उत्तर- वाक् शक्ति ईश्वर के द्वारा मनुष्य को दिया गया एक वरदान है। अगर हमने वाक् शक्ति न होती तो, सारी सृष्टि गूंगी होती। हम अपनी बातें, अपनी भावनाओं तथा जो सुख-दुख का अनुभव हम करते हैं। वो हम दूसरी इंद्रियों द्वारा करते हैं और ना हम किसी से कह पाते और ना उनकी सुन पाते। हम लोग लुंज-पुंज से होते, मानो तो पशुओं की तरह।
उत्तर- बातचीत के संबंध में बेन जॉनसन और एडीसन के विचार निम्नलिखित है।
बेन जॉनसन:- बेन जॉनसन का यह कहना कि "बोलने से ही मनुष्य के रूप का साक्षात्कार होता है।" यह बहुत ही उचित जान पड़ता है क्योंकि जब तक मनुष्य बोलता नहीं तब तक उसका गुण और दोष प्रकट नहीं होता है।
एडिशन:- एडिशन का मत है कि "असल बातचीत से सिर्फ दो व्यक्तियों में हो सकती हैं।" जिसका तात्पर्य यह हुआ कि जब दो आदमी होते हैं तभी अपना मन एक दूसरे के सामने खोलते हैं। तीसरे की उपस्थिति मात्र से ही बातचीत की धारा बदल जाती है। तीन व्यक्तियों के बीच की मनोवृति के प्रसरण की व धारा बन जाती है मानो उस त्रिकोण के तीन रेखाएँ हैं। बातचीत में जब चार व्यक्ति लग जाते हैं तो 'बेतकल्लुफी' का स्थान 'फॉर्मिलिटी' ले लेती है।
उत्तर- "आर्ट ऑफ कनवरसेशन" का अर्थ है, बात या वार्तालाप करने की कला। यूरोप के लोगों का "आर्ट ऑफ कनवरसेशन" पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इसके हुनर की बराबरी स्पीच और लेख दोनों नहीं कर पाते इसकी हुनर की पूर्ण शोभा काव्य कला में दिखाई देती है। इस कला में माहिर व्यक्ति लोगों के सामने ऐसे चित्र चतुराई से प्रसंग छोड़ते हैं कि उनसे बात करने वाले लोगों को बहुत अच्छा लगता है। सुहद गोष्ठी इसी का नाम है। सुहद गोष्ठी की विशेषता है कि बोलने वाले व्यक्ति अपनी बातों को इतनी चतुराई से बोलते हैं कि उनके वाक्यों में अभिमान का या कपट कहीं दिखाई नहीं देती है और बातचीत आराम से होती रहती है।
उत्तर- मनुष्य की बातचीत का सबसे उत्तम तरीका खुद से बात करना अर्थात आत्मवार्तालाप है। मनुष्य को चाहिए कि वह अपने अंदर ऐसी शक्ति पैदा कर सकें जिससे वह अपने आप से बात कर लिया करें। स्वयं से बात करना इतना सरल काम नहीं है बरसों के अभ्यास के उपरांत यदि हम थोड़ी देर अपनी मनोवृति स्थिर कर अवाक् हो कर अपने मन के साथ बातचीत कर सकें तो मानो, अहोभाग्य!
हमारी जिह्वा कतरनी के समान सदा स्वच्छंद चलती चला करती है। यदि हम इस पर काबू पाए पा लिया तो क्रोध आने पर भी हम बिना कुछ बोले अपने बड़े बड़े शत्रुओ को जीत, अपने वश में कर सकते हैं। इसलिए अवाक् रह अपने बातचीत करने का यह साधन अन्य सभी साधनों का मूल है, शक्ति परम पूज्य मंदिर है, परमार्थ की एकमात्र सीढ़ी है। इस प्रकार हम नवीन संसार की रचना कर सकते हैं। जिसके कोई किसी का शत्रु नहीं होगा।
उत्तर- इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक हम यह बताना चाहते हैं कि हमारे मन बहुत चंचल है। वह हर क्षण बदलता रहता है। वह किसी वस्तु को देखकर , कभी उसे पाना चाहता है तो कभी उसे नष्ट कर देता है, हमारा मन हर क्षण हमें एक नए रूप रंग से मिलाता है। हमारा मन इस संसार में होने वाली सभी प्रपंच को रचता है और उसका हाल भी करता है "वह इस प्रपंच नाथ मक संसार का एक बड़ा भारी आईना है। इस आईने में हम जैसे चाहे वैसे सूरत देख सकते हैं" इस उलझे हुए, पहेलीनुमा संसार में अनेक प्रकार के लोग हैं सभी की सोचने-समझने तथा बातचीत करने का तरीका अलग-अलग है। जिसके कारण कोई किसी का दुश्मन है तो कोई दोस्त। ये सबकुछ हमारे इस चंचल मन के कारण है। इससे नियंत्रण में रखने का सबसे अच्छा उपाय है। अपने मन पर नियंत्रण अर्थात अपने जिह्वा पर नियंत्रण रखना।
उत्तर- इस पंक्ति के द्वारा लेखक हमसे यह कहना चाहते हैं कि सभी मनुष्य में सोचने-समझने की शक्ति अलग-अलग होती है। बात करने का तरीका अलग होता है। कुछ लोग बहुत मीठा बोलते हैं वे अपनी बातों को सीधे और सरल तरीके से दूसरों के सामने रखते हैं। जिसे सुनकर लोगों को उनकी बात समझने में आसानी होती है तथा उनसे बात करना लोगों को अच्छा लगता है और कुछ लोग अपनी बातें बातों से लोगों को निराश कर देते हैं। उनकी बातों में अहंकार होता है। वह दूसरों को हमेशा नीचा दिखाने की कोशिश करता है। लोग जैसा सोचते और समझते हैं वैसा ही बोलते इसलिए कहा गया है। जब तक मनुष्य बोलता नहीं तब तक इसके गुण और दोष प्रकट नहीं होते। लोग में क्या गुण है और क्या दोष है उसके बोलने तथा आपस में बात करने से पता चलता है।
उत्तर- बालकृष्ण भट्ट के अनुसार सबसे उत्तम प्रकार का बातचीत अपने में वह शक्ति पैदा करना है जिससे व्यक्ति स्व से बात कर सके। बोलने से ही मनुष्य के रूप का साक्षात्कार होता है। बातचीत के दरम्यान ही मनुष्य अपने दिल की बात को एक दूसरे के समक्ष प्रकट करते हैं। वास्तव में, जबतक मनुष्य बोलता नहीं है तबतक उसका गुण दोष प्रकट नहीं होता। बातचीत के द्वारा ही दो व्यक्तियों से लेकर मीटिंग या सभा तक की भावना और चाहत को समझा जाता है। एक तरह से देखा जाये तो बातचीत वह केन्द्र बिन्दु है, जिसके द्वारा मनुष्य के अंदर छिपे हुए गुण-दोष को सहज ही समझा जा सकता है। अतः स्पष्ट है कि मौन रहने से व्यक्तित्व का पता लगाना आसान नहीं होता है।