हल्का-सा दूध लेना है। और जादू की तरह तीन दिन के उपवास के बाद बुखार ठीक हो जाता था। कैसे ठीक हो जाता था? वाइटल फोर्स भी नीचे आया और किलिंग फोर्स भी नीचे आया, क्योंकि ऊर्जा का source कट गया। इसलिए हमारे देश में हर व्रत और त्योहार के साथ, धार्मिक अनुष्ठानों के साथ उपवास को जोड़ा गया। महीने में चार दिन, सप्ताह में एक दिन अगर स्वस्थ आदमी भी उपवास रखे तो वाइटल फोर्स का सिस्टम तो ज्यादा disturbe नहीं होगा, वह तो संचित ऊर्जा से काम चला लेगी, मगर K.F. की कार्यप्रणाली में गड़बड़ होने लगती है। और इसका फायदा यह होता है कि हमें उपवास के बाद, भोजन लेने के बाद बहुत सुकून-शांति महसूस होती है। उपवास कई छोटी-मोटी बीमारियों को नष्ट कर देता है। इसलिए उपवास से भी किलिंग फोर्स का हम धनात्मक उपयोग करते हैं। उपवास से यदि किलिंग फोर्स के लेवल को नीचे लाया जा सके तो हमारा शरीर स्वस्थ हो जाएगा, रोग के लक्षण विदा हो जाएँगे।
रोगोपचार का सर्वश्रेष्ठ तरीका क्या है ? आपने देखा होगा, पानी की सतह पर बुलबुले आते हैं। वे बुलबुले पानी के अंदर से आते हैं। मीतर की गहराइयों से उठते हैं और सबसे ऊपर आकर फूट जाते हैं, विदा हो जाते हैं। अब मान लीजिए कि किलिंग फोर्स ने, जो कि चौथे शरीर में स्थित अपने मुख्यालय में बैठी हुई है, वहाँ से एक बुलबुला एक बीमारी के रूप में ऊपर भेजा। समझें कि सतह पर, यानी कि स्थूल शरीर में बिंदु 'ए' पर वो बुलबुला निकला। अब यह बिंदु 'ए' रोगग्रस्त हो जाएगा। हम इसे रोगग्रस्त होने से कैसे बचाएँ? यह तो तय है कि बीमारी रूपी बुलबुले को चौथे शरीर की गहराई से चलकर स्थूल शरीर की सतह तक आने में कुछ समय तो लगेगा। तो यदि हमारे पास ऐसी कोई प्रभावी तकनीक हो जिससे हमें बुलबुले के निकलते ही उसका पता चल जाए और हम उसे सतह पर आ से पहले ही फोड़ दें, तभी हम बीमारियों से बचे रह सकते हैं। जैसे अभी अमेरिका एक तकनीक विकसित कर रहा है न कि दुश्मन के देश से मिसाइल चलते ही उसे वहीं दुश्मन के देश में ही फोड़ दिया जाए। तो ऐसी ही तकनीक हमें चाहिए, और यह ईजाद हो भी चुकी है। आजकल ऐसे कैमरा बन गए हैं जो हमारे स्थूल शरीर के साथ-साथ हमारे दूसरे नंबर के सूक्ष्म शरीर का भी फोटो ले सकते हैं। इसे 'ऑरा फोटोग्राफी' या 'किरलियन फोटोग्राफी' कहते हैं। ऑरा असल में हमारे चारों ओर मौजूद आभामण्डल को कहा जाता है, जो कि और नहीं बल्कि हमारा प्राण शरीर या दूसरे नंबर का शरीर होता है। तो इस ऑरा फोटोग्राफी से होता क्या है? इससे हम बुलबुले को गहराई में ही पकड़ लेते हैं। नहीं समझे? मान लीजिए किसी को आज कैंसर हुआ, तो यह कहना ज़्यादा सही होगा कि आज कैंसर स्थूल शरीर तक पहुँचा। कैंसर की मिसाइल तो किलिंग फोर्स ने छह महीना पहले ही चला दी थी, पर स्थूल शरीर पर उसका प्रिंट आते-आते छह महीने लग गए। अब तो हम कुछ नहीं कर सकते। लेकिन दो महीने पहले जब यह कैंसर रूपी मिसाइल हमारे दूसरे नंबर के शरीर, यानी कि प्राण शरीर में प्रविष्ट हुई थी तभी यदि ऑरा फोटोग्राफी के माध्यम से इसका पता लगा लिया जाता तो इसे स्थूल शरीर तक आने से रोका जा सकता था। छह महीने पहले जब भीतर के शरीरों से कोई बीमारी चलती हैं, तो चौथे महीने में हमारे प्राण शरीर पर उसका प्रिंट आ जाता है, या उससे भी पहले उसकी जानकारी हमें हो जाती है। जिस मरीज को दो महीने बाद कैंसर होने वाला हो, उसके आँस में आप कुछ परिवर्तन देखेंगे। तो अगर कोई ऐसा सिस्टम हम खोज पाएँ जिससे दुश्मन की मिसाइल को उसी के देश में या देश के निकट तबाह किया जा सके, तो हमारा देश तो पूर्णतः सुरक्षित रहेगा। मेरी बात आपने समझी? वो जो कैंसर का बुलबुला आ रहा है नीचे से, चौथे शरीर से, उसको वहीं मारा जा सके जिस भंडार में वह रखा हुआ है, तब तो कुछ बात हो। जैसे हम समझ लें कि चौथे शरीर में एक स्टोर हाउस है, जिसमें 70 साल में जो कैंसर होना है, पचास साल में जो ब्लैंड प्रेशर होना है, चालीस साल में जो डायबिटिज होना है, उन सबके मिसाइल सुरक्षित रखे हैं और समय आने पर किलिंग फोर्स द्वारा इस्तेमाल किए जाएंगे। यही आनुवंशिक बीमारियों का विज्ञान है। इसीलिए हम होमियोपैथी में माता-पिता तक का इतिहास लेते हैं कि आपके पिता जी को क्या था, आपकी माता जी को क्या था। यह चीज़ ऑरा फोटोग्राफी का काम करती है।
