यह संगठन राष्ट्रीय मूलनिवासी बहुजन कर्मचारी संघ जोकि बामसेफ की विचारधारा के तहत संयुक्त रूप से SC/ST/OBC/CM ( Converted Minorities ) के लोगों का ट्रेड यूनियन है, जिसका पंजीकरण संख्या - Reg. ALC/ Karyasan- 17/10744 है। यह ट्रेड यूनियन- ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 के अंतर्गत पंजीकृत है, इस ट्रेड यूनियन की शाखा के तौरपर PROTAN देशभर के सभी सरकारी व निजी शिक्षा संस्थायों के प्राध्यापक, अध्यापक व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों का संगठन है अर्थात शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत सभी लोगों का संगठन है।
SC, ST, OBC, Minority जो कि भारत देश के मूलनिवासी हैं और हजारों सालों से सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं धार्मिक समस्याओं से ग्रसित हैं। इनकी विशेष समस्याओं को ध्यान में रखते हुए भारत के संविधान में Article 340,341,342, एवं Article 25 से 29 लिखे गए हैं।
आज देश में शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत मूलनिवासी लोगों का संयुक्त रूप से कोई राष्ट्रीय स्तर का संगठन नहीं है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग एवं इनसे धर्म परिवर्तित अल्पसंख्यक समाज के संगठन ब्लाक, जिला, मंडल या प्रदेश लेवल तक/ विभिन्न शिक्षा स्तर तक/ सरकारी अध्यापकों तक सीमित हैं। यह सारे संगठन या तो समस्या को ध्यान में रखकर बने हैं या फिर कल्याणार्थ बने हैं। हजारों संगठन होनें के बावजूद हमारी समस्याओं का अंत एवं कल्याण नहीं हो पा रहा है ,क्योंकि मूलनिवासी साथियों के संगठन टुकड़ों में विभक्त हैं, जबकि सामूहिक रूप से संगठनों पर मनुवादियों का कब्जा एवं नियन्त्रण है। मूलनिवासी महापुरुषों के आंदोलन की अंतिम कड़ी का नेतृत्व करके डॉ. बाबा साहब अंबेडकर साहब नें राष्ट्रव्यापी संगठन का निर्माण किया और हमे संवैधानिक अधिकार दिलवाने में सफलता प्राप्त की।
आज मूलनिवासी बहुजन मूलनिवासी समाज के शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत प्राध्यापकों, अध्यापकों व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों का राष्ट्रव्यापी संगठन न होनें के बजह से हम लोग अपने संवैधानिक अधिकारों को बचा पानें में सक्षम नहीं हैं। इसीलिए हम मूलनिवासी लोगों को संगठित करना चाहते हैं व उनकी समस्यायों का स्थायी समाधान करना चाहते हैं।
1848 से लेकर 1956 तक (राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले से लेकर डॉ बाबा साहब अंबेडकर तक) हमारे महापुरुषों नें क्रमिक असमानता पर आधारित समाज व्यवस्था के विरोध में आंदोलन चलाया और गैर बराबरी की व्यवस्था को समाप्त करनें का लक्ष्य रखा। जो लोग इस व्यवस्था से पीड़ित हैं, वही लोग व्यवस्था परिवर्तन के आंदोलन में सक्रिय सहभागी हो सकते हैं। जिनको इस व्यवस्था से लाभ होता है उनको संगठित करने का कोई तर्क नही है । इसलिए गैर बराबरी की व्यवस्था से पीड़ित SC/ST/OBC/CM को व्यवस्था परिवर्तन के आंदोलन में सहभागी बनानें के लिए और बाबा साहब डॉ अंबेडकर के द्वारा सन् 1954 में कही गई बात को ध्यान में रखते हुए कि जिस समाज में 10 डॉक्टर, 20 इंजीनियर एवं 30 वकील होंगे, वह समाज प्रगल्भ होगा और उस समाज की तरफ कोई आँख उठाकर नहीं देख सकता। इसीलिए हम SC /ST/ OBC/ CM को संगठित करना चाहते हैं।
