आयुर्वेद में औषध सेवन काल व उनके पीछे का कारण : क्लिनिकल दृष्टिकोण
आयुर्वेद में औषध-सेवन के आठ काल निर्दिष्ट हैं -
1. अन अन्न (खाली पेट / Empty stomach)-
-इस काल का प्रयोग बलवान रोगी में तथा कफ की बीमारियों में करने से लाभ मिलता है। आयुर्वेद अनुसार कफ की चिकित्सा शत्रु की तरह करने का निर्देश आया है इसलिए ख़ाली पेट दी गई दवा गम्भीर से गम्भीर कफ रोगों को नष्ट करने में सक्षम है। शास्त्र में वर्णित कफ नानतमज रोगों में इस काल में औषध प्रोयोग लाभकारी होता है।
उदाहरण-
-कफ़ज त्वचा रोग में भल्लातक सेवन।
-मोटापे में दी जाने वाली औषध।
-प्रमेह में शिलाजीत प्रधान औषध (चन्द्रप्रभा वटी, शिवा गुटिका)।
-यह काल रसायन काल भी कहा जाता है। सप्त धातु की पुष्टि के लिए लिया जाने वाला रसायन इसी काल में लाभ कर होता है। कारण - रसायन द्रव्य मुख्यतः गुरु (पचाने में भारी) होते है। अग्नि का सबसे पहला सम्पर्क रसायन औशध से होने पर वह इसे अच्छी तरह से पचा जाती है।तथा शरीर में अजीर्ण जैसी कोई भी परेशानी नहीं आती।
उदाहरण-
-चयवन प्राश सेवन।
-ज्वर या लम्बी बीमारी से ठीक हुए रोगियों में वसंत कल्प का सेवन।
-इस काल में किए गर्म गाय के दूध का सेवन भी रसायन गुण दर्शाता है।
-इम्यूनिटी बढ़ाने सम्बंधित दवाए।
2. सभक्तम् (Full stomach / Just after meals)-
-इसमें दो काल आते है। सुबह के खाने के बाद ली गई दवा व्यान वायु पर कार्य करती है, अतः हृदय सम्बन्धी रोगों में इस काल का प्रयोग करना चाहिए।
उदाहरण-
-अर्जुन/अर्जुनरिस्ठ प्रयोग।
-जीर्ण विष में हृदय रक्षण हेतु किया गया स्वर्ण प्रयोग।
-स्वेद/पसीना संबंधित रोगों की चिकित्सा।
-घबराहट (हृतद्रव), अवसाद सम्बंधित रोगों की चिकित्सा।
-रक्त वर्धन हेतु दिए जाने वाले लोह कलपो का प्रयोग।
-शाम के खाने के बाद ली गई औषध उदान वायु पर कार्य करती है। उदान वायु का कार्य वाक प्रवर्ती/बोलना, ऊर्जा बल वर्ण आदि आया है।
उदाहरण-
-वकील, नेता, वक्ता, अध्यापक आदि के स्वर सम्बन्धी रोगों/ वाक् कौशल को बलवान करने के लिए इस काल में औषध देनी चाहिए।
-चेहरे के वर्ण प्रसादन/सौंदरयिकरण के लिए, चेहरे की झाँइयों या आँखो के काले घेरो में इस काल में किया कुमकमदी तैल नस्य अथवा अन्य औषध प्रयोग।
3. अन्न आदो (just before meals)-
-भोजन से पहले दी जाने वाली औषध अपान वायु के क्षेत्र में कार्य करती है। गर्भाशय, मूत्राशय, पक्वाशय सम्बन्धी रोगों में इस काल पर औषध देने से लाभ मिलता है।
उदाहरण-
-पुरुष/स्त्री बंध्यतव में इस औषध काल का बहुत ज़्यादा महत्व होता है।
-मलबद्धता, किड्नी स्टोन, पाइल्स, फ़िशर इ रोगों में इसकाल का प्रयोग ज़रूर करे।
-मासिक धर्म सम्बंधित रोगों का उपचार (PCOD, menstrual disorder)।
