रोग का कारण
तो चलिए, स्वास्थ्य समझ में आ गया, रोग समझ में आ गया। अब यह जानने की कोशिश करते हैं कि रोग होते क्यों हैं? यहाँ से अब असली कहानी शुरू होती है।
पहले बाहरी कारणों में चलते हैं। सबसे बड़ा बाहरी कारण है कि हम प्रकृति से कट गए हैं। हमारे पूर्वज जिस तरह का जीवन जीते थे, उस तरह का जीवन जीना हमने लगभग छोड़ दिया है। पहले शारीरिक श्रम की अधिकता थी, अब शारीरिक श्रम लगभग शून्य हो गया है। पहले मानसिक कार्य कम थे, अब मानसिक कार्य और मानसिक तनाव अत्यधिक हो गया है। प्राकृतिक जीवन खत्म हो गया है। सूर्य से, नदी से, तालाब से, पशु-पक्षियों से, पेड़-पौधों से, सूर्योदय से, सूर्यास्त से, चाँद-तारों से, नीले आकाश से, पूर्णिमा और अमावस्या की रात से, इन सब मूल स्त्रोतों से हमारा संपर्क टूट गया है। इस महान प्रकृति में सारी चीजें एक-दूसरे से संयुक्त हैं। एक पेड़ है तो वो पृथ्वी से संयुक्त है, जिससे वह पानी लेता है, भोजन लेता है; आकाश से संयुक्त है, जिससे धूप लेता है, हवा लेता है। सर्दी-गर्मी में उसे किसी तरह के कपड़ों की जरूरत नहीं। बारिश में उसे छाते की ज़रूरत नहीं। इसी तरह जानवर भी बिना कपड़ों एवं छाते के स्वस्थ रहते हैं। आदिमानव भी रहते थे। बाद में उन्होंने गुफाएँ खोजीं तो, प्रकृति में सारी चीजें एक-दूसरे से संयुक्त हैं। हम जो कार्बनडाइऑक्साइड छोड़ते हैं सांस से, पेड़ उसको लेकर ऑक्सीजन छोड़ते हैं, जिसको हम पुनः लेते हैं। यहाँ तक कि चंद्रमा जब हमारे नजदीक आता है तो समुद्र में बड़ी-बड़ी लहरें उठने लगती हैं। 30 दिन का चंद्रमा का एक चक्र होता है, जिसमें वह अमावस्या से लेकर पूर्णिमा तक और पूर्णिमा से लेकर वापस अमावस्या तक की यात्रा पूरी करता है। आपको शायद
पता न हो, पर स्त्रियों का जो मासिक चक्र होता है वह भी लगभग 30 दिन का होता है, क्योंकि वह चंद्रमा के चक्र का ही अनुसरण करता है और उसी से प्रभावित होता है। यहाँ तक कि ज्योतिष विज्ञान के अनुसार हमारे जन्म के समय आकाश में ग्रह-नक्षत्रों की जो स्थिति होती है, उसका प्रभाव जीवन भर हमारे जीवन की दशा और दिशा पर पड़ता है। नदी, पहाड़, झरने, नीला आकाश, समुद्र तल, पेड़-पौधे, वनस्पतियाँ, हमारे इर्द-गिर्द मौजूद पार्-पक्षी; इन सभी चीज़ों से हम सीधे और परोक्ष रूप से जुड़े हुए हैं और हमारे स्वास्थ्य व रोगों में इन सभी की हिस्सेदारी होती है। इनसे उत्पन्न रोगों का तो हमें ज्ञान है, परन्तु इनके औषधीय प्रभाव से हम अंजान हैं। जैसे- गाय का महज़ एक शांतिपूर्ण और प्रेम मरा स्पर्श हमारे ब्लॅड प्रेशर को नियंत्रित कर देता है। क्या यह किसी चमत्कार से कम है? इस तरह के और बहुत सारे परोक्ष व अपरोक्ष कारण हमारी बीमारी व स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, जिनका हमें वृहद रूप से ज्ञान अर्जित कर उन पर कार्य करना होगा। सम्पूर्ण स्वास्थ्य की दिशा में उठाया गया यह भी एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इस विद्या और विज्ञान से अभी हम पूरी तौर पर कटे हुए हैं, जिसका अर्थ है कि हम जीवन-ऊर्जा के मूल स्त्रोत से ही कट गए हैं।
