एक नैन कबि मुहमद गुनी । सोइ बिमोहा जेईं कवि सुनी ।
प्रस्तुत पंक्ति मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत का अंश है। यह पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के कड़बक कविता से लिया गया है। कवि कहते है, मै एक ही आँख से गुणी हूँ लेकिन जिसने भी मेरी वाणी को सुना है। वो मुझसे मोहित हो गया है। मैंने अपने रूपहीनता पर नही अपने गुणों पर अधिक ध्यान दिया है।
चाँद जइस जग विधि औतारा । दीन्ह कलंक कीन्ह उजिआरा।
प्रस्तुत पंक्ति मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत का अंश है। यह पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के कड़बक कविता से लिया गया है। कवि कहते है, चाँद जो इस संसार मै ईश्वर का औतार है, उसे भी कलंकित और श्रापित होना पड़ा है, पर उसने अपने कलंक को छोड़ अपनी चांदनी को संसार में बिखेरा है। इसलिए संसार उसके कलंक को नही उसके गुणों को देखता है।
जग सूझा एकइ नैनाहाँ । उवा सूक अस नखतन्ह माहाँ ।
प्रस्तुत पंक्ति मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत का अंश है। यह पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के कड़बक कविता से लिया गया है। कवि कहते है, कवि संसार को अपनी एक ही आंख से देखते हैं, जो आकाश के नक्षत्र के मध्य में उदित होने वाले उस शुक्र नामक तारे के समान है। जो बहुत चमकीला और गुणी है।
जौं लहि अंबहि डाभ न होई । तौ लहि सुगंध बसाइ न सोई।
प्रस्तुत पंक्ति मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत का अंश है। यह पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के कड़बक कविता से लिया गया है। कवि कहते है, जब तक आम में डाभ (मंजरी, मोजर) नहीं होती है। तब तक उसमें सुगंध (मिठास) नहीं बसती है। अर्थात आम मे जब तक नुकीलापन या कड़वा रस नही होता। तब तक उसमे मिठास नही होता है और न ही उसमे सुगंध आता है।
कीन्ह समुद्र पानि जौं खारा । तौ अति भएउ असूझ अपारा ।
प्रस्तुत पंक्ति मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत का अंश है। यह पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के कड़बक कविता से लिया गया है। कवि कहते है, जो समुन्द्र इतना विशाल है, जिसमे अनेक प्रकार के जल जीव निवास करते है। ईश्वर ने उस समुद्र के जल को भी खारा बना दिया है। जिसमें सभी नदियों के जल आकर मिलते हैं, लेकिन समुद्र का एक गुण है की उसके जल में कभी बाढ़ नहीं आती।
जौं सुमेरु तिरसूल बिनासा | भा कंचनगिरि लाग अकासा ।
प्रस्तुत पंक्ति मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत का अंश है। यह पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के कड़बक कविता से लिया गया है। कवि कहते है, जिस सुमेरू पर्वत को शिव जी ने अपने त्रिशूल से नष्ट किया, वह (कंचनगिरि) सोने की पर्वत बनकर आकाश को छूने लगा।
जौं लहि घरी कलंक न परा । काँच होइ नहिं कंचन करा ।
प्रस्तुत पंक्ति मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत का अंश है। यह पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के कड़बक कविता से लिया गया है। कवि कहते है, जब तक घरिया मैला नहीं होता या कोयला नहीं जलता है, जब तक सोने को आग के ऊपर तपाया नही जाता है, तब तक कच्ची धातु सोना नहीं होती और ना ही कड़ा होती।
एक नैन जस दरपन औ तेहि निरमल भाउ ।
सब रूपवंत गहि मुख जोवहिं कई चाउ ।।
प्रस्तुत पंक्ति मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत का अंश है। यह पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के कड़बक कविता से लिया गया है। कवि कहते है, मेरी एक ही आँख है। जिससे मै इस संसार को देखता हूँ। ये आंख दर्पण के समान है, इसका भाव निर्मल है। सब रूपवान लोग बड़े चाव से इनका मुख देखते हैं।
