होमियोपैथिक औषधियाँ

होमियोपैथिक औषधियाँ


प्रमुख होमियोपैथिक औषधियों के नाम तथा उनके चारित्रिक लक्षणों (नैदानिक एवं रोग जनक) का वर्णन


यद्यपि होम्योपैथी को चिकित्सा में औषधियों को संख्या बहुत ही विस्तृत है तथा 510 विलियम वोरिक की मैटीरिया मेडिका में उनका विस्तार से वर्णन किया गया है किन्तु मैं निम्नलिखित 80 दवाओं को चिकित्सा की दृष्टि से परम उपयोगी और आवश्यक मानता हूँ और हम इन्ही दवाइयों का इस्तेमाल करते है। प्रत्येक सफल होमियोपैथिक चिकित्सक के लिए इनका ज्ञान होना बहुत ही आवश्यक है। यहाँ इन औषधियों के प्रामाणिक चारित्रिक लक्षणों का वर्णन गया किया गया है ताकि चिकित्सक को औषधि के चुनाव में सहायता मिल सके। इनमें होमियोपैथिक चिकित्सकों के अनुभवों को भी शामिल किया गया है । प्रयास किया गया है कि दवाओं का यह संकलन चिकित्सकों के लिए उपयोगी और आसान सिद्ध हो। यह सूची चिकित्सकों, सामान्यजन तथा विद्यार्थियों और आम आदमी के लिए बोधगम्य बनायी गयी है।

आर्जेण्टम नाइट्रिकम (Argentum Nitricum)

1. आर्जेण्टम नाइट्रिकम (Argentum Nitricum)


सिल्वर नाइट्रेट इस औषधि में स्नायुविक प्रभावों की प्रमुखता, रोगग्रस्त भागों में कम्पन्न, संतुलन की कमी कष्ट का उग्र प्रदाह, काँटा गड़ने से जैसा दर्द, दुर्बल एवं कृशकाय व्यक्तियों के अनुकूल तथा ज्ञानेन्द्रियों सम्बन्धी रोगों में प्रमुखता आदि। मिष्ठान खाने की प्रबल इच्छा, वास्तविक आयु से अधिक आयु का दिखाई पड़ना, गर्मी का सहन न होना तथा अरक्तता की अवस्था दर्द की अनुभूति धीरे-धीरे होना आदि।


मन- प्रत्येक कार्य शीघ्रातिशीघ्र करने की आदत का होना, भय और अधीरता। सिर- सर्दी और कँपकँपी, सिरदर्द, मानसिक थकान, दुर्बलता, चक्कर आदि


आँखें- आँखों में दर्द, थकान की अनुभूति, आँखों में स्थिरता का अभाव आदि।


नाक- गन्ध लोप।


चेहरा- बूढो जैसा पीला।


मुख- मसूड़ों में रक्तस्राव, जीभ पर छाले।


कंठ- अत्यधिक गाढ़ा श्लेष्मा, कंठ में लाली।


आमाशय- उबकायी, जलन, सिकुड़न, आमाशय के अन्दर जलन तथा फड़कन।


पाखाना- हरा अतिदुर्गंध वाला मलद्वार की खुजली।


मूत्र- मूत्र त्याग के बाद कुछ बूँदों का टपकते रहना। मूत्र अत्यल्प और गहरे रंग का होता है।


श्वास संस्थान - ऊँची आवाज में बोलने से खाँसी जैसी अनुभूति श्वास कष्ट ।


चर्म - कठोर तथा भूरा


पीठ - अत्यधिक पीडा ।


नींद - अनिद्रा


उदर - ठण्ड के साथ मितली

आर्जेण्टम मेटालिकम (Argentum Metallicum) (रजत चाँदी )

आर्जेण्टम मेटालिकम (Argentum Metallicum) (रजत चाँदी )


धीरे-धीरे शरीर सूखते चले जाना। श्वास कष्ट, ताजी हवा की इच्छा, बाँयी ओर दर्द का होना तथा फैलाव की अनुभूति प्रमुख लक्षण हैं।


मन- विषाद और आकुलता का अनुभव।


सिर - बाँयी ओर शूल का अहसास नजले के साथ छींके आती हैं।


कंठ - बार-बार खखारने की आदत, खाँसने से गले में दर्द, प्रातः बलगम का ज्यादा निकलना। श्वास संस्थान स्वरलोप कंठ की कर्कशता, बलगम बार-बार गला जोर लगाकर खुखारना।


पीठ- कमर में तेज दर्द, झुककर चलने की प्रवृत्ति ।


मूत्र- गंदला और अधिक मात्रा में तथा बहुमूत्रता की स्थिति।


बाह्यांग- टाँगें दुर्बल, अँगुलियों की सिकुड़न, टखनों में सूजन, सीढ़ियाँ उतरते समय कम्पन्न और घबराहट का भाव ।


पुरुष- अविराम पेशाब के साथ जलन, अनायास वीर्यपात, वृषणों में दर्द।


स्त्री- प्रसव तुल्य दर्द, बाँयी डिम्ब भी पीड़ा सारे उदर में दर्द की अनुभूति। खुली हवा में लेटने पर खाँसी, फटका लगने से कष्ट का बढ़ना।

आर्निका (Arnica)

आर्निका (Arnica)


यह दवा उन अवस्थाओं में उपयोगी पायी जाती है जब रोग का कारण कोई चोट हो, वह पुरानी भी हो सकती है। अंगों में ऐसी पीड़ा बनी रहती है, जैसे पिराई हुई हो अथवा जैसे जोड़ों में मोच आ गयी हो। बिस्तर कठोर मालूम पड़ता है। शोक संताप या पश्चाताप, अनर्गल आदि।


मल- ऐंठन, दुर्गन्धित, कत्थई रंग जैसा पेचिश के साथ पेशियों में दर्द।


मूत्र - अधिक परिश्रम करने से रुक जाता है। गहरी रंग की ईंट के जैसा लाल।


स्त्री - प्रचण्ड प्रसवोत्तर पीड़ा, स्तन-प्रदाह ऐसा प्रतीत होना जैसे भ्रूण आड़ा-तिरछा लेटा हो।


श्वास संस्थान - खाँसी, व्यायाम करने से वृद्धि, रात्रि में बढ़ोत्तरी आवाज का अधिक उपयोग कष्ट कारक, प्रातः पौड़ा की अनुभूति रक्तिम बलगम, फेफड़ों में दर्द।


हृदय - हृदय शूल, हृदय में सुई जैसी चुभन, श्वास कष्ट। बाह्यांग- गठिया, परिश्रम करने से वाददर्द अँगुली, भुजायें ठंडी, आमवात सी शिकायत निम्न भागों से आरम्भ होती है और ऊपर की ओर बढ़ती है।


चर्म- नीला और काला, खुजली और जलन, छोटे-छोटे फोड़े।


नींद - निद्राहीनता, बेचैनी, जागने पर सिर का गरम होना, निद्रा के दौरान पाखाना का हो जाना।


ज्वर - ज्वर के लक्षण, सिर में गर्मी, पैर और हाथ ठण्डे ।


पूरक औषधि ऐकोना, इपिका उपरोक्त औषधि से मिलती-जुलती एक और दवा है जिसका नाम आर्निका माण्ट है। गर्मी के दिनों में जो फोड़े-फुन्सियाँ होते है उनकी यह एकमात्र दवा है।

आर्सेनिक आयोडेटम (Arsenic Iodatum)

आर्सेनिक आयोडेटम (Arsenic Iodatum)


निरंतर क्षोम पैदा करने वाले तथा स्रावों के उपचारार्थ उपयोगी औषधि है। पेट सम्बन्धी खराबियों के कारण उदरशूकल का बने रहना, पीठ और कंधों में आमवात की शिकायत होती है।


मन- अनर्गल बातें, शरीर का अतिसंवेदनशील होना, निरंतर कार्य करने में असमर्थता, अकेले रहने की चाहत। निरंतर कार्य करने में असमर्थ महसूस करना।


सिर- सिर गरम किन्तु शरीर का ठण्डा होना, सिर का चकराना, चलते समय वस्तुएँ घूमती दिखायी पड़ती हैं। खोपड़ी सिकुड़ी हुई महसूस होती है।


आँख - आँखें खोलकर रखनी पड़ती है। बन्द करने में चक्कर आने लगता है। आँखों का दुर्बल महसूस होना।


कान- कान के अन्दर तथा आसपास पीड़ा का अहसास, कानों में कभी-कभी रक्तस्राव होता है।


नाक- नकसीर का फूटना, ठण्डापन होना।


मुख- दुर्गन्धित श्वास, मुँह सूखा और प्यासा कडुवा स्वाद की अनुभूति, चेहरा अत्यधिक लाल, धँसा हुआ, ओठों में गर्मी।


आमाशय - खाते समय आमाशय में दर्द, कुत्ते जैसी भूख, पेट भरा हुआ महसूस होने से भोजन से अरुचि, पेट में पत्थर जैसा दबाव महसूस होना इत्यादि ।


उदर- सुई जैसी चुभन, फूला हुआ दुर्गन्धित अपान वायु का निकलना चाकू घोंपें जाने जैसी अनुभूति, दुर्गन्धित और पनीला, खुजली और जलन, पुराना नजला, नाक के अन्दरूनी ऊतकों में सूजन, हृदय पेशी शोथ, नाड़ी उखड़ी हुई, यक्ष्मारोग की विशेष लाभप्रद औषधि, ज्वर रात्रि कालीन पसीना निमोनिया की जीर्ण अवस्था, अच्छा भोजन के बाद भी शरीर में कृशता बढ़ते जाना। सिर- चक्कर आने के साथ कंपकपी महसूस होना।


नाक - मुजी नाक, पुराना नजला, छींकने को लगातार इच्छा।


कंठ- स्वास दुर्गन्धित, ग्रसनी में जलन।


आँखें और कान- कान का प्रदाह, जलन, तीखा नजला आमाशय- हृदय में पीड़ा, खाने के एक घंटे बाद वमन, तेज प्यास या पिया हुआ पानी तुरन्त के हो जाता है।


श्वास संस्थान- खाँसी, सूखी, हल्का बलगम।


पुनरावर्ती ज्वर और पसीना, रात में होने वाले पसीने से शरीर पूरी तरह से भीग जाना और तर-बतर हो जाना।


चर्म- रूखी, पपड़ीदार, हल्का रिसाव, कण्ठमाला (दाढ़ी का छाजन, मुँहासें कठोर तथा उभरे हुए।


नाड़ी - तेज दुर्बल अनियमित शीत प्रधान, ठण्ड नहीं सह सकता है।

आर्सेनिक अल्बम (Arsenic Album)

आर्सेनिक अल्बम (Arsenic Album)


इसे हिन्दी में संखिया कहते है। यह हमारे प्रत्येक अंग तथा ऊतक पर गहन क्रिया करने वाली प्रभावकारी औषधि है।


नाक - पतला पानी जैसा, नाक का बन्द महसूस होना, छींकने से आराम नहीं, घर के अन्दर आराम की अनुभूति, जलन और रक्तस्राव ।


चेहरा- सूजा हुआ तथा मुरझाया हुआ पीला, दुर्बल धसा हुआ ठण्डा और पसीने से तर, ओंठ काले, नीले, क्रोधी।


मुख- मसूड़े गन्दे, खुश्की और जलन, जीभ सूखी लाल सुई जैसी चुभन ।


कंठ- सूखा हुआ संकीर्ण, निगलने में असमर्थता ।


आमाशय - न खाना देख सकता है न उसकी गन्ध सहन कर सकता है। खाने-पीने के बाद मिचली, आमाशय अत्यन्त क्षोमक, दूध पीने की तीव्र लालसा


उदर- जलन के साथ दर्द, यकृत और प्लीहा बढ़े हुए, उदर सूजा हुआ।


मल- दर्द वाला मल द्वार में जलन, थोड़ा दुर्गन्धित


मूत्र - अत्यल्प जलन के साथ।


स्त्री- ऋतु स्राव बहुत अधिक तथा समय से पहले, सुई चुभने जैसी पीड़ा।


श्वास संस्थान- लेटने के अक्षम, दम घुटने का भय छाती में जलन आधी रात के बाद बढ़ने वाली खाँसी, पीठ के बल लेटने पर और ज्यादा महसूस होती है। सारे शरीर में जलन होती है।


हृदय - धड़कन, श्वास कष्ट नाड़ी प्रातः अधिक तेज।


पीठ - कमर में कमजोरी, कन्धे में खिचाव।


इसमें महत्त्वपूर्ण लक्षण है- सर्वाधिक दुर्बलता, बेचैनी थकान (हल्का परिश्रम करने के बाद भी) जलन के साथ दर्द, न बुझने वाली प्यास समुद्र तटीय रोग, पानी वाले फलों का हानिप्रद प्रभाव भय, उद्वेग और चिन्ता तम्बाकू, गलत भोजन, मास खाने के दुष्प्रभावों में विशेष लाभकारी हर साल प्रकट होने वाले रोग रक्ताल्पता अल्प पायाहार के कारण बच्चा में कम वजन होने की समस्या, मलेरिया जनित क्षीणता एवं मन्द जीवनी शक्ति


मन- बेचैनी एवं संताप, एकाकीपन और मृत्यु से भय, भय के साथ ठण्डा पसीना, दवा खाना बेकार है इसका भाव, आत्महत्या की प्रवृत्ति, गन्ध और दृष्टि सम्बन्धी भ्रम का होना, कंजूस, स्वार्थी, दुष्ट स्वभाव वाला, साहस की कमी, रोग और भ्रम के प्रति संवेदनशील।


सिर- सिर में दर्द किन्तु ठण्ड से आराम, खोपड़ी में बर्फीलापन, ठण्ड और भारी दुर्बलता का महसूस करना, सिर का लगातार हिलते रहना, सिर में अधिक खुजली।


आँखें- जलन और अनुप्रवाह, पलकै लाल, बाहर से गरम देने से आराम, त्वचा को छीलता हुआ सा अनुप्रवाह


कान- पतला, दुगर्धित कर्ण स्राव, कानों के अन्दर गर्जना।


बाह्यअंग- कम्पन्न, दुर्बलता, भारीपन बेचैनी पिण्डलियों में ऐंठन पैरों की सूजन साटिका (Sciatica), जलन के साथ दर्द।


चर्म- खुजली, जलन, सूजन, शरीर में बर्फ जैसी ठण्डक। नींव अशान्त और बेचैन, सिर मोटा तकिया लगाकर सोना आरामद, सिर के ऊपर हाथ रखकर सोता है। सपने चिन्ता और भय वाले होते हैं।


ज्वर - तेज ज्वर नियत समय पर, थकान की चरम अवस्था, 3 बजे भारी गर्मी का अहसास। इसका रोगी हमेशा स्थान परिवर्तन करता रहता है। मृत्यु का भय उसमें हमेशा विद्यमान रहता है। उसके अन्दर ऐसे विचार आते हैं, कि मानो वह रोग से अवश्य मर जायेगा।



आर्सेनिक मेटालिकम (Arsenic Metallicum)

आर्सेनिक मेटालिकम (Arsenic Metallicum)


सिर- स्मरण शक्ति दुर्बल, एकाकी रहने की इच्छा, सिर बड़ा प्रतीत होता है। चीखते चिल्लाने की आदत, विभिन्न भागों में सूजन की अनुभूति, बाँय और सिरदर्द जो आँखों और कानों तक फैलता मालूम पड़ता है। नीचे की ओर झुकने से तथा लेटने से सिरदर्द बढ़ जाता है।


चेहरा - लाल तथा सूजा हुआ जिसमें खुजली और जलन होती है। आँखें सूजी हुई जिसमें जलन के साथ पानी बहता है। आँखें दुर्बल, दिन की रोशनी अच्छी नहीं लगती है। चेहरा लाल तथा फूला हुआ जिसमें खुजली और जलन होती है।


मुख- जीभ के ऊपर सफेद परत का जम जाना, मुख में दर्द।


उदर- यकृत से होने वाली दाहक पीड़ा जो कन्धों और रीढ़ की हड्डी तक फैल जाती है। अतिसार, जलनयुक्त पतला पाखाना होने से दर्द कम हो जाता है।

औरम मेटालिकम स्वर्ण (Metallc Gold)

औरम मेटालिकम स्वर्ण (Metallc Gold)


यह बड़ी ही प्रभावशाली औषधि मानी गयी है। निराश, हतोत्साह, आत्महत्या


की प्रबल इच्छा वाले रोगियों के उपचार में बड़ी ही कारगर, पारद के कुप्रभावों को नष्ट करने के लिए इसका प्रयोग होता है। कंठमाला से पीड़ित रोगी, निस्तेज चेहरा, अतिकामुकता से ग्रस्त धमनी काठिन्य से ग्रस्त लोग, निरुत्साहित, दुर्बल स्मरणशक्ति वाले लोग आत्मभर्त्सना और अपने को निकम्मा मानने वाले लोग, चिड़चिड़े निरंतर प्रश्न करने वाले व्यक्ति। शोरगुल उत्तेजना के प्रति अतिसंवेदनशील, सिर में तेज दर्द, बुढ़ापे में आशिक पक्षाघात, सिर का निरन्तर हिलते रहना, अनिद्रा, डरावने स्वप्न, रात्रिकालीन श्वास कष्ट, बाँझपन, योनिप्रदाह, वृषणों में दर्द और सूजन, मसूड़ों की व्रण ग्रस्तता में यह औषधि बहुत ही प्रभावशाली और उत्तम मानी गयी है।

इग्नेशिया (Ignatia)

इग्नेशिया (Ignatia)


यह वातोन्माद की प्रमुख औषधि है तथा यह स्नायुविक प्रवृत्ति के लोगों के लिए विशेष उपयोगी है। संवेदनशील स्त्रियाँ जो सहज ही उत्तेजित हो जाती हैं। तथा ऐसे रोगी जो चपल, शंकालु तौर पर चिन्ता से ग्रस्त रहते हैं, उनमें यह दवा उपयोगी मानी गयी है।


मन- अंतरावलोकी, परिवर्तनशील स्वभाव, चिन्ताओं से ग्रस्त, दुःखी और सहनशील, निराश जरा-जरा सी बात में आहे, सिसकियाँ भरना, ज्यादा बातचीत पसन्द न करना।


सिर - खोखला और भारी लगता है। नाक की जड़ पर ऐंठन जैसा दर्द, सिर आगे की ओर झुकाता है। आँखें- देखने में धुंधलापन तथा पलकों का उद्वेष्ट आड़ी-तिरछी लकीरें व धब्बे दृष्टिगोचर होते हैं। चेहरा- चेहरे तथा होटों की पेशियों में स्फुरण का अनुभव विश्राम से चेहरे का रंग बदल जाना।


मुख- खट्टा स्वाद, लगातार लार से भरा रहता है। गाला का अन्दरूनी भाग कभी-कभी दाँतों से कट जाता है। कॉफी पीने और धूम्रपान के पश्चात् दर्द का बढ़ जाना आदि, लक्षण होते हैं।


कठ- कठ के अन्दर गोला विद्यमान जैसी अनुभूति दम घुटने की अनुभूति, सुई जैसी चुभन जो कानों तक फैल जाती है।


आमाशय- खट्टी डकारें, अन्दर खोखलेपन की अनुभूति आमाशय के अन्दर ऐंठन, आहार से अरुचि, खट्टी चीजों को खाने की लालसा ।


उदर- ऊपरी पेट में दुर्बलता की अनुभूति, उदर के अन्दर टपकन तथा एक या दोनों ओर ऐंठनयुक्त पीड़ा का भाव निरंतर बना रहता है।


मलांत्र- मलांत्र के अन्दर और ऊपर तक खुजली और सुई के चुभन जैसी पीड़ा, मल कठिनाई से उतरता है।


मूत्र अधिक मात्रा में होता है।


श्वास संस्थान- शुष्क, अधिक देर तक खाँसने की इच्छा, श्वासप्रणाली में दर्द का बना रहना।


स्त्री- ऋतुस्राव काला तथा नियत समय से बहुत पहले और काफी मात्रा में होता है। आमाशय और उदर से पीड़ा, सम्भोग की इच्छा का अभाव, शोक तथा पीड़ा से ग्रस्त।


नींद बहुत हल्की, शोक, चिन्ता के कारण नींद नहीं आती है। जमाइयाँ बहुत आती है। कष्टकारी एवं लम्बे समय तक सपने आते हैं। चर्म खुजली तथा शीत-पित्त हवा के झोंकों के प्रति अति संवेदनशील।

इण्डिगो (Indigo)

इण्डिगो (Indigo)


इसकी प्रमुख क्रिया हमारे स्नायु प्रणाली पर होती है। नील का शुद्ध विचूर्ण साँप अथवा मकड़ी के काटे जाने के घावों को मीठी कर देता है।


सिर- चक्कर के साथ जी मिचलाना, ऐसी अनुभूति कि जैसे मस्तिष्क बर्फ से जम गया हो।


नाक- अत्यधिक छींके आती है। कान गर्जना की अनुभूति होती है।


आमाशय - डकारें, भूख का अभाव, गर्मी की लहर आमाशय से उठकर सिर की और जाती है, ऐसा अनुभव होता है।