अंदर की बात
चलिए, अब भीतरी कारणों पर आते हैं। अभी तक जो बातें मैंने बताई, वह सब केवल परिचय जैसा था। यह असल में असली बात पर आने के पूर्व बनाई जाने वाली भूमिका थी। पहले इन सब बातों को समझना और समझाना जरूरी था। तो चलिए, अब असल बात करते हैं। साधारणतः हम जानते हैं कि रोग कई भीतरी कारणों से होते हैं। एलोपैथिक डॉक्टर से पूछें तो वो बोलेगा कि वायरल है, infection है। कभी-कभी आकस्मिक दुर्घटना हो जाती है। कभी-कभी आनुवंशिक रूप से हम कुछ बीमारी ले कर आते हैं, जैसे शुगर है, हार्ट की बीमारी है, कैंसर है, माइग्रेन है, दमा है, तपेदिक है। लेकिन सबसे अधिक लोग जिस बात पर सहमत हैं, वह यह है कि रोग तभी होते हैं जब शरीर कमजोर होता है और इसके अंदर की वाइटल फोर्स या जीवन-ऊर्जा या White Blood Cells कमजोर हो जाते हैं। अधिकांश उपचार पद्धतियों के जानने वालों के बीच यही बात स्थापित है कि हमारी वाइटल फोर्स जब भी बीमार हो जाती है या कमज़ोर हो जाती है या उसमें कुछ गड़बड़ी आ जाती है, तो उसके कारण हमारा शरीर कमज़ोर हो जाता है और हम पर रोगों का आक्रमण हो जाता है, हम बीमार पड़ना शुरू हो जाते हैं।
बुनियादी भूल
लेकिन मेरे हिसाब से यही अवधारणा चिकित्सा विज्ञान की सबसे बुनियादी भूल है कि वाइटल फोर्स की गड़बड़ी या कमज़ोरी के कारण हम बीमारियों से ग्रसित होते हैं। यह कथन एवं ऐसी सोच बुनियादी रूप ही गलत है। वस्तुतः बीमारी के पैदा होने में वाइटल फोर्स का कोई रोल नहीं है। बीमारियों के कारण वाइटल फोर्स को कोई नुकसान नहीं होता। हाँ, हमारे शरीर को नुकसान/परेशानी ज़रूर होती है। वस्तुतः वाइटल फोर्स तो बीमारियों से लड़ने वाली धनात्मक ऊर्जा है। बीमारी इस ऊर्जा को छू भी नहीं सकती। यह तो ऐसा ही हुआ कि सूर्य या उसकी रौशनी पर रात के अंधेरे में हमला बोलकर उसे परास्त कर दिया या अंधेरे ने रौशनी या सूर्य को ढँक लिया।
इसलिए यह अवधारणा गलत है कि वाइटल फोर्स में आयी हुई गड़बड़ी के कारण हम बीमार हो जाते हैं। अगर वाइटल फोर्स हमारी रोगों से लड़ने की शक्ति है तो वह खुद बीमार कैसे हो सकती है? उसमें खराबी कैसे आ सकती है? हाँ, यह हो सकता है कि रोग किसी और कारण या तलों से आ रहा हो और उसका प्रभाव शरीर पर पड़ रहा हो, जिसके कारण शरीर में बीमारियों के लक्षण पैदा हो जाते हैं। मगर यह कदापि संभव नहीं है कि हमारी वाइटल फोर्स में गड़बड़ी के कारण हम बीमार हो जाते हैं। असल में बीमारी और वाइटल फोर्स दोनों अलग-अलग चीजें हैं। बीमारी वाइटल फोर्स को प्रभावित नहीं कर सकती, पर वाइटल फोर्स बीमारी को कम कर सकती है। बीमारी एक अलग इकाई है और वाइटल फोर्स एक अलग स्वतंत्र संस्था है। इसको आगे की चर्चा में हम