समस्यात्मक दृष्टिकोण से SC ST OBC व minority (एस सी, एस टी, ओबीसी व अल्पसंख्यक) के लोग सबसे ज्यादा समस्या ग्रस्त हैं। इनकी सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक, धार्मिक एवं राजनैतिक समस्यायें गम्भीरतम रूप से प्रकट हो चुकी है । अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातिआयोग ,अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग, अल्पसंख्यक आयोग का गठन इन वर्गों के हक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिये किया गया है जिससे इनकी समस्याओ का समाधान किया जाएगा परन्तु इन वर्गों की समस्यायें समान रूप से विकराल रूप ले चुकी है । इन समस्याओं के वास्तविक कारण हैं ।
▪️26 नवंबर 1949 को भारत के संविधान को अंगीक्रित अधिनियमित और आत्मर्पित करते हुए भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी , धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया। संविधान का उद्देश्य समता, स्वतंत्रता, बन्धुत्व न्याय पर आधारित समाज एवं राष्ट्र का निर्माण करना रखा गया। 25 नवम्बर 1949 को संविधान सभा मे, संविधान सभा के ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर ने कहा था कि राजनैतिक लोकतन्त्र तब तक कायम नही रह सकता जब तक कि उसकी बुनियाद में सामाजिक लोकतन्त्र न हो अर्थात जीवन के सिद्धांतों के रुप में समता, स्वतन्त्रता और भाईचारा न हो । समानता के बिना स्वतन्त्रता, बहुसंख्या पर मुट्ठी भर लोगों का प्रभुत्व कायम कर लेगी , भाईचारा के बिना स्वतन्त्रता और समानता स्वाभाविक सी बातें नही लगेगी, सदन को यह करना पड़ेगा कि भारतीय समाज मे समाजिक और आर्थिक समानता का आभाव है ।
26जनवरी 1950 को हम राजनीतिक रूप से समान होंगे एवम सामाजिक और आर्थिक रूप से असमान होंगे, जितना शीघ्र हो सके हमे यह भेद और पृथकता दूर करनी चाहिये, यदि ऐसा नही किया गया तो वह लोग जो इस भेदभाव का शिकार है , राजनैतिक लोकतन्त्र की धज्जियाँ उड़ा देंगे ,जो इस संविधान सभा ने इतनी कड़ी मेहनत से बनाया है ।
भारत मे जातियाँ है,यह जातियाँ राष्ट्र विरोधी है। सर्वप्रथम सामाजिक जीवन मे पृथकता लाती है, जाति और जाति के बीच ईर्ष्या और घृणा पैदा करती है । यदि हम सच्चे अर्थों में एक कौम बनना चाहते है तो हमे इन कठिनाइयों पर काबू पाना पड़ेगा।
(We must make our political democracy, a social democracy as well , political democracy cannot last unless there live at the base of social democracy.
What does the social democracy means? it means a way of life which recognizes liberty , equality and fraternity,as the enter into a life of contradictions ,in political are will have equality and in social & economic life ,we will have inequality,we must remove this contradictions at the earliest moment or else those who suffer from inequality will blow up the structure of political democracy which this assembly has so laboriously built up )