मलात्र- मलद्वार में रात में खुजली होती है। मूत्र- मूत्र त्याग की निरंतर इच्छा बनी रहती है।


बाह्यांग- कान के नीचे वाले भाग से घुटने तक दर्द रहता है। खाना खाने के बाद प्रत्येक अंग में दर्द होता है।


तन्त्रिकाएँ- वातोन्मादी लक्षण होते हैं। दर्द की भी अनुभूति होती है। अत्यधिक उत्तेजना मिर्गा पेट से लेकर सिर तक गर्मी की चाँध बनी रहती है। विश्राम काल में बैठे रहने पर लक्षणों में वृद्धि।

इपिकाकुअन्हा (Epicacuanha)

इपिकाकुअन्हा (Epicacuanha)


1. लगातार मितली और वमन का होना।


2. स्थूलकाय बच्चों में तथा वयस्कों में इसका विशेष उपयोग है।


3. इसकी प्रमुख क्रिया फुफ्फुस जठर तन्त्रिका पर होती है।


मन- चिड़चिड़ा, उपेक्षायुक्त तथा लक्ष्य निर्माण नहीं कर पाता है।


सिर- सिर की हड्डियाँ कुचली हुई सी महसूस होती है। दर्द दाँतों और जबान तक फैलने लगता है।


आँखें - लाल आँखों में आँसूओं का तीव्र प्रवाह |


चेहरा- चेहरा आँखों के चारों ओर नीले छल्ले। नाक बन्द होने लगती है।


आमाशय- जीभ साफ पर लार अधिक आती है। निरंतर मितली और वमन की अनुभूति हिचकी आती है।


उदर- पेचिश, नाभि के चारों ओर कठोरता। मल- राल जैसा होता है, पेचिश जैसा चिपचिपा । दमा, श्वास उखड़ने दौरे, प्रचण्ड खाँसी,


श्वास संस्थान- श्वास कष्ट, खाँसी तथा नकसीर का फूटना।


ज्वर - सविराम ज्वर, मिचली, वमन और श्वास कष्ट ।


नींद- नींद आने पर सारे अंगों में झटके। चर्म- पीली, शिथिल त्वचा पर आँखों के चारों ओर नीली मात्रा- तीसरी से 200वीं शक्ति तक।

एकोनाइटम नैपेल्लस (Aconitum Napellus)

एकोनाइटम नैपेल्लस (Aconitum Napellus)


शारीरिक और मानसिक बेचैनी, भय एकोनाइट की मुख्य चारित्रिक लक्षण है। उग्रज्वर की अवस्था में भी इस औषधि को प्रयोग में लाया जा सकता है। व्यक्ति किसी अन्य द्वारा स्पर्श पसन्द नहीं करता है। शक्ति में अचानक ह्रास का अनुभव करता है। भीतरी अंगों में जलन का अहसास होता है, इसके साथ चुनचुनाहट, ठण्ड और सुन्नपन की भी अनुभूति होती है।


मन- अत्यधिक चिन्ता एवं अधीरता जैसी अवस्थाओं में विशेष लाभकारी. भयातुर तथा चीजों को नष्ट करने की इच्छा, मौत से भय भविष्य के प्रति भयभीत, भौडभाड और सड़क पार करने से डरता है। बार-बार करवटे बदलने की आदत होती हैं। दर्द की उग्रता के कारण पागलपन के दौरे से आते हैं।


संगीत असहाय होता है।


सिर- पारिपूर्णता पर ज्वलनकारी और फैला हुआ ऐसी अनुभूति, जलन के साथ सिरदर्द, सिर के ऊपर ऐसी अनुभूति होती है जैसे कोई बालों को खींच रहा हो।


आँखें- लाल, सूखी और गरम महसूस होती है। पलकें सूजी हुई, रोशनी से अरुचि शुष्क व शीतल हवा लगने से बर्फीली ठण्डक की अनुभूति होती है। आँखों में काफी मात्रा में पानी बहता रहता है।


कान- संगीत सहन नहीं होता, शोरगुल के प्रति अत्यधिक संवेदनशील, कान गरम, दर्दनाक एवं सूजा हुआ।


नाक- गन्ध के प्रति संवेदनशीलता, नासिका मूल पर दर्द का अहसास, नथुनों में टपकन, नाक बन्द-सी और सूखी।


चेहरा- तमतमाया हुआ, लाल गरम सूजा-सा, एक गाल लाल दूसरा


पीला- सा, जबड़ों में दर्द बेचैनी तथा सिर का चकराना। मुँह सूखा तथा सुन्न, जीभ सूखी, निचला जबड़ा निरंतर चलता रहता है।


मसूड़े- गरम जीभ पर सफेद परत। कंठ- लाल, शुष्क, सुन्न, टांसिल सूजे हुए।


आमाशय - भय, गर्मी, अत्यधिक पसीना, मूत्र की अधिकता, अधिक प्यास उदर- गरम तना हुआ तथा फूला हुआ।


मूत्र - कम मात्रा में लाल गरम दर्द का अनुभव।


हृदय- बायें कन्धे में दर्द, छाती में चुभने जैसा दर्द होता है, तेज धड़कन।


पीठ- अकड़ी हुई।


बाह्यांग- हाथ पैरों में बर्फ जैसी ठण्डक बाहों में भारीपन सुन्नपन, गरम हाथ और ठण्डे पैर। अकड़न तथा


नींद -डरावने सपने बेचैन रातें करवट बदलते रहना, सोते सोते चौक पड़ना। चर्म- लाल गरम तथा सूजी, जलती हुई तथा सूखी हुई त्वचा पर नीले रंग के दाने।


ज्वर- शीतावस्था अधिक बनी रहती है। जिस भाग की ओर लेटता है वह हिस्सा पसीने से तर-बतर हो जाता है।


मात्रा- ज्ञानेन्द्रियों के रोगों के लिए छटो शक्ति तथा रक्त संकुल अवस्था के लिए पहली व तीसरी शक्ति, एकोना तीव्र क्रिया करने वाली दवा है।

एथूजा सिनैपियम (Aethusa Cynapium)

एथूजा सिनैपियम (Aethusa Cynapium)


इस औषधि में प्रधान लक्षण मस्तिष्क स्नायु जाल तथा पाचन दोषों से जुड़े हुए हैं। मनोव्यग्रता, रोना, चिल्लाना तथा जब बच्चों के दाँत निकलते हों अथवा दस्त होने


के साथ दूध हजम नहीं कर पा रहे हों तब यह दवा प्रभावकारी सिद्ध होती है। मन- बेचैन, अधीर, रोगी को चूहे, बिल्ली, कुत्ते दिखायी देते हैं। मन एका करने में असमर्थ, क्रोध और चिड़चिड़ापन होता है।


सिर- जैसे शिकंजे कसा हुआ अथवा किसी चीज से बँधा हुआ, लेटने से आराम तथा मल त्याग से भी आराम।


आँखें- रोशनी सहन नहीं होती, नींद आने पर भी आखों की गति चलायमान बनी रहती है, आँखें नीचे की ओर घूम जाती है तथा पुतलियाँ फैल जाती है।


कान- बन्द महसूस होते हैं। कानों में फुस्फुसाहट-सी होती रहती है।


नाक- अत्यधिक गाठें श्लेष्मा के कारण बन्द-सी हो जाती है।


चेहरा- फूला हुआ, अत्यधिक मुरझाया हुआ, दर्द से परिपूर्ण। मुख- सूखा, छाले, जीभ लम्बी महसूस होती है।


आमाशय - दूध को पचाने में असमर्थ, दूध पीते ही उल्टी हो जाती है। खाना देखते ही जी मिचलाने लगता है।


उदर- अन्दर तथा बाहर से ठण्डा, आँतों में दर्द, उदर तना हुआ तथा फैला हुआ।


मल- अनपचा, पतला हरा।


मूत्र- दर्द होने के साथ मूत्र त्याग की निरंतर इच्छा।


श्वास- कठिन कष्टदायक।


हृदय - तीव्र धड़कन के साथ सिर में चक्कर, दर्द और बेचैनी।


चर्म- चलते समय जाँघों की चमड़ी छिल जाती है। सहज ही पसीना आ जाता है।


ज्वर- अत्यधिक गर्मी, ठण्डा पसीना।


नींद - बार-बार चौंकने की आदत


मात्रा- तीसरी से 30 शक्ति तक।

एनाकार्डियम (Anacardium)

एनाकार्डियम (Anacardium)


एनाकार्डियम रोगी स्नायु दौर्बल्य से पीड़ित तथा स्नायुविक मंदाग्नि से भी पीड़ित रहता है। अवसाद, चिडचिडापन, विद्यार्थियों में परीक्षा का भय, काम में अरुचि, आत्मविश्वास का अभाव, सौगन्ध खाने तथा श्राप देने की इच्छा, समस्त वेदनाओं में खाना खाने से अस्थायी आराम मिलता है।


मन- चलते समय अधीरता जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हो, गहन विषाद, मानसिक थकान, सहज ही नाराज होने की प्रवृत्ति, शंकालु समस्त नैतिक बन्धनों का अभाव।


सिर- चक्कर तथा दबाव के साथ दर्द, मानसिक कार्य से सिर के पिछले भाग में दर्द बढ़ जाता है।


आँखें- अस्पष्ट दृष्टि, चीजें बहुत दूर की दिखायी देती हैं।


कान- डाट लग जाने जैसा दबाव, कम सुनाई देता है।


नाक- लगातार छींकों का आना।


चेहरा- पीला, आँखों के इर्द-गिर्द नीले छल्ले ।


मुख- दुर्गन्ध युक्त, जीभ सूजी हुई लगती है। आमाशय मन्द पाचन के साथ भारीपन।


उदर- दर्द की अनुभूति ।


हृदय- बड़ी हुई धड़कन, दुर्बल स्मरणशक्ति, हृदय प्रदेश में सुई जैसी चुभन ।


पीठ- कन्धों में मन्द-मन्द दबाव, गर्दन के पिछले भाग में अकड़न ।


नींद- नहीं आती है।


चर्म- तेज खुजली के साथ छाजन, हाथों पर मस्से।


मात्रा- छठीं से 200 तक।


एपिस मेलिफिका (Apis Melifica)

एपिस मेलिफिका (Apis Melifica)


मधुमक्खी के डंक के प्रभावों के समान उत्पन्न होने वाले रोग के लक्षणों में इस औषधि को व्यवहार में लाया जाता है। डंक लगने जैसा चुभन, गर्मी सहन न होना, दोपहर के बाद रोग में वृद्धि होना, इस औषधि के प्रमुख लक्षण हैं।


मन- विरक्ति, घृणा, अकारण हाथ में पकड़ी चीज को गिरा देना, चीख मारना, कामोन्माद ईर्ष्यालु, व्यग्र, तेज कर्णभेदी चीखें, कराहना, भय, आक्रोश. शोक तथा मन का एकाग्र न होना।


सिर- सारा मस्तिष्क अधिक थका हुआ होना, चक्कर तथा छीके आना, गर्मी, टीस फैलने वाले दर्द, हरा घोंपने जैसा आकस्मिक दर्द होता है।


आँखें- पलक सूजी, लाल जलन, डंक मारने जैसी अनुभूति, गरम आँसू।


कान- बाहरी कान लाल।


नाक - ठण्डी, लाल सूजी हुई।


चेहरा- सूजा हुआ लाल।


मुख- जीभ झुलसी हुई मसूड़े सूजे हुए, ओंठ सूजे हुए।


कंठ - सिकुड़ा हुआ।


आमाशय- दर्द की अनुभूति ।


उदर- दर्दनाक ।


पाखाना- प्रत्येक बार स्वयं पाखाना हो जाना।


मूत्र- जल और दर्द। नींद अत्यधिक तन्द्रालु ।


ज्वर- दोपहर के बाद ठण्ड लगने के साथ प्यास का लगना।


बाह्यांग- पैर सूजे हुए, घुटना सूजा, अंगुलियों में सुन्नपन होना ।


मात्रा- मूलार्क से तीसरी शक्ति।

एब्रोटेनम (Abrotanum)

एब्रोटेनम (Abrotanum)


सुखण्डी रोग की प्रभावशाली औषधि, नाक में खून बहना, अण्डकोशों में पानी भर जाना।


मन- जिद्दी, चिड़चिड़ा, निराश


चेहरा -झुर्रीदार, ठण्डा, सूखा, पीला और निस्तेज।


आमाशय - चिपचिपा स्वाद, आमाशय में दर्द रात में बढ़ जाता है, असहा भूख


उदर- कठोर गाउँ तथा फूला हुआ, बवासीर, खूनी पाखाना दस्त और मल त्याग की निरंतर इच्छा।

कब्ज,


श्वास संस्थान- श्वास लेने व छोड़ने में बाधा, सूखी खाँसी, हृदय प्रदेश में दर्द की अनुभूति।


पीठ- गर्दन कमजोर कमर लुंज, कटि प्रदेश में पीड़ा।


बाह्यांग- कन्धों भुजाओं कलाइयों एवं टखनों में दर्द, अंगुलियों और पैरों में पिन चैंधा दिये जाने जैसा दर्द।


चेहरा- चेहरे पर दाने, चमडी थलथुली बाल झड़ना विवाइयों में खुजली का होना, ठण्डी हवा में श्वास रोकने से वृद्धि, गति करने से हांसी मात्रा तीसरी से तीसवीं शक्ति तक देना श्रेयस्कर रहेगा।



एमानियम कार्बोनिकम (Ammonium Carbonicum)

एमानियम कार्बोनिकम (Ammonium Carbonicum)


हृष्टपुष्ट थकी हुई म्लान स्त्रियों के लिए प्रायोगिक, सहज में ही ठण्ड का लग जाना, शारीरिक श्रम नहीं करना, मोटे शरीर वाले जिनका हृदय कमजोर होता है। श्वास के साथ सायं-सायं की ध्वनि का होना, घुटन महसूस करना, ठण्डी हवा के प्रति संवेदनशील होना, पानी से घृणा, सूखी ग्रन्थियाँ, सारे अंगों में भारीपन, गन्दा रहने की आदत, अंगों, ग्रन्थियों आदि में सूजन।


मन- भुलक्कड़, बदमिजाज, अस्वच्छता दुःखी, विवेकहीन ।


सिर- माथे पर टीस, गरम कमरे में आराम। आँखें जलन, रोशनी से घृणा, नेत्रकोणों में दुःखन।


कान- बधिरता, दाँत पीसना।


नाक- तेज जलन पैदा करता हुआ पानी टपकता है। रात को नाक बन्द होने लगती है।


चेहरा- मुख के चारों ओर दाद।


मुख- मुख और कंठ में अत्यधिक रूक्षता।


कठ- कंठ के नीचे तथा अन्दर जलन का दर्द


आमाशय- उदरगत पीड़ा, अत्यधिक भूख किन्तु अल्प भोजन में ही पेट भर जाना।


मूत्र- निरंतर इच्छा।


श्वास - संस्थान- कंठ की कर्कशता।


हृदय - सुनायी देने वाली धडकन से भया


बाह्यांग - जोड़ों में भीषण दर्द।


नींद- दिन में नींद का आना।


मात्रा छटी शक्ति सर्वोत्तम ।

एमानियम कार्बोनिकम (Ammonium Carbonicum)


एलूमिना (Alumina)

एलूमिना (Alumina)


यह फिटकरी से बनता है, पुरानी बीमारियों परेशान लोगों के लिए लाभदायक जो समय से पूर्व बड़े हो गये और शरीर में दुर्बल रहते हैं। यह औषधि निम्न प्रमुख अवस्थाओं का चरित्र चित्रण है। बुढ़े लोगों में प्राय:

शारीरिक क्रियाओं की शिथिलता आ जाती है और वे प्राय: समय से पहले ही बड़े दिखने लगते हैं। अतः दुर्बल, रुखौ प्रकृति वाले दुर्बल व्यक्तियों के लिए जिनमें सुन्नपन, भारीपन, मलबद्धता जैसी प्रवृत्तियों पायी जाती हैं, उनके लिए यह बहुत ही लाभदायी औषधि मानी गयी है। बच्चों में कृत्रिम बालाहार से उत्पन्न व्याधियाँ भी ठीक हो जाती है। इस औषधि के सेवन करने से


मन- हतोत्साहित, ज्ञानशक्ति के लोप का भय, जल्दबाज, परिवर्तनशील स्वभाव वाला॥


सिर- सिर में सुई जैसी चुभन का अहसास, चक्कर का आना, माथे पर दबाव ऐसा लगता है कि जैसे सिर पर पगडी पहन रखी हो, कब्जियत, सिरदर्द, सुबह नाश्ता के बाद आराम की अनुभूति।


आँखें- प्रत्येक वस्तु पीली दिखाई पड़ती है। आँखें ठण्डी, प्रातःकाल कष्ट बढ़ जाता है।


कान- गर्जन और भिनभिनाहट की अनुभूति।


नाक- नासिका मूल में दर्द, सर्दी-जुकाम चेहरा- सूखा, फोड़े-फुन्सियाँ, खाना खाने के बाद चेहरे की ओर खून का


अधिक बहाव प्रतीत होता है।


मुख - मुख से बदबू आती है, दाँतों में मैल तथा मसूड़ों में पीड़ा का अनुभव। कठ- खुश्क, खाना निगलने में कठिनाई।


आमाशय- खड़िया मिट्टी, कोयला सूखे खाद्यपदार्थ खाने की प्रवृत्ति, ग्रासनली में सिकुडून।


उदर- बायीं ओर के उदर रोग।


मल- कठोर तथा सूखा, मलत्याग के दौरान बहुत जोर लगाना पड़ता है। मूत्र पेशाब करने में भी बहुत जोर लगाना पड़ता है।


पुरुष- सम्भोग की अत्यधिक इच्छा। स्त्री- ऋतु स्राव नियत समय से बहुत पहले।


श्वास संस्थान- सुबह जागते ही खाँसी। पीठ- सूई जैसी चुभन ।


बाह्यांग- हाथी और अंगुलियों में दर्द।


नींद बेचैनी भरी सुबह नींद ठीक आती है, त्वचा फटी हुई। मात्रा छटी से तीसवीं।

एलो (Aloe)

एलो (Aloe)


जब किन्हीं औषधियों के अधिक मात्रा में खा लेने से रोगी की शारीरिक क्रियाओं का संतुलन बिगड़ जाये तो उस संतुलन को पुनः स्थापित करने की कारगर औषधि है। यह दुर्बल व्यक्तियों बूढ़े लोगों, कफ प्रकृति वाले, पियक्कड़ लोगों के लिए उपयोगी।


सिर- सिरदर्द, मानसिक श्रम नहीं करना चाहता।


आँखें- आँखों में चिनगारियाँ उड़ती दिखाई देती चेहरा ओठों में अत्यधिक लाली। है।


कान- बायें कान में सहसा धमाका या टकराने की आवाज।


नाक - ठण्डी।


मुँह - खट्टा और कड़आ।


कंठ- शुष्क तथा फूली हुई।


आमाशय- रसीली चीजें पसन्द मास के परहेज, मिचली के साथ सिरदर्द।


उदर- नाभि के आसपास दर्द दबाने से बढ़ता है, निचली आँतों में दर्द की अनुभूति। मलत्याग की निरंतर इच्छा।


मल- ठण्डे पानी का प्रयोग आरामदायक, मलत्याग के बाद पीड़ा, बवासीर, जलन तथा उदर के निचले भाग में भारी दबाव।


मूत्र- अल्प मात्रा में गहरे रंग का।


पीठ- कमर दर्द, हिलने-डुलने से बढ़ने लगता है। बाह्यांग जोड़ों में खिचावदार दर्द, चलते समय तलुवों में दर्द की अनुभूति


पूरक औषधि सल्फर, लाडको ।


रूपात्मकतायें गर्मी में गरम भोजन खाने के बाद वृद्धि तथा ठण्डी खुली हवा में हास


मात्रा- छठी तीसरी शक्ति की एवं उच्च शक्ति की कुछ मात्राएँ देकर परिणाम की प्रतीक्षा करें।



एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम (Aesculus Hippocastenum)

एस्कुलस हिप्पोकैस्टेनम (Aesculus Hippocastenum)


प्रमुख क्रिया निचली आत में होती है। कमरदर्द, शिराओं में रक्त का दबाव शिराई फूल जाती है कब्ज नहीं रहती है। यकृत शिराओं को किया मन्द पड़ जाती है। कमर में बिस्तर भन्द-मन दर्द होता है। शरीर के विभिन्न भागों में भ्रमणकारी दर्द शतमिक झिल्लियाँ खरक और सुनी हुई प्रतीत होती है।



सिर- उदास, चिड़चिड़ा, मितली, दायीं कोख में सुई चुभने जैसा दर्द, बैठे-बैठे तथा चलते-चलते सिर चकराने लगता है।


आँखें- पानी बहता रहता है, आँखें भारी और गरम महसूस होती है।


नाक- नाक सूखी, जुकाम व छींकें।


मुख- कसैला स्वाद, लार बहती रहती है, मुख ऐसा प्रतीत होता है जैसे गरम


कंठ- गरम खुश्क, खुरदरा, निगलते समय कानों में सुई चुभो दिये जानें पानी में जल गया हो जैसा दर्द।


