आवश्यक्ता है: आपके गांव में एक इकोदूत की; जो सालाना दस लाख या अधिक कमाना चाहते हों। भूमिका समझने के लिए इसे पढ़ें
सामान्य या अल्प आय वर्ग के कर्मठ व्यक्तियों को उच्च आय अर्जित करने के रास्ते पर लगाना।
इस प्रकार हमारी "मानव संसाधन" उपयोग-दक्षता में वर्तमान स्तर से, कई गुना वृद्धि कर; कुछ वर्षों के भीतर भारतीय अर्थव्यवस्था को दुनिया की सबसे सक्षम व बड़ी अर्थव्यवस्था बनाना।
पारकेम्प®; वह पैशन एप्टीट्यूड रिकॉग्निशन कैंप है जिसका रजिस्टर्ड व्यापार चिन्ह क्रमांक 3552174 है. जिसका वैश्विक वैब पहचान नाम (डौमेन) है: parcamp.in
पारकेम्प®; समृद्धि की आकांक्षा संजोने वाले, सालाना दस लाख या अधिक कमाने का हौसला रखने या सपना संजोने वाले उन व्यक्तियों, जो अभी कम वेतन पा रहे हैं या पूर्णतया बेरोजगार हैं या जो 2021-22 में भारत में अंशकालिक काम करके कमाना चाहते हैं; के लिये है.
पारकेम्प® चौकोर छेद में गोल खूंटी होने की हताशा का हल है।
बेरोजगारी, कम वैतन और कार्य विषमता को समाप्त करने का उपाय है
खुद की बेरोजगारी को नष्ट करने के लिए अंशकालिक या पूर्णकालिक काम करके कमाई करने के लिये.
पारकेम्प® दिनांक 19 मई 2017 जर्नल नंबर 1805 के संबंध में: "किसी व्यक्ति की प्रतिभा, जुनून, योग्यता और सामाजिक मान्यता के संरक्षण के लिए कानूनी सुरक्षा सेवाएं व किसी व्यक्ति के करियर की जरूरतों को पूरा करने के लिए दूसरों द्वारा प्रदान की गई सामाजिक सेवा व दूसरों के लिए भर्ती सेवाएँ" करने के लिये पंजीकृत है।
यदि लोगों को उनके छिपे हुए जुनून और प्रतिभा की प्रासंगिकता में सर्वोत्तम संभव फिट में तैनात किया जाये तो वे आसानी से सैंकड़ों अन्य सामान्य लोगों को पछाड़ सकते हैं।
इस तरह काम से संबंधित तनाव, कुंठा-जनित चिड़चिड़ापन, खिन्नता व उत्साहहीनता समाप्त होकर उनकी दक्षता बढने व उस बढ़ी हुई क्षमता से हम निश्चित रूप से बेहतर उत्पादकता हासिल कर सही उम्मीदवार को बेहतर वेतन के रूप में अधिक लाभ साझा कर सकते हैं।
जैसे मछली को पेड़ पर चढ़ाने की जगह पानी में व पक्षी को पानी में तैराने की जगह हवा में उड़ने मे लगाने पर दोनो किसी प्रमोशन के लालच में भ्रष्टाचार करने वाले हैं क्या?
कोविड समाप्ति से अगलेे तीन वर्षों में डेड़ करोड़ भारतीयों को ऐसे काम में लगाना जिसे वह अपने वैश्विक समकक्ष की तुलना में उत्साहपूर्वक कई गुना कुशलता से कर पाये.
आगे की यात्रा पर चलने के पहिले जानना जरूरी नहीं है, कि हमारा वाहन क्या है; जिस पर सवार होकर हम मुंगेरीलाल के हसीन सपने देखने को तैयार हों?
क्या हमें मालूम है कि हममें से प्रत्येक व्यक्ति दस हजार अन्य लोगों की तुलना में कम से कम एक काम बेहतर तरीके से कर सकता है?