आज भी भारत के संविधान और संविधान निर्माताओं की अपेक्षाओं को पूरा नही किया जा सका है, इसलिये हम शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत सभी प्राध्यापकों, अध्यापकों व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों को संगठित करना चाहते है ।
1500 से 1700 ई. पू. आक्रमणकारी युरेशियन लीगो ने धोखाधड़ी, विश्वासघात, लालच, साम, दाम,दण्ड, भेद की नीति का सहारा लेकर भारत की सिन्धु सभ्यता को नष्ट किया और भारत के मूलनिवासियो को परास्त किया । परास्त किये गए लोगो को दीर्घकाल तक गुलाम बनाये रखने के लिये आक्रमणकारी यूरेशियन लोगो ने वर्ण व्यवस्था का निर्माण किया और स्वयं को को व्यवस्था में सबसे ऊपर रखा । भारत के मूलनिवासियो को गुलाम बनाकर व्यवस्था में सबसे नीचे रखा । भारत के मूलनिवासियो को शिक्षा ,सम्पत्ति ,शस्त्र के अधिकार से वंचित किया । भारत मे पहले से ही गण व्यवस्था (गण संस्था) थी इसलिये गण संस्था के लीगो ने वर्ण संस्था ( जो गुलाम बनाने बाली व्यवस्था है ) को अमान्य करना शुरू कर दिया ,इससे संघर्ष उत्पन्न हुआ । बाद मे लिच्छवी गण के महावीर और शाक्य गण के गौतम बुद्ध ने इस संघर्ष का नेतृत्व किया ऐसा इतिहास में दिखाई देता है ।
इस संघर्ष में तथागत बुद्ध ने बड़ी भूमिका निभाई । उन्होंने वर्ण (अंग्रेजी में colour व हिंदी में रंग) व्यवस्था जिस वैचारिक आधार पर खड़ी थी उस वैचारिक आधार को चुनौती दी । बुद्ध ने जिस विचारधारा का विकास किया वह पाली भाषा के साहित्य त्रिपिटक में उपलब्ध है । बुद्ध के वर्ण व्यवस्था विरोधी आन्दोलन ने प्राचीन भारत क्रांति की जिसके तीन बहुत बड़े परिणाम निकले। *बुद्ध की क्रांति के परिणाम*
1) यूरेशियन लोगो ने मूलनिवासियो को शुद्र बनाकर अधिकार वंचित किया था और अधिकार वंचित करके गुलाम बनाने का षड्यंत्र किया था ,उसी गुलाम प्रजा से बुद्ध की क्रान्ति से राजा पैदा हुए । चन्द्रगुप्त मौर्य ,सम्राट अशोक जैसे महान राजा पैदा हुए। मौर्य लोग मूलनिवासी नागवंशी थे ।
2) वर्ण व्यवस्था ने समस्त स्त्रियों को शुद्र घोषित करके गुलाम बनाया गया था, इस क्रान्ति से समस्त स्त्रियों को आज़ाद घोषित किया गया ।
3) ज्ञान ,विज्ञान का विकास हुआ, नालन्दा ,तक्षशिला ,विक्रमशिला जैसे महान विश्वविद्यालयो का निर्माण हुआ ।
प्रतिक्रान्ति
यूरेशियन लोगो ने अपना वर्चस्व पुनः स्थापित करने के लिये प्रतिक्रान्ति की तैयारी शुरू कर दी थी । ब्राह्मणों ने भिक्षु संघ ने घुसपैठ की और भिक्षु संघ कक अन्दर से विभाजित किया एवं बुद्ध की विचारधारा में मिलावट करके लोगो मे भ्रांतिया फैलाई । मौर्य राज व्यवस्था में बुद्धिज्म कक लोकाश्रय मिला हुआ था , मौर्य राज व्यवस्था में घुसपैठ करके अन्दर से खोखला किया और पुष्यमित्र श्रृंग ने आखिरी मौर्य सम्राट वृहद्रथ की हत्या करके प्रतिक्रान्ति की ।
प्रतिक्रान्ति के महत्वपूर्ण परिणाम
1) बुद्धिज्म का लोकाश्रय समाप्त हो गया ।
2) ब्राह्मण धर्म को लोकाश्रय मिला और इसके लिये अश्वमेध यज्ञ और भिक्षुओं का नरसंहार किया गया ।
3) ब्राह्मण धर्म को पुनर्जीवित करने के लिये ,ब्राह्मण धर्म को समर्थन करने वाले नए गर्न्थो का निर्माण किया गया जिसमें पुराण ,रामायण ,महाभारत ,गीता,मनुस्मृति प्रमुख है ।