आमाशय- पत्थर रखा होने की भार जैसी अनुभूति |


उदर- यकृत एवं नाभि में पीड़ा, पीलिया।


मलांत्र- मन्द-मन्द शुष्क तथा पीड़ाप्रद ।


मूत्र- बार-बार थोड़ा गाढ़ा।


वक्ष घुटन का महसूस होना, हृदय की क्रिया तेज और भारी।


बाह्यांग- हाथ पैरों में कसक एवं दुखन, गोली की तरह उभार तथा नीचे बाजुओं तक चली जाना।


पीठ- दोनों कन्धों के बीच मन्द-मन्द दर्द।


ज्वर- शाम को लगभग 4 बजे ठण्ड का महसूस होना।


मात्रा- मूलार्क से तीसरी शक्ति।



आक्सिट्रोपिस (Oxytropis)

आक्सिट्रोपिस (Oxytropis)


स्नायु संस्थान पर प्रभावी क्रिया करती है, कम्पन, खालीपन, मेरुदण्ड में रक्तसंचय, लड़खड़ाती चाल, अकेले रहने की प्रवृत्ति काम करने अथवा बात करने की अनिच्छा मानसिक हताशा चक्कर आना, उत्ताप की अनुभूति होना।


आँखें- पुतलियाँ सिकुडी हुई, नशे जैसी स्थिति।


आमाशय - डकारों से भरा शूल के समान चुभने जैसा शूलवत दर्द।


मलात्र- पाखाना जेली के थक्कों जैसा।


मूत्र -मूत्र के बारे में सोचने पर उसके वेग की अनुभूति।


पुरुष- काम की इच्छा अथवा शक्ति की कमी।


बाह्यांग - लड़खड़ाती चालू, पेंशियाँ दर्दनाक और कठोर, दर्द तेजी से आता


नींद- अस्थिर।


औषधि मात्रा- तीसरी से उच्चतर शक्तियाँ।



काक्युलस (Cocculus)

काक्युलस (Cocculus)

घोंघा या सीपी यह औषधि मस्तिष्क के लिए बड़ी ही प्रभावशाली औषधि है। यह रात्रि जागरण के अनेक दुष्प्रभावों को भी ठीक करती है गर्भावस्था में अधिक मितली एवं कमरदर्द में लाभकारी।


यह अविवाहित और निःसंतान, नाजुक स्त्रियों तथा प्रणयशील लड़कियों के लिए लाभकारी होती है। यह समुद्री यात्रा सम्बन्धी उपद्रवों से मुक्त करती है।


मन- अस्थिर, भारी तथा जड़, व्यक्ति विचारों की विभिन्नताओं में खोया रहता है। गाना गाने की इच्छा, सुन्नमति, शोकाकुल, प्रतिवाद सहने में असमर्थ, जल्दी-जल्दी बोलने की आदत होती है। दूसरों के स्वास्थ्य के बारे में बहुत चिन्तित रहता है।


सिर- चक्कर सिर मे


चेहरा- चेहरे की नाड़ियों का पक्षाघात, भोजन चबाने में ऐंठन जैसा दर्द। आमाशय मोटरगाडी, नाव आदि यात्रा करने के अथवा चलती नाव को देखने मात्र से मिचली की अनुभूति, सर्दी लगने से मितली बढ़ने लगती है। हिचकियाँ जम्हाइयाँ, भूख का अभाव, ठण्डे पेय पदार्थों को पीने की इच्छा। और मितली,


उदर- हवा से फूला हुआ।


पीठ- सिर हिलाने से गर्दन की कशेरुकाओं में कड़कड़ाहट।


बाह्यांग- चलते-फिरते समय घुटनों में कड़कड़ाहट।


नींद- जम्हाइयाँ, नींद न पूरी होने की दशा में लाभकारी।


ज्वर- शीतकम्प के साथ मितली तथा चक्कर आना, निम्न अंगों की शीतलता और सिर में गर्मी की अनुभूति ।


मात्रा- तीसरी से तीसवीं शक्तियाँ।



कार्बो वेजीटेबिलिस (Carbo Vegetabilis)

कार्बो वेजीटेबिलिस (Carbo Vegetabilis)


शरीर में ऑक्सीजन का अपूर्ण ऑक्सीकरण इस औषधि का प्रमुख लक्षण है। ऐसे रोगी में जीर्णता की प्रवृत्ति पायी जाती है, लगता है जैसे शरीर में रक्त संचार रुक गया हो। शरीर की रंगत नीली पड़ने लगती है। व्यक्ति की जीवनी शक्ति जब मन्द पड़ने लगती है तब यह औषधि विशेष उपयोगी मानी गयी है। ऐसा रोगी जो निर्जीव-सा लगता हो, सिर गरम, शरीर और श्वास ठण्डी, नाड़ी क्षीण, तेज श्वास चलने की उसे अनुभूति होती हो। ऐसे लक्षणों में यह औषधि बहुत ही प्रभावकारी होगी। इस रोग के होने से रक्तसंचार में बाधा पड़ती है, त्वचा नीली और हाथ पैर ठण्डे हो जाते हैं।


मन- अंधेरे से भय, और घृणा, याददास्त क्षीण होती है।


सिर- सिरदर्द से आक्रान्त होता है, सिर चकराने, मितली और कानों में गुंजन जैसे लक्षण प्रकट होते हैं।


चेहरा- फूला हुआ और नीला रंग लिए हुए। आँखें- काली-काली चित्तियाँ उड़ती दिखायी देती हैं।


कान- कान खुश्क हो जाते हैं।


नाक- नाक से खून भी गिर सकता है। जुकाम के साथ खाँसी हो सकती हैं।


मुख- जीभ सफेद रंग की, मसूड़ों में खून तथा मवाद आना।


आमाशय- डकारें, दम फूलने तथा पेट के अन्दर पानी भरने की अनुभूति, दुर्बलता और मूर्च्छा की अनुभूति ।


उदर- दर्द होता है जैसा बोझ उठाने से होता है।


मल- दुर्गन्धित, अपच, वायु निकलना ।


चर्म- नीला ठण्डा।


मात्रा- आमाशय की बीमारियों में पहली से तीसरी शक्ति तक हो औषधि दें।



कास्टिकम (Causticum)

कास्टिकम (Causticum)


यह औषधि जीर्ण आमवाती सन्धिवाती तथा पक्षाघाती रोगों के निराकरण हेतु विशिष्ट औषधि मानी गयी है। जहाँ जोड़ों का स्वाभाविक आकार बिगड़ने लगताहै. मांसपेशियाँ निर्बल होने लगती है तथा वृद्धजनों के लिए जिनका स्वास्थ्य नष्ट हो रहा हो तो यह अत्यन्त गुणकारी औषधि है। रात में बेचैनी के साथ जोड़ों


और हड्डियों का तीव्र दर्द तथा किसी अंग विशेष में उत्पन्न स्थानिक पक्षाघात में भी इसका उपयोग उचित माना गया है।


मन - व्यक्ति उदासी और निराश भावनाओं से ग्रसित बच्चा अकेला नहीं सोता है. चीखता है।


सिर- मस्तिष्क के बीच का भाग खाली लगता है।


चेहरा - जबड़ों में दर्द के कारण मुख खोलने में कठिनाई, दाय भाग में पक्षाघात


आँखें- पलकों में प्रदाह, आँखों के सामने चिनगारियाँ और काले धब्बे। कान- कानों के अन्दर घंटी बजने जैसी अनुभूति, टीस साथ में बहरापन।


नाक- जुकाम के साथ कंठ में कर्कशता, नाक में पपड़ियाँ। मुख- चबाने के समय भीतरी भाग को दाँतों से काट लेना, मसूड़ों में खून का बहना। आमाशय- मिठाई खाने में अरुचि, मुँह का स्वाद चिकना, अम्लज मंदाग्नि बनी रहती है।


मल- कठोर ठोस मल।


मूत्र- खाँसते समय मूत्र का अपने आप निकल जाना, पेशाब धीरे-धीरे उतरता है।


श्वास संस्थान- गले में कर्कशता के साथ छाती में दर्द। पीठ- कन्धों के बीचों-बीच अकड़न, गर्दन में दर्द।


चर्म- झुर्रीदार त्वचा।


नींव अत्यधिक।


मात्रा- तीसरी से तीसवीं शक्ति तक।



कैन्थरिस (Cantharis Spanist Fleg)

कैन्थरिस (Cantharis Spanist Fleg)


शरीर में उथल-पुथल पैदा कर देना तथा जननांगों को आक्रांत कर उनकी क्रिया को उलट देना। जलनयुक्त दर्द, मूत्र त्याग की अति इच्छा, गर्भकालीन पेट की गड़बड़ियाँ, मूत्राशय की उत्तेजना, यकृत सम्बन्धी और पेट सम्बन्धी रोग।


मन- अधीरता, क्रोध, बेचैनी, भंयकर प्रलाप, कुछ न कुछ करने का प्रयास करना, उग्र उन्माद, कामोन्माद, सम्भोग की प्रबल इच्छा, लाल चेहरा, आकस्मिक चेतना लोप सिर मस्तिष्क में जलन, चक्कर खुली हवा में अधिक आँखें आँखों में जलन, पीली दृष्टि आग जैसी चमकती हुई।


चेहरा पीला, दुःखी तथा चेहरे पर फुन्सियाँ। कठ- जीभ में छाले, मुँह गले में जलन, मुह के अन्दर छाले, कंठ प्रदाह


वक्ष- श्वास काट, तीव्र धड़कन, सूखी खाँसी, जलन के साथ दर्द।


आमाशय - आमाशय में जलने की अनुभूति, न बुझने वाली प्यास, कॉफी पीने से रोग बढ़ता है ।


मल- पेचिश, स्वणिक मल मळव्यांग के बाद जलन


मूत्र- मूत्र त्याग की अधिक इच्छा, बूँद-बूँद करके मूत्र का निकलना, पेशाब लप्सी जैसा छीछालेदार।


पुरुष- सम्भोग की प्रबल इच्छा।


स्त्रियाँ- कामान्माद, ऋतु स्राव नियत समय से बहुत पहले।


श्वास संस्थान- ध्वनि मन्द, छाती में सुई जैसी चुभन


हृदय नाडी दुर्बल, धड़कन


पीठ- कमर दर्द, हाथ पैर ठण्डे, पसीना, रात को तलुवों में जलन। मात्रा- छठी से तीसवीं शक्ति तक।



कैप्सिकम (Capsicum)

कैप्सिकम (Capsicum)


लाल मिर्च ( Cayenne Pepper) एक रक्त बहुल सुस्त, शीत प्रधान औषधि, मोटे व्यक्ति जो शारीरिक श्रम कतराते हैं, अकर्मण्य, रोजमर्रा का धन्धा छोड़कर कोई अन्य काम नहीं करना चाहते, शरीर साफ-सुथरा नहीं रखते, जलन से होने वाली दर्द से आक्रान्त, शीत का प्रकोप, मन्दबुद्धि प्रतीत होते हैं, प्रतिक्रिया प्रदर्शित नहीं करते। मन अत्यधिक चिड़चिड़ापन, होम सिकनेस के साथ अनिद्रा, आत्महत्या करने की प्रवृत्ति, अकेले रहना अच्छा लगता है, तेज स्वभावा सिर सिर दर्द खाँसने से ज्यादा बढ़ता है, गाल तथा चेहरा लाल, चेहरा ठण्डा। कान कानों में जलन, डंक लगने जैसी अनुभूति, कानों के पीछे सृजन और दर्द।


कठ उत्ताप की अनुभूति, जलन के साथ सिकुड़न तालु प्रदाहित। मुख- मुँह से असहनीय भारी बदबू।


आमाशय- जीभ की नोक पर जलन, उत्तेजक पदार्थों के सेवन की तीव्र इच्छा, वमन अत्यधिक प्यास पानी पीते ही शरीर में कंपकंपी।


मल - मल त्याग के दौरान पीड़ा, रक्तिम श्लेष्मा के साथ जलन, मल त्याग के बाद कमर में खिंचाव के साथ दर्द, मल त्याग के बाद प्यास और कंपकंपी


मूत्र - बार-बार बंद बंद करके निकलता है।


श्वास संस्थान - वक्ष में सिकुड़न, खसरा, सूखी खाँसी, खाँसते समय दूरस्थ अंगों में पीड़ा


बाह्यांग- कुल्हे से पैर तक दर्द, घुटने में तेज दर्द।


ज्वर- ठण्ड का लगना, पानी पीने के बाद शीत कम्पन्न ठण्ड पीठ से आरम्भ होती है, गर्मी पहुँचाने से राहत, शीत प्रकोप के पहले प्यास खुली हवा में वृद्धि।


मात्रा- तीसरी से लेकर छठी शक्ति तक

कैमोमिला (Chamomilla)

कैमोमिला (Chamomilla)


इस औषधि का सम्बन्ध मानसिक और भावोद्वेगी वर्ग से जुड़ा है। यह बाल रोगों


से सम्बन्धित है। जहाँ बेचैनी, चिड़चिड़ापन और उदर शूल की प्रधानता रहती है। जब रोगी स्वभाव से नरम, शान्त और शिष्ट हो तो कैमोमिला का प्रयोग न करें। कैमोमिला का रोगी असहिष्णु, प्यासा, गरम और सुन्न होता है। रात में पसीना ज्यादा आता है।


मन- कुढ़न और बेचैनी, बच्चा अनेक चीजों की माँग करेगा और मिलने पर इनकार भी कर देगा। उसे जरा भी दर्द सहन नहीं होता है।


सिर- मस्तिष्क के आधे भाग में टीस के साथ दर्द होती है। सिर के पीछे की ओर झुकने की प्रवृत्ति, कर्णशूल के साथ दुःखन, गर्मी के मारे रोगी पागल सा होने लगता है। सुई गड़ने जैसा दर्द होता है।


कान- कानों में घंटी बजने जैसी आवाज होती हैं। कान में गर्मी और सूजन के मारे रोग बहुत परेशान हो उठता है।


आँखें- पलकों में सहसा डंक लगने जैसा दर्द। पलकों में अकडन की अनुभूति होती है।


नाक- किसी भी प्रकार की गन्ध सहन नहीं होती जुकाम का प्रकोप चना रहता है।


चेहरा एक गाल लाल और गरम दूसरा पीला और ठण्डा, दाँत दर्द, जबड़ों में सुई चुभने जैसा दर्द जो कान और दाँत तक फैल जाता है।


कंठ- गले में घुटन का सा दर्द।


मुँह- रात को मुँह से लार टपकती है।


आमाशय गन्दी डकार बहुत ज्यादा आती है। गरम पेयों से अरुचि रहती है। जीभ पीली स्वाद कड़वा खट्टी डकारें पित्त वमन पेट दर्द


उदर- पेट फूला हुआ।


मल - गरम हरा पानी सा पतला।


पीठ- कमर दर्द।


नींद - नींद में रोता है, आँखें अधखुली रहती है, डरावने सपने आते हैं। मात्रा- तीसरी से तीसवीं शक्ति।

कल्केरिया कार्बोनिका (Calcarea Carbonica)

कल्केरिया कार्बोनिका (Calcarea Carbonica)

यह एक महान औषधि है। इसकी प्रमुख क्रिया शरीर के पोषण सम्बन्धी और निर्माणक अंगों पर प्रमुखतः केन्द्रित होती है। कुपोषण का प्रतिकार करती है ग्रन्थियों, त्वचा तथा हड्डियों में परिवर्तन लाने में विशेष सक्षम मानी गयी है। ग्रन्थियों का फूल जाना, कंठमाला, फुफ्फुसीस यक्ष्मा की प्रारम्भिक अवस्था, मितली, अम्लपित्त, श्वास उखड़ना हड्डियों का टेढ़ापन, पिटूटरी तथा थायरायड ग्रन्थियों की दुष्क्रिया। इस औषधि से रक्त जमने की क्षमता बढ़ती है तथा रक्त स्राव को रोकती है।


मन- व्यक्ति संक्रामक रोग होने की आशंका से ग्रस्त, भुलक्कड़ भ्रान्त हतोत्साह, अधीरता धड़कन काम करने से जी चुराना।


सिर- सिरदर्द के साथ हाथ-पैर ठण्डे सिर भारी और गरम महसूस होना, चेहरा पीला पड़ना, सिर की दायों ओर वर्ण जैसी ठण्डक सिर पर पसीना, जागने पर सिर का खुजलाना।


आँखें- प्रकाश सहन नहीं होता, प्रातः अश्रुप्रवाह और खुली हवा में दूर की चीजों का साफ दिखायी देना।


कान- कानों में कड़कडाहट, सुई चुभने जैसी अनुभूति ऊँचा सुनायी देना, कान और गरदन के पास सर्दी का सहन न होना। नाक सूखी नाक में दुर्गन्ध नजले जुकाम की शिकायत ।


चेहरा- ऊपर से होठ सूजा हुआ, आँखें धँसी हुई।


मुख- निरंतर खट्टा स्वाद, रात को जीभ का सूखना, मसूड़ों में रक्त स्रावा कंठ खखारने पर बलगम आता है, निगलने में कठिनाई होती है।


आमाशय- न पचने वाली चीजें जैसे कोयला, खडिया, अण्डा नमक मिठाई खाने की इच्छा, दूध-अरुचिप्रद, खट्टी डकारें कलज में जलन, राक्षसी भूख. ठण्डा पानी पीने की इच्छा।


उदर- जरा सा भी दबाव सहन नहीं झुकने से यकृत प्रदेश में दर्द, पेट सूजा हुआ कमर पर तंग कपडा सहन नहीं।


मल- मलांत्र में रेंगन और सिकुड़न, पाखाने की रंगत सफेद, पानी सा पतला। मूत्र गहरे रंग का अधिक मात्रा में


पुरुष- बार-बार वीर्यपात, कामेच्छा बढ़ी हुई शीघ्रपतन ।


स्त्री- ऋतु स्राव के पहले दर्द, गर्भ आसानी सा रह जाता है, स्तनों में दूध का अधिक आना।


श्वास संस्थान- रात में खाँसी का कष्ट, अत्यधिक बलगम, अत्यधिक स्वास


कष्ट, केवल दिन में ही बलगम आना।


हृदय छाती में धड़कन, छाती में बेचैन कर देने वाली घुटन।


पीठ- कमर दर्द, गर्दन का पिछला भाग अकड़ा और कठोर। बाह्यांग- संधिवाती दर्द का होना, पैर ठण्डे, घुटने ठण्डे, पैरों में पसीना, जोड़ों की सूजन, तलुओं की जलन।


नींद- नींद ठीक से नहीं आती रात को बार-बार जागता है, रात को भयानक स्वप्ना ज्वर- दोपहर बाद 2 बजे सर्दी लगती है जो पेट के अन्दर से शुरू होती है।


रात में सिर गर्दन छाती में अधिक पसीना।


चर्म- अस्वस्थ, झुर्रीदार, चेहरे और हाथों पर मस्से ।


नोट- बायो कल्के के बाद सल्फर नहीं देना चाहिए। मात्रा छठी शक्ति का विचूर्ण तीसवीं तथा इससे भी ऊँची शक्तियाँ, बूढों को औषधि बार बार दें।



कल्केरिया फास्फोरिका (Calcaria Phosphorica)

कल्केरिया फास्फोरिका (Calcaria Phosphorica)


इसके बहुत सारे लक्षण कल्केरिया कार्बो से मिलते हैं, फिर भी कुछ बातों में बहुत अन्तर भी है। बच्चों के दाँत देर से निकलना तथा निकलते समय अनेक शिकायतें होना। टूटी हुई हड्डियों का न जुड़ना, रक्ताल्प बच्चे, चिड़चिड़े शरीर थुलथुला, पाचनशक्ति कमजोर


मन- चिड़चिड़ा, भुलक्कड़, हमेशा कहीं न कहीं जाना चाहता है।


सिर- सिरदर्द, सिर गरम, चालों की जड़ों में हल्की जलन। आँखें सफेद


उदर- खाने की चेष्टा में दर्द


मल- हरा चिकना।


मूत्र - बढी मात्रा में |


गर्दन पीठ- ठण्डी हवा का झोका लगने से आमवाती दर्द।


बाह्यांग- हड्डियों के जोड़ों में दर्द, सीढ़ियाँ चढ़ने में थकान। यह गुर्दे में पथरी बनने की प्रवृत्ति को रोकती है।


मात्रा- पहली से तीसरी शक्ति के विचूर्ण।

कल्केरिया फ्लोरिका (Calcaria Fluorica)

कल्केरिया फ्लोरिका (Calcaria Fluorica)


कठोर पत्थर जैसी ग्रन्थियाँ, प्रबुद्ध शिराओं तथा हड्डियों के उपचार हेतु शक्तिशाली दवा, स्त्रियों के स्तनों में कठोर गाठें पड़ जाती है। मोतियाबिन्द में लाभकारी, धमनी काठिन्य को रोकती है, शल्यक्रिया के बाद लाभकारी।