अब यदि कोई हममें से उस छिपी हुई "प्रतिभा, रुझान और योग्यता" को खौज निकाले; जिससे हमारी बढ़ी हुई क्षमता से हम बेहतर उत्पादकता हासिल कर सकें; तो क्या काम से संबंधित तनाव, कुंठा-जनित चिड़चिड़ापन, खिन्नता व उत्साहहीनता समाप्त नहीं हो जाएगी?
क्या यह चौकोर छेद में गोल खूंटी होने की हताशा का हल नहीं हो सकता; जिससे कभी का सोने की चिड़िया जैसा हमारा देश आज गुजर रहा है?
क्या हम यह समझ गये, कि इस प्रकार बिना किसी अतिरिक्त शिक्षा, पूंजी या शासन की मदद के; हम कुछ ही वर्षों के भीतर अपनी आर्थिक परिस्थिति केे उन्नयन के साथ ही साथ; भारतीय अर्थव्यवस्था को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में नहीं बदल सकते?
क्या हम कुछ समय के लिए सभी प्रकार की नकारात्मकता को दूर कर इस बात पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं कि हमारी क्या ताकत अभी भी हमारे साथ बनी हुई है?
इस असंभव से लगते लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, क्या हमें अपनी इस छिपी हुई ताकत का लाभ नहीं उठाना चाहिए?
क्या हम देख सकते हैं कि अब तक हम अपने साथी देशवासियों के संयुक्त प्रयासों से क्या हासिल कर चुके?
इस प्रयोजन के लिए क्या हम पूर्व कोविड काल की वह तालिका देख सकते हैं, जो दर्शाती है; आकलन वर्ष 2018-19 के लिए सभी आयकर दाताओं की कुल कितनी आय थी?
ऊपर की सारणी में क्या हम देख सकते हैं कि 5 87 13 458 व्यक्तियों ने सामूहिक रूप से कुल आय 51,33,084 करोड़ अर्जित की.
क्या यह औसतन 874260 रूपए प्रति व्यक्ती नहीं होती है?
क्या ३१ मार्च 2018 को लगभग 587 लाख लोगों की व्यक्तिगत आय के इस स्तर के साथ हमारी जीडीपी 125.6591लाख करोड़ रुपए या कुल आय की लगभग 2.25 गुना रिपोर्ट नहीं की गई थी?
तो क्या मात्र $5 ट्रिलियन लक्ष्य तक पहुँचने के लिए हमारी कुल आय इसके 40% से ऊपर नहीं होनी चाहिए?
अर्थात सिर्फ $ 2 ट्रिलियन या रुपयों में 144.30 लाख करोड़ है। (शनिवार 29 फरवरी 2020 के @ 1 यूएस $ = रुपए 72..15 की दर से)
ऊपर की सारणी के तीसरे कॉलम की सबसे नीचे की नीली पंक्ति अनुसार क्या सामूहिक रूप से हमने पहले ही 51.33 लाख करोड़ रुपये की आय प्राप्त नहीं कर ली है?
$5 ट्रिलियन लक्ष्य अनुसार अब क्या हमें केवल 92.97 लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त नहीं कमाने होंगे?
क्या आज हमारे यहां लगभग 25 करोड़ परिवार नहीं हैं?
क्या उनमें से लगभग 6 करोड़ पहले से ही लगभग नौ लाख की औसत आय उत्पन्न नहीं कर रहे हैं?
क्या बाकी बचे हुये 19 करोड़ परिवार अतिरिक्त 93 लाख करोड़ की आय उत्पन्न नहीं कर सकते; जिससे हमारे औसत परिवार की कमाई 4 89 315 हो जाये?
दूसरे शब्दों में, हर किसी की सालाना आय 98 हजार हो जाये।
लेकिन क्या सिद्धांत रूप में भी इस प्रकार का समतावाद या यूटोपिया ढाई गुना प्रभाव उत्पन्न कर सकता है? क्या आपकी 5 साल की बेटी या अस्सी वर्ष की मेरी माँ; ऐसी किसी गतिविधि में भाग ले सकती हैं?
क्या इसलिए यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि हम इस स्तर पर सभी को अपना उत्पादन बढ़ाने के लिए मजबूर नहीं कर सकते?
