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क्षत्रिय शब्द की व्युत्पत्ति की दृष्टि से अर्थ है जो दूसरों को क्षत से बचाये। क्षत्रिया, क्षत्राणी हिन्दुओं के चार वर्णों में से दूसरा वर्ण है। इस वर्ण के लोगों का काम देश का शासन और शत्रुओं से उसकी रक्षा करना माना गया है। भारतीय आर्यों में अत्यंत आरम्भिक काल से वर्ण व्यवस्था मिलती है, जिसके अनुसार समाज में उनको दूसरा स्थान प्राप्त था। उनका कार्य युद्ध करना तथा प्रजा की रक्षा करना था। ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार क्षत्रियों की गणना ब्राहमणों के बाद की जाती थी, परंतु बौद्ध ग्रंथों के अनुसार चार वर्णों में क्षत्रियों को ब्राह्मणों से ऊँचा अर्थात् समाज में सर्वोपरि स्थान प्राप्त था। गौतम बुद्ध और महावीर दोनों क्षत्रिय थे और इससे इस स्थापना को बल मिलता है कि बौद्ध धर्म और जैन धर्म जहाँ एक ओर समाज में ब्राह्मणों की श्रेष्ठता के दावे के प्रति क्षत्रियों के विरोध भाव को प्रकट करते हैं, वहीं दूसरी ओर पृथक् जीवन दर्शन के लिए उनकी आकांक्षा को भी अभिव्यक्ति देते हैं। क्षत्रियों का स्थान निश्चित रूप से चारों वर्णों में ब्राह्मणों के बाद दूसरा माना जाता था।
वैदिक साहित्य में क्षत्रिय का आरम्भिक प्रयोग राज्याधिकारी या दैवी अधिकारी के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। "क्षतात त्रायते इति क्षत्य अर्थात् क्षत आघात से त्राण" देने वाला। मनुस्मृति में कहा कि क्षत्रिय शत्रु के साथ उचित व्यवहार और कुशलता पूर्वक राज्य विस्तार तथा अपने क्षत्रित्व धर्म में विशेष आस्था रखना क्षत्रियों का परम कर्तव्य है। क्षत्रिय अर्थात् वीर राजपूत सनातन वर्ण व्यवस्था का वह स्तम्भ है जो भगवान की भुजाओं से जन्म पाया और ब्राम्हण के बाद मानव समाज का दूसरा अंग कहा गया। यो क्षयेन त्रायते स?ःक्षत्रिय की उपाधि से अतंकृत क्षत्रिय के लिये गीता में कहा गया कि -
शौर्य तेजोधृति र्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनमं।
दानमीश्वर भावश्च क्षत्रं कर्म स्वभावजम॥
अर्थात् शूरवीरता, तेज, धैर्य, युद्ध में चतुरता, युद्ध से न भागना, दान, सेवा, शास्त्रानुसार राज्यशासन, पुत्र के समान पूजा का पालन - ये सब क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्तव्य - कर्म कहे गये हैं
राजपूतों के लिये यह कहा जाता है कि वह केवल राजकुल में ही पैदा हुआ होगा,इसलिये ही राजपूत नाम चला,लेकिन राजा के कुल मे तो कितने ही लोग और जातियां पैदा हुई है सभी को राजपूत कहा जाता,यह राजपूत शब्द राजकुल मे पैदा होने से नही बल्कि राजा जैसा बाना रखने और राजा जैसा धर्म "सर्व जन हिताय,सर्व जन सुखाय" का रखने से राजपूत शब्द की उत्पत्ति हुयी। राजपूत को तीन शब्दों में प्रयोग किया जाता है,पहला "राजपूत",दूसरा "क्षत्रिय"और तीसरा "ठाकुर",आज इन शब्दों की भ्रान्तियों के कारण यह राजपूत समाज कभी कभी बहुत ही संकट में पड जाता है। राजपूत कहलाने से आज की सरकार और देश के लोग यह समझ बैठते है कि यह जाति बहुत ऊंची है और इसे जितना हो सके नीचा दिखाया जाना चाहिये,नीचा दिखाने के लिये लोग संविधान का सहारा ले बैठे है,संविधान भी उन लोगों के द्वारा लिखा गया है जिन्हे राजपूत जाति से कभी पाला नही पडा,राजपूताने के किसी आदमी से अगर संविधान बनवाया जाता तो शायद यह छीछालेदर नही होती।