यहाँ आपको कुछ Samana की महान लोगो के जीवन के बारे में पड़ने को मिलेगा जिन्होंने सामना के लोगों के लिए और समाज के लिए बहुत ही अच्छे काम किये हम सब को उनकी Life से प्रेरणा लेनी चाहिए ।
केवल शिक्षाविद्ध ही नही अपने आप में संस्था थे- स्व. हैडमास्टर साधु राम जी ।"
सामाना के प्रसिद्ध समाज सेवक तथा शिक्षाविद् श्री साधु राम जी हैडमास्टर का क्षेत्र में सम्माननीय स्थान है। आप का जन्म 15 अप्रैल, 1934 को गाँव रोहषो कला लुधियाना में श्री राम प्रसाद जी के घर हुआ। आपने अपनी शिक्षा ए.एस हाई स्कूल, खन्ना तथा ए. एस. कालेज, खन्ना से स्नातक की डिगी प्राप्त की। जे. बी. टी. डिग्री प्राप्त कर के जनता हाई स्कूल, राजपुरा में अध्यापक नियुक्त हुए यही आपने एम.ए इतिहास तथा एम.ए पब्लिक एड मिनिस्ट्रेशन की डिग्रियों पंजाब विश्व विद्यालय से प्राप्त की। फिर आप अध्यापक के पद पर नियुक्त हुए। 20 अगस्त 1966 को मुख्याध्यापक के रूप में पब्लिक हाई स्कूल, समाना में आए। उस समय स्कूल में पाच कमरे तथा विद्यार्थियों की संख्या लगभग 480 थी। आपने लगन और परिश्रम से स्कूल का लगभग 50 कमरों पर आधारित भवन बनवाया तथा 14 अप्रैल 1992 तक इस स्कूल में मुख्याध्यापक पद से सेवामुक्त हुए। आज वहां 2500 विद्यार्थी है।
इसी समय के अन्तर्गत 1969 ई में पबिलक कालेज, समाना की स्थापना की तथा इस कालेज की प्रबन्धक कमेटी के स्थायी स्दस्य रहे। सन् 1976 में माडल पब्लिक स्कूल समाना, 1978 में अग्रसेन वूमेन कालेज, सामाना का आरम्भ आप के प्रयत्नों से ही हुआ। ये संस्थाएँ आज कल यहाँ की मुख्य संस्थाओं में हैं। सेवा निवृति के पश्चात् १६६२ से आप माडल पब्लिक सीनियर सकैण्डरी स्कूल, समाना में प्रशासक प्रिंसीपल के पद पर काम किया। शिक्षा के क्षेत्र के अतिरिक्त आप का अनेक सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं से भी सम्बुद्ध रहे। श्री सती मन्दिर कमेटी के संरक्षक, स्वर्ग धाम कमेटी के संचालक, ब्राहाणसभा सामाना के संरक्षक तथा वृद्धाश्रम व सतिमंदिर प्राईमरी स्कूल के संस्थापक एवं संचालक के रूप में अथक परिश्रम किया। पंजाब सरकार ने आप की सामाजिक सेवाओं को ध्यान में रखते हुए सामाना उपमण्डल की प्राकृतिक आपदाओ से सम्बन्धित कमेटी का सदस्य मनोनीत किया। सेवा भावना तथा कर्मठता का उदाहरण होते हुए भी आपने कभी किसी सम्मान की नहीं की। अधिकारियों ने अनेक बार आप से अनुरोध किया कि राज्य पुरस्कार के लिये आवेदन करें, पर आपने उन के अनुरोध को हमेशा सादर अस्वीकार कर के अपनी सहदयता का प्रमाण दिया।
सामाना के लोग आप को आदर से हैडमास्टर साहिब कह कर बुलाते थे। उस समय अग्रसेन गर्लज हाई स्कूल खेलने में भी व्यस्त तो 1998 व 1992 के आतंकवाद के दौर में भी पीडित परिवारों को लाखों रूपये इकठे करके आर्थिक मदद की। गरीब व जरूरतमंद लड़कियों की सामुहिक शादी करना तो इनके लिये आम बात थी। कारगिल युद्ध दौरान समाना जैसे छोटे से नगर से 15 लाख रूपये इकठे करके प्रधानमंत्री के पास भेजना पुशष्नीय व यादगारी कार्य रहेगा। किसी गरीब व अमीर व्यक्ति के अतिम भोग रसम पर श्रदांजलि देते अक्सर नजर आते रहे। गरीब व बेसहारा लोगों के अयों का निशुल्क संस्कार करना वह अपना कर्तव्य मानते थे। विशेष भेट में उन्होंने बताया कि दुर्लभ मानव जीवन मिलने के बाद भी कल्याणकारी मानवजीवन को ही उत्तम माना गया है। असल में सफेद काहों में वह किसी संत से कम नहीं थे। समाना में वह पटियाला के दूसरे दीर दरसीपी राम के ही रूप माने जाते