4) जाति व्यवस्था का निर्माण ।
5) क्रमिक असमानता का निर्माण
6)अश्पृश्यता का निर्माण।
7) आदिवासियों का अलगीकरण
8) स्त्रीदास्य
9) शुद्रो का ब्राह्मण धर्म से समझौता एवम मूलनिवासियो का कई समूहों में विभाजन 👉🏻
अ) जिन्होंने ब्राह्मण धर्म को स्वीकार किया उन्हें शुद्र का दर्जा मिला
ब) जिन मूलनिवासियो ने ब्राह्मण धर्म स्वीकार नही किया उन्हें अछूत घोषित कर दिया गया ।
स) जिन मूलनिवासियो ने ब्राह्मण धर्म स्वीकार नही किया, परन्तु जंगलो में रहे उन्हें आदिवासी करार दिया ।
द) जिन्होंने ने अपने जीवन निर्वाह के लिये अपराध करना शरू किया उन्हें क्रिमिनल ट्राइब घोषित कर दिया गया ।
इस तरह से मूलनिवासियो को विभाजित करके गुलाम बनाया गया। बाद में इस्लाम धर्म को मानने वाले मुगल , ईसाई धर्म को मानने वाले अंग्रेज आये तब मूलनिवासियो ने इस्लाम धर्म, क्रिश्चियन धर्म को स्वीकार किया, कुछ मूलनिवासियो ने अलग धर्म भी बनाने का कार्य किया जैसे सिख धर्म,लिंगायत धर्म, मतुआ धर्म क्रमशः ।
राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले से लेकर बाबा साहब डॉ. अंबेडकर तक चले आंदोलनों का परिणाम भारत का संविधान है । भारतीय संविधान के 13वे अनुच्छेद के अनुसार 26 जनवरी 1950 के पहले के सारे कानून ,रूढ़ि ,परम्पराए शून्य घोषित हुए एवम भविष्य में कली ऐसा कानून ,रूढ़ि,परम्परा नही बनाई जाएगी जिससे मौलिक अधिकारों का हनन होता हो ,ऐसी व्यवस्था की गई । शिक्षा ,सम्पत्ति ,शस्त्र पर लगाये गये प्रतिबन्ध समाप्त हो गये ।शिक्षा ,सम्पत्ति ,शस्त्र यह शासक बनने के अधिकार है ।संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारो की बजह से मनुस्मृति जे आधार पर बनाई ग्गी क्रमिक असमानता की मनुवादी व्यवस्था डगमगाई और मूलनिवासी समाज मे मेडिकल प्रोफेशनल वर्ग ,कर्मचारी ,आई ए एस ,आई पी एस, आई आर एस ,नेता, एवम विद्यार्थी वर्ग क्रमशः निर्माण हुये । संविधान की बजह से अधिकार वंचित (गुलाम) मूलनिवासी समाज मे नेतृत्व करने वाला बुद्धिजीवी वर्ग निर्माण होने लगा । अधिकार वंचित करके गुलाम बनाया गया मूलनिवासी समाज भारत का पुनः शासक बन सकता है ,इसलिये संविधान की निर्मति के दिन से ही इसे प्रभावशून्य करने का प्रयास शासक वर्ग द्वारा निरन्तर जारी है क्योकि भारत का संविधान मनुस्मृति का एंटीडोट है ।इसलिए हम लोग प्राध्यापकों, अध्यापकों व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों को संगठित करना चाहते हैं।
राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले एवम बाबा साहब डॉ अम्बेडकर ने शिक्षित वर्ग की निर्मति को प्राथमिकता दी ,क्योकि शिक्षित वर्ग बुद्धिजीवी होता है और इस शिक्षित वर्ग की विशेषताएं होती है : -
1( सही - गलत की समीक्षा करनें की क्षमता।
2)सड़ी - गली व्यवस्था जिसनें गुलाम बनाया है, उसको बदलनें की क्षमता
3)व्यवस्था को समाप्त करके उसकी जगह संवैधानिक व्यवस्था को स्थापित करनें के लिए संगठन बनानें की क्षमता।
4) अध्यापक व कर्मचारी वर्ग यह उच्च श्रेणी का बुद्धिजीवी वर्ग है ।
5) यह वर्ग दिशाहीन लोगों को सही दिशा दिखा सकता है।
6) नेतृत्व विहीन समाज को नेतृत्व प्रदान कर सकता है।