अब क्या सवाल नहीं उठता है कि हम आज के माहौल में किस समूह से ऐसी महत्वाकांक्षाओं की आपूर्ति की उम्मीद कर सकते हैं?
क्या हमें इस चुनौती का हल करने के लिए अन्य विकल्पों का पता नहीं लगाना चाहिये?
आइये कुछ विकल्पों पर विचार करें.
विकल्प एक: क्या हम विचार नहीं कर सकते हैं, सिर्फ 1981 और 2001 के बीच पैदा हुए व्यक्तियों का; जो अपनी भरी जवानी में हैं जो नौ लाख रुपये के वर्तमान औसत से अधिक कमाने की महत्वाकांक्षा भी रखते हों?
दूसरे विकल्प में क्या हम 1961 और 1981 के बीच पैदा हुए एैसे लोगों पर विचार नहीं कर सकते हैं जो वर्तमान में औसत से नीचे कमा रहे हों?
तीसरा विकल्प क्या हम वरिष्ठ नागरिकों को जीवन के अपने अनुभवों का लाभ उठाने और वर्तमान औसत से अधिक "कमाई करने के लिए नहीं कह सकते है?
विकल्प एक में हमारे पास लगभग 34,54,08,339 लोग हैं लेकिन उनमें से शायद केवल 70% ही 9 लाख से अधिक कमाने की कोई महत्वाकांक्षा और क्षमता रखते हों; सो क्या हम इस खंड में केवल 24,17,85,837 पर विचार कर सकते हैं?
परिदृश्य दो में हमारे पास लगभग 24, 40, 94,326 लोग हैं लेकिन उनमें से 30% शायद ही 9 लाख से अधिक कमाने की कोई महत्वाकांक्षा और क्षमता रखते हों; इसलिये क्या हम इस खंड में केवल 17, 08, 66,028 पर विचार कर सकते हैं?
परिदृश्य तीन में हमारे पास लगभग 7, 81, 46,681 बुजुर्ग हैं, लेकिन उनमें से शायद ही 30% शारीरिक और मानसिक रूप से सक्षम हों अतएव क्या हम इस खंड में केवल 5, 47, 02,677 पर विचार कर सकते हैं?
क्या तीनों परिदृश्यों पर विचार करने पर हमारे पास 46, 73, 54,542 व्यक्तियों की एक विशाल संभावना नहीं है?
लैकिन आकांक्षाओं के अभाव में सामाजिक हठधर्मिता, परिवारिक रूढ़िवादिता, शारीरिक या मानसिक अक्षमता, लैंगिक पूर्वाग्रह, अनिश्चितताओं की आशंकाओं और भीरुता जनित संशय इत्यादि से ग्रस्तता के कारण; उनमें से 80% अभी जहां है वहीं बने रहना पसंद नहीं करते हैं क्या?
आज के करोना के दौर में किसी भी महत्वाकांक्षी भविष्य की आशा में विश्वास करना क्या उनके लिये सम्भव भी है?
लेकिन फिर भी प्रसिद्ध 80 20 नियम के अनुसार शेष 20% को उनमें छिपे जोश, स्र्झान और संभावित योग्यता की पहचान करके क्या सशक्त व सक्षम नहीं बनाया जा सकता है?
क्या हमारे पास 9 34 70 908 या तकरीबन ९ करोड़ संभावित लोग भी नहीं हैं? जो साल में दस से पचास लाख कमाने की यात्रा शुरू कर (९ करोड़ लोग X रुपये 10 लाख = 90 ट्रिलियन या) 90 लाख करोड़ रुपये मौजूदा अर्थव्यवस्था में नहीं जोड़ सकते?
क्या सिर्फ ९ करोड़ लोग; यदि प्रति वर्ष दस लाख रुपये कमाते हैं; अर्थव्यवस्था के टपकन सिद्धांत द्वारा हमें आसानी से $ 5 ट्रिलियन इकोनॉमी तक नहीं पहुँचा देंगे?
क्या ठीक इसी जगह अपनी दिमागी कसरत मैं हमसे एक पेंच नज़र अन्दाज नहीं हो गया? जो क्या वैसा ही नहीं है जैसा पटवारी साहब सपरिवार नदी पार करते समय नदी की गहराई और अपने परिवार के सदस्यों की ऊंचाई का औसत निकालने में कर बैठे थे?