बहरहाल, समय आने पर किलिंग फोर्स ने चौथे शरीर से कैंसर की मिसाइल छोड़ी। जैसे ही यह मिसाइल स्थूल शरीर की सतह पर आएगी, वैसे ही शरीर में कैंसर कोशिकाएँ विकसित हो जाएँगी। तो अभी जो एलोपैथी में वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जो पैथोलॉजी है, वह तब ही जाकर उसको ढूँढ पाती है। लेकिन यदि ऑरा फोटोग्राफी की मदद से या पारिवारिक इतिहास की मदद से स्थूल शरीर में प्रिंट आने से पहले ही पता लग सके कि कैंसर नाम की मिसाइल चल चुकी है या चलने वाली है, तो कुछ उपाय किया जा सकता है। कहने का मतलब यह कि यदि बीमारियों या के.एफ. का प्रभाव चौथे, तीसरे, दूसरे सूक्ष्म शरीरों में ही जाना जा सके और उसको यदि उन्हीं शरीरों में ही होमियोपैथी की शक्तिकृत दवा अथवा किसी अन्य उपाय से मारा जा सके या उसको पनपने ही न दिया जाए ताकि वो हमारे स्थूल शरीर को किसी तरह की नकारात्मक ऊर्जा का सम्प्रेषण न कर सके, तो यह रोगों का शमन करने की सबसे उच्च तकनीक होगी। इससे भले ही दो-तीन दिन तक रोगों का एग्रीवेशन हो जाता है, कई बार दस्त, सर्दी-जुकाम, बुखार इत्यादि हो जाता है (यह इस बात की सूचना होती है कि होमियो दवा कारगर रही है), दो-चार दिन, हफ्ते-दो हफ्ते भले ही हमें कष्ट सहने पड़ते हैं, परन्तु स्मरण रखें कि यह आपके लिए उत्सव मनाने और अपने कुल देवता को प्रसाद चढ़ाने का समय होता है, क्योंकि आप नहीं जानते कि होमियो की इन दवाओं ने आपकी उन बीमारियों से रक्षा की है जिनसे लड़ने और मुक्त होने में आपकी जमा-पूँजी साफ हो जाती या आप एड़ियाँ रगड़-रगड़कर आई.सी.यू. किसी वार्ड में कष्ट भोग रहे होते। इसलिए मैं विश्व के तमाम जागरूक बुद्धिजीवियों से यह अपील करना चाहूँगा कि रोग एवं उपचार के विज्ञान को इस पुस्तक के माध्यम से गहराई में समझें और उपचार हेतु एलोपैथी से जितना बच सकें, बचें और अपने परिवार के लिए आस-पड़ोस के किसी विज़नरी होमियोपैथ को चुनकर, परखकर अपने पूरे परिवार की फाइल उनके यहाँ बनवाएँ और होमियो पद्धति से अपना इलाज करवाएँ।
लेकिन मान लीजिए कि आपके दुर्भाग्य से या आपके शनि ग्रह एवं कुंडली के मारकेश वगैरह की दशा के कारण ऐसा नहीं हो पाया और के.एफ. ने अपनी मारक ऊर्जा की संरचना का एक प्रभाव स्थूल शरीर पर छोड़ दिया। जैसे- आपके स्थूल शरीर में कैंसर हो गया। तो एलोपैथी में कैंसर होने के बाद, जब वो मिसाइल स्थूल शरीर पर फट चुकी होती है और कैंसर कोशिकाएँ विकसित हो चुकी होती हैं, तब हम इलाज शुरू करते हैं। कई बार एलोपैथी सिस्टम में कैंसर का जब तक पता चलता है तब तक बीमारी तीसरी या चौथी या अंतिम स्टेज तक पहुँच चुकी होती है और उस स्थिति में रेडिएशन व कीमो इत्यादि पीड़ादायी उपचार के अलावा कुछ बचता नहीं। मगर तब तक काफी देर हो चुकी होती है और किलिंग फोर्स का काम पूरा हो चुका होता है। और चूँकि उससे पहले हमें पता ही नहीं होता; हाथ में कुछ मस्सा जैसा हो गया लेकिन तकलीफ नहीं दे रहा है, कुछ नहीं हो रहा तो लोग भी निष्क्रिय रहते हैं कि हो गया होगा कोई मस्सा। फिर एक दिन अचानक पाते हैं कि वो मस्सा तकलीफ देने लगा, उससे मवाद आने लगा, और वो घाव बन गया। वो कैंसर हो गया। लेकिन मस्सा तो छह महीना पहले से था, तब तो कैंसर नहीं था! असल में किलिंग फोर्स को पता था कि हमारा कौन-सा बिंदु कमजोर है। वहीं पर भेजेगा न वो अपना मिसाइल। शेर जब शिकार करता है तो सबसे स्वस्थ हिरण को थोड़े ही न मारता है, वह तो उसे मारता है जो पहले से बीमार हो, कमज़ोर हो, जिसकी एक टांग टूट गयी हो। इसी तरह किलिंग फोर्स भी हमारे शरीर के सबसे कमज़ोर हिस्से को ढूँढती है। जैसे कहीं कुछ कट गया, तो जितनी भी नकारात्मक ऊर्जा है किलिंग फोर्स के पास, अंदर से सब वहीं पर भेजती है, जिससे घाव और विषाक्त हो जाता है। ऐसा कोई सिस्टम होना चाहिए जिससे हम उसको ऐसा करने से रोक सकें। वाइटल फोर्स को तो पहले से पता नहीं चल पाता कि कहाँ क्या होने वाला है। वो सुरक्षा चक्र जरूर है मगर उसको पहले से पता नहीं होता, वह तो तभी काम शुरू करता है जब स्थूल शरीर बीमारी से आक्रान्त हो चुका होता है।