और विस्तार से देखेंगे। हाँ, यह हो सकता है कि हमारे शरीर में कुछ खराबी आ जाए या हमारा शरीर बीमार हो जाए। मगर हमारी वाइटल फोर्स, जो कि हमारी हैड ऑफ आर्मी है, वह कैसे दुश्मन से मिल सकती है? और अगर हमारे हैड ऑफ आर्मी पर दुश्मन की शक्ति काम कर जाए तो फिर हमारी सेना कैसे युद्ध कर पाएगी? नहीं, वाइटल फोर्स हमारी रोगों से लड़ने की ताकत है। जब हमारा शरीर बीमार हो जाता है तो यही वाइटल फोर्स बीमारी को ठीक करने की कोशिश करती है। उसी के लिए यह बनी भी है। और वह कभी सफल, तो कभी असफल हो सकती है। इसलिए रोगों की उत्पत्ति में वाइटल फोर्स का कोई रोल नहीं है, इस तथ्य को हमें ठीक से समझना और स्थापित करना होगा। वाइटल फोर्स का काम शरीर की बीमारियों से रक्षा करना, शरीर में बीमारियों के प्रवेश को रोकना, या शरीर को बीमारियों से मुक्त कराना है। शरीर में बीमारियों के पैदा होने में इसकी दूर-दूर तक कोई भूमिका नहीं है।
तो आखिर शरीर में बीमारियाँ आती कहाँ से हैं? बचपन से लेकर अभी तक बीमारियों को पैदा करने वाला आखिर कौन-सा सिस्टम हमारे शरीर में है? जैसे- अगर हमारे माता-पिता या दादा-दादी, नाना नानी में कैंसर या टी. बी. या मधुमेह या अन्य बीमारियाँ थीं, तो 40 साल बाद, 50 साल बाद, 60 साल बाद आश्चर्यजनक रूप से वही बीमारियाँ हमारे शरीर में कहाँ से आ जाती हैं? अब तक कहाँ किस कोने में छिपकर ये रह रही थीं? यह तो पक्का है कि माता-पिता से मिली हैं, उनके अणुओं द्वारा ही हम तक आई हैं, पर आखिर इनकी कुछ संरचना तो होगी, कुछ नियम-कायदे तो होंगे। यूँ अचानक से तो कुछ नहीं हो सकता। पूरा सिस्टम होना चाहिए। यह एक विचारणीय प्रश्न सभी डॉक्टरों के सामने होना चाहिए था कि आखिर बिना किसी डिपार्टमेंट ऑफ डिसीज़ के होते हुए इतने व्यवस्थित रूप से बचपन से लेकर मौत तक क्रमिक रूप से छोटी-बड़ी बीमारियों का जाल कौन और कैसे हमारे शरीर में पैदा करता है? दुर्भाग्य से इस दिशा में झाँकने की कोई सार्थक पहल हमने अब तक नहीं की है और उन कुछ बड़ी और बुनियादी चीजों पर हमारा ध्यान ही नहीं गया है जो किसी भी जीव में होने वाली बीमारियों की मुख्य वजह हैं। सबसे बड़ा रहस्योद्घाटन
दोस्तो, जो मैं आपको बताने जा रहा हूँ, वह इससे पहले कभी किसी ने नहीं बताया, क्योंकि किसी को अब तक इस रहस्य की जानकारी ही नहीं थी। मुझे भी जब इसके विषय में मालूम हुआ तो मैं अचंभित हो गया कि इतनी महत्वपूर्ण बात अब तक इंसानी बुद्धि की पकड़ में कैसे नहीं आई। यह चिकित्सा विज्ञान की दशा और दिशा बदलने वाला रहस्योद्घाटन होने जा रहा है, इसलिए ध्यान से सुनिएगा।
