LUMBAGO कटिवात

Natrium Muriaticum 200 - पीठ के बल या सख्त चीज पर लेटने से बेहतर है महसूस होता है, ( रोज सुबह दो बूंद दिन मे केवल एक ही बार इस्तेमाल करे )


कोबाल्टम मेटैलिकम 30 - उत्सर्जन के बाद बैठे-बैठे दर्द बढ़ जाता है। ( दिन मे तीन बार इस्तेमाल करे )


नक्स वोमिका 30 - बिस्तर पर करवट लेने के लिए उठना पड़ता है। बदतर सुबह (रूटा)। ( दिन मे तीन बार इस्तेमाल करे )


बर्बेरिस वल्गरिस 30 - गुर्दे की बीमारी के साथ दर्द, या ऑपरेशन के बाद दर्द। ( दिन मे तीन बार इस्तेमाल करे )


एंटिमोनियम टार्टरिकम 30 - तेज दर्द, पसीने और तंद्रा के साथ। ( दिन मे तीन बार इस्तेमाल करे )


(उपचार सुरू करने से पहले चुनी गयी दवा के बारे मे जानने के लिये ऐप्प के दुसरे विकल्पो की भी मदद ले )


अधिक जानकारी के लिये दर्द के अन्य अध्याय भी देखे

मूलार्क के लिए आवश्यक निर्देश

मूलार्क (मदर टिंचर ) की सेवन विधि


ध्यान रखें कि जो मूलार्क रासायनिक तत्वों से अथवा जहरीले सर्पो या संखिया धतूरा इत्यादि से बनते हैं, उनके मूलार्क सेवन नहीं किये जाते हैं तथा ऐसी दवाइयों को कम पोटेन्सी जैसे 3, 6, 30 से नीचे की पोटेन्सी में प्रयोग नहीं करना चाहिए।


जो मूलार्क सेवन किये जा सकते हैं, उनकी 5 बूँद से 15 बूंद तक मात्रा एक बड़े चम्मच में सादे पानी में मिलाकर सेवन करना चाहिए।



पोटेन्सी - शक्ति की पूर्ण जानकारी

पोटेन्सी (शक्ति) : यह पोटेन्सी एक से एक लाख तक होती है, इसे निम्न प्रकार से जाना और लिखा जाता है


कम पोटेन्सी - 1. 3, 6, 12 30 C

मध्यम पोटेन्सी - 200-1000 C

ज्यादा पीटेन्सी - 5000 - 10,000, 50,000 - 100000 C

C - सेटेंसीमल पोटेन्सी अनुपात 1+99


X एक्स पोटेन्सी डेसीगल पोटेन्सी अनुपात 1+9


नोट: अंग्रेजी का अक्षर एस (M) 1000 पॉटन्सी को सूचित करता है। जैसे

1M = 1000 10M = 10.000, 50M =50,000

CM = [100000


पोटेन्सी का चुनाव


उच्च और मध्यम पोटेन्सी


1. जो बच्चे बहुत संवेदनशील हों


2. बहुत बुद्धिजीवी, कल्पनाशील तथा नर्वस और भावुक व्यक्ति


3. दिमागी बीमारियों वाले व्यक्ति


4. जो क्रूड या निम्न पोटेन्सी की medicines कभी पहले ले चुके हो


निम्न पोटेन्सी


1. कमजोर रोगी जिनकी जीवन ऊर्जा कम हो

2. गूँगे-बहरे तथा अल्प विकसित रोगी

3. प्राणघातक बीमारी हैजा, डायरिया, कैंसर आदि

4. शरीर से ताकतवर किन्तु मन्दबुद्धि वाले लोग


होमियोपैथी की औषधियों की पोटेन्सी दो तरह की होती है जिनके लिए अंग्रेजी के दो अक्षर प्रयोग किये जाते है। सी (C) और एक्स (X), सी C पोटेन्सी के लिए जो गणित प्रयोग किया जाता है, उसका फार्मूला 1+90 - 100 होता है। इसका तात्पर्य यह है कि मूल तत्व का एक भाग और रिक्टीफाइड स्प्रिंट या अल्कोहल अथवा सुगर ऑफ मिल्क का 99 भाग प्रयोग होता है।