लेकिन यदि समय रहते पता चल भी जाए तब भी हमारा एलोपैथी सिस्टम इतना कमज़ोर है कि वह स्थूल शरीर पर आक्रमण होने से पहले कुछ नहीं कर सकता। आप देखिए कि हमको पता है कि दो महीने बाद एक डाकू आ हमको मार देगा, पुलिस को भी पता है, सेना के जनरल को भी पता है, और तब भी डाकू आकर दो महीने बाद हमको मार देता है। सोचिए, कितना कमज़ोर सिस्टम है हमारा। हमको पता है कि पिता जी को हार्ट अटैक हुआ था, पिता जी को डायबिटीज़ थी, और डॉक्टर कह रहे हैं कि आपको भी हार्ट अटैक का खतरा हो सकता है, आपको भी डायबिटीज़ हो सकती है, मगर सिवाए हाथ पर हाथ धरकर बैठने के कर कुछ नहीं रहे हैं। अरे यार, डूब के मर जाओ। तुमको पता है कि 50 साल में यह बीमारी हो सकती है, लेकिन अभी से कुछ नहीं कर सकते! और जब बीमारी स्थूल शरीर में आ ही जाती है, तब तो करने के लिए कुछ रह ही नहीं जाता। क्या आपको नहीं लगता कि हमारा सारा मेडिकल सिस्टम एक मजाक है? हम इंतजार करते रहते हैं कि पहले बीमार हो जाएँ, फिर इलाज कराएँगे।
हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक, खुदा करे कि कयामत हो और तू आए ।
लेकिन होमियोपैथी ऐसा नहीं करती। होमियोपैथी बीमारी के लक्षणों के आने का इंतज़ार नहीं करती। होमियोपैथी वालों के पास जब कोई मरीज़ आता है तो वे उसका और उसके परिवार का पूरा इतिहास पता करते हैं। वे देखते हैं कि क्या मरीज के परिवार में या दादा-परदादा को कैंसर हैं या था? यदि हाँ, तो वे यह मानकर चलते हैं कि मरीज़ को भी कैंसर या उससे मिलते-जुलते घातक रोग हो सकते हैं। बेशक आज 25 साल की उम्र में नहीं हैं, मगर आगे चलकर हो सकते हैं। तो क्या वे इंतजार करते हैं कि पहले कैंसर हो और उसके बाद इलाज करें? नहीं। वे इस बात में यकीन करते हैं कि prevension is better than cure वे मरीज़ को IM या 10M की पोटेन्सी में Carsinocin नोसोड देते हैं। (नोसोड पर मैंने आगे एक अलग से अध्याय लिखा है। नोसोड को बड़ी घृणा की दृष्टि से देखा है लोगों ने पर मैं आपको बताना चाहता हूँ कि मानव जाति ने आज तक जितनी भी खोजें की हैं, जितने भी आविष्कार हुए हैं, उनमें सबसे महान खोज नोसोड की है। इसके आगे तो पढ़िये का, परमाणु बम का, या अंतरिक्ष यान का आविष्कार भी दो कौड़ी का है। कैसे, इसको हम आगे देखेंगे। नोसोड का आविष्कार महान हैनीमैन साहब ने किया था, जिसके लिए वे साधुवाद के पात्र हैं।) तो हमें पता है कि इस मरीज़ का कैंसर का पारिवारिक इतिहास रहा
है। बेशक अभी उसे कैंसर नहीं है, अभी तो बुखार है, सर्दी है, जुकाम है, और भी कई छोटी-मोटी बीमारियाँ हैं। तो एक सम्पूर्ण होमियोपैथ जो होगा, वह पहले दुश्मन के मुख्यालय पर, जहाँ उसकी रिज़र्व सेना है, जहाँ उसने सबसे बढ़िया हथियार रखे हैं, वहाँ हमला करके पहले उस सेना को और उन हथियारों को नष्ट करता है बजाय सीमा पर तैनात सेना के जैसे अगर बॉर्डर पर इंडिया-पाकिस्तान में युद्ध हो गया और कोई बेवकूफ जनरल हुआ तो वह सारी सेना बॉर्डर पर भेज देगा कि जाओ लड़ो-मरो। उसमें A मरे कि B मरे कुछ पता नहीं। लेकिन जो अक्लमंद जनरल होगा वो यह जानने की कोशिश करेगा कि दुश्मन के हथियार कहाँ हैं, रिज़र्व फोर्स कहाँ है। अगर किसी तरह वहाँ पर मिसाइल छोड़ी जा सके और दुश्मन के हथियार दुश्मन की सीमा में ही खत्म हो जाएँ तो बॉर्डर की सेना तो वैसे ही सरेण्डर कर देगी ना इसी तरह जो अक्लमंद होमियोपैथ होगा वह पहले आनुवंशिक बीमारियाँ ढूँढेगा। आनुवंशिक बीमारियाँ जितनी भी हैं वो किलिंग फोर्स के लिए मिसाइल्स का काम करती