मुहमद यहि कबि जोरि सुनावा । सुना जो पेम पीर गा पावा ।
प्रस्तुत पंक्ति मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत का अंश है। यह पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के कड़बक कविता से लिया गया है। कवि कहते है, मुहम्मद कवि की इस काव्य रचना को जिसने भी सुना है और प्रेम की पीड़ा को सुना है। उसी ने प्रेम की पीड़ा को समझा है और उसे गा पाया है।
जोरी लाइ रकत कै लेई । गाढ़ी प्रीति नैन जल भेई ।
प्रस्तुत पंक्ति मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत का अंश है। यह पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के कड़बक कविता से लिया गया है। कवि कहते है, प्रेम को रक्त कि लेही (गोंद लगाकर) लगाकर जोड़ा गया है। इसकी गहरी प्रीति (प्रेम) को आंखों के आँसुओ से भिगोया गया है। अर्थात प्रेम को पाना आसान नही होता है इसमे पीड़ा भी होती है और आँसु भी होते है।
औ मन जानि कबित अस कीन्हा । मकु यह रहै जगत महँ चीन्हा ।
प्रस्तुत पंक्ति मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत का अंश है। यह पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के कड़बक कविता से लिया गया है। कवि कहते है, मन में यह जानकर इस कविता की रचना की गई है, कि मरने के बाद भी इस संसार मे, इस जगत में मेरी यही निशानी बची रह जाएगी।
कहाँ सो रतनसेनि अस राजा । कहाँ सुवा असि बुधि उपराजा ।
प्रस्तुत पंक्ति मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत का अंश है। यह पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के कड़बक कविता से लिया गया है। कवि कहते है, अब कहाँ है, वह रत्नसेन जो ऐसा राजा था? कहाँ है, वह सुवा जो ऐसे बुद्धि लेकर जन्मा था?
कहाँ अलाउद्दीन सुलतानू । कहँ राघौ जेइँ कीन्ह बखानू ।
प्रस्तुत पंक्ति मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत का अंश है। यह पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के कड़बक कविता से लिया गया है। कवि कहते है, कहाँ है, वह अलाउद्दीन सुल्तान? कहाँ है, वह राघव चेतन जिसके शान का बखान किया था?
कहँ सुरूप पदुमावति रानी । कोइ न रहा जग रही कहानी ।
प्रस्तुत पंक्ति मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत का अंश है। यह पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के कड़बक कविता से लिया गया है। कवि कहते है, कहाँ है? वह सुंदरी रानी पद्मावती। यहाँ अब कोई नहीं है, इस संसार मे उनकी कृतियों के रूप में मात्र उनकी कहानियाँ ही रह गई है।
धनि सो पुरुख जस कीरति जासू । फूल मरै पै मरे न बासू ।
प्रस्तुत पंक्ति मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत का अंश है। यह पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के कड़बक कविता से लिया गया है। कवि कहते है, पुरखों की आवाज उनकी यस उनकी कृतियाँ ही रह जाति है, हम उन्हे उनकी कृतियों से ही जानते है। जैसे फूल झरकर नष्ट हो जाते हैं, पर उसकी सुगंध कभी नहीं नष्ट होती है।
केइँ न जगत जस बेंचा केइँ न लीन्ह जस मोल ।
जो यह पढ़ कहानी हम सँवरै दुइ बोल ।।
प्रस्तुत पंक्ति मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत का अंश है। यह पंक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग 2 के कड़बक कविता से लिया गया है। कवि कहते है, किसी ने संसार में अपने यश को नहीं बेचा है। किसी ने अपने यश का मूल नहीं लिया है। जिसने भी इस कहानी को पढ़ा है, उसी ने दो बोल हम सब से बोले हैं।