एक्स X-पोटेन्सी के लिए मूल तत्व का एक भाग और रिक्टीफाइट स्प्रिंट अथवा सुगर ऑफ मिल्क 9 भाग (1+9 = 10) (C) सी को सेटेलिमल पोटेन्सी कहते हैं और (X) एक्स को डेसीमल पोटेन्सी कहते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि 6 पोटेन्सी तक मूल तत्व को दूरदर्शी यन्त्र (Microscope) से देखना सम्भव है।




LM-पोटेंसी प्रोडक्शन

1: 50 000 कमजोर पड़ने


पहले एक C3-ट्रिट्यूरेशन तैयार किया जाता है (मूल पदार्थ के आधार पर विधि) और फिर LM1- शक्ति की तैयारी के लिए 1:500 के अनुपात में 15% (m/m) अल्कोहल में भंग कर दिया जाता है।

फिर इस घोल की 1 बूंद को 86% (m/m) अल्कोहल के साथ 1:100 के अनुपात में पतला किया जाता है और 100 बार जोर से हिलाया जाता है।

अगले ग्लोब्यूल्स को 1:500 के अनुपात में घोल के साथ दवा दी जाती है और सुखाया जाता है।

तनुकरण चरणों के क्रम से 1:50 000 के अनुपात तक पहुँच जाता है जैसे Q- शक्ति के मामले में। यह इस पैमाने का पहला शक्ति स्तर है, अर्थात LM1।


आगे शक्ति स्तरों का उत्पादन

आगे के पोटेंसी लेवल का निर्माण Q-पोटेंसी से अलग नहीं होता है। फिर भी, पूर्णता के कारणों के लिए उन्हें नीचे सूचीबद्ध किया गया है।


LM2-कमजोर पड़ने की तैयारी के लिए 1 LM1-ग्लोब्यूल को 1 बूंद पानी में घोला जाता है।

फिर घोल को 86% (m/m) अल्कोहल की १०० बूंदों के साथ मिलाया जाता है और १०० बार जोर से हिलाया जाता है।

अगले ग्लोब्यूल्स आकार 1 (500 पीसी / जीआर) को 1:500 के अनुपात में घोल के साथ औषधीय किया जाता है और सुखाया जाता है।

फिर से इन कमजोर पड़ने वाले चरणों का परिणाम 1:50 000 के अनुपात में होता है।

आगे के शक्ति स्तर उसी तरह निर्मित होते हैं।



ग्लोब्यूल्स और dilutions

हालांकि एलएम-पोटेंसी को ज्यादातर मामलों में सीधे ग्लोब्यूल्स के रूप में लिया जाता है, इन ग्लोब्यूल्स को भंग करना और एलएम-डायल्यूशन तैयार करना आवश्यक हो सकता है।


तरल एलएम-पोटेंसी की तैयारी के लिए आवश्यक पोटेंसी लेवल के ग्लोब्यूल्स को १:१० के अनुपात में 15% (एम/एम) इथेनॉल में घोल दिया जाता है (१० मिली इथेनॉल में १ ग्लोब्यूल)।

घोल का पोटेंसी लेवल घुले हुए ग्लोब्यूल्स के पोटेंसी लेवल के समान होता है।



आप एलएम स्केल में दवाओं को कैसे दोहराते हैं?