मैं चिकित्सा विज्ञान से जुड़े सभी लोगों से बड़े सम्मान के साथ, आदर के साथ कहना चाहूँगा कि पूरी मानव जाति ने यही भयंकर भूल की है कि यह मान लिया है कि वाइटल फोर्स की गड़बड़ी से बीमारी आती है। अगर ऐसा है तो जो हमारी आनुवंशिक बीमारियाँ हैं, जो 40-50 साल पहले हमारे बाप-दादों को थीं, वे बाद में हमें कैसे हो गई? हमारे बच्चों को कैसे हो गई? यह कौन सा system है? और क्या हमारी वाइटल फोर्स भी बीमारी से आक्रांत हो सकती है? क्या दिन को भी रात जकड़ सकती है? सूर्य पर भी क्या अंधेरा अपना आधिपत्य जमा सकता है? आप कहेंगे, नहीं तो इसका मतलब है कि कहीं न कहीं कोई बुनियादी चीज़ है जो रही है, जिसके कारण यह गड़बड़ी पैदा हो रही है और जिसके बारे में मैं आपको अब बताने जा रहा हूँ।
वस्तुतः हमारा मस्तिष्क दो भागों में बँटा हुआ है, जिन्हें क्रमश: दाँया और बाँया मस्तिष्क कहते हैं। इसलिए हम चीज़ों को अच्छे बुरे व अंधेरे-उजाले जैसी डुएलिटी (द्वैत) में देखते हैं। मगर वस्तुतः प्रकृति में कहीं भी कोई द्वैत या द्वंद्व नहीं है। सभी चीजें आपस में जुड़ी हुई हैं। द्वैत की हमारी यह अवधारणा हमें सत्य तक नहीं पहुँचने देती है। जैसे- प्रकाश और अंधेरा हमारे लिए दो अलग चीजें हैं। मगर वास्तव में ये एक ही चीज की दो अलग-अलग अभिव्यक्तिया है। वस्तुतः अंधेरा उजाले का ही दूसरा छोर है। हम जो इसे उजाले का विलोम बोलते हैं, वह सत्य नहीं है। वस्तुतः अंधेरा उजाले का नेगेटिव हिस्सा है। या ऐसे कहें कि अंधेरा प्रकाश की शून्य अवस्था का नाम है। जैसे, दिन के दूसरे छोर पर क्या है? गोधूली बेला। जो न दिन है, न रात है। उसके बाद रात का सिरा चालू हो जाता है। और फिर रात के दूसरे छोर पर क्या है? सूर्योदय का काला वहाँ भी न दिन है, न रात है। इस तरह दिन और रात दो अलग-अलग चीजें नहीं हैं अपितु एक ही चीज़ के दो सिरे हैं। मैंने खुद कई दफे सुबह तीन-चार बजे छत पर जाकर रात और दिन के बीच के बिन्दु को पकड़ने की कोशिश की है। मगर में पूरी तरह से असफल रहा। मैं प्रायोगिक रूप से रात और दिन का विभाजन नहीं कर पाया कि कहाँ तक रात है और कहाँ से दिन शुरू हुआ। हाँ, निश्चित रूप से सूर्योदय और सूर्यास्त का निश्चित मिनट और सेकेण्ड बताया जा सकता है, परन्तु दिन और रात में ऐसा संभव नहीं है। आप चाहें तो खुद ही प्रयोग करके देख सकते हैं। कब रात गई और कब सुबह का प्रकाश आ गया, आपको पता ही नहीं चलेगा। बल्कि रात का अंतिम प्रहर और घना व काला होता जाता है, चाँद-तारे अपनी पूरी क्षमता में प्रकट होकर दिखते हैं, और अचानक आप पाते हैं कि सुबह की रौशनी हो गई। कहने का मेरा तात्पर्य यह है कि रात के अंतिम छोर पर या अंधेरे के अंतिम छोर पर प्रकाश है। और इसी तरह से प्रकाश या दिन के अंतिम छोर पर रात शुरू हो जाती है। कब गोधूली बेला खत्म हो गयी और रात शुरू हो गयी, इसके ठीक-ठीक मिनट-सेकेण्ड का निर्धारण आप नहीं कर सकते। इसी तरह विष के दूसरे छोर पर अमृत होता है और अमृत के दूसरे सिरे पर विष। प्रकृति या पूरा ब्रह्माण्ड इसी नियम पर टिका है और हमारे महान हैनीमैन साहब ने होमियोपैथी की रचना करके इस नियम का उपयोग मानव कल्याण हेतु कर लिया। यह वाकई अद्भुत बात है!