मन- गहन विषाद से भरा।


सिर- कड़कड़ाहट की आवाज ।


आँखें- मोतियाबिन्द |


कान- कानों में घटियाँ बजने जैसी टनटनाहट।


नाक- सिर में ठण्ड


चेहरा- कठोर सूजन के साथ दर्द।


मुँह- जीभ फटी-फटी सी ।


कठ- कंठ में दर्द और जलन।


आमाशय- थकान और दिमागी कमजोरी के कारण मन्दाग्नि।


मल और मलद्वार- गठिया से पीड़ित रोगियों को दस्त मलद्वार की खुजली, खूनी बवासीर ।


श्वास संस्थान- कंठ की कर्कशता, खाँसी।


गर्दन और पीठ- कमर का दर्द, चलना आरम्भ करते ही बढ़ जाता है।


नींद- स्पष्ट सपने, किसी संकट की संभावना। चर्म- त्वचा एकदम सफेद, हथेलियों पर दरारें या त्वचा की कठोरता।


मात्रा- तीसरी शक्ति से बारहवी शक्ति के विचूर्ण।

कैल्केरिया सल्फ्यूरिका (Calcaria Sulphurica)

कैल्केरिया सल्फ्यूरिका (Calcaria Sulphurica)


इस औषधि के क्षेत्र में ऐसी प्रतिस्रावी अवस्थायें आती है, जिनमें मवाद बहना आरम्भ हो गया हो, श्लैष्मिक स्राव प्रायः पीले और गाढ़े होते हैं। इस औषधि के प्रभाव में छाजन, सूजन तथा पुटी, आर्बुद भी आते हैं। सिर- बच्चों के गंजे सिर में पीव का बहना।


आँखें- आँखों में प्रदाह के साथ पीला श्लैष्मिक स्राव । कान- बहरापन तथा मध्य कान में स्राव होता है। कानों के चारों ओर फुन्सियाँ होती हैं।


नाक नाक के द्वारों से पीला स्राव होता है। नथुनों के किनारे दर्द से परिपूर्ण होते हैं।


चेहरे- चेहरे पर दाद, कोलें और फुन्सियाँ होती हैं।


मुख- जीभ थुलथुली, खट्टा स्वाद, जिह्वा मुख पर पीली परत का जमना


उदर- आमाशय में दर्द तथा यकृत प्रदेश में भी पीड़ा ।


मल- दस्त जिसमें खून मिला।


बाह्यांग- पैरों के तलुओं में जलन तथा खुजली।


ज्वर- मवाद बनने के कारण उत्पन्न ज्वर।


चर्म- कटे-फटे घाव, गन्दी मवाद बहती है, घाव जल्दी नहीं भरते हैं तथा


पौली- फुन्सियाँ त्वचा पर उभरी रहती हैं।


मात्रा- दूसरी और तीसरी शक्ति का विचूर्ण ।

कन्वैल्लेरिया मैजालिस (Convallaria Majalis)

कन्वैल्लेरिया मैजालिस (Convallaria Majalis)


यह एक हृदय औषधि है जो हृदय को शक्ति देती है तथा उसे नियमित और सबल बनाती है। जब हृदय के रक्त संचार में अत्यधिक शिथिलता तथा अवरोध उत्पन्न हो गया हो, श्वास कष्ट और स्नायु दौर्बल्य तथा श्वास कष्ट तीव्रता से हो, तब इस औषधि का प्रयोग अति लाभदायक होता है।


मन- बुद्धि मन्द पड़ जाती है।


सिर- मन्द-मन्द सिरदर्द होता रहता है जो खंखारने या सीढ़ियाँ चढ़ने में बढ़ता है।


चेहरा- ओठा और नाक पर फुन्सियाँ।


मुख- कसैला स्वाद तथा जीभ में दर्द।


कठ- श्वास लेते समय कष्ट का अनुभूति।


उदर- कपड़े तंग और कसे हुए मालूम पड़ते हैं। शूल प्रकृति की पीड़ा होती रहती है।


मूत्र- मूत्राशय में मन्द मन्द दर्द।


हृदय- ऐसा लगता है कि दिल सारी छाती में धड़क रहा है। लेटकर श्वास लेने में कष्ट


बाह्यांग- कमर के निचले भाग में दर्द, कलाइयों और टखनों में भी दर्द का होना। ज्वर- कमर और सारी रीढ़ में ज्वर तथा हल्का पसीना। मात्रा- तीसरी शक्ति, हृदय सम्बन्धी समस्याओं में एक से पन्द्रह बूँद की मात्रा।



कोनियम (Conium) प्वाइजन हेमलाक

कोनियम (Conium) प्वाइजन हेमलाक


सुकरात को यही विष देकर मारा गया था। इसमें पक्षाघात की अवस्था प्रकट होती है, जो नीचे से ऊपर की ओर चढ़ता है जिससे श्वास प्रणाली काम करना छोड़ देती है और रोगी की मृत्यु हो जाती है।


इन रोगों के उपचार में जैसे चलने-फिरने में कठिनाई अथवा चलने फिरने


की शक्ति का सहसा नष्ट हो जाना, पैरों में दर्दनाक अकड़न दुर्बलता, थकान,


शिथिलता के लक्षण, रोगभ्रम, पेशाब की बीमारियाँ, स्मरणशक्ति का कमजोर पड़ जाना, कामागों की दुर्बलता आदि बीमारियाँ इस औषधि के प्रभाव के अन्तर्गत आती है। यह औषधि इन्फ्लूएंजा के बाद आने वाली दुर्बलता को तत्काल दूर करती है।


मन- मानसिक अवसाद एवं उत्तेजना, स्मरणशक्ति, दुर्बल, जरा सा भी


मानसिक- श्रम सहन नहीं होता।


सिर- चक्कर महसूस होता है भोजन के बाद कष्ट में बढ़ोत्तरी, सिर के पीछे वाले भाग में मन्द-मन्द दर्द।


आँखें- अश्रुप्रवाह, धुंधली दृष्टि, प्रकाश सहन नहीं।


कान- दोषपूर्ण श्रवण शक्ति, कान में खून जैसा स्राव ।


नाक- नाक दुखती है, नकसीर का होना। आमाशय जीभ की जड़ में पीड़ा और जलन कलेजे में भी भारी जलना


उदर- जिगर और उसके आसपास दर्द, पुराना पीलिया।


मल- मल त्याग की बार-बार इच्छा। मूत्र अधिक कठिनाई से उतरता है।


पुरुष- सम्भोग की इच्छा बढ़ जाती है, किन्तु कामशक्ति घट जाती है। स्त्री- ऋतुनाव नियत समय के बहुत बाद तथा कम मात्रा में स्तनों मे दर्दनाक पीड़ा।


श्वास संस्थान- सूखी खाँसी, छाती में सिकुड़न तथा दर्द।


पीठ- पीठ में दर्द, कमर के निचले भाग में दर्द। बाह्यांग- थकने जैसा, लकवा भार गया हो, हाथों में पसीना।


चर्म- सारे बाजू में सुन्नपन की अनुभूति, त्वचा में डंक लगने सा दर्द,


नींद- आते ही पसीना का आना।


मात्रा- छठी से तीसवीं शक्ति तक।

ग्रेफाइटिस (Graphitis) काला सीसा (Black Lead)

ग्रेफाइटिस (Graphitis) काला सीसा (Black Lead)


ऐसे लोगों के लिए उपयोगी जो गौर वर्ण और बलिष्ठकाय हो। वे स्थूलकाय शीतप्रधान तथा कब्जियत से पीड़ित रहते हैं।


मन- डरपोक, निर्णय में अक्षम, चौंकने वाले तमतमाया चेहरा, संगीत सुनकर रो पड़ना, शंकालु भयातुर तथा निराशा की प्रवृत्ति ।


सिर- अधिक रक्त का बहाव, नकसीर, प्रातः जागने पर सिरदर्द, कपाल शीर्ष में जलना आँखें पलकें लाल सूजी हुई।


कान- खुश्की, शोरगुल अच्छा लगता है, ऊँचा सुनाई देता है।


नाक- दर्द का अहसास फूलों की सुगन्ध सहन नहीं होती है।


चेहरा- ऐसा लगता है जैसे मकड़ी का जाल तना हो, जलन और डंक लगने जैसी अनुभूति।


आमाशय- मिष्ठान खाने से मितली. गरम पेय अरुचिकर, दूध पीने से राहता


उदर- पूर्णता और भारीपन का अहसास।


मल- कब्जियत रहना।


मूत्र- गंदला और खट्टी गन्ध वाला। स्त्री सम्भोग के प्रति अरुचि, प्रदर स्राव पीला पतला।


पुरुष- रति दूर्बल्य, शीघ्रपतन, वीर्य स्खलन का अभाव।


श्वास वृक्ष की सिकुड़न, खाँसी। बाह्यांग गर्दन के जोड़, पीठ तथा कन्धों में दर्द, भारी दुर्बलता, नाखून मोटे काले खुरदरे, पैरा में दुर्गन्धित पसीना।


चर्म- खुरदरी कठोर, फुन्सियाँ मुहासे, पैरों की सूजन।


मात्रा- छठी से तीसवीं शक्ति तक।



ग्लोनाइन (Glonoine)

ग्लोनाइन (Glonoine)

अत्यधिक गर्मी, सिरदर्द तथा सदी के कारण होने वाले मस्तिष्क के ऊपरी भाग में रक्त संचय की एक विशेष गुणकारी औषधि है। अत्यधिक चिडचिड़ापन, सहसा उत्तेजित हो जाना, भारी आलस्य, सिर और हृदय की ओर रक्त का तेज बहाव, सारे शरीर में दर्द की अनुभूति, ठण्डे तथा सिकुड़े अंग आदि की परेशानी में इस औषधि का बहुत उपयोग होता है।


सिर- सिर के ऊपर गर्मी, सिर में भारीपन, सिर नंगा रखने से आराम, अत्यन्त चिडचिडा स्वभाव वाला, सिर में झटके लगते हैं, सिर की ओर खून के तेज बहाव के कारण रक्ताघात की आशंका।


आँखें- अक्षर छोटे दिखायी देते हैं, आँखों के आगे चिनगारियाँ तैरती दिखायी देती हैं।


मुख- टीस तथा दाँतों में पीड़ा।


कान- टीस, हृदय की धडकन कानों में गूँजती


चेहरा- गरम नीला, पीला, तमतमाया हुआ।


कंठ- घुटन का अनुभव, कानों के नीचे सूजन।


आमाशय- खालीपन की अनुभूति मितली और वमन अस्वाभिक भूख।


स्त्री- ऋतुस्राव देर से होता है। हृदय हृदय की ओर रक्त का अधिकता से बहाव मुछा के दौरे पड़ने लगते हैं। बाह्यांग सारे शरीर में खुजली, कमर दर्द तथा वायी बाजू में दर्द की अनुभूति।


रूपात्मकताये- प्रातः छह बजे से दोपहर तक बायों और वृद्धि का अनुभव होना, दमा, हृदय शूल तथा हृत्पात में भी प्रयोग लाभकारी, यह एक आपात्कालीन औषधि है।


मात्रा- छठी से तीसरी शक्ति तक।



ग्लिसरीनम् (Glycerinum )

ग्लिसरीनम् (Glycerinum )


शक्तिकृत ग्लिसरीन का होमियोपैथिक उपचार में भी प्रयोग किया जाता है। यह


शारीरिक और मानसिक दुबलता, मधुमेह आदि के उपचार में प्रभावी औषधि मानी गयी है।


सिर- टीस के साथ सिर में दर्द होती है सिर भरा हुआ महसूस होता है। विशेषकर सिर का पिछला भाग।


नाक- बन्द, छींकें तथा नजला, नाक के पिछले द्वारों में दर्द का अहसास। सीना- खाँसी और कमजोरी की अनुभूति।


मूत्र- बार-बार पेशाब होना और वह भी अधिक मात्रा में, गुरुत्व और शर्करा की मात्रा बढ़ी हुई, मधुमेह ।


बाह्यांग- आमवाती दर्द, पैर गरम और बढ़े हुए प्रतीत होते हैं। मात्रा- तीसवीं से उच्चतर शक्ति वाली।



चेलीडोनियम मेजस (Chelidonium Majus)

यकृत रोगों की यह प्रमुख औषधि है तथा यकृत के प्रायः सभी विकारों के निराकरण में इसका प्रभावी योगदान होता है। त्वचा पीली होती है और दायें कन्धे में दर्द की अनुभूति होती रहती है। सारे शरीर में शिथिलता रहती है।


सिर गरदन की जड़ से लेकर सारे शरीर के पिछले भाग में बर्फ जैसी ठण्डक का अहसास, भारी सुस्ती, आगे की ओर गिरने की प्रवृत्ति, सिर के दायें भाग में दर्द, जो नीचे कानों के पीछे तथा कन्धों के जोड़ों तक फैलता है। यकृत में दर्द।


नाक- नथुनों का बार बार फड़कना ।


आँखें- पीलापन, ऊपर देखने में कष्ट, अश्रुप्रवाह में तीव्रता ।


चेहरा- पीलापन, झुर्रियाँ


आमाशय- गरमागरम चीजें खाना ज्यादा प्रिय, खा लेने से पेट दर्द में कुछ कमी। उदर यकृत और पित्ताशय में रुकावट, पीलिया यकृत बढ़ा हुआ, पित्त कोश की पथरियों की सभावना।


मूत्र- अधिक मात्रा में।


मल- कठोर, मलद्वार में जलन और खुजली।


श्वास संस्थान- श्वास कष्ट, काली खाँसी, छाती के दायें भाग में और कन्धे में दर्द तथा श्वास लेने में कठिनाई, कठिनाई से निकलने वाला बलगम, छाती में घुटन


पीठ- गर्दन की जड़ में दर्द का होना, बायें कन्धे में निम्न कोण में दर्द, सिर बायीं और खिचा जाता है। बाह्यांग बाजू हाथ कन्धे और अँगुलियाँ बर्फ जैसे ठण्डे। दायीं ओर अधिक कष्ट का होना।


चर्म- त्वचा, सूखी रंगत-पोली, झुर्रियाँ पड़ना, फुन्सियों और दाने आमतौर से सल्फर इसके अपूर्ण कार्य को पूरा करती हैं। मात्रा- मूलार्क और निम्न शक्तियाँ।



जिंकम मेटालिकम (Zincum Metallicum)


फीका चेहरा, ताप की कमी, जीर्ण के साथ मस्तिष्क एवं मेरुदण्ड के लक्षण दिखायी पड़ते हैं, कम्पन्न, स्फुरण दर्द मानो त्वचा और मांस के बीच।


मन- स्मरणशक्ति कमजोर, काम और बातचीत में अरुचि, शोरगुल असहाय, विषादोन्माद, आलसी। सिर- लगता है कि जैसे बायीं ओर गिर पड़ेगा, तकिया के अन्दर सिर का गड़ाना अच्छा लगता है, सिर में गर्जना, माथा ठण्डा, भयभीत रहना।


आँखें- अश्रुनाय, खुजली, पलकों का लटक जाना, आँखों की पुतलियाँ घूमना, धुंधली दृष्टि, तीव्र सिर दर्द।


कान- सुई गड़ने जैसी वेदना, बाहरी सूजन।


नाक- अन्दर की ओर घाव होने की अनुभूति।


चेहरा- मुँह के कोने फटे होंठ फीके, ठोड़ी पर लाली।


मुख- दाँत पोसना, दाँत ढोले, जीभ पर फफोले, पैर ठण्डे।


कठ- सुखा, भोजन निगलते समय दर्द।


आमाशय- मितली, हिचकी, राक्षसी भूख, छाती में जलन उदर हलके भोजन के बाद भी दर्द का अहसास।


मूत्र- मूत्र रोध, खाँसते छींकते समय मूत्र स्त्राव का हो जाना। मलांत्र कठोर, छोटा, कब्जियत।


पुरुष- अण्डकोश सूजे।


स्त्री- डिम्बकोषिय वेदना, बेचैनी, हताशा, ठण्डक


श्वास- छाती में सिकुड़न, वेदना, बलगम निकलने से श्वास कष्ट में आराम।


पीठ- कमर दर्द।


बाह्यांग- चंचलता कम्पन्न, दुर्बलता, विवाई फटना, स्कन्ध पलकों में भारी वेदना।


नींव- नींद में चिल्लाता है, झटके लगते है।


मात्रा- दूसरी से छठी शक्ति।



जेल्सीमियम (Gelsimium)

जेल्सीमियम (Gelsimium)


स्नायुजाल (Nervous System) से सम्बन्धित यह औषधि बहुत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। मन्द नाड़ी, थकान मनोविरक्ति, पक्षाघात, शिथिलता, अवसन्नता, पेशी समन्वय का अभाव आदि में प्रभावी, ठण्डी तथा नमी के कारण अनेक शिकायतें ।


मन- शान्त और अकेला रहना चाहता है। आलसी, लापरवाही, थकानयुक्त, शैथिल्य स्वभाव का, भावोद्वेग उत्तेजना वाला, भयातुर, बच्चा चौंकता है।


सिर- चक्कर, सिर के पीछे भाग में दर्द, धीमा धीमा भारी दर्द, कनपटी में भी दर्द की अनुभूति, सिर को तकिये के ऊपर ऊँचा उठाकर रखना चाहता है। आँखें पलकें भारी द्विगुण दृष्टि, धुंधली दृष्टि


नाक- छीकें, नासिका में रुक्षत, मन्द मन्द सिरदर्द और ज्वर।


चेहरा- तमतमाया हुआ, भारी गरम, मन्द दृष्टि, ठोढी काँपती है।


मुख- पीली कम्पायमान, जीभ सुन्न, लकवाग्रस्त ।


कठ- निगलने में कठिनाई, कोमल तालु में खुजली और गुदगुदी, कंठ से लेकर कान तक दर्द।


आमाशय- हिचकी शाम को अधिक, अन्दर खालीपन और दुर्बलता की अनुभूति।


मल- भय और बुरे समाचार से दस्त की अवस्था, चाय की पत्ती की तरह हरा मला


मूत्र- काफी मात्रा में।


श्वास संस्थान- मन्द, छाती में घुटना हृदय धड़कन, नाडी कोमल दुर्बल।


बाह्यांग- पेशी नियन्त्रण शक्ति का अभाव।


नींद- पूरी नींद नहीं आती है।


मात्रा- मूलार्क से लेकर तीसवीं शक्ति तक।

टुबर कुलीनम (Tuber Culinum)

टुबर कुलीनम (Tuber Culinum)


यक्ष्मा विषजनित पदार्थ क्षयरोग चिकित्सा में बहुत उपयोगी औषधि है। रोगी सदैव थका हारा, अत्यधिक संवेदनशील मानसिक रूप से भी दुर्बल, स्नायविक कमजोरी।


मन- उन्माद, अनिद्रा और गहन निद्रा, चिड़चिड़ा सोकर उठते समय हताश, कासना और कसम खाने की आदत।


सिर- तीव्र स्नायु शूल, सिरदर्द, तीव्र वेदना, बहुमूत्रता, भयभीत, नाक में फोड़ा निकलना ।


कान- दुर्गन्धमय स्राव, टेढ़े-मेढ़े किनारे ।


आमाशय- खालीपन की अनुभूति, ठण्डा दूध पीने की इच्छा।


उदर- मल गाढ़े कत्थई रंग का दुर्गन्धयुक्त तथा बहुत तेजी से निकलता है।


स्त्री- ऋतुस्राव नियत समय से बहुत पहले, बहुत मात्रा में। श्वास बलगम गाढ़ा सरलतापूर्वक निकलता है।


छाती- दम घुटने जैसी अनुभूति, प्रचुर पसीना और वजन घटना, सारी छाती में कर्कश ध्वनियाँ।


पीठ- कन्धों के बीच या पीठ के ऊपर जाड़ा लगना।


नींद- अतिशीघ्र जाग पड़ना, नींद दिन में भी आती है। बेचैन कर देने वाले सपने आते हैं।


ज्वर- प्रचुर पसीना, अल्प विरामी ज्वर।


मात्रा- टुबर कुलीनम को बार बार प्रयोग करने की आवश्यकता होती हैं। ऐसी स्थिति में किसी योग्य चिकित्सक के सलाह पर ही औषधि की मात्रा का निर्धारण करता उपयुक्त होगा।



टिलिया (Ptelea)

टिलिया (Ptelea)


यह यकृत रोगों और आमाशय की बहुत ही उत्कृष्ट दवा है। यकृत प्रदेश में भारीपन को बड़ी अनुभूति होती है। जो वाय करवट लेटने से बढ़ने लगती है।


सिर- माथे ले लेकर नाक की जड़ तक दर्द, माथे में दर्द, कनपटियों में दबाव निष्क्रियता और थकावट का अनुभव।


मुख- अत्यधिक लाल स्राव, सूखा कड़वा स्वाद, जीभ खुरदरी सूखी, काँटेदार और लाल।


आमाशय- मरोड, डकारें, मितली, वमन, ताप और जलन की निरन्तर अनुभूति होती रहती है। भोजन के उपरान्त भी आमाशय खाली प्रतीत होता है। आमाशय के साथ अंगों में भी दर्द बना रहता है।