बुद्धिजीवी प्राध्यापक अध्यापक व शिक्षणेत्तर कर्मचारी का समाज में प्रभाव है। समाज के लोगो मे इनकी मान्यता है व सम्मानित है। अतः हम देश मे चलाये जा रहे व्यवस्था परिवर्तन के आन्दोलन में सहभाग करे तो महापुरुषों द्वारा निर्धारित उद्देश्य को पूरा करने में समय नही लगेगा ।
राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले एवं डॉ बाबा साहब अम्बेडकर ने बुद्धिजीवी वर्ग की निर्मिति को प्राथमिकता दी क्योंकि बुद्धिजीवी वर्ग व्यवस्था परिवर्तन के आन्दोलन का नेतृत्व करने की क्षमता रखता है । व्यवस्था परिवर्तन के आन्दोलन के लिये बुद्धिजीवी वर्ग महत्वपूर्ण साधन है ,इसलिये हमारे महापुरुषों ने बुद्धिजीवी वर्ग के निर्माण को प्राथमिकता दी ।
क्या SC/ST/OBC/CM से निर्मित प्राध्यापक, अध्यापक व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों का वर्ग अपनें निर्माताओं की इच्छा के अनुरूप कार्य कर रहे हैं ? इसकी समीक्षा करनें पर पता चलता है कि यह वर्ग ऐसे किसी कार्य में सक्रिय रूप से भागीदार दिखाई नहीं देता और जिस समाज से यह वर्ग आया है उसे उपेक्षित भाव से देखता है। बाबा साहब डॉ अम्बेडकर ने बड़े दुःखी मन से 18 मार्च 1956 को आगरा के रामलीला मैदान में कहा था कि " मुझे पढ़े लिखे लोगों नें धोखा दिया है, मैं यह सोचता था कि पढ़ लिखकर यह वर्ग अपने समाज की सेवा करेगा , मगर मैं देख रहा हूं कि मेरे इर्द गिर्द बाबुओ क्लर्को की भीड़ इकट्ठा हो गई है । यह आहत भावना इस बात का सबूत है कि पढ़ा लिखा बुद्धिजीवी वर्ग अपने समाज से और उनके स्नेहभाव से दूर जा रहा है ।,, नही बजह है कि गांवों में रहने वाले लोगो के साथ अन्याय अत्याचार और भेदभाव बढ़ गया है और यह हमारे सगे सम्बन्धियो के साथ भी हो रहा है । जिस कार्य के लिये इस वर्ग का निर्माण हुआ था वह कार्य वह कार्य यह वर्ग करता हुआ दिखाई नही दे रहा है। इस बुद्धिजीवी वर्ग से अपेक्षा थी कि यह वर्ग अपने समाज का नेतृत्व करेगा लेकिन यह अपनी नौकरी -रोजगार में लगा है और आधे अधूरे कच्चे लोगो के हाथ मे आन्दोलन की बागडोर छोड़ दी है। इसका नतीजा हम देखते है कि राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले और डॉ बाबा साहब अम्बेडकर का आन्दोलन आज जिस गति से चलना चाहिए , उस गति से चलता हुआ दिखाई नही देता है ।
यह बुद्धिजीवी वर्ग है लेकिन अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रति सजगता का आभाव है तथा सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति उदासीनता के कारण वर्तमान में निम्नलिखित परिणाम देखने को मिल रहे है :-
1) शासक वर्ग यूरेशियन होने के साथ साथ अल्पसंख्यक होने के बाबजूद हजारो वर्षो से देश का शासक बना हुआ है और सन 1990-91 में नई आर्थिक नीति के नाम पर उदारीकरण, निजीकरण, भूमण्डलीकरण (LPG) के द्वारा मूलनिवासी बहुजन समाज के समस्त संवैधानिक अधिकारों को समाप्त करने का षड्यंत्र चलाया जा रहा है ।
2) सभी विभागों में ठेकेदारी प्रथा लागू कर दी गयी है और संविदा ( contract basis) पर नियुक्तियां की जा रही है। शिक्षा व्यवस्था में ठेकेदारी प्रथा लागू करने एवं शिक्षा को उद्योग के रूप में रूपांतरित करने का प्रयास चल रहा है, सरकारी स्कूलों को निजी करके इस व्यवस्था को प्रतिनिधित्व विहीन करके इसी दिशा में उठाया हुआ कदम है ।