हैं। उसको रेडिमेड मिसाइल्स मिल जाती हैं। खरीदना नहीं पड़ा, तैयार नहीं करना पड़ा, अपने कारखाने नहीं लगाने पड़े। तो सम्पूर्ण होमियोपैथ जो होगा वह क्या करेगा कि पहले ढूंढेगा कि इसके पास आनुवंशिक बीमारियां हैं क्या? अगर मरीज के पारिवारिक इतिहास में आ गया कि उसके दादा जी को भी कैंसर था, पिता जी को भी कैंसर था, और माँ को भी था, तो होमियोपैथ अभी की सारी बीमारियाँ भूल जाएगा और सबसे पहले Carsinocin नोसोङ देगा। वह कहेगा कि अभी की बीमारी को तो हम बाद में ठीक कर लेंगे, लेकिन हो सकता है कि किलिंग फोर्स ने अपनी कैंसर रूपी मिसाइल चला दी हो और कुछ ही समय में वह स्थूल शरीर पर विस्फोट करने वाली हो, इसलिए पहले इसको नष्ट करना जरूरी है। और मैं आपको बताना चाहता हूँ कि यह इलाज का सबसे अच्छा तरीका है। वो Visionarv होमियोपैथ सबसे पहले Carsinocin नोसोड देगा ताकि किलिंग फोर्स ने चौथे शरीर में जो भी कैंसर के मिसाइल्स रख रखे हैं, जो कि अभी निष्क्रिय अवस्था में हैं, जिनको अभी दागा नहीं गया है, उनको दुश्मन की सीमा में ही फोड़ दिया जाए।
Carsinocin लेने के बाद अगर मिसाइल दुश्मन की सीमा में फूटेगा तो उसका वो बुलबुला भी शरीर पर आता है। इसलिए मैं आपको बताना चाहता हूँ कि होमियोपैथी दवा लेने के बाद शरीर में क्या परिवर्तन होता है। होमियो की बड़ी नौसोड रूपी मिसाइल से चौथे या तीसरे या दूसरे शरीर में मौजूद किलिंग फोर्स की कैंसर रूपी मिसाइल पर जो वार होता है, उसके परिणामस्वरूप स्थूल शरीर में दस्त लग सकते हैं, सर्दी-जुकाम हो सकता है, बुखार आ सकता है। यदि ऐसा कुछ हो तो हम कहते हैं कि होमियोपैथी दवा ने काम किया।
अच्छा मान लीजिए कि उपरोक्त लक्षण नहीं नजर आते। न दस्त लगे, न बुखार आया, न सर्दी जुकाम हुआ। तब इसका क्या मतलब हुआ? इसका मतलब यह हुआ कि आपके शरीर में कैंसर रूपी मिसाइल थी ही नहीं, वह आपके पिता के शरीर में ही रह गयी, आपके शरीर में आ ही नहीं पायी। तो Carsinocin नोसोड रूपी मिसाइल खाली आकाश में जाकर फूट जाएगी और उससे आपको कोई नुकसान नहीं होगा। इसलिए हम कहते हैं कि यदि होमियोपैथिक दवा से कुछ नहीं हुआ तो समझिए कि आपने हनुमान जी का मीठा मीठा प्रसाद खाया था, बस। मगर आप देखें कि 70 साल की उम्र में जाकर हमें जो बीमारी होने वाली थी, जिसके बारे में एलोपैथी लाचार है, उसे होमियोपैथी ने अभी 20 साल या 30 साल की उम्र में ही खत्म कर दिया। जरा सोचिए, कितनी बड़ी उपलब्धि है यह ठीक है कि 70 साल में या 90 साल में हम मरेंगे ज़रूर पर अब कैंसर की बीमारी से एड़ियाँ रगड़-रगड़कर, तड़प-तड़पकर नहीं मरेंगे। इतनी दूर तक की मारक क्षमता अभी तक किसी भी अन्य पैथी या दवाओं में नहीं है। वो कहते हैं न कि 'देखन में छोटन लगे पर घाव करत गंभीर।
सफेद घोड़े को नहीं, काले घोड़े को मारिये किलिंग फोर्स छोटी-छोटी बीमारियों पहले पैदा करती है। जैसे टी.बी. या दमे की आनुवंशिक बीमारी वाला बच्चा जो होगा वो शुरू से ही खाँसेगा, शुरू से ही उसका कफ कुपित रहेगा। जिस तरह आयुर्वेद में सभी रोगों का विभाजन वातजनित, पित्तजनित एवं कफजनित श्रेणियों में किया जाता है, उसी तरह होमियोपैथी में सभी रोगों के लिए सोरा, सिफलिस और साईकोसिस नामक तीन तरह के मियाज्यों की परिकल्पना की गई है, जो मूल रूप से किलिंग फोर्स का ही वर्गीकरण है। वात का मतलब है कि वायु से संबंधित बीमारियाँ, जैसे गैस । पित्त का मतलब है, अग्नि वाली बीमारियाँ और कफ का मतलब है, दमा और श्वांस और एलर्जी संबंधी बीमारियाँ। ये सब किलिंग फोर्स के ही अचेतन रूप से किए गए वर्गीकरण हैं।
तो अगर किसी में किलिंग फोर्स का कफ रूट है तो वो जीवन भर कफ और एलर्जी से परेशान रहेगा। एलोपैथी में जीवन भर आप उसको एंटीबायोटिक देंगे, स्थूल शरीर पर कार्य करने वाली दवाएँ या ऊर्जा देंगे, वाइटल फोर्स को मज़बूत करने की कोशिश करेंगे, लेकिन किलिंग फोर्स को, जिससे हम अभी अपरिचित हैं, छू भी नहीं पाएँगे। और आजकल तो न जाने क्या-क्या आ गया है एलर्जी इत्यादि के लिए। लेकिन असल चीज पर काम हो ही नहीं रहा है। असल चीज़ है किलिंग फोर्स के पास मौजूद आनुवांशिक रोगों का भंडार, जिसे केवल नोसोड एवं होमियोपैथी की कुछ अन्य दवाओं से नष्ट किया जा सकता है। मैंने ऐसे बहुत सारे सफल प्रयोग किए हैं। और आप सबों का भी यह अनुभव होगा।