उदर- दायें भाग में दर्द और बहुत भार की अनुभूति, दायीं ओर लेटने पर आराम, यकृत सूजा हुआ पेट भीतर की ओर धँसा हुआ। श्वास प्रश्वास दमा, श्वासकष्ट, हृदय में एंटनयुक्त पीडा।


नींद- अस्थिर दुःस्वप्न, जागने पर थकावट की अनुभूति, बायीं करवट लेटने में ऊषा काल में वृद्धि होती है।


मात्रा- पहली से तीसवीं शक्ति तक रोगी को ध्यान में रखकर निर्धारित करें।



टाबैकम (Tabacum)

टाबैकम (Tabacum)


तम्बाकू मितली, घुमनी, वमन, बर्फ-सी ठण्डक और पसीना, पेट ठण्डा, दस्त, अल्परक्तचाप, कंठ, वक्ष, मूत्राशय की सिकुड़न, पीलिया तथा दम फूलना।


मन- हताशा, अतृप्त, भुलक्कड़, जीवन की व्यर्थता की अनुभूति ।


सिर- चक्कर, मितली, आकस्मिक दर्द, आँख, नाक और मुख के स्रावों में बढोत्तरी ।


आँखें- दृष्टि धुंधली, काले धब्बे दिखना ।


चेहरा- नीला, धँसा हुआ फीका । कंठ- प्रातःकालीन खाँसी, गले में खराश, वमन


आमाशय- मितली, वमन, जठरशूल, बायीं बाँह में दर्द


मलांत्र- कब्जियत, दस्त, ठण्डा पसीना।


मूत्र- मूत्रनलियों में अवरोध तथा भयंकर वेदना ।


हृदय- बायीं करवट लेटने पर धड़कन।


श्वास संस्थान- वक्ष में कष्टकर भयकर सिकुड़न, वायों करवट लेटने पर बाँह के नीचे चुनचुनी। नींद अनिद्रा


ज्वर- जाड़े के साथ ठण्डा पसीना, हाथ-पैर बर्फ जैसे ठंडे


मात्रा- तीसरी से तीसवीं तक।



डल्कामारा (Dulcamara )

मौसम की नमी तथा भीगने के बाद होने वाले सर्दी, जुकाम, दस्त आदि में प्रभावी त्वचा निष्क्रिय अंग-उपागों में अधिक स्राव, रक्तसंचयों सिरदर्द, सूखी नाक तथा नाड़ी शूल।


सिर- पिछले भाग में दर्द, बात करने से सिरदर्द में राहत, ठण्डे मौसम में सिर का पिछला हिस्सा ठण्डा तथा भारी सिर के अन्दर भिनभिनाहट होती है।


नाक- नाक पूर्णतया बन्द हो जाती है। सूखा नजला, ठण्डी हवा लगने से भी नाक बन्द हो जाती है।


आँखें- सर्दी जुकाम से आँखें भी प्रभावित होने लगती है।


कान- भिनभिनाहट, कानदर्द, सुई जैसी चुभन ।


चेहरा- दर्द, तीव्र भूख।


मुख- लार चिपचिपी, खुरदरी जीभ, स्नायुशूल, जरा सी ठण्ड लगने से कष्ट बढ़ जाता है।


उदर- ठण्ड लगने से उदरशूल।


मल- हरा, पनीला। मूत्र- ठण्ड लगने से मूत्र त्याग करना पड़ता है।


श्वास- संस्थान खाँसी जो भीगे मौसम में बढ़ जाती है। सर्दियों की खाँसी, दमा के साथ श्वास कष्ट ।


पीठ- गर्दन पर अकड़न, कमर में पीड़ा।


बाह्यांग- पक्षाघात, पैर बर्फ जैसे ठण्डे, हथेलियों पर पसीना।


चर्म- ग्रन्थि शोथ छोटे-छोटे फोड़े, लाल-लाल धब्बे।


पूरक दवा- वैराइटा कार्बोनिका ।


मात्रा- दूसरी से तीसरी शक्ति तक।



डिजिटेलिस (Digitalis)

डिजिटेलिस (Digitalis)


यह एक प्रभावशाली दवा है जो उन सभी रोगों पर प्रभावशाली ढंग से काम करती है, जो प्रमुख रूप से हृदय आक्रान्त हो। जहाँ हत्पेशियों की दुर्बलता, नाड़ी दौर्बल्य जैसी शिकायतें हों। जब हृदय अपने अपकर्ष को रोकने में लाचार हो मन्द नाडी एवं एक अत्यधिक दुर्बलता का अहसास होता हो तब यह औषधि एक प्रकार का चमत्कारिक प्रभाव डालती है। अनियमित श्वास, शारीरिक शक्ति का हास, मूर्छा एवं ठण्डापन आदि अन्य लक्षण पाये जाते हो तब यह औषधि बडी कारगार मानी गयी है। यकृत की कठोरता एवं यकृत विवर्धन के फलस्वरूप होने वाली पीलिया के उपचार में भी इस औषधि का बड़ा महत्व है। यह औषधि हत्पेशियों को बल देती है। प्रकुचन शक्ति बढ़ाती है तथा प्रकुचन और निकुचन की अवधि भी बढ़ाती है, जब अवसाद की अवस्था घेर लेती है। मन- भविष्य के बारे में चिन्तित, निराश भयातुर, खिन्नता और नाड़ी की जाता है, तब यह औषधि चमत्कारिक रूप से लाभ करती है। प्रायः जब हृदय में विकम्पन और गतिशीलता का आरम्भ हो जाये और हृदयरोध तथा अत्यधिक चाल सुस्त हो गयी हो।


सिर- हृदय रोगों और यकृत रोगों में सिर में चक्कर, माथे में तीव्र दर्द जो नाक तक फैल जाता हो, विशेषत: जब ठण्डा पानी पीने से इस प्रकार का दर्द हो। सिर में भारीपन की ऐसी अनुभूति होती हो जैसे वह पीछे गिर पड़ेगा, जीभ और होंठ नीले पड़ जाते हैं।


आँखें- पलकों में नीलापन, हरा रंग पहचानने में गड़बड़ तथा हर चीज हरी-पीली दिखायी देती हो। पुतलियों में फैलाव तथा पलकों के सिरे लाल तथा सूजे हुए।


आमाशय- मुख का स्वाद मीठा मालूम पड़े, अत्यधिक दुर्बलता और जलन जो श्वासनली तक फैल जाये, भोजन देखते ही असुविधा की अनुमति।


उदर- बायीं ओर दर्द, यकृत बढ़ा हुआ।


मल- सफेद खड़िया जैसा ।


मूत्र- बूंद बूँद गिरता हो, गहरे रंग का ।


श्वास संस्थान- गहरी श्वास लेने की इच्छा श्वसन क्रिया अनियमित मीठा बलगम, फेफड़े भीचे महसूस हों, बोलना सहन नहीं।


हृदय- जरा सी हरकत में तेज धड़कन, ऐसा लगे कि हृदय की धड़कन कहीं बन्द न हो जाये, हृदय में सुई के चुभने जैसा दर्द, शरीर का रंग नीला पड़ जाता हो, नाड़ी क्षीण पर हिलने-डुलने से तेज।


बाह्यांग- पैरों में सूजन, हाथ-पैर ठण्डे, जोड़ों में आमवाती दर्द।


नींद- नींद से ऐसे जागना जैसे किसी ऊँचाई से गिर गया हो।


ज्वर- तमतमाहट और स्नायविक दुर्बलता।


चर्म- त्वचा पर लाल चकत्ते, पलकों, कानो ओठों और जीभ नीली।


मात्रा- तीसरी से तीसवीं शक्ति तक। जैसे ही नाड़ी की चाल 80 प्रति मिनट हो जाये, औषधि की मात्रा घटा दें और चिकित्सक से परामर्श लें।

ड्रोसेरा (Arosera)

ड्रोसेरा (Arosera)


काली खाँसी तथा श्वासागों पर विशेष प्रभावी. फुफ्फुस यक्ष्मा, जठर क्षोम, कुल्हे के जोड़ों में दर्द और यक्ष्मा ग्रस्त ग्रन्थियों में प्रभावी।


सिर खुली हवा में टहलते समय चक्कर आना, वायी और गिरने का भय, चेहरा आधा भाग ठण्डा और डंक लगने जैसा दर्द तथा दायी और आधे चेहरे पर गर्मी।


आमाशय- अम्लीय पदार्थों से अरुचि।


श्वास संस्थान- शुष्क खाँसी या दम घुटना, पीला बलगम, कंठदाह, कर्कश ध्वनि, बोलने के लिए जोर लगाना पड़ता है। बाह्यांग- पैरों के जोड़ों में अकड़न, बिस्तर कठोर लगता है।


ज्वर- आन्तरिक शीत, प्यास का अभाव हमेशा ठण्ड लगती रहती है।


मात्रा- पहली से 12वीं शक्ति तक।



थाइमोल (Thymol) ( थइम कैम्फर )

थाइमोल (Thymol) ( थइम कैम्फर )


जनन और मूत्र सम्बन्धी रोगों की औषधि है। वीर्यपात एवं स्वप्नदोष में लाभकारी, जनन अंगों की निर्बलता दूर करती है। मानसिक अवसाद को दूर करती है।


मन- चिड़चिड़ा तथा कोई दबाव न मानने वाला, अपनी इच्छानुसार मनमानी काम करने वाला, मित्रों तथा सगे साथियों के साथ घूमने तथा रहने की इच्छा रहती हैं, हताशा की अनुभूति होती है।


पीठ- सारे कटि प्रदेश में पीड़ा, थकान सा अनुभव।


पुरुष- कामातुर सपने, स्वप्रदोष तथा वीर्यपात मूत्र पथ में जलन, मूत्र बूँद-बूँद टपकता है।


नींद- कामोत्तेजक सपने, जगने पर थकान का अनुभव होता है।


मात्रा- छठी शक्ति।



थूजा ऑक्सिडेण्टैलिस (Thuja Occidentals)

थूजा ऑक्सिडेण्टैलिस (Thuja Occidentals)


यह चर्म, रक्त, वृक्कों और मस्तिष्क के उपचार हेतु प्रभावी औषधि है। इसकी मुख्य क्रिया जनन, मूत्र अंगों तथा चर्म पर होती है। प्रमेहदोषक वेदनाओं में भी लाभकारी है। शुष्क मौसम में पीड़ा की कमी, भीगी हवा और पानी कष्ट पहुँचाती है। फुन्सियों को जल्दी सुखा देती है। तीव्र थकान, धातुदोष तथा चर्म रोग में लाभकारी होती है।


मन- स्थिर, आत्मा और शरीर की पृथक्ता का घना बोध, आवेगपूर्ण असहिष्णुता ।


सिर- दर्द जैसे किसी ने कोई कील ठोक दी हो, केश शुष्क, बाल झड़ते हैं मुखमण्डल तैलीय गुणों वाला।


आँखें- पलक परस्पर रात में चिपक जाती है, पलकों में स्नायुशूल।


कान – मवाद जैसा स्राव


नाक- पुरानी सर्दी, हरा-गाढ़ा श्लेष्मा ।


आमाशय- भूख नहीं लगती है, आलू खाने के बाद दर्द, चाय पीने से अजीर्ण।


उदर- फूला हुआ, पुराना दस्त, कब्जियत । प्याज से अरुचि, खाना खाने के


मूत्र- मूत्र मार्ग सूजा हुआ, जलन, मूत्र त्याग के बाद दर्द का होना।


श्वास संस्थान- दोपहर के बाद खाँसी, वक्ष में सुई जैसी चुभन, स्वर नली का प्रदाह ।


बाह्यांग- अँगुलियाँ लाल, अनुभूति शून्य तथा सूजी हुई, सन्धियों में कड़कड़ाहट से एड़ियों में दर्द।


चर्म- शुष्क चर्म, ग्रन्थियों में भयंकर दर्द, स्पर्श के प्रति असहिष्णु, हाथों व बाहों में कत्थई रंग के धब्बे नींद अनिद्रा से ग्रसित ।


ज्वर- जाड़ा जांघों से आरम्भ होता है। पसीना सारे शरीर पर, रक्त का वेग बढ़ना।


पूरक दवायें- सैवाइना, आर्से, नेट्मस तथा सिलीका।


मात्रा- मूलार्क से लेकर तीसवीं शक्ति तक।

नक्स वोमिका (Nux Vomica) (कुचला विष)

नक्स वोमिका (Nux Vomica) (कुचला विष)


यह औषधि बहुत से रोगों में बड़ी उपयोगी है अतः यह होमियोपैथी की बड़ी प्रसिद्ध दवा मानी जाती है। किसी भी औषधि के अत्यधिक मात्रा में प्रयोग करने के बाद बहुधा इस औषधि का प्रयोग किया जाता है।


नक्स- अनेक रोगों की प्रमुख औषधि मानी जाती है। कृशकाय, जल्दबाज सक्रिय स्नायविक और चिड़चिड़ा होना, मानसिक बोझ से दबा परन्तु शारीरिक श्रमहीन जीवन व्यतीत करता है, काफी शराब, धूम्रपान, अफीम लेने में रुचि देर तक जागना उसके जीवन नियम जैसा है। नक्स मुख्यतः पुरुषों की औषधि है। ऐसे लोगों को आसानी से सर्दी लग जाती है, अतः वे खुली हवा से बचते हैं। नक्स के रोगी सदा आपे से बाहर प्रतीत होते हैं। मन- अत्यन्त चिड़चिड़ा, असहिष्णु, अभद्र, गन्ध तथा प्रकाश के प्रति असहनशील, दूसरों के दोष निकालने वाला।


सिर- आँखों के ऊपर अथवा सिर के पीछे भाग में दर्द मालूम पड़ता है। खोपड़ी संवेदनशील माथे में दर्द, चमकीली धूप में भी दर्द होने लगता है।


आँखें- प्रातः आँखों में अत्यधिक प्रकाशभीति (Photophobia), आँखों से पानी गिरना, मादक द्रव्यों के सेवन में अभिरुचि के कारण नेत्र पेशियों में आशिक पक्षाघात ।


कान- कान में खुजली, ऊँचे शब्द, कर्कश शब्द अप्रिय लगते हैं।


नाक- रात में प्रायः बन्द नाक, सर्दी, जुकाम अधिक। मुख मसूड़े सूजे, ठण्डे पदार्थों से कष्ट, सफेद-पीली जीभ ।


कंठ- खुरदरा, सुबह जागने पर सुरसुराहट, कानों में सुई के बींधने जैसा दर्द होता है।


आमाशय- खट्टा स्वाद, प्रातः तथा भोजन के बाद मितली, खट्टी तथा कडुवी डकारें, गैस की कष्टकर डकारें, राक्षसी भूख, भोजन के कई घंटे बाद भी पत्थर जैसा दबाव।


उदर- नंगा रहने से पेट दर्द, दम का फूलना, शूल के साथ पेट में ऊपर की ओर दबाव की अनुभूति मल- कब्जियत, ऐसा प्रतीत होता है कि मलत्याग करने के बाद भी मल भीतर रह गया है। मल अल्प पर इच्छा अधिक।


मूत्र- क्षोभक मूत्राशय, मूत्र त्याग की बार-बार इच्छा।


पुरुष- अत्यधिक कामोत्तेजना, स्वप्नदोष, मेरुदण्ड में जलन चिड़चिड़ापन एवं दुर्बलता का अहसास ।


स्त्री- ऋतुस्राव नियत समय से बहुत पहले, अतितीव्र काम वासना । श्वास खाँसी, सर्दी जनित स्वर भंग, दमा के साथ खुसखुसी खाँसी।


पीठ- कटि प्रदेश में दर्द, मेरुदण्ड में जलन, बैठना दर्दनाक


बाह्यांग- टाँगें सुन्न, पिण्डलियों और तलुवों में ऐंठन, चलते समय घुटनों में कड़कड़ाहट, प्रात: पैरों और बाहों में शक्तिहीनता की अनुभूति ।


नींद- रात को 3 बजे से प्रातः तक सोना बहुत कठिन, भोजन के बाद सन्ध्या में नींद का आना, दौड़-धूप और व्यस्तता से भरा जीवन ।


चर्म - शरीर जलता हुआ गरम, निर्वस्त्र नहीं रह सकता, पेट में गड़बड़ी के साथ मुहाँसे तथा त्वचा लाल।


ज्वर- शीतावस्था की प्रधानता, कँपकँपी, नाखूनों में नीलापन, हाथ, पैर, पीठ में दर्द।


मात्रा- पहली से तीसवीं और उच्चतर शक्तियाँ। नक्स को शाम को देना ज्यादा ठीक।



नैट्रम फास्फोरिकम (Natrum Phosphoricum) दुग्धाम्ल (Lactic acid)

नैट्रम फास्फोरिकम (Natrum Phosphoricum) दुग्धाम्ल (Lactic acid)

की अधिकता जो शर्करा के अधिक सेवन किये जाने के फलस्वरूप बनता है। ऐसे रोगों की अवस्थायें जिसमें अम्ल की अधिकता रहती हो खट्टी डकारें, खट्टा स्वाद, उदर शूल, पेट में कृमि होने की सम्भावना आदि । मन भय से आक्रान्त, रात्रि में जगने पर कल्पना करना कि जैसे कमरे में कोई चल रहा हो।


सिर- पूर्णता की अनुभूति और टीस |


आँखें- आँखों से पीला क्रीम जैसा स्राव ।


कान- एक कान लाल और गरम


नाक- नाक में खुजली तथा बदबू ।


चेहरा- चेहरा मुरझाया हुआ नौला ।


मुख- जीभ की नोक पर छाले, जीभ के ऊपर आर्द्र परत, तालु के पीछे भाग पर पीली परत ।


आमाशय- खट्टी डकारें, खट्टा वमन, हरे दस्ता


बाह्यांग- घुटने में आमवात्।


पीठ- थकान, अंगुलियों के जोड़ों में धीमी चुभन ।


चर्म- पीली त्वचा, टखनों में खुजली, शीत-पित्त रात में पैरों में जलन।


मात्रा- तीसरी से 12वीं शक्ति तक विचूर्ण

नेट्रम म्यूरियेटिकम (Natrum Muriaticum) सोडियम क्लोराइड

नेट्रम म्यूरियेटिकम (Natrum Muriaticum) सोडियम क्लोराइड


अधिक समय तक नमक का सेवन करने से शरीर में विपरीत परिवर्तन, रक्त में भी परिवर्तन होने लगता है। आमवाती गठिया अत्यधिक कमजोरी, ठण्डक कृशता, सर्दी-जुकाम, सारे शरीर में सिकुडून भारी दुर्बलता और थकान, वृक्कशाथ, मधुमह, मन रोग शोक भय, क्रोध, चिड़चिड़ापन, छोटी-छोटी बातों पर नाराज होना जल्दबाज, रोने के साथ हँसना।


सिर- टीस, सिरदर्द, सिर बहुत बड़ा प्रतीत होता है। कृशकाय रोगी, ओठों, जीभ और नाक में सुन्नपन।


आँखें- पेशियाँ कमजोर और जकड़ी हुई, आँखों में जलन, अश्रुनली में सिकुड़न, अश्रुपात जलन पैदा करने वाला, आँखें आँसुओं से भीगी हुई, पलकें सूजी, मोतियाबिन्द की प्रारम्भिक अवस्था ।


कान- भारी आवाजें, गर्जना, टनटनाहट।


नाक- सर्दी, जुकाम, श्वास लेने के कठिनाई, गन्ध और स्वाद का लोप, खुश्की । स्राव पतला पनीला, छीकें,


मुख- जीभ ओठों तथा नाक में सुन्नपन, स्वादलोप, ओठ पर छाला।


आमाशय- हृदय-दाह, धड़कन, खाते समय पसीना, नमक खाने की इच्छा।


उदर- पेट के अन्दर काटती पीड़ा, पेट फूला हुआ, खाँसने में दर्द।


मूत्र- पेशाब करते हुए दर्द।


श्वास संस्थान- यकृत में सुई जैसी चुभन, छाती में भी ऐसी ही चुभन का अहसास, खाँसी हाँफना, खाँसते समय अश्रुप्रवाह।


हृदय- हृदय में ठण्डक की अनुभूति, छाती में सिकुड़न, हृदय में भी टीस, लेटने पर भी हृदय में धड़कन।


बाह्यांग- पीठ में दर्द, नखशोथ, अँगुलियों में सुन्नपन, चलते समय पैरों में कड़कड़ाहट।


नींद- शोकाकुल होते ही नींद गायब। चर्म चिकनी।


मात्रा- 12वीं से तीसवीं शक्ति तथा उच्चतर शक्तियाँ।



पलसेटिला (Pulsatilla)

पलसेटिला (Pulsatilla)


यह मुख्यतः स्त्रियों की औषधि है। उनका स्वभाव भद्र सहज समर्पणशील तथा मृदु स्वभाव वाली होती है। वे अनायास सहनशील, परिवर्तनशील, विरोधी मनोवृत्तियों वाली हो जाती हैं। उनके श्राव पीले हरे होते हैं। लक्षण परिवर्तनशील, बुरी तरह स्वास्थ्य बिगड़ने का समस्या, हाथों को सिर के ऊपर रखकर सोना पसन्द ।