यहां क्या हम भी बड़े खर्च करने वाले समूह की ताकत को ठीक उसी तरह औसत की आड़ मे छिपाकर नजर अन्दाज नहीं कर रहे थे?
ऊपर की सारणी के पहिले कॉलम की ऊपर से बारहवी से सोलहवी पंक्ति अनुसार क्या यह 10 लाख से 50 लाख के बीच की कमाई करने वाले मात्र 56 लाख लोगों का ही वर्ग नहीं है?
जब इस वर्ग में 56 लाख लोग थे तब हमारी जीडीपी दो ट्रिलियन डॉलर थी; इसके सोलह गुना लोगों के, इस समूह में प्रवेश करने पर, हमारी जीडीपी सत्तावन (57) ट्रिलियन डॉलर पर पहुंचने से कौन रोक सकता है?
दो साल पहले तक संपूर्ण विश्व की जीडीपी 87 ट्रिलियन डॉलर ही थी.
पर 10 लाख से 50 लाख के बीच की कमाई करने वालों का वर्ग ही हमने क्यों चुना है?
क्या इससे कम आमदनी वाला वर्ग अपने यंहा पूर्णकालिक रसौईया, ड्राइवर, माली, आया या अन्य कर्मचारियों को रखकर एकाधिक सम्मानजनक रौज़गार उपलब्ध करा सकता है? और यदि यह नहीं हुआ तो फिर हम वह ढाई गुना प्रभाव कैसे उत्पन्न कर सकते हैं?
क्या हम एक साधारण परिवार के सदस्यों (मां-बाप, दो-तीन बच्चे और दादा-दादी) की संख्या; औसतन पांच मान सकते हैं?
अब फिर से बोरिंग गणित पर आते हैं हमारे नवसमृद्धता की ओर बड़ने वाले व्यक्तियों के परिजनों को मिलाने पर 93470908 * 5 = क्या हम 46 73 54 540 की मानव संख्या पर नहीं पहुंच जाते?
जो क्या हमारे देश की कुल आबादी का तकरीबन एक तिहायी नहीं है; या दूसरे शब्दों में देश के हर तीन परिवार में से एक परिवार?
जो कि बचे हुए दो परिवारों में से कुछ को सीधा रौजगार (रसौईया, ड्राइवर आदि) तो कुछ को अन्य तरह से जैसे फल, सब्जी, किराना, जेवर, वाहन इत्यादि खरीद कर; उनको पैदा करने, ढौने, बेचने, बनाने, संग्रह करने या मरम्मत इत्यादि करने के रौजगार नहीं उपलब्ध करा पायेंगे?
और हमारी सिर्फ यह नवसमृद्ध आबादी (467354540) दुनिया के समृद्धतम एक या दो या तीन नहीं बल्कि उच्चतम आय वाले पूरे चौदह देशों की सम्मिलित आबादी* (436164599) से भी अधिक नहीं हो जायेगी?
सवाल उठता है कि इसके लिये क्या कदम दर कदम उठाए जाने चाहिए?
क्या हमारे सामने एक और सवाल नहीं उठता है कि: हम जनसंख्या का इतना बड़ा हिस्सा कहां तैनात कर सकते हैं?
पढ़ने के लिए यह बहुत बड़ा बनाने के डर से; यहां मैं अपने पहले से लिखे गए (लगभग चार साल पहले 2 जुलाई 2016 को 3:36 बजे) उत्तर की लिंक डाल रहा हूं जो आसानी से हमें अन्य व्यावहारिक चरणों के लिए मार्गदर्शन कर सकता है।
अजय सक्सेना का जवाब है कि भारत को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने में कितना समय लगेगा? और हम इसे जल्दी करने के लिए अभी क्या कर सकते हैं? क्षमा करें पर इस लिंक का लेख अंग्रेजी में है।
यदि हममें से प्रत्येक इस दिशा में चिंतन करना शुरू कर दे और हर पन्दरह में से एक या हर तीसरे परिवार से एक; अपने"अस्सहाय्य-ग्रस्तता जनित हीन भावना" वाले छोटे आराम क्षेत्र के वैयक्तिक कोश को तोड़ डालें; क्या हम इस लक्ष्य को जल्द से जल्द प्राप्त नहीं कर सकते हैं?
इस उद्दैश्य प्राप्ति की प्रक्रिया विकसित करने में क्या हमें देश के प्रत्येक कोने तक पहुंचने की व्यवस्था निर्माण नहीं करना चाहिये?
क्या वहां पहुंच कर हर पन्दरह में से एक महात्वाकाँक्षी व्यक्ति ढूंढने हैतु हमे पूर्णतया स्थानीय और वह भी पूर्णकालिक व्यक्ति की आवश्यक्ता नहीं पड़ेगी?
क्या हम उन्हें शिविर समन्वयक के रूप में नामित नहीं कर सकते?
क्या आमजन के लिये वे इकोदूत की भूमिका नहीं निभायेंगे?
क्या हम, मेंरी वसीयत में #25 पर उनकी स्थिती नहीं देख सकते?
क्या हमें उनकी एकरूपता के लिये निम्नानुसार मानक नहीं तय करने चाहियें?
जो 1 जनवरी 1977 के बाद पैदा हुये हों।
हम तीन पीढ़ियों से एक ही गाँव में रहे हों।
जो स्वयम् बहिर्मुखी व्यक्तित्व के धनी और अभी पूर्णतया बेरोजगार हों।
बेरोजगार युवाओं के माता-पिता से सम्मान पाने की महत्वाकांक्षा रखते हों।
बेरोजगार युवाओं को अपनी रोटी कमाने में मदद करने की इच्छा रखते हों।
पड़ोसी ग्रामीणों के साथ पूर्वाग्रहों के बिना बातचीत करने की इच्छा रखते हों।
जिनके मोबाइल में उनकी बात ध्यान से सुननेवाले कम से कम पचास लोगों के नंबर हों।
पड़ोस की आबादी, जो 50 गांवों तक में फैली हो सकती है, से मेलजौल की इच्छा रखते हों?
यदि आप इन आठ पूर्व शर्तों को पूरा करते हैं, तो आप अनुज्ञाधारी शिविर समन्वयक के लिए आवेदन करने के लिए पात्र हैं।
हमें अनुज्ञाधारी शिविर समन्वयक हैतु इस पृष्ठ को (परामर्शक (पथ प्रदर्शक) को पारितोषिक) तक पूरा पढ़ने के बाद उसके नीचे से (शिविर समन्वयक के लिए आवेदन) प्रपत्र भरना है।
और गांव का नाम के आगे उस गांव का नाम भरें; जहां हमारे दादा-दादी रहते थे और हम भी वहीं रह रहे हैं। यह वह केंद्र है जहां से हम अपने व्यवसाय को संचालित कर सकते हैं और अपने घर से दस किलोमीटर की अधिकतम दूरी तक काम कर सकते हैं।
हमें अपना पिन कोड उस जगह में भरना है जो गाँव का नाम भरने के बाद दिखाई देता है। जिसे आप अपने डाकिया से पूछ कर पा सकते हैं; जो हमारे गांव में हमारी डाक का वितरण करता है। पिन कोड; पोस्टल इंडेक्स नंबर पोस्ट ऑफिस नंबरिंग को संदर्भित करता है जहां से हमारी डाक हमारे डाकिया के माध्यम से आती है।
उस के बाद हमें ईमेल लिखना है; जिसे हम नियमित रूप से जांचते हैं और उस के बाद वह मोबाइल नंबर लिखना है; जिसमे हम एसएमएस देखते हैं।
उस के बाद हमें वह मोबाइल नंबर लिखना है; जिसमे हम एसएमएस देखते हैं।
उस के बाद हमें उनका मोबाइल नंबर लिखना है; जिन्होंने हमको पारकैम्प® के बारे में बताया. यदि अजय ने बताया तो लिखिये "१२३४५६७८९०"
आपका आवेदन कोविड काल के बाद180 दिनों के लिए वैध रहेगा। अगर आवेदन जांच के अगले स्तर के लिए परिपूर्ण पाया गया तो इस अवधि के भीतर हम आपसे और अधिक जानकारी; जैसे कि आपका डाक का पूरा पता इत्यादि पूछेंगे।
आरम्भिक पृथम शिविर पर्यंत, बेरोजगार युवाओं के नामांकन हैतु पारकेम्प® का साहित्य लेकर हमें उन तक पहुंचना रहेगा.