एक महत्वपूर्ण सकारात्मक परिवर्तन दिखाई देने तक, दवा को दिन में एक या दो बार दोहराने का नियम है। उसके बाद दवा का यांत्रिक रूप से उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन दोहराव पूरी तरह से व्यक्तिगत संवेदनशीलता और रोगी की प्रतिक्रिया पर निर्भर करता है। रोगी को 3 और 7 दिनों के बाद रिपोर्ट करने / कॉल करने के लिए कहें या यदि उसे कोई महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया दिखाई देती है, तो प्रारंभिक प्रतिक्रिया का न्याय करने के लिए और तदनुसार खुराक और पुनरावृत्ति को संशोधित करने के लिए कहें।


गंभीर मामलों में, आप हर कुछ घंटों या हर कुछ मिनटों में भी दोहरा सकते हैं।


LM1 की पहली बोतल खत्म होने पर क्या करें।


LM1 की दूसरी बोतल न बनाएं, LM2 से आगे बढ़ें। इसी तरह जब LM2 खत्म हो जाए, तो LM3 और इसी तरह आगे बढ़ें।


क्या मुझे यह LM30 तक करना चाहिए?


नहीं। आम तौर पर एक रोगी को उत्तराधिकार में सभी शक्तियों की आवश्यकता नहीं होती है। एक बार जब आप एक निश्चित सुधार देखें तो दोहराना बंद कर दें। यदि आपका उपाय सही होता, तो रोगी LM30 तक पहुँचने से बहुत पहले ही ठीक हो जाता।


क्या होगा यदि रोगी LM1 पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाता है?


आप पहले खुराक और सक्सशन बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं। रोगी को बोतल को अधिक सक्सेस करने के लिए कहें और एक के बजाय कमजोर पड़ने वाले कप से 2 या 3 चम्मच लेने के लिए कहें। यदि रोगी अभी भी प्रतिक्रिया नहीं करता है, तो उच्च एलएम पर जाएं। और अगर यह अभी भी काम नहीं करता है, तो या तो आपका उपाय चयन गलत है या आपको सेंटीसिमल स्केल का उपयोग करने की आवश्यकता है।


एलएम पोटेंसी से किन स्थितियों का इलाज किया जा सकता है?


एलएम स्केल से किसी भी स्थिति और किसी भी मरीज का इलाज किया जा सकता है। पहले, एलएम को केवल हाइपरसेंसिटिव रोगियों के लिए उपयोगी माना जाता था, लेकिन आजकल ऐसे होम्योपैथ हैं जो विशेष रूप से एलएम पोटेंसी के साथ अभ्यास करते हैं। कई अन्य लोगों ने उन्हें केवल चुनिंदा मामलों में ही उपयोगी पाया है।


LM पोटेंसी सेंटेसिमल स्केल की तरह लोकप्रिय क्यों नहीं है?


हैनीमैन ने पेरिस में अपने अंतिम वर्षों के दौरान एलएम स्केल विकसित किया। उन्होंने 6 वें संस्करण में नए पैमाने का वर्णन किया लेकिन प्रकाशित होने से पहले ही उनका निधन हो गया। कई कारणों से, १९२१ तक छठा संस्करण प्रकाशित नहीं हुआ था। इस अवधि के दौरान, पूरी दुनिया सी शक्तियों के साथ अभ्यास कर रही थी और वे आदर्श बन गए थे।


यहां तक ​​कि जब दुनिया को नए पैमाने के बारे में पता चला, तो लोगों को इसे पूरी तरह से समझने में कुछ दशक और लग गए। और उसके बाद भी अधिकांश लोग अत्यधिक स्तर के कमजोर पड़ने के कारण आशंकित रहे और कभी इसका इस्तेमाल नहीं किया।


वे अब लोकप्रिय क्यों हो रहे हैं?