मन- सहज में ही रोने की आदत, अंधेरे में भूत-प्रेतों से भयभीत डरपोक, दृढसंकल्पहीन, सहानुभूति की चाह, पुरुष महिलाओं से और महिलाएँ पुरुषों से भयभीत, धार्मिक विषाद, अत्यन्त भावुक


सिर- भ्रमणकारी अनुभूतियाँ, खुली हवा में आराम मिलता है। स्नायुशूल वेदना जो बायीं कनपटी से शुरू होती है। अत्यधिक परिश्रम से सिरदर्द।


कान- कर्णस्राव, भारी दुर्गन्ध, सर्दीजनित कर्णशोथ। आँखें आँखों में खुजली तथा जलन, पलकें प्रदाहित।


नाक- सर्दी, जुकाम, दायीं नाक बन्द, बदबूदार पपड़ियाँ |


चेहरा- दायें भाग का स्नायुशूल, निचले ओठ में सूजन।


मुख- शुष्क मुख, प्यास का अभाव, बार-बार कुल्ला करने की आदत, मुँह में बुरी गन्ध, रोटी का स्वाद कड़वा, अत्यधिक मीठी लार, स्वाद लोप।


आमाशय- गरम खान-पान से अरुचि, डकारें, खाद्य पदार्थों का स्वाद घटा उदर फूला हुआ, दर्दनाक


मल- दो मल एक जैसे नहीं होते। शूल के साथ शाम को सर्दी। नींद शाम को नींद नहीं, जागने पर थका हुआ चेहरा, हाथों को सिर पर


सिर- सिर और चेहरे में रक्त का तीव्र बहाव, सिर लाने पर चक्कर आना, सा प्रतीत होता है।


मूत्र बढी हुई इच्छा, लेटते समय अधिक, मूत्र द्वार में जलन। श्वास संस्थान शाम को और रात को सूखी खाँसी।


पीठ- दर्द, बाह्यांग में निद्रा और जाड़ा, घुटने सूजे।


ज्वर दर्द का तीव्र प्रकोप गर्म कमरे में भी।


मात्रा- तीसरी से तीसवीं तक।



पियोनिया (Paionia)

पियोनिया (Paionia)


मलद्वार व मलांत्र के लक्षण महत्त्वपूर्ण शरीर के निचले भागों में जैसे पैर की अँगुलियों, स्तनों, मलांत्र में घाव, आँखों में जलन, कान में टनटनाहट।


मलात्र मलद्वार में दर्द तथा खुजली, मलद्वार सूजा हुआ भगन्दर अतिसार, मूलाधार से दुर्गन्धित रिसाब, मल त्याग के दौरान व उसके बाद तीव्र वेदना ।


वक्ष वाय वक्ष में दर्द छाती में गर्मी, धीमा दर्द


बाह्यांग- कलाई अँगुलियों, घुटने और पैरा की अंगुलियों में दर्द, कमजारी के कारण टाँगों में बदलने में कठिनाई।


नींद- डरावने सपने आते हैं।


चर्म- ज्वलनशील त्वचा, खुजली तथा ज्वलनशील ।


मात्रा- तीसरी शक्ति।

पोडोफाइलम (Podophyllum) (May apple)


पित्त प्रधान व्यक्तियों के लिए उपयोगी। यह आँतों, मलयन्त्र और यकृत को रोगग्रस्त करती है। शूलवत वेदना व पित्त वमन, मल पानी सा, यकृत निष्क्रियता, अधो जठर वेदना होती है।


मन- खट्टे फलों को खाना पसन्द, वाचालता, प्रलाप मनोविषाद।


सिर- धीमा सिरदर्द, गर्म चेहरा, कडुआ स्वाद, पलकें आधी खुली रखना, कराहना, वमन करना।


मुख- रात में दाँत पीसना, जीभ चौड़ी-बड़ी तथा आर्द्र।


आमाशय- गर्म खट्टी डकारें, वमन और मिचली, हृददाह, दूध का वमन।


उदर- फूला हुआ, गर्मी और खालीपन, यकृत प्रदेश में दर्द, रोगग्रस्त अंग को मलने से आराम मिलता है, वृहदान्त्र में गड़गड़ाहट


मलांत्र- चिरस्थायी दस्त, प्रातः दर्दहीन अतिसार, दुर्गन्धित प्रचुर मल, कब्जियत


ज्वर- सुबह 7 बजे जाड़ा, घुटने टखनों और कलाइयों में दर्द, काफी पसीना आना।


मात्रा मूलार्क से छठी शक्ति तक।



प्लैटीना (Platina) धातु (Metal)

प्लैटीना (Platina) धातु (Metal)


यह मुख्यतः स्त्रियों की औषधि है। पक्षाघात, चेतनालोप, सुन्नपन और ठण्डक की प्रवृत्तियाँ


मन- हत्या करने की इच्छा, अपने को श्रेष्ठ समझना, दूसरों के प्रति घृणा, अत्यधिक अभिमानी एवं अंहकारी, प्रत्येक वस्तु परिवर्तित प्रतीत होती है। सिर तना हुआ दबावशील वेदना, माथे और दाहिनी कनपटी के आसपास सिकुड़न, सिरदर्द और सुन्नपन


आँखे- आकार में छोटी तथा ठण्डी दिखायी देती है। कान सुन्न महसूस होते हैं, आकस्मिक तीव्र वेदना।


चेहरा- सुन्नपन की अनुभूति, नाक की जड़ में दर्द, सम्पूर्ण दाहिने चेहरे में ठण्डक, रेंगने और सुन्नपन की अनुभूति, वेदना धीर धीरे बढ़ती है और धीरे धीरे घटती है।


आमाशय- सिकुड़न, मितली अधीरता, दुर्बलता राक्षसी भूख। उदर- नाभि प्रदेश में दर्द जो पीठ तक फैल जाता है। मल- कब्जियत, अल्प, कठिनाई से निकलता है, मल झुलसा हुआ सा प्रतीत होता है।


बाह्यांग- जाँघों में कसाव, सुन्नपन और थकावट पक्षाघात ग्रस्त से प्रतीत होते हैं। नींद- पैरों को एक दूसरे से दूर रखकर सोना।


मात्रा- छठी शक्ति से तीसवीं शक्ति तक ।



फास्फोरस (Phosphorus)

फास्फोरस (Phosphorus)


फास्फोरस श्लैष्मिक झिल्लियों को उत्तेजित कर प्रदाह लाती है तथा मेरु मज्जा में भी प्रदाह उत्पन्न करती हैं, जिसके कारण ही पक्षाघात होता है। रक्त को दूषित करती है। चयापचय क्रिया का विनाशकारी, यकृत की पीत शुष्कता तथा यकृतशोथ का कारण बनती है। लम्बे-पतले व्यक्ति जिनकी त्वचा पतली व स्वच्छ होती है अत्यधिक स्नायविक दुर्बलता, कृशता वाले व्यक्ति फॉस्फोरस से विशेष रूप से आक्रान्त होते हैं। प्रकाश, ध्वनि, गन्ध, स्पर्श, जलवायु में आँधी तूफानों आदि के प्रति अत्यधिक असहिष्णु होते हैं। लोहित रक्तकणों का आधिक्य, सिरोसिस, अस्थिक्षय आदि रोगजनक परिवर्तनों में भी फॉस्फोरस की जरुतत होती है। श्वास पथ में प्रदाह, पक्षाघाती लक्षण, आयोडीन और नमक अत्यधिक व्यवहार करने के कुपरिणाम तथा बायीं करवट लेटने से लक्षणों वृद्धि, उपदेश तथा मासपशियों में शक्तिहीनता एवं अस्थिमज्जा का प्रवाह ।


मन- सहज ही चिढ़ जाता है, भयभीत, चौक पड़ना, स्मरणशक्ति का लोप, हर्षोन्माद, अकेले रहने का भय, मस्तिष्क थका थका, सारा शरीर गरम अस्थिर और अशान्त


सिर- मेरुदण्ड में गर्मी, स्नायुशूल, ज्वलनशील दर्द, खोपड़ी में खुजली तथा रूसी।


आँखें- मातियाबिन्द, आँखों के सामने काली बिन्दिया उड़ती हुई मालूम पड़ती है, अक्षर लाल दिखायी पड़ते हैं, पलका और आँखों के आसपास शाथ।


कान- सुनने में कठिनाई शब्दों की प्रति ध्वनिया सुनायी देती है। नक तीव्र गन्ध की अनुभूति पुराना, जुकाम।


चेहरा- पीला रुग्ण, गाल धंसे हुए गालों पर लाल और गोल धब्बे, निचले जबड़े में सूजन। में


मुख- फूले हुए और रक्त स्रावी मसूड़े, दन्तशूल, जीभ सूखी, अत्यधिक ठण्डे पानी की प्यास ।


आमाशय- खाने की अधिक मूख, भोजन के बाद खट्टा स्वाद एवं खट्टी डकारें, अत्यधिक नमक खाने का कुफला


उदर- ठण्डा तथा दुर्बल, मामला, क्लोम ग्रन्थि की बीमारियाँ ।


मल- अति दुर्गन्धित कठोर, सफेद मल।


मूत्र- गंदला, कत्थई रंग।


श्वास संस्थान स्वर यन्त्र में दर्द के कारण बोल नहीं सकता है। खाँसते समय सारा शरीर काँपता है तथा गले में दर्द होती है।


हृदय बायीं करवट लेटने से हृदय स्पन्दन में वृद्धि, नाड़ी द्रुत।


पीठ- जलन, मेरुदण्ड दुर्बल, वेदना की अनुभूति । नींद भोजन के बाद घोर तन्द्रा, अल्पकालिक झपकियाँ।


ज्वर- प्रतिदिन शाम को जाड़ा लगता है, रात में घुटने ठण्डे रहते हैं।


चर्म छोटे-छोटे घावों में अधिक रक्तस्राव होता है, कामला चमड़ी के नीचे काले धब्बे।


मात्रा तीसरी से तीसवीं शक्ति तक, न अति निम्न शक्तियां न इसे लगातार देना चाहिए। विशेषकर क्षयरोग की अवस्थाओं में तो बिल्कुल नहीं देना चाहिए।



फाइटोलेक्का (Phytolacca)

फाइटोलेक्का (Phytolacca)


यह मुख्यतः ग्रन्थियों की दवा है। ग्रन्थियों के सूजन के साथ ताप और प्रदाह म अति उपयोगी चिरआमवात, वजन घटने में, दाँत निकलने में विलम्ब होने में उपयोगी औषधि।


मन अति वैराग्य तथा जीवन के प्रति विलिपप्ता का भाव। सिर दर्द महसूस होना, खोपड़ी का आमवात


आँखें प्रचुर अश्रुनाव।


नाक बहुती हुई।


मुख- दाँत पीसने की बार-बार इच्छा, मुँह से रक्तस्राव, अत्यन्त चिपचिपी लार, चीज नहीं निगल सकता है, जीम के जड़ में दर्द जो कान तक पहुँच जाती है।


उदर- उदर-पेशियों में आमवात, नाभि में शूल, कब्जियत।


मूत्र- अल्प मात्रा, अवरूद्ध, गुर्दे का प्रदाह ।


हृदय- हृदय प्रदेश में वेदना ।


श्वास संस्थान - श्वास कष्ट सूखी खाँसी रात को अधिक पीठ कटि प्रदेश में हल्का दर्द।


बाह्यांग- दायें कन्धे में दर्द तथा अकड़न, पैर सूजे हुए। चर्म फोड़े होने की प्रवृत्ति, ग्रन्थियों में सूजन और कठोरता, मस्से और तिल । मात्रा मूलार्क से तीसरी शक्ति।

फेरम फास्फोरिकम (Ferrum Phosphoricum) आयरन

फेरम फास्फोरिकम (Ferrum Phosphoricum) आयरन


ज्वर की प्रारम्भिक अवस्थाओं में इसका स्थान वेलाडौना तथा एकोनाइट की तरह। फेरम फास्को रोगी हृष्ट-पुष्ट नहीं होता है, चेहरा अधिक सक्रिय होता है। सिर- स्पर्श करने से ठण्ड, झटका लगने से दर्द, टीस की अनुभूति, सिरदर्द और चक्कर।


आँखें- लाल, धुंधली दृष्टि।


कान- कर्णशोथ लाल तथा सूजे हुए।


नाक- सर्दी जुकाम तथा नकसीर ।


चेहरा- लाल तथा तमतमाया हुआ, गाल गरम तथा दर्द की अनुभूति।


कठ- मुख गरम, लाल, डिप्थेरिया की प्रारम्भिक अवस्था । आमाशय- दूध से अरुचि, उत्तेजक पदार्थों की सेवन करने की इच्छा, खट्टी डकारें।


उदर- पेचिश की प्रारम्भिक अवस्था, जिसमें रक्तस्राव भी होता है।


मूत्र- खाँसते समय पेशाब निकल जाता है।


हृदय- धड़कन तथा नाड़ी तेज। बाह्यांग कमर में कड़क छोटे जोड़ों में आमवात, दर्द छाती तक और कलाई तक फैल जाता है।


नींद- बेचैनी और अनिद्रा।


ज्वर- रोज दोपहर बाद एक बजे शीत का वेग ।


मात्रा- तीसरी से बारहवीं शक्ति तक।

ब्रायोनिया (Bryonia) बाइल्ड हाप्स

ब्रायोनिया (Bryonia) बाइल्ड हाप्स


पेशी में दर्द जो हरकत करने से बढ़ता है और आराम करने से घटता है। सुई गड़ने जैसा दर्द होता है। मिजाज चिड़चिड़ा, सिर ऊँचा उठाते चक्कर आना, मुँह और ओठ सूखे, प्यास अधिक, मुँह का स्वाद कडुआ, आमवाती दर्द और सूजन, ब्रायोनिया विशेषतः सुगठित और सुदृढ शरीर वालें लोगों को रोगग्रस्त करती है, जो श्यामवर्ण वाले, दुबले-पतले और चिड़चिड़े होते हैं, शरीर का दायाँ भा


प्रायः रोगग्रस्त होता है।


मन- अत्यधिक चिड़चिड़ा, बात-बात में बिगड़ जाना। सिर- सिर उठाने पर चक्कर, सिरदर्द पिछले भाग में आकर टिक जाता है,


सिरदर्द का अहसास।


नाक- नकसीर, सर्दी जुकाम, नाक की नोक में सूजन। नींद नींद आते ही चौक पड़ता है।


कान- कानों में भिनभिनाहट।


आँखें- मन्द-मन्द दर्द ग्लूकोमा, छूने या हिलाने-डुलाने से दर्द।


मुख- ओठ कटे फटे तथा एकदम शुष्क, अत्यधिक प्यास, ओठ सूजे


कंठ- सूखा, निगलने से दर्द, गरम कमरे में आने से कष्ट बढ़ जाता है। आमाशय मितली और मूर्च्छा, गर्मी के मौसम में पाचन क्रिया बिगड जाती है।


मल - कब्जियत


मूत्र- गरम, कम मात्रा में कत्थई रंग का |


पीठ- छिले भाग में अकड़न, कमर के नीचे भाग में भी।


बाह्यांग- अकड़े और दर्दपूर्ण, पैरों की सूजन, जोड़ सूजे हुए, बायीं भुजा और टाँग लगातार हिलती रहती है।


चर्म- फीका, सूजा हुआ गरम, केश चिकने।


ज्वर- नाड़ी पूर्ण कठोर तीव्रगति वाली, पसीना अत्यधिक मात्रा में पेट तथा जिगर में खराबी।


मात्रा पहली से बारहवी शक्ति तक।

बराइटा कार्बोनिका (Baryta Carbonica)

शैशव और वृद्धावस्था में प्रयोग की जाने वाली विशेष औषधि मानी जाती है। मानसिक और शारीरिक रूप से बौने और दुर्बल बच्चों के लिए लाभप्रद । बूढे लोगों के रोग हृदय सम्बन्धी हो, वाहिकाओं सम्बन्धी हो या चाहे मस्तिष्क सम्बन्धी हो सभी स्थितियों में यह कारगार औषधि मानी गयी है। रोगी ठण्ड के प्रति अति संवेदनशील होता है। वह ठण्ड नहीं सह सकता है। अत्यन्त दुर्बल और थका हुआ होता है। अपरिचितजनों से मिलना-जुलना पसंद नहीं, हृदय, क्षोभ एवं धड़कन, अपमानजनक परिवर्तनों में बुढ़ापे में लाभप्रद । बैराइटा एक हृदय वाहिका विष (Cardo-vascular poison) है, जो हृदय, रक्तवाहिकाओं पर अपनी विशेष क्रिया करती है।


मन- स्मरणशक्ति का अभाव, मानसिक दुर्बलता, चंचलता, आत्मविश्वास में कमी, बुढ़ापे के कारण होने वाली मानसिक दुर्बलता, अपरिचतों से अरुचि, बच्चों जैसा व्यवहार तथा छोटी बातों पर शोकाकुल हो जाता है।


सिर चक्कर, मस्तिष्क ढीला, सिर में सुई जैसी चुभन की अनुभूति होती है।


आँखें प्रकाशभीति मोतियाबिन्द कान ऊँचा सुनायी देना, कान के आसपास की ग्रन्थियाँ सूजी हुई होती है।


नाक खुश्क जुकाम ऊपर के ओठ और नाक में सूजन।


चेहरा- पीला-फूला, ऊपर वाला ओठ सूजा।


मुख- जागने पर मुख शुष्क रहता हैं, मसड़ों में रक्तस्राव होता है।


कंठ- सहज में ही सर्दी-जुकाम का हो जाना, निगलने में कष्ट की अनुभूति,


ग्रसनी या स्वर यन्त्र में दर्द।


आमाशय हिचकी, डकारें, आमाशय के अन्दर पत्थर विद्यमान होने जैसी अनुभूति, भूख होने पर भी भोजन से इनकार, भोजन के बाद पेट में दर्द... गरम भोजन करने पर दर्द बढ़ता है।


उदर- कठोर तथा फूला हुआ, शूल प्रकृति की पीड़ा, भोजन निगलने पर पेट दर्द।


मलात्र- कब्ज, कठोर, गाँठदार पाखाना, बवासीर के मस्से, मलद्वार में रिसाव जैसा होता है।


मूत्र- मूत्र त्याग की इच्छा बनी रहती है। मूत्र पथ में जलन की अनुभूति।


पुरुष सम्भोग की इच्छा घट जाती है। पुरःस्थ ग्रन्थि बढ़ जाती है, वृषण कठोर हो जाते हैं।


स्त्री- ऋतुस्राव होने पर पेट और कमर में दर्द।


श्वास संस्थान- सूखी खाँसी, खाँसी प्रत्येक मौसम के बदलने पर बढ़ जाता है। छाती में सुई चुभने सा दर्द।


हृदय- धड़कन और बेचैनी के साथ कष्ट, बायीं करवट लेटने पर धड़कन बढ़ जाती है तथा नाड़ी कठोर हो जाती है।


पीठ- गर्दन की ग्रन्थिका फूल जाती है, मेरुदण्ड की दुर्बलता।


बाह्यांग- ग्रन्थियों में दर्द, ठण्डे पैर, पाँव के तलुओं और अँगुलियों में दर्द, चलते समय तलुओं में दर्द, निम्न अंगों के जोड़ों में भी जलन के साथ दर्द होता है।


नींद- बार-बार जागता है, सोते सोते बोलता है, अत्यधिक गर्मी महसूस करता है।


पूरक डल्का मारा, सिलीका।


मात्रा- तीसरी से तीसवीं शक्ति तक।

बैलाडौना (Belladonna) (Deadly Nightshade)

यह स्नायुजाल के हर भाग पर अपनी क्रिया करती है। त्वचा और ग्रन्थियों पर इस औषधि का विशेष प्रभाव पड़ता है। बेलडोना वहाँ ज्यादा प्रभावी औषधि है जहाँ गरम लाल त्वचा, चमकदार आँखें, गर्दन की नाड़ियों में टीस, उत्तेजित मनोभाव प्रलाप, व्याकुल नींद, मुँह और गले की खुश्की, सहसा आने और चले जाने की आदत, गर्मी, लाली, जलन जैसे लक्षण मौजूद रहते हैं। मिर्गी के दौरे तथा हवाई यात्रा में प्रभावशाली औषधि मानी गयी है।


मन- रोगी तरह-तरह की कल्पित निराधार चीजें देखता है और अपने ही संसार में विचरता रहता है। भूत-प्रेत और भयानक चेहरे कल्पित आकृतियाँ देखता है, बोलना नहीं चाहता है। समस्त ज्ञानेन्द्रियों की चेतना शक्ति बढ़ जाती है। परिवर्तनशीलता का भाव रहता है।


सिर- चक्कर आने के कारण बायीं ओर या पीछे गिरने की आदत, पूर्णता की अनुभूति तथा दर्द विशेषरूप से माथे पर सिर तकिये के अन्दर गड़ाता है। सिरदर्द दायीं और अधिक रहता है। रोगी कभी-कभी अचानक चीखें भी मारने लगता है।


