महर्षि चरक शपथ 


- एक चिकित्सक के रूप में, मै अपनी सफलता, यश एवं अर्थ प्राप्ति के लिए सदैव अपनी विद्या का उपयोग प्राणीमात्र के कल्याण हेतु करता रहुंगा। 


- अत्यधिक व्यस्तता एवं विश्रांति की अवस्था में भी मैं दिन रात रोगी की सेवा हेतु आत्मवत्‌ तत्पर रहुंगा। 


- निज स्वार्थ एवं अर्थ लाभ के लिए किसी रोगी का अहित एवं कोई अनैतिक कार्य नहीं करूंगा। 


- मेरा परिधान मर्यादित परन्तु प्रभावित करने वाला एवं व्यक्तित्व विश्वास प्राप्त करने वाला होगा। 


- मै सदेव मधुर, पवित्र, उचित, आनंदवर्धक, सत्य, हितकारी तथा विनप्र वाणी प्रयुक्त करूंगा। 


- मै ज्ञान के नवीनतम विकास की उपलब्धि के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहुंगा। 


- मै ( पुरूष चिकित्सक ) किसी स्त्री की चिकित्सा उसके पति अथवा आत्मीय की उपस्थिति में ही करूंगा। 


- रोगी के परीक्षण के समय मेरा विवेक, ध्यान एवं इंद्रियां रोग निदान हेतु ही केन्द्रित होगीं। 


- मै रोगी अथवा उसके घर से सम्बंधित गोपनीय बातों का प्रचार नहीं करूंगा। 


- मै मरणासनन रोगी की विवेचना नहीं करूंगा क्योकि वह रोगी अथवा उसके आत्मीयजनों को आघातकारक हो सकता है । 


- मै अपने ज्ञान की अभिव्यक्ति अंहकार के रूप में नहीं करूंगा।