इस बारिश में घने काले बादल तो हैं,
पर उन्हें देखकर नाचने वाले मोर नहीं ।
इस बारिश में पानी की बूँदें तो हैं,
पर शहर की व्यस्तता में कोई भीगने वाला नहीं ।
इस बारिश में मिट्टी गीली तो हैं,
पर शहर की प्रदूषित हवा में वो भीनी ख़ुशबू नहीं ।
इस बारिश में पानी बहता तो है,
पर साफ़ नदी उसे समाने के लिए नहीं ।
इस बारिश में पक्षियों की चहचहाहट और मेंढक की टरटराहट तो है,
पर शहर के इस शोर-शराबे में कोई सुनने वाला नहीं ।
इस बारिश में पानी बरसता तो है,
पर शहरवासियों की धन कमाने की प्यास ब़ुझती नहीं ।
इस बारिश में गर्मा-गर्म भ़ुट्टे और पकौड़े मिलते तो हैं,
पर ज़िम्मेदारियों के तले उन्हें खाने का वक़्त नहीं ।
इस बारिश में बादलों की गड़गड़ाहट तो हैं,
पर उसे सुनके ख़ुशी से झूमने वाला किसान नहीं ।
इस शहर की बारिश में वह सब क़ुछ तो हैं,
पर मेरे गाँव का वो सुकून नहीं ।
सब कुछ तो हैं पर मेरे गाँव का वो सुकून नहीं ॥
बतुल कॉचवाला
PC: Tempest Over The Pier - by Angad Soin