तो किलिंग फोर्स ने अपने सबसे तगड़े मिसाइल मुख्य रूप से तीन मुख्यालयों पर तैनात कर रखे हैं, जिनका उपयोग वह सोच-समझ कर ही करेगी। वो सीधे बड़े मिसाइल नहीं दागती है। उन्हें तो वो मृत्यु की बेला के लिए सहेज कर रखती है और शुरू में छोटे-मोटे हथियारों का प्रयोग करती है। जैसे यदि किसी बच्चे को विरासत में टी.बी. मिली है तो वह बच्चा एकदम से टीवीग्रस्त नहीं हो जाएगा। शुरू में तो वह खाँसेगा परेशान रहेगा, उसका दम फूलेगा। अब ऐलोपैथी वाले कहेंगे कि यह कोई बीमारी नहीं है, यह तो किसी चीज़ की एलर्जी है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस बीमारी को ठीक करना एलोपैथी के बस से बाहर की बात है। उल्टे ठीक करने के, वे इस बीमारी की और और मोटी परतें शरीर के गहरे तलों में बढ़ाते जाते हैं। उन्हें समझ ही नहीं आता है कि यह वास्तव में हमारे शरीर की निर्माण त्रुटि है, यानी कि मैनुफैक्चरिंग डिफेक्ट। यह बच्चा बुनियादी रूप से बनावट में कुछ त्रुटि लेकर आया है। तो में अब आप लाख दवा दें, इसको फायदा नहीं होगा। लेकिन होमियो की कुछ दवाएँ इतनी कारगर हैं, जिन्हें कि नोसोड कहा जाता है, कि वो बीमारियों को जड़ से साफ कर सकती हैं। करती भी हैं। सारी दुनिया में लोगों का अनुभव है। तो किलिंग फोर्स शुरुआती दौर में बड़ी बीमारियों के छोटे-छोटे लक्षण प्रकट करती है। हम क्या करते हैं उस समय? चूँकि हमें किलिंग फोर्स और उसकी उपस्थिति का पता ही नहीं होता तो हम अपना एक जो सफेद घोड़ा है (वाइटल फोर्स), उस पर चाबुक मारते हैं, उसको दौड़ाते हैं। वो कुछ-कुछ दौड़ता है, फिर थककर बैठ जाता है। फिर हम antibiotic का डोज़ बढ़ाते हैं, वो फिर कुछ कुछ दौड़ता है। इसे ऐसे समझें कि हमने मिट्टी के अंदर किसी पौधे का बीज लगाया। चार पाँच दिन में बीज पनपा और मिट्टी की सतह पर आ गया। लेकिन फिर उसके ऊपर कहीं से पत्थर का एक छोटा सा टुकड़ा आकर गिर गया। अब क्या उपाय है जिससे पौधा बड़ा हो सके, विकसित हो सके ? एक तो उपाय है कि पौधे में और पानी डाला जाए ताकि उसमें इतनी ताकत आ जाए कि वो पत्थर हटाकर ऊपर आ जाए। आपने देखा होगा कि ऐसे पौधे होते हैं जो आड़े-तिरछे होकर निकलते हैं। लेकिन क्या यह तरीका सही है? अगर हम उंगली से उस पत्थर को हटा देते तो क्या यह ज्यादा आसान नहीं होता? क्या तब पौधा आड़ा-तिरछा होने से बच नहीं जाता? मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि जब बचपन में हमें कोई रोग हुआ, तो हमने रोग के कारणों पर ध्यान नहीं दिया। रोग रूपी पत्थर को हटाने की बजाए हम बाहर से और और खाद-पानी देने की कोशिश करते रहे। हम वाइटल फोर्स को और और गति देने की कोशिश करते रहे और चाहते रहे कि वो एक रॉकेट की तरह आए और उस पत्थर को परे सरका दे। यह तो अपने संसाधनों का अप्राकृतिक दोहन करना हुआ।
चलिए ठीक है, आपने खूब खाद-पानी दिया और पौधा किसी तरह आड़ा-तिरछा होकर बाहर निकल आया। मगर किलिंग फोर्स ने फिर एक प्रत्थर रख दिया, एक नई बीमारी पैदा कर दी। आपने भी फिर से वही किया,
