“सिपाही की माँ”, “मोहन राकेश” द्वारा लिखी गई यह एकांकी “अंडे के छिलके तथा अन्य एकांकी” से ली गई है। इस एकांकी में निम्न मध्यवर्ग के ऐसी माँ बेटी की कथा को दिखाया गया है। जिसके घर का इकलौता बेटा सिपाही के रूप में द्वितीय विश्व युद्ध के मोर्चे पर बर्मा में लड़ने गया है।
2 महीने से उसकी कोई चिट्ठी नहीं आई है। बिशनी सिपाही की माँ है। जो अपने बेटे के लिए परेशान है और बहन मुन्नी मंगलवार को भैया की चिट्ठी आएगी, ऐसी भविष्यवाणी करती है। हर मंगलवार के दिन चिट्ठी आने का इंतजार करती है।
मुन्नी विवाह के लिए तैयार हो गई है। पड़ोसी भी बिशनी को यह याद दिलाते हैं कि बिशनी सबसे यही बोलती है, “मानक के आने का इंतजार है”। उसी पर घर की पूरी आशा टिकी है वह लड़ाई के मोर्चे से कमा कर लौटे तो बहन के हाथ पीले हो सके। मुन्नी अपने लिए सुच्चे मोती के कड़े की इच्छा करती है।
बर्मा से आई लड़कियों ने बताया कि बर्मा में लड़ाई हो रही है और वहाँ की हालत बहुत बुरी है। बर्मा समुद्र के रास्ते जाया जाता है पर हम लोग अपनी जान बचाने के लिए जंगल के रास्ते आए हैं। जंगल का रास्ता बहुत खतरनाक है। जंगली जानवरों और दलदलों से भरा है। बिशनी सपने में मानव को एक वहशी और जानवर के रूप में देखती है। जो अपने दुश्मन सिपाही की जान लेने के लिए आतुर है।