अधिनायक कविता रघुवीर सहाय के संग्रह आत्महत्या के विरुद्ध से ली गई है। यह एक व्यंग्यात्मक कविता है। जिसमें कवि कहते हैं की, राष्ट्रगात में भला कौन वह है, जिसे भारत का भाग्य विधाता बोला गया है। यह कौन है, जिसका गुणगान फटा सुथन्ना पहने हरचरना गाता है। अर्थात हर आम आदमी गाता है, हर गरीब आदमी गाता है।
पाता नहीं वह कौन अधिनायक है, जो छाता और चँवर से युक्त टमटम पर सवार होकर, मखमल के वस्त्र और पगड़ी पहनकर, बल्लम, तुरही के साथ आता है। इस लोकतंत्र मे वह कौन है, जो तोप छुड़ाकर (तोपों की सलामी लेता है), ढोल बजाकर अपनी जय-जय करता है, अपनी जयकार लगवाता है।
वह कौन है। जिसके लिए पूरब-पश्चिम अर्थात सभी दिशाओ से, राष्ट्रीय त्योहारों पर गरीब जनता नंगे पाॅवो आती है। उन्हे देखकर ऐसा लगता है, जैसे वे नरकंकाल हो। सिंहासन पर बैठाकर उनके (गरीब जनता के) तमगे (मैडल) लगवाने वाला वह कौन है। राष्ट्रीय गान मे वह “जन-गण-मन- अधिनायक” वह महाबली कौन है। जिसका बाजा रोज बजता है। डरी हुई जनता मन-बेमन जिसका गुणगान करती है। वह कौन है।