एलएम क्षमताएं अब तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं क्योंकि ऑर्गन के छठे संस्करण के साथ-साथ हैनीमैन के केस रिकॉर्ड की बेहतर समझ बनाने में बहुत काम किया गया है। डेविड लिटिल और ल्यूक डी शेपर जैसे लोगों ने हैनिमैन के नवीनतम काम को अधिक स्वीकार्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।



Differences between Q-potencies and LM-potencies


Q-Potencies

globules size 0 (1600 pcs/gr)

C1 – C3 trituration of the original substance


energetically higher because of the trituration of the original substance

different therapeutic spectrum:

- globules size 0

- original substance trituration

globules are diluted, then the dilution is taken




LM-Potencies

globules size 1 (500 pcs/gr)

C1-C2 mostly prepared from the mother tincture and then shaken

C3 trituration of liquid drug substance

energetically lower (only applies if the original substance is liquid, for example in the case of mother tinctures and solutions)

different therapeutic spectrum:

- globules size 1

- original substance mostly shaken

globules taken directly



होमीओपैथी निर्देश तथा परहेज

सामान्य निर्देश तथा परहेज


नियम : होमियोपैथिक औषधियों को लेने के कुछ नियम हैं जिनका पालन करना बहुत आवश्यक है।


उदाहरण के लिए -


1. जो दवायें प्रातः ली जाये (2-3 खुराक) वे निराहार ही लें तथा उन्हें 10-10 मिनट के अन्तर पर दो-तीन खुराक ही लेना चाहिए।


2. ध्यान रहे कि सुबह ली जाने वाली औषधि प्राय: उच्चशक्ति (200 या 1000 या अधिक) को हो सकती है।


3. अल्पकालिक रोगों में प्रायः निम्न शक्ति की दवाइयों (3X से 30) का उपयोग किया जाता है।


4. मूल अर्क की 5 से 15-20 बूँद एक चौथाई पानी में मिलाकर देना चाहिए।


5. यदि किसी कारण एलोपैथिक दवाइयाँ ले रहे हों, तो इसका होमियो औषधि से 2 घंटे का अन्तर अवश्य होना चाहिए।


6. दो औषधियों के मध्य भी लगभग आधे घंटे का अन्तर अवश्य होना चाहिए।


7. औषधि लेने से 15 मिनट पूर्व और औषधि लेने के 15 मिनट बाद तक कुछ भी खाना या पीना नहीं चाहिए।


8. औषधि लेने से पूर्व साफ पानी से कुल्ला करके मुँह स्वच्छ कर लेना चाहिए।


9. पुरुष और स्त्रियों की खुराक समान होती है। उसमें कोई अन्तर नहीं होता है, किन्तु बच्चों की खुराक कम होती है। तीन साल के बच्ची की खुराक बड़ों की खुराक में एक चौथाई होनी चाहिए। छोटे बच्चों को एक चम्मच में थोडा सा पानी लेकर उसमें दवा की एक बूद मिला लें अथवा यदि औषधि गोलियों में हो तो 40 नम्बर की एक गोली इसी प्रकार चम्मच में घोलकर पिला दें।


10. 12 साल के बच्चों को बड़ों की खुराक से आधी खुराक (अर्थात् अधिकतम दो बूँद दवा एक बार में और यदि गोलियों के हो तो चार गोलियाँ (40 नम्बर) की देना चाहिए।


11. पान मसाला, पान तम्बाकू, बीरी, शराब तथा खुशबूदार वस्तुओं से परहेज करें।


12. सभी औषधियाँ निर्धारित मात्रा में ही लेना चाहिए।


13. औषधियाँ श्रेष्ट क्वालिटी और विश्वसनीय दुकान तथा श्रेष्ठ कम्पनी की ही खरीदी जानी चाहिए।


समय का अन्तर: नई बीमारियों में साधारणत: 6, 30 नं. की दवाय 24 घंटे के 3, 6 खुराक तक दी जानी चाहिए। हैजा, सन्निपातिक ज्वर आदि भयंकर परिस्थितियों के दौरान 10-15 मिनट तक के अन्तर पर भी दवा दी जा सकती हैं पुरानी बीमारियों में 200 न. दो-तीन दिनों के अन्तर से 1000 तक एक सप्ताह या 10 दिनों के अन्तर से दवा देना चाहिए।