अर्थात सभी का कल्याण हो, निरोग हो, भला हो, कोई दुखी न हो, यही उनकी कामना थी। उनकी अथक समाज “सर्वे मम सुखिना, सर्वे संतु निर्मया" सर्वे प्रदानी पचतु मां कश्यि दुख भाव भक्ताः। को देखते ही गोवरात उनका एक बुत वृद्ध आश्रम कमेटी द्वारा आश्रम परिष्ट में स्थापित किया गया हुए ताकि आने वाली पीढी उनसे प्ररेणा ले सके।
गृहस्थ में रहकर सफेद कपड़ों में सच्चे संत थे श्री स्वगीय डा. हरी चंद जी संस्थापक अनाथ गऊशाला एवं पिंगला आश्रम
डाः भगवान का दूसरा रूप होते है, आज के इस भौतिक में मैं सभी को तो नही परन्तु कुछ डा. दिशाहीन हो गए है। युग जो गरीब, अमीर कुछ नही देखते बड़े-बड़े प्राइवेट हस्पतालों में लाखों रूपये पहले जमा करवाते है फिर उनका इलाज किया जाता है। आज हम आप को बताते हैं श्री डा. हरी चंद जी की संत रूपी जीवनी के बारे में।
श्री डा. हरी चंद जी ने 1955 ई. में पहले अनाथ गऊशाला की स्थापना की। श्री डा साहिब का सादा जीबन वह नंगे पांव रहते सर्दी गर्मी में सफेद कुर्ता पजामा पहनते थे । सर्दी गर्मी में वह ना तो बूट चप्पल पहनते और ना ही कोई कोटी कम्बल ओड़ते जिन्होने प्रैक्टीकल में भगवान की सेवा की अगर कोई गाय मर जाती तो उसके बच्चे को निपल से दूध पिलाते अगर बिल्ली मर जाती तो उसके बच्चों को ड्रापर से दूध पिलाते, कोई पक्षी जख्मी हो जाता तो उसको पिंजरे में रखकर उसका जख्म ठीक करते। उसको चोगा खिलाते जब वह ठीक हो जाता तो उसको उड़ा देते। अपनी दुकान पर 15-20 बच्चों को निशुल्क पढ़ाते थे दुकान खोलने से पहले वह सुबह 4 बजे अनाथ गऊशाला जाते वहां प्रभु भक्ति करते फिर गऊओं की मरहम पट्टी कर के पिंगला आश्रम आ जाते । 1960 में डाः साहिब ने पिंगला आश्रम की स्थापना की। वहां उस वक्त 8-10 लावारिस बच्चें - बूढ़े रहते थे। डाः साहिब उनकी गंदगी साफ करके नहला धुला कर उनको चाय नाश्ता करा कर सूर्य उदय से पहले घर वापिस आ जाते थे। वह कहते थे कि हमने किसी को दिखाना नहीं की हम सेवा कर रहे हैं। डाः साहिब सुबह शाम दोनो वक्त गऊशाला तथा पिंगला आश्रम जाते उनकी सेवा कर के वापिस आ जाते और वहां का पानी तक नहीं पीते थे। यह थी उनकी वहां की निस्वार्थ सेवा ।
डाः साहिब की डाक्टरी पेशे में देखिए उनकी उदारता दवाई लेने वालो से 10 पैसे 15 पैसे 25 पैसे दवाई के लेते थे । अगर किसी किसी को टीका लगाया तो उससे एक रूपया लेते थे जबकि उस वक्त समाना के दूसरे डाक्टर 3-4 रूपै लेते थो अगर वो डाक्टर साहिब उससे पैसे नही मांगते थे । पिंगला आश्रम में एक मरीज आया नाम था वसीया राम उसके शरीर में चर्म रोग की इतनी भयानक बिमारी थी दूर से ही उसके शरीर से बदबू आती थी। डा. साहिब ने उसका इलाज किया वह ठीक हो गया। और वसीयां राम वही पर 1 10-12 मरीज रहते थे उनकी सेवा करने लग गया। डा. साहिब का प्रभु पर दृढ़ विश्वास का करिश्मा एक दिन वसीया राम डाः सहिब के पास दुकान पर आया और कहने लगा कि डा. साहिब आज पिंगला आश्रम में आटा बिल्कुल नहीं है बच्चे भूखे बैठे है। डा. साहिब बड़े विश्वास से कहने लगे कि जिस प्रभु ने वहां उन बच्चों को बिठाया है वह अपने आप आटा भजेंगे तू चिंता मत कर अभी बात कर रहे थे कि एक सज्जन 40 किलो आटा लेकर आ गया और कहने लगा कि मेरी पत्नी ने कहा है कि पहले आटा देकर फिर आकर भोजन करना ऐसे था डा. साहिब का विश्वास प्रभु पर ।