चेहरा- लाल, नीला गरम, सूजा हुआ, चमकदार ऊपर के ओठ तमतमाया चेहरा प्रतीत होता है।


आँखें- तेज पटल फैले हुए, आँखें सूजी हुई, द्विगुण दृष्टि (Diplopia) ।


कान- मध्य भाग में दर्द, श्रवणशक्ति बढ़ जाती है, अपनी आवाज स्वयं अपने कानों में गूँजती रहती है।


नाक- गन्ध वाली, नाक लाल सूजी हुई, चेहरा लाल ।


मुख- खुश्क जीभ के किनारे लाल, दाँत पीसने की आदत ।


कंठ- सूखा, निगलना कठिन, गले में ऐंठन।


आमाशय- भूख का अभाव, दूध और मांस से अरुचि, तरल से घृणा, पानी से परहेज।


उदर- फूला हुआ गरम, उदर में बायीं ओर सुई गड़ने जैसा दर्द मालूम होता है।


मल- पतला, हरा, मलत्याग के दौरान सर्दी का जैसा अहसास।


मूत्र- मूत्र रोध, पेशाब कम मात्रा में।


श्वास- स्वर यन्त्र और स्वास नली में खुश्की, खाँसी के साथ बायें कूल्हे में दर्द। हृदय प्रचण्ड धड़कन, नाड़ी की चाल तेज किन्तु दुर्बल लगता है कि हृदय बहुत बढ़ गया है।


बाह्यांग जोड़ सूजे, लाल, लड़खड़ाती चाल, हाथ-पैर ठण्डे। कमर गर्दन अकड़ी हुई, गर्दन की ग्रन्थियाँ सूजी हुई गर्दन के जोड़ में दर्द।


चर्म- सूखा और गरम त्वचा का रंग क्रमश: लाल-पीला होता रहता है।


ज्वर- तेज स्वर सिर के सिवाय सारे शरीर में पसीना।


नींद- बेचैन, दाँत पीसता है, सोते सोते चोख मारता है, हाथों को सिर के नीचे रखकर सोता है।


मात्रा- पहली से तीसवीं शक्ति तथा उच्च शक्तियाँ।



बोरेक्स (Borax) सुहागा

बोरेक्स (Borax) सुहागा


मिर्गी के लिए विशेष उपयोगी औषधि, मूत्राशय की ऐंठन, रक्तमेह, बाल रोगों की चिकित्सा में लाभकारी होती है।


मन- भारी अधीरता, दिशा नीचे की ओर, अत्यधिक घबडाहट आसानी से डरने वाला, बादल की गरज सुनकर भी डरने लगता है।


सिर- सिरदर्द के साथ मितली, सारे शरीर में कम्मपन्न। आँखें पलके प्रदाहित चमचमाती लहरें चलती दिखायी देती है।


कान- जरा-सी भी आवाज सहन नहीं होती।


नाक- नाक लाल चमकदार टपकन और तनाव की अनुभूति, सूखी पपड़ियाँ। चेहरा- पीला मटियाला, सूजा हुआ ओंठो पर फुन्सियाँ ।


मुख- छाले, मुँह गरम, मसूड़ों में दर्द, स्वाद कड़वा। आमाशय भोजन के बाद पेट फूल जाता है, पेट दर्द तथा वमन की शिकायत रहती है।


मल- दुर्गन्धित पतला, अतिसार पेट में मरोड़, मुँह में छाले ।


मूत्र- गरम।


श्वास संस्थान- प्रचण्ड खाँसी, बलगम गन्दी बदबू वाला बलगम, श्वास लेने पर छाती में चुभन, सीढ़ियाँ चढ़ने में दम का फूलना।


बाह्यांग- तलुवे में सुई गड़ने जैसा दर्द, पैर के अँगूठे में जलन के साथ दर्द। नींद- गर्मी सोते समय चीख मारता है। चर्म- गन्दी त्वचा।


मात्रा- पहली से तीसरी शक्ति का विचूर्ण |

ब्रोमियम (Bromium)

ब्रोमियम (Bromium)


इस औषधि के लक्षण श्वास संस्थान, स्वर यन्त्र और श्वास नली में पाये जाते हैं। उन बच्चों की, जिनकी ग्रन्थियाँ बढ़ जाती है। दम घुटने की अनुभूति, तीखा स्वाभाव, अत्यधिक पसीना, भारी दुर्बलता का अनुभव।


मन- प्रलाप, अशान्त मन, भ्रम कि कोई अपरिचित व्यक्ति उसको झाँक रहा है, झगड़ालू प्रवृत्ति ।


सिर- बायें सिर की अर्धकपाली, सिररर्द जो धूप लगने से तेज, नदी या नाला पार करते समय सिर चकराने लगता है।


नाक- जुकाम, प्रायः दायाँ नथुना बन्द हो जाता है। नाक की जड़ पर दबाव महसूस होता है।


कठ- शाम को कंठ ककश हो जाता है। श्वास लेते समय स्वास नली में गुदगुदी।


आमाशय और उदर- जीभ से लेकर पेट तक तीव्र जलन, पेट का दबाव, जठर शूल काले रंग का पाखाना।


श्वास संस्थान- काली खाँसी, दम घोंट देने वाली खाँसी का प्रकोप, छाती में ऐंठन, फेफड़े के अन्दर स्वास लेने में कठिनाई ।


नींद- स्वप्न और परेशानियों से परिपूर्ण, रात को नींद मुश्किल से आ पाती है, जागने पर कम्पन होता है।


चर्म- मुहाँसे और फुन्सियाँ ग्रन्थियाँ पत्थर जैसी कठोर हो जाती है।


विशेषतः

गले और निचले जबड़े की, चेहरे पर फोड़े, ब्रोमियम में दूध का सेवन बन्द कर देना चाहिए। मात्रा- पहली से तीसवीं शक्ति की दवा ताजा बनानी चाहिए क्योंकि यह बहुत शीघ्र खराब हो जाती है।



मैग्नेशिया म्यूरिएटिका (Magnesia Muriatica)

मैग्नेशिया म्यूरिएटिका (Magnesia Muriatica)

मैगनेशिया की औषधि श्रेणी में पाँच औषधियाँ प्रमुख मानी जाती है जिनके नाम हैं- (1) मैग्नीशिया कार्बोनिका (2) मैग्नीशिया फॉस्फोरिका (3) मैग्नीशिया सल्फूरिया (4) मैग्नीशिया ग्रण्डिफ्लोरा और (5) मैग्नेशिया म्यूरिएटिका जिसका वर्णन निम्न है- यह एक प्रसिद्ध यकृतौषधि है, कब्जियत इसका प्रमुख लक्षण माना जाता है।


सिर- सिरदर्द में तीव्रता सिर को लपेट कर गरम रखने से आराम होता है। सिर में अधिक पसीना, दबाव तथा सिंकाई से आराम मिलता है।


नाक- जुकाम और सर्दी, नाक बन्द और बहती हुई गन्ध और श्वास का लोप, मुँह से श्वास लेने में कभी-कभी बाधा।


मुख- मसूड़े सूजे हुए गला सूखा, जीभ जली और झुलसी मालूम देती है।


आमाशय- भूख कम, सड़े अण्डों जैसी डकारें, दूध हजम नहीं कर सकता है। उदर यकृत में दर्द, दायों करवट लेने से दर्द अधिक होता है।


उदर- फूला हुआ, यकृत बढ़ा हुआ, पीली जीभा त्याग कठिन।


मुत्र- मुत्र आँते पाखाना अत्यल्प परिमाण में होता है, पाखाना गाँठदार।


हृदय- हृत्पिण्ड में दर्द, हिलते-डुलते रहने पर आराम, यकृत वृद्धि। श्वास संस्थान सूखी खाँसी, रात के पहले भाग में वृद्धि।


बाह्यांग बाँहे पैरों, पीठ और नितम्बों में दर्द। नींद- दिन में भी नींद का आना, ताप और दर्द के कारण रात में ठीक से नाद नहीं आ पाती है।


मात्रा- मूलार्क की 5 बूँदें, इसे 200 शक्ति तक देना चाहिए।

मर्क्यूरियस (Mercurius) क्विक्क सिल्वर

मर्क्यूरियस (Mercurius) क्विक्क सिल्वर

यह औषधि अगर सुस्पष्ट निर्देशक लक्षणों के आधार पर प्रयोग में लायी जाये तो यह एक सशक्त जीवनरक्षक सिद्ध हो सकती है।


मन- स्मरणशक्ति दुर्बल, इच्छा शक्ति का अभाव, जीवन से ऊबा हुआ, अविश्वासी प्रकृति वाला।


सिर- पीठ के बल लेटने पर चक्कर, सिर पर तीव्र वेदना, बाल झड़ना, सिर तना हुआ।


आँखें- पलकें लाल, मोटी सूजी हुई।


कान- गन्दा स्रावा


नाक- बहुत छींकें, नाक की हड्डियाँ सूजी हुई, सर्दी-जुकाम।


चेहरा- पीला, गन्दा मटमैला, चेहरे पर फुन्सियाँ। मुख मीठा स्वाद, मुँह से बदबूदार गन्ध तेज प्यास, जीभ भारी मोटी।


कठ- नीली लाल सूजन, कान में सुई चुभने सा दर्द।


आमाशय- डकारें, ठण्डे पेय पदार्थों की हिचकी।


उदर- छुरा भोंक दिये जाने जैसा भीषण दर्द। मल- हरा रक्त मिश्रित, रात को अधिक


मूत्र- बार-बार पेशाब की इच्छा। श्वास प्रश्वास- बलगम खाँसी के दौरे, जुकाम के साथ जाड़ा।


पीठ- कमर के निचले भाग में दर्द।


बाह्यांग- अगों की दुर्बलता।


ज्वर- ज्वर और कँपकँपी पीला पसीना


मात्रा दूसरी शक्ति से तीसरी शक्ति तक।

यूफ्रेशिया (Euphrasia) आइब्राइट

यूफ्रेशिया (Euphrasia) आइब्राइट


आँख, नाक की श्लैष्मिक झिल्लिया, अश्रुपात एवं नजला आदि बीमारियों के लिए प्रमुख औषधि है। खंखारने से बहुत ही दुर्गन्ध भरा बलगम आता है।


सिर- सिरदर्द के साथ आँखों में चकाचौध, आँखों और नाक से बहुत अधिक स्राव।


नाक- बड़ी मात्रा में बहता हुआ नजला, तेज खाँसी और बलगम। आँखें- आँख में हर समय पानी बहता रहता है। तीखा अश्रुप्रवाह, पलकों में जलन और सूजन, कनीनिका पर चिपचिपा श्लेष्मा तथा छोटे-छोटे छाले, पलकों का नीचे लटक जाना।

चेहरा- गालों में गर्मी तथा लाली, ऊपर ओंठ में अकड़न आमाशय खंखारने पर श्लैष्मिक वमन।


मलांत्र- पेचिश की शिकायत, कब्जियत । स्त्री- दर्दनाक ऋतुस्राव जो केवल एक घंटे तथा एक दिन तक ही गतिशील।


पुरुष- जननागों में खिचाव तथा दवाव ।


नींद - दिन में उनींदापन तथा जम्हाइयाँ।


ज्वर- कँपकँपी और ठण्ड।


चर्म- नेत्र सम्बन्धी लक्षणों की प्रमुखता।


मात्रा तीसरी से छठी शक्ति तक।



रस टॉक्सिको ड्रेन्डेन (Rhus Toxicodendrain)


सिरोचा विष चर्म रोगों, आंत्रिक ज्वर, आमवाती वेदनाओं आदि रोगों में औषधि का प्रयोग होता है। रस का रोगी सदैव गति करने से आराम महसूस करता है। ठण्डे मौसम में उत्पन्न होने वाले आमवात की उपयोगी औषधि होती है।


मन- दुःखी आत्महत्या के बारे में सोचता है। निरन्तर बदलते रहने का स्वभाव, रात में अधिक आशकाओं से घिरा, बिस्तर पर लेटना कठिन हो जाता है।


सिर- सूजी हुई लाल आँखें मवाद का प्रचुर स्राव, आँखें घुमाने या दबाव पर दर्द, पलकों के खोलने पर गर्म अश्रुपात


कान- कानों में दर्द, कान के किनारे सूजे हुए।


नाक- छीकें भीगने के कारण जुकाम, झुकने पर नाक में रक्त स्राव।


चेहरा- सृजा हुआ चेहरा, चबाते समय जबड़ा में कड़कड़ाहट। मुख दाँत लम्बे और ढीले, जीभ लाल।


कठ- निगलते समय चुभने जैसा दर्द।


आमाशय- भूख नहीं लगती, अधिक प्यास, कड़वा स्वाद, भोजन के बाद पेट का फूल जाना।


उदर- भयंकर दर्द, पेट के बल लेटने से आराम। मलांत्र- पेचिश, गन्ध से भरा पाखाना।


मूत्र- काला और गंदला, अल्प मात्रा में भूख


हृदय- नाड़ी रोज, दुर्बल, अनियमित


चर्म- लाल सूजा हुआ।


बाह्यांग- सन्धियों में सूजन, आमवाती दर्द, ठण्डी ताजी हवा सहन नहीं होती है। जाँधों में वेदना पैरों में सुरसुरी और हाथ की अंगुलियों में अशक्तता, गति करने से आराम मिलता है। नींद गहरी नींद पर आधी रात से पहले नींद नहीं आती है।


मात्रा- छठी से तीसवीं शक्ति तक।

रूटा (Ruta Gravaeolens)


शरीर के प्रत्येक अंग में दर्द वाले मोच, दुर्बलता, निराशा की अनुभूति।


सिर दर्द, नकसीर मादक पदार्थों के लेने के बाद की पीड़ा।


आँखें- सिरदर्द, आँखें लाल, पढ़ते समय थकान जैसा दर्द, मौहों के ऊपर आमाशय जठर शूल। दबाव, दुर्बल दृष्टि।


मूत्र- मूत्रत्याग की निरन्तर इच्छा, मूत्राशय भरा हुआ प्रतीत होता है।


मलांत्र- मल के बाद रक्तस्राव तथा दर्द, मलत्याग की निष्फल इच्छा । श्वास संस्थान खाँसी के साथ बलगम, छाती दुर्बल प्रतीत होती है। पीठ पीठ और कूल्हों में दर्द, कमर दर्द जो सुबह उठने से पहले अधिक होती है।


बाह्यांग- कमर और कूल्हों में दर्द, पैर फैलाते समय जाँघों में दर्द। मात्रा- पहली से छठी शक्ति तक।



लाइकोपोडियम (Lycopodium) क्लब मॉस (Club Moss)

लाइकोपोडियम (Lycopodium) क्लब मॉस (Club Moss)


मूत्र, पाचन सम्बन्धी पथरी के निकालने के लिए प्रभावी औषधि उन रोगों में विशेष लाभकारी जो धीरे-धीरे उत्पन्न होती है। पाचनतन्त्र की शक्ति नष्ट तथा शरीर की प्रायः सभी शक्तियाँ निर्बल और अशक्त, वृद्धजनों के लिए उपयोगी जिनमें अम्ल की अधिकता। दुर्बल बच्चों के लिए भी उपयोगी होती है। वृक्क रोगों में सहायक तीक्ष्णबुद्धि वाले लोगों पर विशेष रूप से क्रियाशील जिन्हें समय से पूर्व बुढ़ापा आने लगता है, उनके लिए तो वरदान स्वरूप होती है। लाइकोपोडियम रोगी दुबला-पतला, शुष्क, कृशकाय रहता है। उसका रक्त संचार दुर्बल होता है तथा वह शोरगुल और गन्ध के प्रति असहिष्णु होता है।


मन- जरा-जरा सी बातों पर चिढ़ने वाला, अकेले रहने से डरने वाला, जिद्दी, आत्मविश्वास की कमी, शंकालु, दुर्बल स्मरणशक्ति, मस्तिष्क हास।


सिर- आकरण सिर का झटकना और मुँह का विकृत करना। खाँसी, सिरदर्द, M आँखों के ऊपर दर्द, कनपटियों में दर्द होता है। सुबह उठने पर चक्कर आ हैं। बुरी तरह बालों का झड़ना तथा बालों का सफेद होना।


आँखें- नींद में आँखें अधखुली रतौन्धी तथा दिनान्धता । कान- पीला दुर्गन्धित स्राव, कान के आसपास छाजन कम सुनायी देना। नाक घ्राण शक्ति अतिप्रखर, नथुने व्रणग्रस्त, बहता हुआ नजला, नाक बन्द | चेहरा भूरा पीला, सिकुड़ा तथा ताम्र वर्ण ।


मुख- दन्त शूल तथा गालों पर सूजन, मुख और जीभ की रूक्षता, जीभ


सूखी, जीभ पर छाले, मुँह में पानी भर जाता है और मुँह से बदबू आती है।


कंठ- प्यासहीन रूक्षता, गरम पदार्थों से आराम, भोजन और पेय नाक के रास्ते बाहर निकल पड़ते हैं। ठण्डे पेय पदार्थों से वृद्धि। आमाशय अत्यधिक भूख, रोटी से अरुचि मोठा चीज खाने की इच्छा, खट्टी डकारें, पाचन क्रिया अधिक दुर्बल, पेट अत्यधिक फूला हुआ, खाना खाने के बाद आमाशय में दबाव। अत्यल्प भोजन से ही पेट भर जाने की अनुभूति गरम भोजन और गरम पेय पसन्द उदर थोड़ा सा भी भोजन करते ही पेट फल जाता है. हर्निया, यकृत की रुक्षता, पेट पर कत्थई बब्ब मल अतिसार मल कठोर, छोटा और अपूर्ण।


मूत्र- मूत्र त्याग से पहले पीठ में दर्द, मूत्रत्याग करने के बाद गायब हो जाता है। पेशाब देर से बाहर आता है। पुरुष समय से पूर्व वीर्यपात, नपुंसकता के लक्षण।


स्त्री ऋतुस्राव नियत समय के बहुत बाद, यानिपथ में जलना


श्वास संस्थान- खाँसी, एवास कष्ट, खोखली खाँसी, बलगम गाढ़ा। हृदय महाधमनी के रोग, रात में धड़कन बढ़ी हुई, बायीं करवट लेटने में कष्टा


पीठ- कमर के निचले भाग में दर्द।


बाह्यांग- सुन्नपन, अंगों में खिंचाव, बाहों में भारीपन। नींद- दिन में तन्द्रालु, नींद में चौकन्ना ।


चर्म- शीत पित्त, मुहाँसें ।


मात्रा- निम्नतर और उच्चतम दोनों प्रकार की शक्तियाँ, अच्छा परिणाम देने वाली होती है।



लैकेसिस (Lachesis)

लैकेसिस (Lachesis)


जब शरीर पूर्णतया विषाक्रान्त हो तथा विषरक्तक अवस्थाओं से घिरा हो तब यह दवा विशेष प्रभावी होता है। रजोनिवृत्ति के दौरान तथा विषादग्रस्त रोगियों, कम्पन्न और भ्रान्तिजन्य लक्षणों के निराकरण में विशेष सहायक होता है।


मन- अधिक वाचाल, बेचैन और अशान्त, कोई कार्य करने की इच्छा नहीं होती है, ईर्ष्यालु, आरामतलब धार्मिक पागलपन, समय ज्ञान की गड़बड़ी ।


सिर- जागने पर सिर के आर-पार दर्द, नासिका मूल में दर्द, अत्यधिक पीला चेहरा, मन्द दृष्टि, सूर्य की रोशनी असहाय एवं पीडाजनक ।


आँखें- दोषपूर्ण दृष्टि, बाहरी पेशियाँ दुर्बल।


कान- कान के अन्दर दर्द कठदाह तथा कर्णमल कठोर और शुष्क । नाक रक्तस्रावी, नजला में पहले सिरदर्द, छींकों की बहुलता


चेहरा- पीला, फूला हुआ। मुख जीभ सूखी, मुँह सूखा, छाले और धब्बे कठ दर्द वाला दायीं ओर निगलने में कष्ट।


आमाशय- भूखा, भोजन की प्रतीक्षा असहाय, दबाव, कम्पन, निगलने में कष्ट की अनुभूति


उदर- उदर फूला हुआ।


मल- कब्जियत, लगातार हाजत का बना रहना।


श्वास संस्थान- लेटने पर श्वास घुटने सी अनुभूति हृदय धड़कन, अधीरता, अनियमित धडकन। पीठ गर्दन में दर्द


बाह्यांग- दायी और लटने से सुख की अनुभूति होती है। नींद निद्राल पर साते हुए अचानक चौक पड़ता है।


ज्वर- पीठ में ठण्ड । चर्म गरम पसीना, गिल्टियाँ |


मात्रा- आठवीं से 200वीं शक्ति तक। मात्राओं को बार-बार न दोहरायें।



सल्फर (Sulphur)

सल्फर (Sulphur)


एक विशेष प्रभावकारी होमियोपैथी औषधि। इसका प्रभाव भीतर से बाहर की ओर। ऐसे रोगियों के लिए खड़े रहना असुविधाजनक होता है। स्नान की अनिच्छा तथा सभी शारीरिक स्रावों, क्षरणों की दुर्गन्धयुक्त प्रकृति, लाल और चेहरा रक्तिम |