दोस्तो, जैसा कि आप जानते हैं कि वैज्ञानिक रूप से किसी तथ्य को स्थापित करने के लिए शुरू में कुछ मानना पड़ता है। जैसे- ज्यामिति में हम मान लेते हैं कि A, B, C एक त्रिभुज है। उसी तरह मैं निवेदन करना चाहूँगा कि थोड़े समय के लिए यह मान लें कि शरीर में तीन तरह की फोर्स हैं, तीन तरह की कार्यशील शक्तियाँ या ऊर्जाएँ हैं।
पहली ताकत
पहली फोर्स हमारी जीवन-ऊर्जा है जिसे हम 'वाइटल फोर्स' के नाम से जानते हैं। या अगर भारतीय दर्शन की भाषा में कहें तो इसे हम 'विष्णु ऊर्जा' का नाम दे सकते हैं। यह एक रचनात्मक एवं धनात्मक ऊर्जा है जो हमें नैसर्गिक ताकत और रोगों से लड़ने की शक्ति प्रदान करती है।
दूसरी ताकत
दूसरी फोर्स चूँकि बिल्कुल नयी है, तो मैं इसके लिए दो नाम सुझाऊँगा। इसे हम या तो 'एंटी वाइटल फोर्स' कहें, या उससे भी बढ़िया होगा कि हम इसे कहें 'किलिंग फोर्स' या 'मारक ऊर्जा'। या अगर भारतीय दर्शन की भाषा में कहें तो इसे हम 'शिव ऊर्जा' के नाम से भी बुला सकते हैं, क्योंकि भगवान शिव पालक एवं संहारक दोनों हैं; मौत के देवता के रूप में भी उनकी मान्यता है। वैसे आप अपने अनुरूप जो भी नाम इनको देना चाहें दे सकते हैं, मुझे कोई आपत्ति नहीं। यह भी हो सकता है कि भारत के लिए हम इसे शिव ऊर्जा कहें और विदेशी जनमानस के लिए के एफ. यानी कि किलिंग फोर्स करें। यह ज्यादा ठीक होगा, क्योंकि मेरा मुख्य उद्देश्य विश्व में जितने भी होमियोपैथी से जुड़े लोग / संस्थाएँ / रिसर्च इंस्टीट्यूट/अस्पताल/डॉक्टर/विद्यार्थी/महाविद्यालय/ विश्वविद्यालय हैं, साथ ही जो एलोपैथी के बड़े-बड़े डॉक्टर हैं, उन तक इस पुस्तक में लिखी एक-एक बात को पहुँचाना है।
तो, वाइटल फोर्स या विष्णु ऊर्जा जहाँ हमारे जीवन को विधायक ऊर्जा देती है, हमारे जीवन को शक्ति प्रदान करती है, रोगों से लड़ने में हमारी सहायता करती है, हमें बचाती है, वहीं दूसरी ओर यह किलिंग फोर्स या शिव ऊर्जा हमारे शरीर में होने वाली सभी बीमारियों की जनक है। यह रोग विभाग की विभाग प्रमुख है। इसे हम कह सकते हैं- Stored Army Command Base House of Department of Diseases'. यहीं से हमारे शरीर में बीमारियाँ आती हैं। हमें बीमारी देकर अंतिम रूप से हमें मौत की नींद सुलाना इसी प्रमुख ऊर्जा का काम है और जीवन भर हमारे शरीर में रोगों को जन्म देने के लिए यही पूर्ण रूप से उत्तरदायी है। जैसे वाइटल फोर्स हमारे जिन्दा रहने के लिए जरूरी है, वैसे ही ये एंटी वाइटल फोर्स या किलिंग फोर्स, जिसे मैं आगे से KI के नाम से पुकारूंगा, हमारे शरीर में रोगों की उत्पत्ति से लेकर उन्हें चरम सीमा तक ले जाने, यानी कि मौत के लिए जिम्मेवार है। लेकिन अफसोस की बात है कि पूरी मानव जाति अभी तक इससे अनजान है। मेरी यह देशना मानव जाति के पूरे इतिहास में सबसे बड़ा रहस्योद्घाटन है। और मैं आज तक आश्चर्यचकित हूँ कि दुनिया के आठ अरब से भी ज़्यादा लोगों में से किसी की भी दृष्टि इस शनि देवता पर कैसे नहीं गयी।
तीसरी ताकत
एक तीसरी फोर्स भी होती है, जिसे हम निरपेक्ष ऊर्जा (Neutral Force) या साक्षी ऊर्जा (witnessing force) कहें तो ठीक होगा। वैसे भविष्य में इसे चैतन्य ऊर्जा या ब्रह्म चेतना की ऊर्जा रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह जो तीसरी फोर्स है, यह एक दर्शक के रूप में, दृष्टा के रूप में काम करती है। ऐसा समझें कि एक माँ है और उसके दो बेटे हैं। दोनों उसे समान रूप से प्यारे हैं और वह दोनों को समान दृष्टि से देखती है और इन दोनों शक्तियों के बीच अनवरत चलने वाले द्वंद्व