ध्यान रहे कि नई बीमारियों में साधारणत: निम्न क्रम (IX 3X 6 12 30) का प्रयोग करना चाहिए तथा पुरानी बीमारियों में 200 500, 1000 तथा 100000 का प्रयोग विवेक के अनुसार कर सकते हैं।


होमियोपैथी के इलाज में सावधानी


होमियोपैथी के इलाज में निम्न सावधानियाँ बरतनी चाहिए


1. उच्च पोटेन्सी की दवाओं के प्रयोग में अत्यधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है, इसका हमेशा ध्यान रखें।


2. ऐसा सोचना ठीक नहीं है कि होमियोपैथी की दवायें पूर्णतया सुरक्षित है और उनका बिना सोचे समझे अनाप-शनाप ढंग से प्रयोग किया जा सकता है। यद्यपि यह सत्य है कि चिकित्सा की दूसरी विधाओं जैसे आयुर्वेद या एलोपैथी की तुलना में होमियोपैथी ज्यादा सुरक्षित है, फिर भी अनुभवहीनता का इस चिकित्सा में कोई स्थान नहीं हो सकता है।


3. उच्च शक्ति की दवाओं को अनुभवी होमियोपैथिक चिकित्सक द्वारा दिया जाना चाहिए अन्यथा हानि की भी संभावना रहती है। लम्बे समय तक भी बहुत ऊँची पोटेन्सी के इस्तेमाल से बचना चाहिए।

निम्नलिखित दवाओं के प्रयोग में आवश्यक सावधानियाँ

नीचे लिखे दवाओं के प्रयोग में आवश्यक सावधानियाँ


1. लाइकोपोडियम को सल्फर के बाद इस्तेमाल न करें।


2. इग्नेशिया रात में लेने से अनिद्रा हो सकती है।


3. कैली वाई क्रोम बहुत जल्दी-जल्दी न दोहरायें।


4. कैली वाई क्रोम का कैलकेरिया कार्य के बाद प्रयोग न करें।


5. हीपर सल्प का सर्दी-जुकाम के प्रारम्भ में उपयोग न करें।


6. कार्बोवेज अतिसार अथवा रोग की आरम्भिक अवस्था में इसका उपयोग न करें


7. कैफर इसे पानी में इस्तेमाल न करें। जब पसीना आ रहा हो तब भी इसका उपयोग न करें।


४. कैल्केरिया कार्ब इसे वरायटा कार्ब या कैलीवाई क्रोम के पहले इस्तेमाल न करें।


9. वेलिस पेरेनिस- रात में सोते समय न दें इससे अनिद्रा हो सकती है।


10. वरायटा कार्ब- सर्दी जनित दमा में इसका प्रयोग न करें।


11. एकोनाइट- मलेरिया बुखार तथा ज्वर चढ़ने के दौरान इसका उपयोग न करें।


12. एपिस मेल- गर्भावस्था में विशेषकर तीसरे महीने के आस-पास इसका प्रयोग न करें, इससे गर्भपात भी हो सकता है।


13. टी.बी. के पुराने मरीज को हीपर सल्फ बड़ी सतर्कता से दें। साइलेशिया भी पुराने टी.बी. में नहीं दें तथा फास्फोरस का प्रयोग भी बड़ी सावधानी से करें।


14. अर्निका- पागल कुत्ते के काटने पर इसका इस्तेमाल न करें। हाइड्रोफाविनम दिया जा सकता है।


15. कास्टिकम- पक्षाघात में इसे बहुत जल्दी-जल्दी न दें। सप्ताह में केवल एक या दो बार ही दें।


16. लैकेसिस- बार-बार दवा न दोहरायें, ऊँची पोर्टेन्सी का प्रयोग न करें। यह बायें अंग में अधिक लाभ करता है।