मन- अत्यन्त भुलक्कड, भ्रान्त धारणाएँ, हर समय व्यस्त, बच्चों की तरह असतुष्ट, अत्यन्त स्वार्थी दूसरों को सम्मान नहीं देता, अच्छी भूख के बाद भी सल्फर के रोगी प्राय: दुबले-पतले, निराश और चिड़चिड़े होते हैं।


सिर- निरन्तर गर्मी और भारीपन, सिरदर्द जो झुकने पर अधिक हो जाता है, खोपड़ी शुष्क, केशों का झड़ना।


आँखें- किनारे ज्वलनशील, आँखों में गर्मी तथा आँखों के सामने काली विन्दियाँ दिखायी पड़ती है।


कान- कानों के अन्दर साँय साँय की आवाज सुनायी पड़ना।


नाक - अन्दर से नाक बन्द ।


मुख - ओठ सूखे, ज्वलनशील कडुआ स्वाद, जीभ सफेद, मसूड़े


कंठ- दबाव का अहसास, जलन, लालिमा, खुश्की ।


आमाशय- अत्यधिक भूख का लगना या पूर्ण क्षुधालोप, पीता बहुत खाता कम, दूध सहन नहीं, खट्टी डकारें, कुछ खाते रहने की आदत


उदर- दबाव के प्रति अधिक संवेदनशील, यकृत के ऊपर दर्द मलात्र मलद्वार पर जलन और खुजली।


मूत्र- बार बार मूत्र स्राव, विशेषकर रात को।


श्वास- संस्थान छाती पर दबाव और जलन की अनुभूति, खाँसी श्वास कष्ट । पीठ कन्धों के बीच खिंचावदार दर्द


बाह्यांग- हाथों में कम्पन, काखों में पसीना, बाहों और हाथों में वेदना, घुटना तथा टखनों में अकडून, कन्धे झुके हुए। नींद नींद बार-बार टूट जाती है। 2 से 3 बजे नींद नहीं आती है।


ज्वर- सारे शरीर के अन्दर और बाहर ताप की अनुभूति, सूखी त्वचा और अधिक प्यास।


चर्म- सूखा, खुजली, जलन, खुजलाने और धोने से वृद्धि।


मात्रा- निम्नतम शक्तियों से उच्चतम, सभी काम करती है।



सिना (Cina)

सिना (Cina)


यह बच्चों के लिए बहुत ही उपयोगी औषधि है। उनमें कृमि, चिड़चिड़ापन, भूख की कमी, दाँत पीसना, चीखना चिल्लाना, हाथ पैरों में झटके लगना आदि समस्याएँ इस औषधि से दूर करने में सहयोगी होती है।


मन- हमेशा बदमिजाज, जिद्दी, अनेक चीजों की माँग करने वाला होता है वह नहीं पसन्द करता कि कोई उसे स्पर्श करे या गोद उठाये।


सिर- सिरदर्द और पेट दर्द, लिखने-पढ़ने में सिरदर्द की शिकायत।


आँखें- हर चीज पीली दिखायी देती है, उदर क्षोम, मन्द दृष्टि, देखने में थकान, टीस आदि होते हैं।


कान- हर समय नाक में खुजली होती रहती है।


नाक- रगड़ता है या बार-बार हाथ से नोचता है।


चेहरा- गालों में लाली, चेहरा पीला चेहरे पर पसीना, नींद में दाँत पीसता हैं। आखों के चारों ओर काले छल्ले।


आमाशय- खाना खाने के बाद तुरन्त भूख लगती है। पेट नाभि के आसपास मरोड, फूला हुआ तथा कठोर पेट। मल सफेद रंग का, कृमि, मलद्वार में खुजली।


मूत्र- गदला, और सफेद।


श्वास- संस्थान खाँसी अथवा काली खाँसी।


बाह्याग- कम्पन्न, स्फुरण, एकाएक बिस्तर से उछल पड़ना, इधर उधर बाह


पटकना, बायाँ पैर हर समय हिलते रहना। नींद बच्चे सोते सोते घुटनों के बल बैठ जाता है। रात में सोते सोते चौक पड़ता है तथा चीख मारता है। दाँत पोसता है और अपने आप बोलता रहता है।


ज्वर- हल्की-हल्की गर्मी, हाथ गरमा


मात्रा- तीसरी शक्ति चिडचिडे स्वभाव के बच्चों को तीसवीं से 200 शक्ति।



सिनकोना आफिसिनैलिस (Cinchona Officinalis) कुनीन

सिनकोना आफिसिनैलिस (Cinchona Officinalis) कुनीन


वृक्ष की छाल शरीर को क्षीण बनाने वाले स्रावों, तथा दुर्बलता में यह औषधि विशेष रूप से उपयोगी है। ठण्डी हवा का झोंका सहन नहीं होता है। पुराना गठिया, गुर्दे के प्रदाह आदि में इसका सफलतापूर्वक प्रयोग किया जाता है।


मन- उदासीन आज्ञा न मानने वाला, खिन्न तथा बदमिजाज, सहसा चीख मारना। सिर- जैसे दिमाग इधर-उधर लुढ़क रहा हो और खोपड़ी टकरा रहा हो । सिर और गर्दन की नाड़ियों में फड़कन, गरम कमरे में आराम, सिर में मन्द-मन्द में दर्द, चलते समय चक्कर आना।


आँखें- आँखों के इर्दगिर्द नीलापन, गरम अश्रुपात कान- आवाज सहन नहीं होती, कान लाल और सूजे हुए होते हैं।


नाक- जुकाम, नकसीर, सूखी छींकें, नाक के पास पसीना।


चेहरा- चेहरा फूला लाल ।


मुख- दाँत दर्द, कडुआ स्वाद भोजन का स्वाद नमकीन लगता है।


आमाशय - ठण्डा, मन्द पाचन, वमन, भूख लगती है लेकिन खाना नहीं खाया जाता है, हिचकी आती है।


उदर- पेट के निचले भाग में दायीं ओर दर्द, पित्त पथरी का दर्द, यकृत प्लीहा सूज हुए।


मल- वेदनाहीन तथा पीला, पेट में अधिक हवा भर जाती है। पतला मल भी कठिनाई से उतरता है।


पुरुष- कामवासना अधिक बढ़ जाती है बार-बार स्वप्नदोष |


स्त्री- ऋतुस्राव समय से पहले, कामवासना में वृद्धि।


श्वास संस्थान- सिर नीचा करके श्वास नहीं ले सकता श्वास कष्ट, बायें फफड़े में तेज दर्द


हृदय- दुर्बल तेज धड़कने, रक्ताल्पता।


पीठ- गुर्दे में दर्द कमर के इर्द-गिर्द भी दर्द की अनुभूति होती है।


बाह्यांग- अंगों और जोड़ों में दर्द, अत्यधिक दुर्बलता, स्पर्श किया जाना। सहन नहीं।


चर्म- एक हाथ बर्फ सा ठण्डा दूसरा गरम


नींद- जल्दी नींद खुल जाती है, अधिक देर तक सोता है, खर्राटे लेने की आदत। ज्वर- ज्वर हर सप्ताह लौट आता है। ज्वर प्राय: दोपहर से पहले आता है, रात में पसीना, कनपटियों में दर्द।


मात्रा- मूलार्क से तीसरी शक्ति तक।

सिनेरिया (Cineraria) डस्टी मिल्लर

सिनेरिया (Cineraria) डस्टी मिल्लर

मोतियाबिन्द के उपचारार्थ एक ख्याति प्राप्त औषधि। 1-1 बूँद दिन में 4-5 बार आँख में टपकाई जाती है। इसका प्रयोग कई माह तक जारी रखें। चोट लगने की अवस्था में भी लाभदायी होता है।

साइलीसिया (Silicia) शुद्ध चकमक पत्थर

साइलीसिया (Silicia) शुद्ध चकमक पत्थर


सिलीका का रोगी ठण्डा और शीत कातर होता है, वह अँगीठी संकता रहता है। वहाँ के झोकों को पसन्द नहीं करता। उसके हाथ पैर ठण्डे रहते हैं। सर्दियों में उसके कष्ट बढ़ते हैं। ठण्ड लग जाने का अधिक भय तथा शारीरिक एवं मानसिक शान्ति का अभाव होता है। इस प्रकार के रोगों में अन्य रोगों जैसे सिरदर्द, मिर्गी, रोग शुरू होने के पूर्व ठण्डक की अनुभूति, गंडमाला ग्रस्त बच्चे, पेट फूला, चाल धीमी, भगंदर अस्थियों के रोग तथा स्नायविक दुर्बलता की दशायें।


मन- हृदय दुर्बल, अधीर, उत्तेजनाशील, हठी और ढीठ बच्चे, विक्षिप्त मन, भयभीत मना


सिर- भूखा रहने से दुखता है, बायीं करवट लेने तथा कपड़े लपेटे रहने से आराम, सिर में अधिक पसीना, दुर्गन्धयुक्त, सिरदर्द दोनों भौंह के बीच सुजना आँखें अश्रु नली में सूजन, दिन की रोशनी अरुचिकर पढ़ते समय अर साथ-साथ चलते हैं दृष्टि विधान्त की दशा।


कान- दुर्गन्धित स्राव, गजन ध्वनियाँ, कोलाहल अप्रिया


नाक- सूखी, कठोर पपड़िया जमती है, सबरे छींक, नाक बन्द, चेहरा लाल शीतल होठों के किनारे की चमड़ी फटी हुई तीव्र वेदना युक्त।


मुख- मसूड़े ठण्डी हवा के प्रति संवेदनशील मसूड़ों पर फोड़े, जीभ के ऊपर बाल जैसी होने की अनुभूति कंठ तालुमूल ग्रन्थि में पिन जैसी चुभने जैसी अनुभूति गले में सर्दी, कान सूज हुए।


आमाशय- गरम भोजन के प्रति अनिच्छा, भूख का अभाव, अत्यधिक प्यास। उदर- उदर में वेदना, कब्जियत, पीले हाथ और नीले नाखून। मूत्र- रक्तिम, कृमि ग्रस्त बच्चों में रात्रि में शैय्या पर पेशाब करना।


मलांत्र- मल कठिनाई से निकलता है और फिर पुनः अन्दर चला जाता है, बहुत जोर लगाना पड़ता है। कब्जियत बनी रहती है।


पुरुष- जननेन्द्रियों में जलन।


स्त्री- तीखा प्रदर स्राव, योनिपथ में खुजली, स्तनों में कठोर गाठें।


श्वास संस्थान- सर्दी जुकाम बना रहता है जल्दी ठीक नहीं होता, खाँसी के साथ बलगम, छाती एवं पीठ में वेदना ।


पीठ- दुर्बल मेरुदण्ड, रीढ़ की हड्डी के रोग, मेरुदण्ड का क्षय रोग।


निद्रा- नींद में उठ खड़ा होना, नींद में बार-बार चौंक पड़ना । चर्म- अंगुल बैठे, अँगुलियों की नोंक में दरारें तथा सूजी हुई।


ज्वर- शीतानुभूति, रात का पसीना, ठण्डी हवा के प्रति अत्यधिक असहिष्णुता सारे शरीर में कुछ रेंगने जैसी अनुभूति होती है।


मात्रा छठी से तीसवीं शक्ति तक। 200वीं शक्ति और उच्चतर शक्तियाँ भी प्रभावी होती है।



सीपिया (Sepia)

सीपिया (Sepia)


दुर्बलता, पीताभवर्ण, निम्नामिमुखी महिलायें पीठ तक दर्द, गर्भपात की प्रबलता, दुर्बलता पसीना, श्याम वर्ण की स्त्रियों में सीपिया की अच्छी क्रिया होती है। क्षयरोग से पीड़ित स्त्री, यकृत के पुराने रोग, गरम कपड़े में भी ठण्डक महसूस करना, स्पन्दनशील सिरदर्द।


मन- कामकाज और परिवारजनों से अरुचि, चिड़चिड़ी, अकेलेपन से डर अत्यन्त दुःखी, रोग का वर्णन करते समय रो पड़ना।


सिर- अधिकतर बायीं ओर या माथे पर भीषण दर्द, कपालशीर्ष की ठण्डक. वमन, केशों का झड़ना, ऋतुस्राव में अधिक दर्द व पीड़ा।


नाक- गाढ़ा हरा स्राव, नथुनों में पपड़िया। आँखें दुर्बल दृष्टि, पलकें लटक जाती हैं।


कान- दर्द और सूजन। चेहरा पीले धब्बे फीका।


मुख- जीभ सफेद, गन्दी, नमकीन स्वाद, होंठ की सूजन। आमाशय- शून्यता की अनुभूति, खाने के बाद वमन की प्रवृत्ति, पेट में जलन, खट्टी डकारें ।


मलांत्र- मलत्याग के दौरान रक्तस्राव, कठोर मल, मलांत्र तथा योनिपथ में ऊपर की ओर दौड़ती वेदनायें। मूत्र- लाल, अनैच्छिक मूत्रस्राव ।


पुरुष- जननांग ठण्डे, पुराना सुजाक, दुर्गन्धित पसीना।


स्त्री- अतिविलम्बित और अल्प ऋतुस्राव, प्रातःकालीन मितली और वमन । श्वास संस्थान- सूखी खाँसी, श्वास कष्ट, नमकीन स्वाद, सबेरे खाँसी में प्रचुर बलगम


हृदय- भयानक स्पन्दन तमतमाहट तथा कम्पन्न होता है। पीठ- कटि प्रदेश में दुर्बलता तथा वेदना ।


बाह्यांग- निम्नांग कठोर तथा तनावग्रस्त, भारीपन की अनुभूति, टाँगों में ठण्डक।


ज्वर- बार-बार गर्मी की अनुभूति, पसीना पैर ठण्डे गीले कँपकँपी, प्यास।


चर्म- चक्राकार दाद, खुजली, दुर्गन्धित पसीना, पैरों पर अधिक असहाय दुर्गन्ध।


मात्रा- बारहवीं 30वीं तथा 200वीं शक्ति। अधिक शक्तियों का प्रयोग न करें तथा बार बार दोहराये भी नहीं।

सैवल सेरूलैटा (Sab Serrulata)


जननांग मूत्र की उत्तेजना को नष्ट करने वाली औषधि, यौन दुर्बलता में प्रभावी,


मूत्र सम्बन्धी विकारों की रामबाण औषधि, आलस्य निर्लिप्तता का भाव अधिक। सिर- विभ्रान्त, अधिक क्रुद्ध स्वभाव, सिरदर्द, घुमनी, दर्द नाक से ऊपर की ओर।


आमाशय- डकारें और अम्लता, दूध पसन्द।


मूत्र- रात्रि को मूत्र त्याग की निरन्तर इच्छा कष्टदायक मूत्रस्राव प्रदाह से युक्त।


पुरुष पुरस्थ ग्रन्थि सम्बन्धी रोग वृषणों का क्षय रतिशक्ति का लोप. वीर्यस्खलन समय कष्ट जनन यन्त्र ठण्डे


स्त्री- स्तन सिकुड़े, विकृत कामेच्छायें। श्वास संस्थान- प्रचुर बलगम के साथ नाक की सर्दी। मात्रा- मूलार्क, दस से तीस बूँदें।



सेरिइनम (Psorinum)

सेरिइनम (Psorinum)


यह एक शीतप्रधान औषधि है। ठण्ड के प्रति अत्यधिक असहिष्णुता, ग्रीष्म में


भी गरम कपड़े पहनना चाहता है। सिर को गरम रखना चाहता है। दुर्बलता, स्रावों से भारी दुर्गन्ध, हृदय की दुर्बलता उपदंश, गंडमाला ग्रस्त रोगी । मन- निराशा गहन और स्थायी विषाद आरोग्य होने की आशा नहीं रहती, धर्मान्ध तथा आत्महत्या करने की प्रवृत्ति । सिर दर्द अधिक वेग से, हथौड़ा पड़ने जैसा दर्द, शुष्क केश, मस्तिष्क बड़ा प्रतीत होता है।


आँखें- परस्पर चिपकी हुई, पलकों के किनारों में प्रदाह । मुख- जीभ और मसूड़े व्रण ग्रस्त, दुर्गन्धित स्वाद वाला ।


नाक- सर्दी जुकाम के साथ बन्द नाक, गुलाबी मुहाँसे ।


कान- कानों के चारों ओर रक्त स्रावी फुन्सियाँ कानों के पीछे पीड़ा, दुर्गन्धित स्राव चेहरा- फीका, ऊपर ओंठ में सूजन।


कंठ- तालु ग्रन्थियाँ सूखी हुई, गले में कठोर श्लेष्मा, कानों में प्रचुर मात्रा में दर्द। आमाशय- डकारें, आधी रात में कुछ न कुछ करने की आदत, खाने के बाद पेट में दर्द का होना।


मल- रक्तिम अति दुर्गन्धित श्लेष्मा युक्त कठोर मल कब्जियत


श्वास संस्थान- दमा के साथ बैठने से श्वास कष्ट, वृद्धि, लेटने पर आराम, छाती में दर्द।


बाह्यांग- सन्धियों में दुर्बलता, पैरों में दुर्गन्धित पसीना।


चर्म- मैला गंदला, असहाय खुजली, फुन्सियाँ।


नींद- अनिद्रा


ज्वर- प्रचुर दुर्गन्धित पसीना।


मात्रा 200 से उच्चतर शक्तियाँ दवा बार-बार न दें केवल एक ही मात्रा दीर्घावधि हेतु दें।



हाइड्रेस्टिस (Hydrastis)

हाइड्रेस्टिस (Hydrastis)


गला, पेट, गर्भाशय, मूत्र मार्ग किसी स्थान पर हो विशेष प्रकार के श्लैष्मिक स्राव जब होता हो तथा धातु विकारी पुरुषों में अति कमजोरी हो । हाइड्रोटिस वृद्धों तथा आसानी से थकने वाले लोगों, मन्द पाचन क्रिया में कठोर कब्ज, दुबलापन शिथिलता में तथा जब केवल दर्द ही मुख्य लक्षण हो, तव विशेष प्रभावी होता है। चेचक में भी इसका प्रयोग लाभकारी होता है।


मन- उदास, मरने की इच्छा।


सिर- सिर के अगले भाग में दर्द, जुकाम के बाद मसूड़ों में सूजन।


नाक- नजला, पीनस रोग, हर घड़ी नाक साफ करने की आदत


कान- गर्जन, बहरापन।


मुँह- कालीमिर्च जैसा स्वाद, जिह्वा सफेद और सूजी हुई जुबान के घाव। गला प्रदाह, श्लेष्मा युक्त खखारना ।


आमाशय- जिगर मन्द, कमला रोग, पित्त पथरी, पाचन क्रिया कमजोर, मन्दाग्नि रोटी या सब्जी खाने में कठिनाई।


उदर पक्वाशय सम्बन्धी नजला।


पीठ- भारी, उठने के लिए बाहों का सहारा लेना पड़े। मलांत्र- कब्ज गुदा बाहर निकली हुई, पाखाना के बाद भी देर तक पीड़ा बनी रहे।


मूत्र- पेशाब में दुर्गन्धा


पुरुष- सूजाक, स्राव पीला।


स्त्री- योनि में तीव्र खाज, मैथुन की इच्छा अधिक।


चर्म- लाल चकत्ते जैसे दाने।


श्वास- यन्त्र सूखी कर्कश खाँसी।


मात्रा- अरिष्ट से 30 शक्ति तक।



हाइपेरिकम (Hypericum)

हाइपेरिकम (Hypericum)


स्नायु में जब चोट लग जाये तो उसकी प्रभावी दवा मानी जाती है। कील आदि के गड़ने से बने घाव तथा शल्य क्रिया के बाद की पीड़ा को कम करना। बवासीर गुदास्थिशल तथा मलांत्र पर विशेष प्रभाव डालती है। दमा के हमले, जानवरों के काटने पर जलन सुन्न होना, टीस में लाभकारी दवा होती है।


मन- विषादग्रस्त धक्का लगने को बुरा मानना, लगता हो जैसे हवा में उड़ा जा रहा हो।


सिर- भारी मालूम होता हो, थरथराहट, चेहरे का स्नायु शूल, उदासी सिर बड़ा मालूम पड़े आँखों तथा कानों का दर्द, बाल का झड़ना । मलांत्र- मलत्याग की इच्छा, सूखा मल, खूनी बवासीर ।


आमाशय- प्यास मिली, जिह्वा के जड़ पर सफेद मल, शराब पीने की इच्छा।


पीठ- गर्दन की जड़ में दर्द।


अंग- कन्धों में दर्द, पिण्डलियों में ऐंठन, पैर और हाथ की अंगुलियों में दर्द, स्नायु प्रदाह टपकन, सुन्न होना, जोड़ों की कार्यहीनता।


श्वास यन्त्र- दमा जो कोहरे में बढ़े।


चर्म- बहुत ज्यादा पसीना, अकौता, तीव्र खाज के दाने, मुँह के पुराने घाव।


|घटना बढ़ना- बढ़ना ठण्डक में कोहरा के समय बन्द कमरे में, घटना


सिर पीछे झुकने से।


मात्रा- अरिष्ट से 3 शक्ति तक।



इसके अतिरिक्त 12 और दवाइयां जल्द ही जोड़ी जाएगी