फिर से अपनी वाइटल फोर्स को चाबुक मारी। पौधा थोड़ा और तिरछा होकर निकल गया। मगर पौधे को भी समझ में आ रहा है कि कुछ मज़ा नहीं आ रहा। शरीर से बीमारी के लक्षण तो जा रहे हैं, पर स्वस्थ महसूस नहीं हो रहा। जीवन भर यही चलता रहता है, एलोपैथी से हम लोग सारी छोटी-मोटी बीमारियों को सप्रेस करते रहते हैं। वे हमारे भीतर गहरे तलों में धकेल दी जाती हैं ताकि उनका प्रिंट शरीर पर न आ सके। उस समय हमको लगता है कि हम ठीक हो गए, मगर वो बीमारियाँ हमारे अंदर कहीं न कहीं बड़ी बीमारियों में परिवर्तित हो जाती हैं। या ऐसा कहें कि दुश्मन की फौज के लिए एक छोटा-सा पुल बन गया। बचपन की जितनी भी बीमारियाँ हैं, वे सब बड़ी बीमारियों के लिए पुल का काम करती हैं। इसलिए होमियोपैथी के इलाज में हम सबसे पहले बचपन की, बल्कि माता-पिता की बीमारियों से कर हैं। मेरे एक डॉक्टर मित्र अक्सर मुझसे कहते हैं कि “बिनोद जी, आप तो पागल हैं! बचपन में टाइफाइड, निमोनिया, हैजा या चेचक हुआ था तो था, अब उसमें क्या ढूँढ रहे हैं? साँप तो चला गया, अब लकीर क्यों पीट रहे हैं !” मैं उन्हें समझाने की कोशिश करता हूँ कि वो बीमारियाँ शरीर से बाहर हुआ नहीं निकल सकीं, उनके resource नष्ट नहीं हो सके। वो जो नकारात्मक ऊर्जा किलिंग फोर्स ने पैदा करके एक बीमारी का रूप दिया था, वो सप्रेस हो गयी शरीर में कहीं। अब दूसरी बार किलिंग फोर्स जो नई बीमारी पैदा करेगी, उसमें पुरानी वाली बीमारियाँ भी संयुक्त होंगी। इसलिए आपने देखा होगा कि पहले हैजा, महामारी, कॉलरा, टाइफॉइड, निमोनिया ये सब होता था। लेकिन जबसे हमने इनके टीके बनाने शुरू किए, तब से कैंसर जैसी बड़ी बीमारियों का प्रकोप होना शुरू हो गया। इसको ऐसे समझें कि चूल्हे पर एक केतली चढ़ी है और उसका ढक्कन फड़फड़ा रहा है। अंदर से भाप बाहर आने के लिए जोर लगा रही है। उस फड़फड़ाहट को बंद करने के लिए हमने उसके ऊपर एक छोटा सा पत्थर रख दिया। फड़फड़ाहट थोड़े समय के लिए बंद हो गई। लेकिन थोड़ी देर में फिर शुरू हो गई। हमने एक और बड़ा पत्थर रख दिया। आखिर में क्या हुआ ? केतली फट गई। तो जिन छोटी-छोटी बीमारियों को हम सप्रेस करते जाते हैं, वे अंततः बड़ी बीमारियों का रूप ले लेती हैं। इस तरह से एच.आई.वी. आएगा, हेपेटाइटिस बी आएगा। विगत काल में जिन्हें हम बड़ी बीमारियाँ कहते थे, जैसे कि चेचक, हैजा, मलेरिया वगैरह, उनके मूल कारणों को न समझकर हमने एलोपैथिक दवाओं एवं टीकों के प्रभाव से उन बीमारियों को और बड़ी बीमारियों में रूपांतरित कर दिया। यही वजह है कि आज जैसी भयंकर बीमारियों का प्रादुर्भाव हो गया है, वैसा मानव जाति के पूरे इतिहास में पहले कभी भी नहीं था। और मज़े की बात यह है कि मानव को छोड़कर किसी अन्य जीव को ऐसी घातक बीमारियाँ नहीं होतीं। क्या आपने कभी सुना है कि किसी हरिण को कैंसर या डायबिटीज़ या दमा या एनसिफलाइटिस हो गया? नहीं न? पर क्यों? क्योंकि वे प्राकृतिक जीवन जीते हैं। क्योंकि वे अपना इलाज हमारे डॉक्टरों और हमारे अस्पतालों में नहीं करवाते। वे पूरी बरसात में भीगते हैं, पूरी गर्मी धूप सहन करते हैं, और पूरा जाड़ा बिना कम्बल ओढ़े सोते हैं। लेकिन तब भी इनको न कमी जुकाम होता है, न कमी फ्लू होता है, और न कभी लू लगती है। आप कह सकते हैं कि प्रकृति ने उनके शरीर में ऐसी विशेष व्यवस्था दी है। मगर मैं कहना चाहता हूँ कि आपकी यह सोच बुनियादी तौर पर गलत है। हमारे पूर्वज भी इसी तरह का जीवन जीते थे, और वे भी कभी रोगग्रस्त नहीं होते थे। हाँ, समय के साथ उनको भी बुढ़ापा और मौत आती थी परन्तु इस तरह की बीमारियाँ कभी भी उन्होंने नहीं झेलीं। और मैं आपसे कहता हूँ कि आज भी प्रकृति मूल रूप से हमें वैसा ही सामर्थ्यवान करके भेजती है, परन्तु हम ज्यादा अक्ल लगाकर बचपन से ही अपनी उस सामर्थ्य का नाश करना शुरू कर देते हैं। उदाहरण के लिए मैं आपको बताऊँ कि जाड़े की रात में माँ जब छोटे बच्चे को कंवल या रजाई ओढ़ाती हैं तो बच्चा पैर से कंबल फेंकने लगता है। माँ फिर ओढ़ाती हैं, बच्चा फिर फेंक देता है। यह सिलसिला पूरी रात चलता है। फिर धीरे-धीरे बच्चे की वो विशिष्ट ठंड प्रतिरोधी क्षमता काम करना बंद कर देती है। इसी तरह आपने देखा होगा कि हमारे चेहरे पर धूप, बारिश, ठंड का कोई असर नहीं होता है। यहाँ तक कि मैंने देखा है कि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर भी जो लोग जाते हैं, वो पूरे शरीर को तो ढँके रहते हैं परन्तु उनका चेहरा खुला रहता है और वहाँ पर ठंड का उन्हें कोई असर नहीं होता है। पर क्यों? जबकि चेहरा