नाभादास द्वारा लिखा गया यह छप्पय भक्तमाला से संकलित है। नाभादास ने अपने इस छप्पर में कबीर और सूरदास के व्यक्तित्व गुण और उनके कविताओं के सौंदर्य एवं प्रभावों के बारे में लिखा है। नाभादास जी, कबीर जी के बारे में कहते हैं कि कबीर जी ने ह्रदय की भक्ति को धर्म माना है और योग्य, यज्ञ, व्रत, दान और भजन आदि को तुच्छ दिखाया है। कबीर जी ने किसी के साथ पक्षपात नहीं किया है, चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम, इसका प्रमाण रमैनी और सबदी है। जो मेरी बातों का साक्ष्य (सबूत) हैं।
नाभादास जी, सूरदास जी के बारे में कहते हैं कि, उनकी सभी रचनाएं युक्ति, चमत्कार और अनुप्रास की स्थिति से भरी होती है। उनके जो वचन होते हैं, वह प्रेम से भरी होती है। जो एक तुक को धारण किए हुए होते हैं। सूरदास जी की कविताएं कृष्ण लीला से जुड़ी हुई होती है। जिसमें उन्होंने हरि के जन्म, कर्म, गुण और रूप का वर्णन किए हैं। सूरदास की कविताओं को जो भी सुनता है, उसकी बुद्धि निर्मल हो जाती है। इनकी कविताओं को कोई गलत नहीं कह सकता, सभी इसमें अपनी हामी भरते हुए अपना सर हाँ में हिलाते हैं।