की साक्षी होती है। इसके अलावा इसका क्या रोल है, क्या कार्य है और क्या कार्यक्षेत्र है, इस पर मैं अभी तक ज्यादा शोध नहीं कर पाया परन्तु मेरे देखें 100 में 99 मौकों पर यह निरपेक्ष ही रहती है, इसे कोई मतलब नहीं होता कि कौन जीत रहा है और कौन हार रहा है। इसके लिए दोनों इसके ही बच्चे हैं। इसके लिए न कोई ऋणात्मक है, न कोई धनात्मक है। ऐसा समझें कि जैसे विद्युत का श्री पिन पोल होता है, जिसमें एक में धन विद्युत, एक में ऋण विद्युत, और एक अर्थिंग के लिए हम बिंदु देते हैं। इसी तरह से ये तीसरी फोर्स अर्थिंग है। यह एक तरह से हमारे शरीर में, हमारी ऊर्जा में सुपर क्षमता या ब्रह्माण्डकीय चेतना का प्रतिनिधित्व करती है।
मगर एक चीज़ का मुझे आभास है कि यह शक्ति इन दोनों शक्तियों की हैड बॉस है। इस शक्ति को नियंत्रित या निर्देशित करना तो नामुमकिन है, लेकिन यदि अनुनय-विनय करने की कोई प्रक्रिया या प्रार्थना या कुछ अन्य उपाय करके इसे अपने पक्ष में राजी कर लिया जाए तो यह निरपेक्ष शक्ति के.एफ. की सुपर पॉवर संरचना को भी शून्य करने की ताकत रखती है।
परन्तु यह कार्य शायद विश्व के सबसे जटिलतम कार्यों की पराकाष्ठा होगी और इस बारे में तो मुझे सोच के भी भय होता है। इसलिए इसकी बात हम भविष्य पर छोड़ते हैं। हालाँकि ऐसी कुछ ताकतों का मुझे आभास तो है जो इस तीसरी शक्ति को अपने पक्ष में करने की सामर्थ्य प्रदान करती हैं, परन्तु उन ताकतों का इस्तेमाल करने वाले लोग शायद उंगलियों पर गिनने जितने भी नहीं होंगे। और वे ऐसा प्रयोग किसी सामान्य जन के लिए करने वाले भी नहीं हैं। हाँ, समाज का या देश का ऐसा कोई व्यक्ति अगर विकट स्थिति में हो जिसकी जान या कीमत लाखों लोगों से भारी हो, तो शायद उसके लिए कुछ कर भी सकते हैं। याद रखिए, मैंने इस पूरे प्रकरण में 'शायद' शब्द का इस्तेमाल किया है। इस पर मैं कुछ कहना नहीं चाहता था, परन्तु ज़रूरत से ज़्यादा ही कह चुका हूँ।
तो जैसा कि मैंने चक्रों वाले अध्याय में बताया था कि जहाँ चौथा चक्र समाप्त होता है और पाँचवा शुरू होता है, वहाँ से लौकिक की सीमा समाप्त होकर अलौकिक की सीमा प्रारंभ हो जाती है। चलिए, इस पर थोड़ी और चर्चा करते हैं। पाँचवे, छठे और सातवें शरीर पर जो हमारी सत्ता है, वह कॉस्मिक या ब्रह्माण्डकीय ऊर्जा से जुड़ने लगती है। वहाँ पर शरीर का भाव विदा होने लगता है और जीव चेतना ब्रह्म चेतना से जुड़ने लगती है। वहाँ स्त्री, पुरुष या शरीर जैसा कुछ नहीं होता। वहाँ से प्रकृति या परमात्मा का खेल शुरू होता है। इसलिए मैंने कहा कि यह शरीर इतना अद्भुत है कि यदि थोड़ा भी इसे जान लिया तो हमारे लिए संसार के सारे आश्चर्य फीके पड़ जाएंगे। तो उस तीसरी शक्ति के रूप में, जहां तक मैं सोच पाता हूँ, परमात्मा या प्रकृति या ब्रह्म सत्ता का एक सूक्ष्म प्रतिनिधि हमारे इस महाखेल में उपलब्ध रहता है। उसके बारे में कुछ और बातें वैसे तो मुझे भी स्पष्ट नहीं हैं, मगर जो थोड़ा बहुत ज्ञात है उसके बारें में फिर कभी हम आगे चर्चा करना चाहेंगे। उसके बारे में और ज्यादा उद्घाटित करना वर्तमान स्थिति में शायद ठीक नहीं होगा। अभी हमारा फोकस सिर्फ इस किलिंग फोर्स, यानी कि KI. और वाइटल फोर्स, यानी कि VI तथा इन दोनों के पारस्परिक संबंधों के बारे में रहस्योदघाटन और होमियोपैथी में उसके संबंध पर ही रहेगा। तभी हम पूरे कैनवास के हर कोने को ठीक-ठीक देख सकेंगे।
चलिए, अगले अध्याय की ओर चलते हैं और किलिंग फोर्स तथा वाइटल फोर्स के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं।