“जन-जन का चेहरा एक” कविता कवि “गजानन माधव मुक्तिबोध जी” द्वारा लिखी गई है। कवि ने इस कविता मे आंतरिक एकता को दिखाते हुए जनता के संघर्षकारी संकल्प मे प्रेरणा और उत्साह का संचार करते है। इन पंक्तियों कवि कहते है की, चाहे किसी देश का हो चाहे किसी प्रांत का हो सभी लोगों का चेहरा एक है। सभी लोग एक समान है।
एशिया, यूरोप, अमरीका सभी देशों गलियों की धूप एक है। जब लोग किसी परेशानी मे, कष्ट या दुख मे होते है। उस समय लोगों के चेहरे पर जो झुरीय, जो लकिरे दिखाई देती है, वो एक ही होती एक समान होती है। जब एकसाथ जोश मे अपनी मुट्ठी बंद करते है। उन बँधी हुई मुट्ठियों का लक्ष्य एक होता है।
पूरी गोल पृथ्वी के चारों ओर धरातल पर जितने भी लोग और जनता है, सभी का दल और पक्ष एक है। (सभी मानव जाति के है।) जब जनता क्रोधित होती है तो उसका क्रोध उस लाल जलते हुए भयानक सूर्य की तरह होती है। उस गुस्से का जो इशारा होता है वो एक सा होता है।
गंगा, इरावती, मिनाम की जो बेचैनी है, वो एक ही है। नील नदी, आमेजन, मिसौरी इन सभी नदियों की जो वेदना है, वो एक समान है। जिंदगी देने वाली इन नदियों की बहती धारा का संगीत एक समान है। जितनी प्रेम से ये धरती को सींचती उस प्रेम का इशारा एक समान है, और क्रोधित होने पर जो दुष्ट प्रभाओ परता है, उसकी धारा भी एक जैसी है।
आशा की लाल-लाल किरणे जब काले अंधकार को खत्म करेगी, तो सभी मित्रों का, सभी लोगों का स्वर्ग एक होगा। जो ज्ञान का तेज प्रकाश है वो एक जैसा है, हमारे अंदर जो क्रांति की जो ज्वाला है वो एक जैसी है। हृदय मे धड़कते सत्य की जो रोशनी है, वो एक जैसी है। लाखों लोग जो लाचार है, उनकी वेदना जो है वो एक जैसी है। उनके हृदय मे जो हिम्मत का जो सितारा है वो एक जैसी है।
सभी लोग भाई-बहन की तरह रहते है। कोई ऐसा जगह नहीं है, जहाँ कृष्ण की लिलयों का वर्णन नहीं है। सभी ओर कन्हैया ने गाये चराई है। जिंदगी मे बहुत से बेचैनी है, पर उन बेचैनी मे मस्ती की जो भोर है वो एक ही है। कृष्ण की बंसी की जो धुन है, वो सभी को प्यारी है, सभी के लिए ये धुन एक ही प्रकार की है।
जो शोषक है, खूनी और चोर है सब एक जैसे ही दिखाई देते है। सभी लोगों पर जो शोषण की तलवार है वो एक जैसी है। लोगों की माथे पर जो चिंता की लकीर है और उनके अंदर जो ऊष्मा है, हृदय की जो ज्वाला है, उसका (क्रुद्ध) क्रोध है, वो एक जैसा है। शोषण के विरुद्ध जो हम क्रांति,जो युद्ध करते है, उसके निर्माण का उसके विजय का जो सेहरा है वो एक समान है। चाहे हम जिस भी देश के हो, जिस भी प्रांत के हो जन जन का चेहरा एक है। हम सब एक ही है।