रोगी के लक्षणों की विवेचना

रोगी के लक्षणों की विवेचना

एक सफल होमियोपैथी चिकित्सक के लिए यह आवश्यक है कि वह रोगी के लक्षणों का बड़ी बारीकी से अध्ययन करे ताकि उसे रोगी के कष्टों के बारे में विस्तार से जानकारी हो जाये। रोगी का शरीर रोगी का स्नायुतन्त्र, रोगी के शारीरिक और मानसिक लक्षणों का विस्तृत विवरण दे सकता है। अतः रोगी के बतायें गये लक्षणों पर भी विशेष ध्यान देना नितान्त आवश्यक है। इसे हम चार भागों में बाँट सकते हैं।


1. देखना रोगी को बारीकी से देखने की आदत डालें, इससे रोगी के प्रत्यक्ष लक्षणों का आपको ज्ञान हो जायेगा। रोगी के सोचने के तरीके उसके स्वभाव, व्यवसाय, पारिवारिक समस्याओं और मानसिक उद्वेगों में रोगी के रोग के लक्षण छिपे होते हैं। इन दबे लक्षणों को अच्छी तरह से रोगी को देखकर समझा और परखा जा सकता है। इसका लाभ यह होगा समानधर्मी दवा के लक्षणों को समझाने और उसके प्रयोग करने में हमें सुविधा होगी।


2. सुनना- रोगों को अपनी भाषा में निर्वाध गति से कष्टों का वर्णन करने का पर्याप्त अवसर दें। उसके कष्टों के लेखा-जोखा को बड़ी सहानुभूति पूर्वक सुनने का प्रयास करें, उसे बिना टोक हुए धैर्यपूर्वक सुनिए और मनन कीजिए इससे आपको सही दवा का चुनाव करने में बड़ी सुविधा होगी।


3. प्रश्न करना- रोगी के व्यक्तिगत जीवन के घटनाक्रमों का बारीकी से अध्ययन करने के लिए उसके अन्दर के छिपे मनोभावों को बाहर लाने हेतु सहृदयतापूर्वक प्रश्न पूछने की आदत डालें। हमें रोगी की मानसिक अवस्थाओं को कभी भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।


4. लिखना- यह जरूरी नहीं है कि रोगी ने आपको जो कुछ भी अपने रोगों के लक्षणों के सम्बन्ध में बताया है उसे आप हमेशा के लिए याद रख सकें अतः उसका संक्षिप्त विवरण लिखना और प्रत्येक रोगी का लिखित रिकार्ड अपने पास रखना आपके लिए आवश्यक है, इससे आपको उसके भावी उपचार में बहुत मदद मिलेगी।


रोगी से पूछने योग्य मुख्य बातें


1. रोग कब से शुरू हुआ ?


2. रात और दिन में किस समय लक्षण अधिक प्रकट होते हैं और कष्टदायी मालूम पड़ते हैं।


3. मुँह का स्वाद कैसा रहता है- कडुवा, कसैला, खट्टा, नमकीन, पनीला या मीठा।


4. क्या खड़े होने, लेटने, बैठे रहने पर या शरीर को इधर-उधर घुमाने से कष्ट अधिक बढ़ जाता है? चलने-फिरने, खाने-पीने सोने से भी क्या कष्ट में बढ़ोत्तरी होने लगती है।


5. आपके मन में अधिकतर किस प्रकार के विचार आते हैं?


16. शारीरिक अनुभूतियाँ कैसी होती है? शरीर में गर्मी, जलन, कँपकँपी अथवा किसी अन्य प्रकार की अनुभूति होती है क्या?