एक और प्रभु का चमत्कारिक विश्वास। एक बार ललौछी गांव से एक बहन आई और डाः सहिब जी से कहने लगी कि मैंने आप को स्वपन में देखा और प्रभु ने मुझसे कहा कि वही बाबा जी सफेद कपडे वाले आप की झोली में आपको बच्चा दे सकते है। डाः साहिब कहने लगे बेटी मेरे पास कोई ऐसी शक्ति नहीं है प्रभु प्रार्थना करो लेकिन बहन शाम तक दुकान पर बैठी रही। शाम को डाः साहिब ने एक दवाई की पूड़िया बना कर दे दी और कहा कि जाओ बेटी भगवान भला करेंगे। उसके घर में दस साल से बच्चा नही हुआ था। डाः साहिब की दवाई का प्रसाद लेने के एक साल बाद उनके घर बच्चा पैदा हुआ और सारा परिवार उनका नतमस्तक हुआ आज भी ललौछी माजरी के लोग दवाई लेने के लिए आते है । आज से 50 साल पहले समाना में दवाईयों की थोक दुकान नहीं होती थी डा. साहिब पटियाला से दवाईयां लाते थे दवाईयां अटैची में लाते थे हर साल एक साल के बाद 31 मार्च को चूंगी पर दवाईयों की सभी पर्चीयां ले जाते उनकी चूंगी कटा कर आते यह थी उनकी ईमानदारी संयोगवश एक बार उनका मित्र उनके वार्ड से जीत कर एम. सी बना और डा. साहिब को चरण वन्दना की और कहने लगा कि अब आपको दवाईयों की चूंगी कटवाने की जरूरत नहीं अब मैं एम.सी बन गया हूँ, डा. साहिब ने उसको बड़े प्यार से बिठाया और बोले मेरे मित्र पहले तुम मेरे सामने कसम खाओ कि तुम जो भी अपनी दुकान का सामान लाओगे उसकी चुंगी कटवा के आओगे सत्य में बड़ी शक्ति होती है कहा तो वह डा. साहिब का मित्र डा. साहिब को पाप में डालने के लिए आया था कहां वह खुद पाप से बच गया उसने कसम खाई कि मैं अपने सामान की चुंगी कटवा कर आया करूंगा।
डा. साहिब शाम को पांच बजे गऊशाला तथा पिंगला आश्रम चले जाते थे सदियों के दिन ये रात को आठ बजे एक चोर दुकान के पिछले दरवाजे से अंदर आ गया डा. साहिब को कुदरती याद आ गया कि पिंगला आश्रम के पैसे दुकान पर रह गए हैं डा. साहिब ने दुकान खोली तो चोर पिछले दरवाजे से अंदर आकर पैसे चुरा रहा था जब डा. साहिब को देखा तो चोर डा. साहिब के पैरों में गिर गया और माफी मांगने लगा अब देखिए डा. साहिब की उदारता डा. साहिब ने वह पैसे उसकी जेब में डालकर भेजते हैं पर वह कहते हैं तूने यह पैसे नहीं चुराने थे क्योंकि यह पैसे पिंगला आश्रम के थे चलो कोई बात नहीं मैं अपनी जेब से पिंगला आश्रम के पैसे डाल दूंगा। पता नहीं तुम जरूरत के लिए पैसे चुराने के लिए आए थे यह थी उनकी उदारता ।
ऐसी बहुत सी सच्ची घटनाएं हुई है क्योंकि इस दास को भी पांच साल की उम्र से ही दर्शन होने शुरू हुए क्योंकि दास के पिता भी गऊशाला के मेंबर थे। उनके मन की आखिरी दो इच्छाएं थी। एक तो डाक्टरी पेशा था इसलिए वह कहते थे गरीबों के लिए फ्री डिस्पेंसरी खोली जाए दूसरा वह 15-20 गरीब बच्चों को निःशुल्क पढ़ाते थे उनकी दूसरी इच्छा थी कि गरीब बच्चों के लिए फ्री स्कूल खोला जाए। पर श्री परम पिता प्रमेश्वर को कुछ और मंजूर था और 3 नवंबर 1973 को यह महान विभुति शरीर रूप से तो बिछुड़ गई पर आज भी उनकी रूह आत्मा पिंगला आश्रम और अनाथ गऊशाला में विद्यमान है।
श्री परम पिता प्रमेश्वर जी की आपार कृपा प्रेरणा तथा श्री पदम श्री विजय चोपड़ा जी के आशीर्वाद से तथा आप दानवीरों के सहयोग से संगत का दास मदन परदेसी