तो हमारे शरीर का सबसे सुकोमल और सुकुमार हिस्सा है। तो फिर वहाँ हमें ठंड, गर्मी, या बारिश का एहसास क्यों नहीं होता? क्योंकि हमने शुरू से ही अपने चेहरे को बैंककर नहीं रखा। इसलिए मैं आपको कहना चाहता हूँ कि प्रकृति की अद्भुत और अनुपम भेंट इस मानव शरीर में परमात्मा ने इतनी असीम क्षमता दी है कि आप उसकी कल्पना नहीं कर सकते। मगर एलोपैथी के सिस्टम ने आपको डरपोक और कमज़ोर बना दिया है। और प्रकृति का यह नियम है कि भागने वाले का वह पीछा करती है। आप रोड पर जा रहे हैं और एक कुत्ता सामने से आ रहा है। आप आराम से चलते रहे, कुत्ता आपको कुछ नहीं कहेगा। परन्तु कुत्ते को देखकर अगर आप दौड़ना शुरू कर दें तो कुत्ता आपके पीछे दुश्मन की तरह पड़ जाएगा। इसलिए मैं आपको कहना चाहता हूँ कि यह जो भागने की बीमारी है, इससे हमारी वी एफ. को चैलेंज मिलना बंद हो जाता है, वह सुस्त पड़ जाती है और के.एफ. हँसती-मुस्कुराती हम पर हावी होने लगती है। इसलिए ऐसे सभी प्रयासों से बचें।
इसीलिए होमियोपैथी में हम पूछते हैं कि बचपन में टी.बी. हुआ था क्या? हाँ, हुआ था। बचपन में चेचक हुआ था क्या? हाँ, हुआ था। तो हम पहले उन बीमारियों की फिक्र करते हैं। हम पहले टी. बी. की दवा ट्यूबरकुलिनम देते हैं। वो दवा कहाँ जाती है? बीमारी तो अभी है नहीं। आप हँसेंगे। मैं समझाता हूँ। 10 साल की उम्र में हमें जो टी.बी. हुई थी और एलोपैथी दवा खाकर हम मोटे हो गए थे; दुबले थे पर मोटे हो गए, तो हमने समझा कि हमारी बीमारी खत्म हो गयी। पर नहीं, बीमारी खत्म नहीं हुई बल्कि उसने आपके शरीर के गहरे तलों में जड़ जमा ली। तो हम जो ट्यूबरकुलिनम देते हैं वो वहाँ जाकर चोट करती है जहाँ इस वक्त वह सालों पुरानी बीमारी छुपकर बैठी है। चाहे जिस भी तल पर वह छुपी बैठी हो, यह होमियो दवा उसको शरीर से बाहर कर देती है। यानी यूँ समझें कि किलिंग फोर्स ने दस साल की उम्र में अपनी सेना को चलने के लिए जो एक पुल बनाया था, आपने वह पुल ध्वस्त कर दिया। दवा लेने के बाद थोड़े समय के लिए आपको दस्त होता है, आपको बुखार हो जाता है, शरीर आपका ऐसा महसूस करता है मानो अभी आपको टी.वी. हुआ है। लेकिन इससे वो जो बीमारी थी, उसके जो प्रभाव थे, शरीर में ऋणात्मक भंडार थे, एक वॉयरस था, वो आपके शरीर के निकास के रास्ते से शरीर से बाहर हो जाता है। होमियोपैथी में हम शरीर की बीमारियों को किलिंग फोर्स के प्रभाव या लक्षण के रूप में लेते हैं। शरीर को हम एक यूनिट के तौर पर लेते हैं। झलकि होमियोपैथी में आजकल कुछ होमियोपैथ हो गए हैं जो एलोपैथी की तरह शरीर के अलग-अलग अंगों के लिए अलग-अलग दवा देते हैं। लेकिन यह सरासर गलत है। महान हैनीमैन जी ने स्पष्ट कहा है कि "Single remady and single dosage is the rule." इसका अभिप्राय है कि भले अभी मरीज़ 10 बीमारियाँ गिना रहा है, पर उसके लिए दवा और खुराक एक ही दी जाएगी। क्योंकि 10 बीमारियों का मतलब कुल इतना है कि उस किलिंग फोर्स ने आपके शरीर के अंदर 10 मुख्यालय बनाए हुए हैं या शरीर के 10 अंगों पर मारक वार किया है या 10 जगह ऐसे पुल बनाए हुए हैं जिनसे होकर उसकी सेना आपके क्षेत्र में प्रवेश कर सकती है। तो हम क्या करते हैं कि अभी की उन 10 बीमारियों की फिक्र नहीं करते बल्कि जो सबसे पुरानी बीमारी है, पहले उसका इलाज करते हैं। एक बढ़िया होमियोपैथ यही करता है, हालांकि किलिंग फोर्स का यह सिस्टम उसको पता नहीं होता। मुझे अब पता है और इसलिए मैं इसी सिस्टम से इलाज करता हूँ। मैं कोई डॉक्टर नहीं हूँ, पर अपने मित्रों को खुद दवा देता हूँ। और मेरी दवा आज तक फेल नहीं हुई और ऐसा कोई मरीज़ नहीं मिला मुझे जिसने कहा हो कि आपकी दवा से फायदा नहीं हुआ। अगर आपको बीमारी का सिस्टम पता हो तो इलाज कोई गंभीर मामला न होकर एक मनोरंजक वीडियो गेम की तरह हो जाता है, और डॉक्टर व मरीज बीमारी से परेशान नहीं होते बल्कि मिलकर उसका मज़ा ले सकते हैं। वीडियो गेम में आप देखते हैं कि ढेर सारे हवाई जहाज टी.