3) सुप्रीम कोर्ट ने 16 नवम्बर 1992 को मण्डल कमीशन पर फैसले में ओबीसी को रिजर्वेशन इन प्रमोशन नही दिया तथा क्रीमी लेयर लगाकर प्रतिनिधित्व के अधिकार से वंचित किया और अभी 22 अप्रैल 2020 को कहा कि रिजर्वेशन मौलिक अधिकार नही है ।
4) नई शिक्षा नीति के अनुसार मूलनिवासी सकमज के व्यक्ति को अपनी जाति व्यवस्था के अनुसार ही व्यवसाय करने के लिए बाध्य होगा। हमारी शिक्षा व्यवस्था समाप्त की जा रही है।
5) COVID-19 महामारी के अंतर्गत शिक्षा व्यवस्था केवल यूरेशियनों तक ऑनलाइन शिक्षा के रूप में सीमित की जा रही है, आर्थिक व्यवस्था -23.9% GDP के कारण नौकरीयां समाप्त की जा रही है। DoPT के नए 30- 50 नियम कानून से लाखों शिक्षक व शिक्षणेत्तर कर्मचारी बेरोजगार करने का षणयंत्र है।
6) National Requirement Agency का निर्माण कर मूलनिवासी समाज के प्रतिनिधित्व के अधिकार को समाप्त करने का षणयंत्र है।
7) शासक वर्ग द्वारा अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति के लिये रिजर्वेशन इन प्रमोशन के अवसर तथा मौलिक अधिकारों को निष्प्रभावी करने की लगातार साजिश चल रही है । शासक वर्ग मूलनिवासी समाज को प्रतिनिधित्व विहीन एवम साधन विहीन बनाकर दीर्घकाल तक गुलाम बनाये रखने का अभियान चला रहा है व देश को जमींदारी प्रथा की तरफ ले जाकर लोकतंत्र समाप्त कर राजव्यवस्था लागू करने का षणयंत्र है।
मूलनिवासी शिक्षक व शिक्षणेत्तर कर्मचारी लगातार अपनी व्यक्तिगत एवम विभागीय समस्याओं में उलझे रहने के कारण समाजके आधार पर उत्पन्न हुई समस्याओं की तरफ ध्यान नही दे पा रहा है ,जिससे समाज की हालत दिन प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही है ।
बुद्धिजीवी को वही कार्य करना चाहिए, जो इसके निर्माताओं नें अपेक्षा की थी, कि जिस समाज में 10 डॉक्टर, 20 इंजीनियर, 30 वकील होंगे, उस समाज की तरफ कोई आँख उठाकर नहीं देख सकता है। देश भर में गैर बराबरी की व्यवस्था चल रही है, जब तक इस गैर बराबरी की व्यवस्था में परिवर्तन नही होगा तब तक एस सी , एस टी ,ओबीसी , धार्मिक अल्पसंख्यक के लोग व्यवस्था में पिसते रहेंगे और इस तरह उनके साथ भेदभाव होता रहेगा । इसलिए मूलनिवासी वर्ग को व्यवस्था परिवर्तन के लिये संगठित होने चाहिए और प्रभावी आन्दोलन का निर्माण करना चाहिए ।
इस वर्ग के निर्माताओं की अपेक्षा को ध्यान में रखते हुए बुद्धिजीवी वर्ग को संगठित करने का कार्य *प्रोटान* कर रहा है । इसलिए इस आन्दोलन को अन्जाम तक पहुंचाने के लिये एवम महापुरुषों द्वारा निर्धारित व्यवस्था परिवर्तन के उद्देश्य को पूरा करने के लिये सरकारी व निजी प्राध्यापक, अध्यापक व शिक्षणेत्तर कर्मचारी वर्ग को संगठित होना चाहिए।
प्रतिवर्ष 1 जनवरी को बाबा साहब डॉ भीमरावअम्बेडकर भीमा कोरेगांव ( *पूना* ) में अनपढ़ शहीद 500 मूलनिवासी सैनिको को श्रद्धा सुमन अर्पित करने जाते थे क्योंकि उन अनपढ़ शहीद सैनिकों ने 1 जनवरी 1818 को 28,000 (अट्ठाईस हजार) पेशवाओ को परास्त करके पेशवाई का अंत किया था।
अनपढ़ मूलनिवासी समाज मे दोस्त व दुश्मन की पहचान व समझ थी ,गुलाम बनाने वाली व्यवस्था की समझ थी, इसीलिए उन्होंने पेशवाई का अंत किया ।