-शूल का मुख्य कारण वात तथा वात का मुख्य स्थान पक्वाशय, इस विचारधारा से दर्द में प्रयुक्त गुगलू कल्प इस काल में बहुत लाभकारी होते है।
4. मध्ये (mid of meals)-
-इस काल में दी गई औषध का कार्य क्षेत्र समान वायु रहता है। समान वायु पाचन कार्य को सुचारु रखने में सहायक है।
उदाहरण-
-अरुचि, अजीर्ण, अमलपित्त, पेट फूलना इ अन्नवाह स्रोतस में इस काल का प्रयोग करना चाहिए।
-पर्पटी कल्प प्रयोग।
-मेरे निजी अनुभव से, आमवात में इस औषध काल में दी गई औषध (लशुनादि, अग्निटुंडी वटी ) बहुत लाभ कारी होती है। कारण सीधा सा है, आहार के पाचन में गड़बड़ी आने से आम की उत्पत्ति होती है तथा यही आम शरीर में अब्ज़ॉर्ब होने पर आम-वात करता है।
5. ग्रास-ग्रासन्त-
-आहार के ग्रास या ग्रास के बाद ली गई दवा प्राण वायु पर कार्य करती है। श्वास प्रश्वास की क्रिया प्राण वायु के अंतर्गत आती है अतः श्वास की क्रिया को बल देने वाली औषधियों का प्रयोग इस काल में लाभकारी होता है।
उदाहरण -
-लक्ष्मी विलास रस, श्रिंग भस्म इ का प्रयोग इस काल में श्वसन वह संस्था को बलवान बनता है।
-चौसठ प्रहरी पीपली का श्वसन वह संस्थान पर प्रयोग।
-तमकश्वस पर दी जाने वाली औषध का प्रयोग।
6. मुहूरमुहूर (frequent medication)-
-यह औषध काल इमर्जन्सी कंडिशन या फिर रोग के गम्भीर अवस्था में लाभकरि होता है।
उदाहरण-
-यह आयुर्वेद का इमर्जन्सी मेडिसिन काल कहलाता है।
-विष बाधा, बार-बार उल्टी, हिचकी, बार-बार प्यास लगना, बार-बार होने वाली खाँसी, तथा बार-बार साँस उखड़ने की स्तिथि में रोगी को थोड़ी थोड़ी देर पर दवा देने की ज़रूरत होती है, इसमें यह औषध काल लाभ कारी होता है।
7. सभोज्य (Mixed with meals)-
-इस औषध काल में भोजन में ही मिलाकर औषध दी जाती है।
उदाहरण-
-इसका उपयोग अरुचि में आया है। आहार में अनार दाना आदि मिलाकर उसे स्वादिष्ट बनाना इसी काल का ही एक उदाहरण है।
-बच्चों में प्रायः इसी काल में दवा देने का विधान आया है। ताकि बालक आसानी से दवा भी लेले और स्वाद में भी कोई परेशानी ना हो।
8. निशि (At bed time)-
-बहुत से चिकित्सक इस काल का प्रयोग पेट साफ़ करने वाली दवा, या फिर नींद लाने वाली दवा को देने में प्रयोग करते है परंतु आयुर्वेद दृष्टि कान इन सबसे काफ़ी अलग है।
-आयुर्वेद अनुसार इस काल में किए गए अपथ्य आहार तथा विहार से ऊर्ध्व जत्रु गत रोग (ENT disorders ) होने की सम्भावना होती है, इसलिए यह औषध काल ऊर्ध्व जत्रु गत रोगों के लिए उपयोगी होता है।
उदाहरण-
-आँखो की रोशनी को बढ़ाने हेतु रात्रि में त्रिफला चूर्ण प्रयोग।
-स्मरण शक्ति तेज करने के लिए तथा मस्तिष्क की कार्य क्षमता को बढ़ाने हेतु, ब्राह्मी वटी, सारस्वत अरिष्ट इ प्रयोग।
-प्रतिशयाय में प्रयुक्त चित्रक हरीतकी।
-इस औषध काल को वजीकरण चिकित्सा के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है।