7. किन अवस्थाओं में आपको आराम मिलता है या और अधिक पीड़ा महसूस होती है।


8. रोग के घटने या बढ़ने की जानकारी लें।


9. किस प्रकार के लक्षण सबसे ज्यादा कष्टदायक महसूस होते हैं।


10. शरीर के किस भाग में रोग के लक्षण सबसे अधिक कष्टदायी महसूस होते हैं।


11. माता-पिता के रोगों का विवरण लेना न भूलें, क्योंकि कुछ रोग वंशानुगत होते हैं।


नोट: रोगी के द्वारा अलग से संलग्न प्रपत्र भरने से आपको लक्षणों को समझने में सुविधा होगी।

औषधि प्रयोग विधि

औषधि प्रयोग विधि


यह एक नितान्त भ्रम ही है कि होमियोपैथी की दवाइयाँ देर से असर करती हैं। नये और उग्र रोगों में सही चुनी हुई दवाइयों की एक या दो मात्राएँ ही फायदा पहुँचाने में सक्षम है। पुराने रोगों में भी ये दवायें बहुत ही प्रभावी और रोग को दूर करने में सक्षम होती हैं। इन दवाओं के प्रायः किसी प्रकार के साइड इफेक्ट नहीं होते हैं।


आपका शरीर


हमारा शरीर 5 तत्त्वों से बना है। पानी पृथ्वी, आकाश हवा और अग्नि। इसमें पृथ्वी और आकाश स्थायी तत्त्व है जबकि पानी, हवा और अग्नि क्रियाशील तत्त्व होते हैं। हमारी पाँचों अंगुलियाँ (हाथ की) भी पाँच तत्त्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं जैसे अनामिका पृथ्वी तत्त्व का, कनिष्ठा जल तत्व का अगुष्ठ अग्नि तत्त्व का, तर्जनी वायु तत्त्व का तथा मध्यमा आकाश तत्त्व का।


छठवाँ तत्त्व- आत्म तत्व कहा गया है जिसे प्रायः हम जीवनीशक्ति, लाइफ फोर्स, वायरल फोर्स आदि विभिन्न नामों से पुकारते हैं। होमियोपैथी में इस तत्त्व की बड़ी महिमा कही गयी है। इस जीवनी शक्ति और वायरल फोर्स का होमियोपैथी में विशेष विशेष महत्व है। इसी जीवनी शक्ति को अधिक से अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए उसे उभारा जाता है, जिसे हम शक्तिकरण भी कह सकते हैं। होमियोपैथिक दवाइयाँ इसी के आधार पर काम करती हैं। शक्ति कृत दवा इतनी शक्तिशाली बन जाती है कि यह रोग को जड़ से समाप्त कर देती है। और बहुत ही थोड़े समय में दवा अपना काम पूरा कर देती है। इस प्रकार यदि देखा जाये तो रोग होने का मुख्य कारण मनुष्य की जीवन शक्ति का कमजोर होना ही है। यदि हमारी जीवन शक्ति प्रबल हो तो कोई बीमारी हमें रोगी नहीं बना सकती है। होमियोपैथी दवाई इसी जीवन शक्ति को प्रबल बनाती है और ठीक करती है। इस जीवन शक्ति के प्रबल होते ही हमारा रोग दूर हो जाता है। इसे दूसरे शब्दों हम कह सकते हैं कि हामियोपैथी दवाई हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति को सबल बना देती है जिससे हम स्वस्थ होने लगते हैं।


होमियोपैथी चौथे शरीर अर्थात् मनस शरीर पर काम करती है। इस चिकित्सा के सम्बन्ध में तीन बातों का हमेशा ध्यान रखें।


1. Simplex - दवा साधारण दें (दो दवाओं का मिक्चर न बनायें) एक ही दें।


2. Similar - समान धर्म औषधि का प्रयोग करें।


3. Minimum कम से कम मात्रा में दवा का उपयोग अधिक उपयोगी होता है। कम शक्ति वाली दवा का महत्त्व अधिक माना गया है। दिन में तीन बार अवश्य दें।


दवा कब और कितनी बार रोग की उग्रता को देखकर ही दवा किस शक्ति में और कितनी बार दी जाये इसका निर्धारण करें। उच्च शक्ति की औषधि 10 मिनट के अन्तर से तीन बार दें। इसे पंक्ति डोज कहते हैं। सुधार होने की दशा में दवा देने का अंतराल 4 से 6 घंटे भी किया जा सकता है।