नामांकन पश्चात शिविर पर्यंत की कार्यवाही का विवरण आपके आवेदन की जांच में परिपूर्ण पाये जाने पर; यथा समय आपको सूचित किया जायगा.
क्या शिविर समन्वयक बनने लायक व्यक्तियों तक पहुंचने और उन तक यह सारा उनकी भाषा में समझाने के लिये हमें कुछ समझदार व वृहत सम्पर्क वृत्त वाले ऐसे महानुभावों; जो कि अंशकालिक रूप से यह कर सकें; तक नहीं पहुंचना चाहिये?
क्या हम उन्हें परामर्शक (पथ प्रदर्शक) के रूप में नामित नहीं कर सकते?
क्या इकोदूतों के लिये वे इको-प्रसारक की भूमिका नहीं निभायेंगे?
क्या हम उन्हें संक्षेप में प्यार से इकोरक नहीं पुकार सकते?
क्या हम वसीयत में #24 पर उनकी स्थिती नहीं देख सकते?
परामर्शक (पथ प्रदर्शक) की भूमिका को और आसान भाषा में समझने के लिये पढ़ें: यह पप्पू के नाम के आगे जी कौन ने लगा दिया?
परामर्शक (पथ प्रदर्शक) बनने हैतु आपको अपने वाटसेप समूहों में या अन्य संसाधनों से यौग्य अभ्यर्थी खौजकर उन अभ्यर्थीयों का मार्गदर्शन करके निम्नानुसार कार्य करने हैं:
उन के आवेदन की प्रक्रिया पूर्ण करवाना है
पूरे देश में कहीं के भी अलग-अलग गांवों से आवेदन करवाने हैं
इस साइट पर उपलब्ध सामग्रि पढ़कर अभ्यर्थीयों को उनकी भाषा में पूर्णतया समझाना है
शिविर समन्वयक द्वारा उनकी चयनित आय के लक्ष्य को हासिल करने में इस साइट से जानकारी लेकर उनका मार्गदर्शन करना है.
एक उपयुक्त व्यक्ति को पहचान कर उन्हें इको भारत दर्शन के समान मानसिक आधार पर लाने पर आपको (#16) अनुसार पारितोषिक मिलेगा।
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टीम को उनकी चयनित आय के लक्ष्य को हासिल करने में इस साइट से जानकारी लेकर उनका मार्गदर्शन करना है. आपको (#16) अनुसार पारितोषिक मिलेगा।
निम्नांकित तालिका में दर्शाया गया पारिश्रमिक मौद्रिक पुरस्कार भाग 1 है।
इस तालिका की अंतिम पंक्ति को सफलतापूर्वक प्राप्त करने के बाद, भाग 2 में सलाहकार मण्डल में बैठक मानदेय इत्यादि।
उच्च प्रदर्शन करने वाले (स्पष्ट रूप से शीघ्र आरम्भ करने वाले) को संबंधित वाणिज्यिक संगठन में स्टैक मिलेगा, ताकि वह आज के अपने प्रयासों के लिए एक स्थायी आय अर्जित कर सके।
आपके द्वारा अर्जित किया गया वार्षिक पारिश्रमिक पूरी तरह से आपके द्वारा लाए गए शिविर समन्वयक, परामर्शदाता, टीम सलाहकार या राज्य सलाहकारों की सम्मिलित संख्या द्वारा अर्जित वार्षिक राजस्व पर निर्भर करेगा।
उस राजस्व के ऊपर आपके द्वारा अर्जित की गई ऐसी नमूना राशि को; तालिका के अंतिम कॉलम (रकम हजार रुपयों में) में दर्शाया गया है।