यह पंक्ति दिंगत भाग 2 के कड़बक पाठ से ली गई है। कड़बक पद्मावत महाकाव्य से संकलित हैं। जिसके कवि मलिक मुहम्मद जायसी जी है। मुहम्मद जायसी ने इस कविता में जो सुनाया है। इसे वही समझा पाया है और गाया है, जिसने प्रेम की पीड़ा को सुना और समझा है। प्रेम को रक्त कि लेई (गोंद) लगाकर जोड़ा गया है, इसकी गहरी प्रीति को आँसुओं से भिगोया गया है। मन में यह जान कर इस कविता की रचना की गई है, कि जगत में मेरी यही निशानी बची रह जाएगी।
कवि कहते है, अब कहाँ है, वह रत्नसेन जो ऐसे राजा था? कहाँ है, वह सुआ जो ऐसा बुद्धि लेकर जन्मा था? कहाँ है, वह अलाउद्दीन सुल्तान? कहाँ है, वह राघवचेतन जिस की शान का इतना बखान किया गया है? कहाँ है, वह विश्व सुंदरी रानी पद्मावती? अब कोई नहीं रहा, जग में उनकी कहानियाँ रह गई है। उनकी ध्वनि अब सुनाई नहीं देती है पर उनकी कृतियाँ रह गई हैं । जैसे फूल मर जाते हैं पर उनका सुगंध रह जाता है। किसी ने जगत में अपनी यश को नहीं बेचा है, किसी ने उसे यश का मूल्य नहीं लिया है। जो यह कहानी मैंने पढ़ा है उसी के बारे में सभी से दो बोल बोला है।