वर्तमान में पढ़ा लिखा बुद्धिजीवी वर्ग दुश्मनो के झांसे में फंसा हुआ है ,जिसकी बजह से गुलाम बनाने वाली मनुवादी व्यवस्था की समझ नही नही है, इसलिये बुद्धिजीवी वर्ग का दुश्मनो द्वारा इस्तेमाल हो रहा है ।
जागृति का सिद्धांत है कि दोस्त और दुश्मन की पहचान होना ,दुश्मन की ताकत व कमजोरी का एहसास होना ,अपनी कमजोरी एवम ताकत की जानकारी होना और अपने इतिहास एवम महापुरुषों की विचारधारा की जानकारी होना ।
जागृति का अर्थ है समाज की समस्याओं का जबाब देने लायक समाज का निर्माण करना ।।
1848 से 1956 तक हमारे महापुरुषों नें क्रमिक असमानता की व्यवस्था के विरोध में संगठनों का निर्माण किया और संघर्ष किया, उनके संघर्ष के अनुपात में सफलताएं भी मिली, लेकिन व्यवस्था परिवर्तन का दुष्कर लक्ष्य पूरा नहीं हो सका।
6 दिसंबर 1956 को बाबा साहब डॉ अम्बेडकर के महापरिनिर्वाण के बाद संगठन एवं आंदोलन तबाह हो गया, बर्बाद हो गया और मूलनिवासी समाज में शून्यता (जड़ता) आ गई।
महापुरुषों के आंदोलन को पुर्नजीवित करनें के लिए मान्यवर दीनाभाना, मान्यवर डी के खापर्णे एवं मान्यवर कांशीराम साहब जी नें 6 दिसंबर 1978 को वोट क्लब ने दिल्ली में *बामसेफ* को निर्मित किया। जिसके पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष मान्यवर कांशीराम साहब बनें।
डॉ बाबा साहब अम्बेडकर कहते है कि शिक्षित बनो ,संगठित रहो, संघर्ष करो , दूसरी तरफ 18 मार्च 1956को आगरा के रामलीला मैदान में कहतेहै की पढे लिखे लोगो ने धोखा दिया इन बातों को ध्यान में रखते हुये बुद्धिजीवी वर्ग में सामाजऋण से मुक्त होने एवम गैरराजनीतिक जड़ो को लगाने और मजबूत करने के लिये लक्ष्य प्रेरित एवं लक्ष्य भेदी जागृति का निर्माण करने का उद्देश्य रखा गया । इसलिये मूलनिवासी समाज की 6743 जातियों में से लगभग 3000 हजार से ज्यादा जातियों में भाईचारा पैदा होना शुरू हो गया है । क्रमिक असमानता की व्यवस्था राष्ट्रव्यापी है ,इसको समाप्त करने के लिये दिशाहीन मूलनिवासी समाज मे नेतृत्व पैदा करना एवम आत्म निर्भर स्वावलम्बी आन्दोलन निर्माण करने के लिये मूलनिवासी समाज मे साधन संसाधनों का निर्माण करने और उनका समाजीकरण करने का लक्ष्य रखा गया।
इन उद्देश्यों की पूर्ति पर ही व्यवस्था परिवर्तन के आन्दोलन की सफलता निर्भर करती है ।1978 से 2009 तक अपने आपको राष्ट्रव्यापी सन्गठन के रूप में रूपांतरित किया । मनुवादी व्यवस्था द्वारा महापुरुषों के लक्ष्य प्राप्ति को निरन्तर रोकने का प्रयास किया जा रहा है । 2020 अगस्त तक में राष्ट्रव्यापी संगठन (31 राज्यो में 600 जिलो में 5000 तहशीलो तक) हो गया और 2010 से आन्दोलन को जनान्दोलन में रूपांतरित करने के लिये और उद्देश्य पूर्ति के लिये नई कार्यनीति बनाई गई ,इस नई कार्यनीति के अन्तर्गत RMBKS राष्ट्रीय मूलनिवासी बहुजन कर्मचारी संघ का जन्म 13 मई 2015 को रजिस्टर्ड हुई।
PROTAN मूलनिवासी बहुजन समाज के सरकारी - गैर सरकारी प्रोफेसर्स, टीचर्स व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों का राष्ट्रव्यापी संगठन है जोकि RMBKS की शाखा के तौर पर कार्य करता है। इसके सदस्य शिक्षक प्रतिनिधि का चुनाव लड़ सकते हैं, साथ ही 6743 जातियों को सन्गठन के साथ जोड़ने को जोड़ने को ध्यान में रखकर गैर धार्मिक रखा गया है।