वी. की स्क्रीन पर आकाश में उड़ते रहते हैं और आपके हाथ में एक गेम डिवाइस होता है, जिसके बटन दबाकर आप उन पर मिसाइलों से वार करते हैं। होमियो दवाओं की मदद से होमियोपैथी का डॉक्टर भी कुछ ऐसा ही करता है। हम जो मरीज के वर्तमान के अलग-अलग लक्षणों को समझने की कोशिश करते हैं, वह वस्तुतः किलिंग फोर्स द्वारा शरीर के अंदर नकारात्मक ऊर्जा के निर्माण द्वारा पैदा की गई गलत संरचना को समझने की प्रक्रिया है। और होमियो की एक-एक दवा के माध्यम से महान हैनीमैन साहब एवं अन्य पुरोधाओं ने ऐसी ही नकारात्मक संरचनाओं की विस्तृत चर्चा की है। हमें बस यह करना है कि इन नकारात्मक संरचनाओं को समझकर ऐसी ही किसी एक खास दवा की पोटेंसी से उस संरचना पर गहन चोट देकर उसे नेस्तोनाबूत करना है। इसलिए महान हैनीमैन साहब ने शरीर के अलग-अलग अंगों के लिए अलग-अलग दवा का प्रयोग न करके पूरे शरीर को एक इकाई मानकर एक ताकतवर दवा का विज्ञान दिया है।
इसलिए वस्तुतः मेरा तो कहना है कि एलोपैथी अभी अपने शैशवकाल में है। एलोपैथी, जो सबसे उन्नत, सबसे उच्च तकनीक वाली, और सबसे अच्छे परिणाम देने वाली उपचार पद्धति के रूप में पूरे विश्व में स्थापित है, क्या उसका यह पूरा सिस्टम निहायत ही बचकाना और सम्पूर्ण मानव जाति का भंयकर नुकसान करने वाला, तथा एक छोटे-से अविकसित बच्चे की तरह नहीं है? जबकि होमियोपैथी के मामले में भले अभी तक हम इसके कार्य-कारण के सिद्धांतों को नहीं ढूँढ पाए थे, परन्तु फिर भी इसकी रोगों पर पकड़ और परिणामों को देखते हुए क्या इसे उपचार की सर्वश्रेष्ठ विधि नहीं घोषित करना चाहिए था? मेरा आपसे निवेदन होगा कि इस मूल प्रश्न को अभी अपने मन में रखें और इसका उत्तर इस पुस्तक को पूरी तरह से पढ़ने एवं आत्मसात करने के बाद स्वयं दें। वैसे में बता देता हूँ कि निश्चित रूप से एलोपैथी की भयावहता और उसके दुष्परिणामों को देखते हुए आप कहेंगे कि 'नहीं, हमें एलोपैथी नहीं चाहिए, हमें होमियोपैथी या इस जैसा कुछ सिस्टम उपचार की विधि के रूप में चाहिए।'
यहाँ पर मैं आपसे कहना चाहूँगा कि एलोपैथी में कुछ अच्छाइयाँ भी हैं। दुर्घटना या आपातकाल के लिए यह बहुत अच्छी विधि है। और दूसरी अच्छाई यह है कि इसके उच्च एंटीबॉयोटिक्स और कुछ अन्य दवाओं के प्रयोग से कुछ रोगों में परिणाम बहुत जल्दी मिलता है, जबकि होमियो में मनोवांछित परिणाम हेतु कभी-कभी विष पीकर भी धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करनी होती है। परन्तु होमियो में उसके बाद जो परिणाम होते हैं, वे एलोपैथी के परिणामों से लाख गुणा अच्छे होते हैं। इसलिए मेरा अनुरोध होगा कि त्वरित परिणाम की आशा करके लम्बे दुष्परिणामों का आयोजन न करें अपितु धैर्य के साथ प्रतीक्षारत होकर गहरे एवं पूर्ण उपचार की तलाश करें, ऐसा उपचार जिसके कोई बाई प्रॉडक्ट या साइड इफैक्ट्स न हों। आपका यह कदम सम्पूर्ण स्वास्थ्य की हम जो परिकल्पना और उसके आपको सुलभ होने की जो चर्चा कर रहे हैं, उस दिशा में आपको मनोवांछित परिणाम दिला सकता है।
तो जैसा कि मैं बता रहा था कि ऐलोपैथी के हॉस्पिटल, उनके डॉक्टर, तथा उनके जाँच घर आपको बकरी की तरह देखते हैं और एक कसाई की तरह हाथ में छुरी लिए आपका इंतजार करते हैं। हालांकि आपको देखकर वो अपनी छुरी आस्तीन में छुपाए रखते हैं और धीरे-धीरे अपने मकड़जालनुमा सिस्टम में फँसाकर आपका क्या हाल करते हैं, यह बताने की में आवश्यकता नहीं समझता। इसलिए भारत जैसे गरीब देश के लिए होमियोपैथी ही मेरी समझ से एक मात्र सहारा है और इसलिए मैं यहाँ की लोकप्रिय सरकार से यह अनुरोध करूँगा कि इस तकनीक को और समुन्नत करते हुए हर गाँव और पंचायत में होमियो दवा और प्रशिक्षित होमियोपैथ्स की एक टीम सरकारी स्तर पर मुहैया करवायी जाए, ताकि कम से कम पैसों में अधिक से अधिक लोगों
का दूरगामी इलाज किया जा सके। चलिए, अब अगले अध्याय का ओर चलते हैं जहाँ हम होमियोपैथी के
विज्ञान को गहराई से समझने का प्रयास करेंगे।