महापुरुषों द्वारा चलाये गए आंदोलनों की वजह से बुद्धिजीवी वर्ग का निर्माण हुआ है। किसी भी आंदोलन को चलानें के लिए पैसा, समय, श्रम, हुनर एवं बुद्धि की आवश्यकता होती है। यह सभी आंदोलन के लिए आवश्यक साधन - संसाधन, हुनर व समय शिक्षक व कर्मचारियों के पास हैं और वह महापुरुषों के आंदोलनों की वजह से निर्माण हुए हैं। महापुरुषों के आंदोलन को अंजाम तक पहुंचानें के लिए प्रोटान नें इस दुर्लभ और दुष्कर लक्ष्य को अपनें सामनें रखा है।
1) शिक्षित, जागरूक व आंदोलनकारी समाज तैयार करना।
2)शिक्षक व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान करना।
3) निजी व सरकारी क्षेत्र के शिक्षक व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों में नेटवर्किंग
(A) मूलभूत उद्देश्य (Ultimate objective):- व्यवस्था परिवर्तन।
(B) संगठनात्मक उद्देश्य Orgnizational objective ):-
1- भारत के संविधान को हेल्थ सिस्टम में और देश में प्रभावी रूप से लागू करवाना।
2- मूलनिवासी बहुजन समाज के शिक्षक व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों की राजनैतिक व गैर-राजनीतिक जड़ों को में लगाना।
3- दिशाहीन समाज को दिशा देना।
4- मूलनिवासी शिक्षक व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों में सामाजऋण चुकाने की भावना का निर्माण करना।
5- साधन - संसाधन (बुद्धि, पैसा, समय, श्रम एवं हुनर) का निर्माण करना एवं उनका व्यवस्था परिवर्तन के लिए सुसंगत समुचित उपयोग करना।
6- क्रमिक असमानता की मनुवादी व्यवस्था से कम या ज्यादा मात्रा में पीड़ित मूलनिवासी बहुजन समाज की जातियों में जागृति लाना एवं बन्धुभाव पैदा करना।
7- नेतृत्वविहीन मूलनिवासी समाज का नेतृत्व करनें की भावना का निर्माण करना।
8) लक्ष्य प्रेरित और लक्ष्यभेदी जागृति का निर्माण करना
9) मूलनिवासी शिक्षक व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों को अपडेट करना एवम मूलनिवासी महापुरुषों की विचारधारा का प्रचार प्रसार करना ।
10) पूर्णकालीन कार्यकर्ताओं की निर्मति करना एवम उनकी व्यवस्था लगाना और सन्गठन निर्माण करना
11) राष्ट्रव्यापी आन्दोलन निर्माण में सहयोग करना।
व्यवस्था परिवर्तन की कोशिशें हजारों सालों से हो रही है। लेकिन आज तक पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं हो पायी है। इसमें हजारों महान लोगों नें अपनें प्राणों की कुर्बानियां दी, शहीद हुए लेकिन इस लक्ष्य को पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं किया जा सका। व्यवस्था परिवर्तन एक महान कार्य है, दुष्कर कार्य है इसलिए यह एक मिशन है। इस कार्य की पूर्ति में लगे हुए कार्यकर्ताओं को मिशनरी कहा जा सकता है । इस मिशन की पूर्ति के लिए हजारों - लाखों लोगों की आवश्यकता है। जिन लोगों को राष्ट्रपिता ज्योतिवाराव फुले, पेरियार ई वी रामास्वामी नायकर, बाबा साहब डॉअंबेडकर एवं सभी महापुरुषों के द्वारा चलाये गए आंदोलन का लाभ हुआ, उनका प्रथम कर्तव्य है कि इस कार्य को अंजाम देनें के लिए स्वप्रेरणा से आगे आयें। ऐसी आशा, अपेक्षा एवं आग्रह के साथ।
जय मूलनिवासी